वे आये, उन्होंने चूमा और वे चले गये
By फ़ुरसतिया on April 24, 2007
बचपन से हम सुनते आये थे- वे आये, उन्होंने देखा और उन्होंने विजय प्राप्त की। (ही केम, ही सा एन्ड ही कान्कर्ड)
पिछ्ले दिनों हमें यह वाक्य एक बार फिर याद आया जब रिचर्ड गेरे जी ने खुले आम शिल्पा शेट्टी जी को चूमा और मन भर चूमा।
हमें लगा- वे आये, उन्होंने चूमा और वे चले गये।
हमने इसे देखा, हम चौंके और हम ठगे से रह गये।
वे अपना चूमने वाला मुंह लेकर चले गये। शिल्पा शेट्टी अपना चुमा हुआ सा मुंह लेकर रह गयीं। हम चुमी हुयी शिल्पा शेट्टी को लिये-दिये इस ऐतिहासिक घटना पर अपना मन का भूगोल बिगाड़ रहे हैं।
कभी हम सुलगते हैं कि हमारी आंखों के सामने एक विदेशी हमारे देश की महिला को चूमता रहा हमारे देश के लोग कैमरा चमकाते रहे। कभी लगता है कि विदेशी संस्कृति का एक प्रतिनिधि हमारी संस्कृति को खुले आम छेड़कर चला गया।
कुछ लोगों का मानना है कि यह शिल्पा शेट्टी और रिचर्ड गेरे का आपसी मामला है। वे दोस्त हैं। उनके गाल उनके होंठ के बीच में हम कौन होते हैं बोलने वाले। शिल्पा शेट्टी का भी सिर्फ़ यही मानना है कुछ ज्यादा हो गया। कुछ गलत हुआ यह कहती हुई वे नहीं सुनी गयीं।
मुक्त अर्थव्यवस्था के हिमायती शायद यह कहें कि यह प्रगति के पथ पर बढ़ा हुआ एक कदम है। ऐसे ही आगे बढ़ते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब दोनों अर्थव्यवस्थाऒं का अंतर मिट जाये।
ऐसे ही कई कोणों से यह घटना देखी जा सकती है।
कोई स्थितिविज्ञान का जिज्ञासु इस बात के अध्ययन में जुट सकता है कि मंच पर शिल्पा शेट्टी को चूमने को उचकते , लपकते रिचर्ड गेरे और चूमने से बचने का ‘मधुर- निरर्थक’ सा प्रयास करती शिल्पा शेट्टी की स्थिति का अध्ययन करते हुये यह पता लगया जाये इस चुम्बन क्रिया में ‘चुम्बन युग्म’ के गुरुत्व केन्द्र की स्थिति क्या परिवर्तन हुये।
कोई ‘सेंसेक्स सनकी’ इस घटना के कारण हुये शेयर बाजार में हुये उछाल का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि इस चंद मिनट की चुम्बन क्रिया में कितने हजार करोड़ का शेयर बाजार ऊपर-नीचे, दायें-बायें हो गया।
सामने नहीं आया लेकिन यह जरूर हुआ होगा कि दुनिया की तमाम प्रसाधन कंपनियों में यह सुझाब जरूर उछले होंगे -ये पाउडर लगाओ, वो लिपिस्टिक लगाओ, वो लिप लाइनर अपनाओ, वो कजरा लगाऒ तो किसी का भी मन आपको चूमने का करेगा। रिचर्ड गेर की जीन्स की कंपनी वाले अपने बास से सलाह ले रहे होंगे- क्यों साहब अगर इस सीन का उपयोग करके यह प्रचार करें कि अगर हमारी जीन्स पहनें तो आप दुनिया में किसी को भी चूम सकते हैं।
यही नहीं- दंतमंजन, माउथफ्रेसनर, बाडी लोशन, हेयर डाई, माइक, जूता-चप्पल, साड़ी,ब्लाउज अंदर की बात वाले और मर्दानगी के सबूत(चढ्ढी बनियाइन वाले) इसे अपनी तरह से भुना सकते हैं!
दुनिया के तमाम हृदय रोग विशेषज्ञ संस्थान गेरे-शेट्टी वीडियो का माइक्रोस्कोपिक अध्ययन करते हुये उनकी सांसों के उतार-चढ़ाव का ग्राफ़ देखकर शायद यह निष्कर्ष जारी कर दें कि इस तरह के कार्यव्यापर दिल की सेहत के लिये मुफ़ीद हैं!
कोई मनोवैज्ञानिक इस वीडियों फिल्म में आखें गड़ाये इस बात के सूत्र तलाश में जुटा होगा कि रिचर्ड गेर के चूमने में वात्सल्य कितना था, यौन उद्दाम कितना था, स्नेह कितना था, खिलंदड़ापन कितना था, बौड़म पने का क्या अंश था। इसमें कितना दोस्ताना अंदाज था और कितना उजड्डपने का अंश मिला था। वे पहले से ही इतना चूमने की सोचकर आये थे या एक-ब-एक ऐसा हो गया कि एक बार शुरू हुये तो रुक ही नहीं पाये। वे शिल्पा के भी मनोभाव का अध्ययन करके उनके बचने के प्रयासों में बेबसी, आनन्द, उल्लास, क्या बेवकूफ़ है, क्या खूब है आदि के भावों की मात्रा के अध्ययन में सिर खपा सकते हैं।
हमें यह भी लग रहा है हो न हो बिग ब्रदर कार्यक्रम में जो इंग्लैंड की एक माडल की फ़जीहत शिल्पा शेट्टी के कारण हुयी उसी की याद करके गेर ने शायद बदला चुकाया हो कि खुलेआम उनको चूमकर चले गये। या फिर शायद उसी सफलता की ‘बिलेटेड’ बधाई दे रहे होंगे। उचकते-चिपकते उत्साह के साथ।
बहरहाल भारत में भी इसकी अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियायें हुयीं। मैं कल्पना करता हूं कि अगर भारत के विभिन्न भागों में इस घटना की क्या प्रतिक्रिया होती।
मेरठ के जाट इलाके के लोग कहते हमारे गांव की मोड़ी को कोई ऐसे चूम के दिखा दे तो हम दोंनो को खोद के गाड़ देते।
कोई और खुले हुये दिमाग के लोग शायद कहें कि रिचर्ड गेर को ऐसा नहीं करना चाहिये। अगर अनजाने में ऐसा हो भी गया तो सारी बोल देना चाहिये।
किसी कन्या महावि्द्यालय के स्टाफ रूम में बतियाती कुछ प्रौढ़ा महिलायें शायद कहें- हमें कोई ऐसे चूम के दिखा दे। हम होती तो उसी माइक से गेर को मुंह फोड़ देते।
कोई ज्यादा ही खुले दिमाग की महिलायें शायद कहें- बस्स ही कुड किस ओनली! हाऊ पिटी! इतना डरपोक होगा गेर यह मुझे पता नहीं था। ऐसा भी क्या शर्माना!
दूसरी शायद कहें- शिल्पा शेट्टी को भी तो कुछ सहयोग करना चाहिये था न! ऐसे थोड़ी होता है आजकल के जमाने में। बराबरी का जमाना है भाई! काश मैं उसकी जगह होती!
ज्ञानी जन कहते- रिचर्ड गेरे को इतना तो तमीज होनी चाहिये कि जिस कार्यक्रम में आये हैं वहां के अनुरूप आचरण करते। ये दोस्ताना प्यार, गर्मजोशी मंच पर छितराने के पहले सोचना चाहिये कि उसका क्या असर पड़ेगा लोगों पर।
कुछ शायद सोचें- ये बड़ा बेशरम है। ऐसा तो हमारे ये कभी अकेले में भी नहीं करते।
किसी चाय की दुकान में अड्डेबाजी करते हुये लोगों के बयान शायद कुछ ऐसे होते-
-ये हरकत अगर वो हमारे मोहल्ले में करता तो उसका मुंह काला करके जुलूस निकाल देते।
-मुंह भले हम उसका काला न करते लेकिन जुतियाते तबियत से।
-यार हमें तो मार-पीट से डर लगता है। हम होते तो उसे उठाकर पटके देते और जैसे ही वह उठने की कोशिश करता हम उसे गुदगुदी कर देते। पटकने की वजह से वह हंस न पाता और गुदगुदी करने की वजह से रो न पाता।
-मुंह भले हम उसका काला न करते लेकिन जुतियाते तबियत से।
-यार हमें तो मार-पीट से डर लगता है। हम होते तो उसे उठाकर पटके देते और जैसे ही वह उठने की कोशिश करता हम उसे गुदगुदी कर देते। पटकने की वजह से वह हंस न पाता और गुदगुदी करने की वजह से रो न पाता।
ब्लागरों के भी अलग बयान जरूर होंगे। कोई कहता- अगर यही करना तो हम क्या बुरे थे।
जीतेंन्द्र शायद कहते- यार! काश ये गेर का ब्लाग नारद में रजिस्टर होता तो आज ही साले का ब्लाग बैन कर देता।
बहरहाल, जो हुआ सो हुआ। होनी को कौन टाल सकता है। लेकिन घटना की जांच से भी हमें कौन रोक सकता है। सो हमने घटना की जांच की और काफ़ी विस्तार से की। अब चूंकि आजकल मीडिया के बुराई के दिन चल रहे हैं लिजाहा हमें सारी घटना के पीछे केवल मीडिया की आधी-अधूरी जानकारी परोसने की आदत की इसका कारण लगती है। मीडिया ने जनता को पूरी बात बतायी नहीं।
असल में हुआ यह कि जिस कार्यक्रम में यह कार्यक्रम हुआ वह एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से आयोजित हुआ था। हजारों ट्रक ड्राइवर इकट्टा हुये थे। क्योंकि यह माना जाता है कि एड्स के सबसे अधिक शिकार ट्र्क ड्राइवर होते हैं। अपने कार्य की प्रकृति के कारण ट्रक ड्राइवर अपने घर से अधिकतर बाहर रहते हैं। इसीलिये वे अपने जीवन साथियों से अलग दूसरे लोगों से सबसे ज्यादा यौन सम्बन्ध बनाते हैं। ऐसे में उनके एडस का शिकार बनने की संभावनायें
सबसे ज्यादा होती हैं। उन्हीं ड्राइवरों को यह एडस के प्रति जागरूक बनाने के लिये इस सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
सबसे ज्यादा होती हैं। उन्हीं ड्राइवरों को यह एडस के प्रति जागरूक बनाने के लिये इस सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
सन्नी देवल, जिन्होंने एक गदर फिल्म में ट्रक डाइवर का रोल किया था, ने बहुत विस्तार से ट्रक डाइवरों को एच.आई.वी. और एडस की जानकारी दी और सुरक्षित संबंध बनाने के तरीके बताये। यह जानकारी का सत्र था।
अब जैसा कि होता है कि बिना विदेशी के हमारे देश के लोगों को कुछ समझ में आता नहीं इसलिये रिचर्ड गेर को भी बुलाया गया था। वे समाज सेवी हैं। उनकी समाज सेवा के अपने तरीके हैं। उन्होंने अपनी जवानी का जलवा दिखाते हुये मंच पर जो किया वह सबको पता है।
सन्नी देवल का सारा ज्ञान हवा में उड़ गया। क्या कहा उस पंजाबी पुत्तर ने इस जानलेवा बीमारी से बचने के लिये वह भ्रम की टाटी सा उड़ गया। बस फिजाऒं में शिल्पा शेट्टी और रिचर्ड गेर के चुंबन तैरने लगे। सन्नी देवल ने जब अपना भाषण दिया होगा तो उनके होंठ खुले होंगे। गेर के होंठ चूमते समय बन्द होंगे। खुले होंठ से निकली हुयी बातों को बंद होठों की हरकतों ने पैदल कर दिया। चुंबन ने ज्ञान की हवा उड़ा दी। इसी लिये कहा जाता है संगठन में शक्ति होती है।
हम गेर की हरकतों को हल्कापन कैसे कहें? वे एक भारी देश के प्रतिनिधि हैं। उनके यहां सामाजिक कार्य ‘एक्ट्रा करीकुलर एक्टीविटीस’ की तरह होते हैं। ये उनके लिये मौज मजे का भी साधन है। इससे उनकी कीर्ति में सितारे जुड़ते हैं। जिस किसी को जरा सा समय मिला वो निकल लेता है समाज सेवा के लिये। कुछ दिन पहले ऐसे ही एक कोईराल्फ़ फ़ेन साहब एच आई वी पर जागरुकता फैलाने के लिये आये थे। वे उसी जागरुकता अभियान के दौरान एक एअर होस्टेस के साथ असुरक्षित तरीके से फैले पाये गये। वे जिन हरकतों से बचने के लिये उपदेश देने आये थे उन्हीं असुरक्षित यौन संबंधों में लिप्त पाये गये।
इस बारे में रिचर्ड गेरे और मीडिया की खिंचाई करते हुये इतवार के हिंदुस्तान में अपने लेख अच्छे मकसद का तो मखौल न उड़े में मन्निका चोपड़ा ने लिखा-
एड्स जैसी चीजों को लेकर अगर मीडिया को शिक्षित करने की जरूरत है, तो अंतर्रष्ट्रीय सेलेब्रिटी को भी शिक्षित करने की इतनी ही जरूरत है कि वे स्थानीय संवेदनाऒं का ख्याल रखें।
हमारा देश चूंकि विकासशील देश है इसलिये हमारे यहां के लोग जब वहां जाते हैं तो महीनों घबराये से रहते होंगे कि कहीं कुछ ऐसा न हो जाये जिससे उन लोगों को बुरा लग जाये। वे चूंकि विकसित देश के प्रतिनिधि हैं लिहाजा इस डर की भावना से मुक्त रहते हैं और निर्दन्द आचरण करते हैं।
वे परदुखकातर भी हैं। हमें या और भी किसी देश की प्रगति के लिये बहुत परेशान रहते हैं। बहुत मेहनत करते हैं सारी दुनिया को अपने बराबर लाने के लिये।
कहीं भी शान्ति स्थापना का कोई प्रयास वे नहीं छो़ड़ते चाहे उससे दुनिया में कितनी ही अशान्ति न फैल जाये। एक व्यक्ति, जिसे वे बुरा मानते हैं, को मारने के लिये वे करोड़ों आदमियों को मारने में नहीं हिचकते। किसी भी पिछड़े देश को विकसित बनाने का मन आ गया तो उसे अपनी विकास की जीप में बांध लेते हैं। वो देश भी उनकी विकास की जीप में बंधा, रगड़ता, घिसटता जीप की गति से प्रगति करता रहता है जैसे पुरानी जमाने में लोग अपने दुश्मनों को अपनी जीप में बांधकर जमीन में रगड़ते हुये जीप पूरे गांव में घुमाते थे। दोनों के बीच की दूरी कभी कम नहीं होती।
ये लो हम फिर से लंतरानी हांकने लगे। कहां हम मीडिया की चूक बताने जा रहे थे , कहां हम देश-दुनिया की हांकने लगे।
हां तो मीडिया से जो चूक हुयी वो यह कि उसने घटना की पूरी जानकारी नहीं ठीक से नहीं दी।
हुआ यह कि जब सन्नी देवल बता चुके कि एड्स कैसे होता है, इससे बचने का उपाय क्या है आदि-इत्यादि। तब किसी ने सवाल उछाला होगा -साहब आप तो ये किताबी बातें बता रहे हैं। हमें कुछ समझ में नहीं आया कि एड्स कैसे होता है?
इसके बाद ही गेर मंच पर चढ़े होंगे और बताना शुरू किया ये देखो ऐसे होता है एडस! शुरुआत ऐसे होती है कि जैसे ही किसी को देखा बस शुरू हो गये।
मीडिया वालों को भारतीय संचार माध्यम के नियमों का पता होगा। इसीलिये उन्होंने आगे की शूटिंग बंद कर दी होगी। अब जब सूटिंग बंद तो एक्शन भी बन्द हो गया होगा।
लोग उत्तेजित हुये होंगे।
कुछ इस बात पर कि ये सब बेहूदगी क्यों, कैसे हुयी? इसे बचाना चाहिये होने से।
दूसरे तरफ़ कुछ लोग वे होंगे जिनका मानना होगा कि शूटिंग बीच में रोककर उनको एड्स जैसी लाइलाज बीमारी के चुंगल में साजिशन फंसाया जा रहा है। उनको जानकारी के अभाव में यह पता चल नहीं सका कि एडस होता कैसे है। इस तरह वे एड्स के चक्रव्यूह में फंस सकते हैं।
दोनों लोगों का गुस्सा अपनी-अपनी जगह जायज था।
यही दोनों गुस्से बाद में मिलकर एकसाथ मुंबई के एक चैनेल के स्टूडियों में पहुंचे होगें और तोड़फोड़ की होगी। इससे यह पता चलता है एक दूसरे के धुर विरोधी भी किसी तीसरे के ऊपर गुस्सा और तोड़फोड़ में परस्पर सहयोग कर सकते हैं। यह मेलजोल की संस्कृति है जो बलवे में काम आती है।
आगे की बात आप सब जानते हो। हम अब अपने मुंह से क्या बतायें? क्या कहते हैं आप!
इन्हे भी पढ़ें अगर न पढ़ा हो:
१. कितने गिरे गीअर?
२.भारतीय मर्द के गाल पर विदेशी स्त्री का चुंबन- विरोध करेंगे ?
३. हाय! हम अंग्रेज क्यों ना हुए?
४.गुल्लू (ट्रक ड्राइवर) का इन्टरव्यू
१. कितने गिरे गीअर?
२.भारतीय मर्द के गाल पर विदेशी स्त्री का चुंबन- विरोध करेंगे ?
३. हाय! हम अंग्रेज क्यों ना हुए?
४.गुल्लू (ट्रक ड्राइवर) का इन्टरव्यू
मेरी पसन्द
जहालतों (अज्ञानता) के अंधेरे मिटा के लौट आया,
मैं आज सारी किताबें जला के लौट आया।
वो अब भी रेल में बैठी सिसक रही होगी,
मैं अपना हाथ हवा में हिला के लौट आया।
बदन था जैसे कहीं मछलियां थिरकती हों
वो बहता दरिया था मैं भी नहा के लौट आया।खबर मिली है कि सोना निकल रहा है वहां,
मैं जिस जमीन पर ठोकर लगा कर लौट आया।
वो चाहता था कि कासा (भिक्षा पात्र) खरीद ले मेरा,
मैं उसके ताज की कीमत लगा के लौट आया।
-डा. राहत इंदौरी
Posted in बस यूं ही | 28 Responses
ghughuti basuti
वा ने वा की चुम्मी ले ली,
काई और को नम्बर आयो ना
बस जेई बात के कारन्ना
फ़ुरसतिया भर डारिन इत्ते पन्ना”
यहाँ तो कमेंट भी बढिया हैं।
अरूना तो कविता करने लगी । भई देखो यह अमेरिका की माया है । शिल्पा तो हिट हो गयी —”आपकी नज़रों ने समझा
प्यार के काबिल हमें5555 , दिल की ऐ धडकन…”
राखी सावंत से पूछो देसी मीका के काटने का अफसोस ।
मीका के स्थान पर रिचर्ड होते तो वे शिल्पा की तरह शर्माए बिना बिन्दास समर्थन देतीं।
आप तो फुरसतिया में चौतरफा वार करते हैं, पढ़ कर अच्छा लगा। मेरी ‘जगत-कुटिया’ आपको सुन्दर लगी, मुझे इससे संतोष हुआ।
“अरूना तो कविता करने लगी” सुजाता जी मै अरुण हू पंगेबाज सावधान .. पंगेबाज से पंगा नही
उनके गाल उनके होंठ के बीच में हम कौन होते हैं बोलने वाले।
संजय गुप्ता (मांडिल)
आ बैल मुझे मार
सदियों से जलसों की शमा बनकर भारतीय राजघरानों, जमीन्दारों और जागीरदारों की पार्टियां रोशन करते आ रहे बेडि़या समाज में इन दिनों खासा टेंशन छाया है । चम्पा बेन अलग भड़की हैं वहीं बेडि़या समाज उनसे सहमति नहीं रखता ।
राई के नाम पर चम्पा बेन द्वारा शुरू की गयी कसरत में पुरूस्कार वापसी की धमकी को बेडि़या समाज ने कॉफी सीरियस लिया है , और चम्पा बेन को सलाह दी है कि वे पुरूस्कार के साथ मिले एक लाख रूपये भी सरकार को रजिस्ट्री डाक से भेज कर लौटा दें , मीडिया मे गीदड़ भभकी न दें । बेडि़या समाज आरोप लगा रहा है कि चम्पा बेन बेडि़या समाज की नहीं हैं और उन्हे बेडि़या समाज के नाम पर राय शुमारी और धमकियां देने का हक नहीं है ।
बेडि़या समाज चम्पा बेन से खासा खफा है , हालांकि समाज राई नृत्य के खिलाफ है लेकिन जाबालि योजना पर चम्पा बेन की बयानबाजी और बेडि़या समाज के कल्याण की ठेकेदारी के दावे से उद्वेलित है । शीघ्र ही बेडि़या समाज चम्पा बेन के खिलाफ अभियान छेड़ने जा रहा है । आगे आगे देखिये होता है क्या ।
अमिताभ बच्चन ने भी सड़के आम हुये चुम्मे को सड़क पर खड़े हो जया प्रदा से चिल्ला चिल्ला कर चुम्मा मांग डाला । इसके बाद तो एक पूरा गाना ही गा डाला ‘’चुम्मा चुम्मा दे दे ‘’
अब जब चुम्मा आम हो गया , युवतियां जो बच्चों की आड़ में किसी जमाने में किस मांगतीं थीं अब रिवाज बन गया और भारत में मिलने जुलने और स्वागत के एक तरीके में ढल गया ।
रिचर्ड गीयर जब भारत आये तो एडस पर जागरूक करने आये , शिल्पा वहॉं गयी तो एडस की जागरूकता पर कार्यक्रम में गयी । अब एडस चीज ही ऐसी है कि सारे के सारे विश्व के लिये टेंशन है, भारत में तो दशा कुछ ऐसी है कि डॉक्टरों से लेकर अखबार , सरकार और टी.वी. सब के सब चौबीसों घण्टे एडस पर नर्रा रहे हैं , गला फाड़ रहे हैं, कण्डोम, विज्ञापन और एन.जी.ओ. इसी एडस से पल रहे हैं ,फल फूल रहे हैं , अरबों रूपया एडस पर एडस में जा रहा है । अब इतने गंभीर विषय पर ध्यान न दे कर , केवल चुम्बन चुम्मा देखना वाकई गलत है । शिल्पा बोली कि ससुरी तीन घण्टे की फिल्म में केवल एक ही सीन हिट हुआ , ये तो गलत है । वाकई गलत बात है भाई । इस फिल्म यानि एडस जागरूकता पर बन रही उस दिन के फिल्म में केवल शिल्पा रिचर्ड चुम्बन दृश्य ही लोगों को दिखा और हिट या सुपर डुपर हिट हुआ , बकाया फिल्म का तो अता पता ही नहीं चल पाया ।
अब कहने वालों का तर्क है कि यह सीन अतना लम्बा और इतना हॉट था कि शिल्पा के पराये विदेशी चुम्बनवा से लोकल भारतवासीयों की लार वहीं टपकने लगी और जैसा कि हमारे यहॉं पुरानी कहावत है कि ‘’बिल्ली खा नहीं पायेगी तो फैला तो देगी ही ‘’ सो भईया चुम्मा का रायता फैलाया जा रहा है ।
वहॉं हुआ चुम्मा सीन अगर अच्छा था , काबिले तारीफ था और आर्टिस्टिक यानि कलात्मक था , राजकपूर जैसा दुर्लभ फिल्मांकन था तो वाकई शिल्पा के चुम्बन को प्रोत्साहन देना चाहिये ।
वैसे हमारी राय तो ये है कि इस स्टायल को वाकई एक नाम ही दे दिया जाना चाहिये । जैसे साधना कट बाल, अमिताभ कट हेयर स्टायल, शम्मी कपूर स्टायल , ऐसे ही शिल्पा रिचर्ड चुम्मा स्टायल । इसके हर चौराहे पर कट आउट लगें, कोई फिल्म कम्पनी आर.के. स्टूडियो की तरह इस सीन पोर्ट्रेट को अपना लागो बना ले , कोई नाइटी या कण्डोम बेचने वाली कम्पनी या कोकशास्त्र या कामसूत्र या एडस का लिटरेचर छापने वाली कम्पनी को सीन ए चुम्बन को अपना कव्हर फोटो बनाना चाहिये ।
वैसे हम तो शिल्पा का समर्थन करेंगें । आखिर उसने भारत का नाम रोशन ही किया है एक अदद इण्टरनेशनल हॉलीवुडीया चुम्बन लेकर , लोग आस्कर लेते हैं, और अवार्ड बटोरते हैं , शिल्पा ने चुम्बन लिया तो क्या गुनाह किया । अरे एडस का कार्यक्रम था और जागरूकता फैलाने की बात थी तो एक अभिनेता या अभिनेत्री का प्रस्तुतीकरण सीन ऑफ ड्रामा या प्रायोगिक अभिनय प्रदर्शन से ही तो होगा । यदि कुछ जागरूकता के लिये संदेश देने के लिये प्रायोगिक रूप से सीन क्रियेट कर के दिखा दिया तो क्या गजब हो गया भाई । आखिर एडस की जड़ तो चुम्मा से ही शुरू होती है न । थोड़ा चुप्प बने रहते तो क्या हो जाता , चुम्मा से आगे वाला सीन भी दिखा देते और देते पक्का संदेश एडस जागरूकता का ।
चुम्मा पर भभ्भर मचा दिया ,एडस शुरू तो यही से होता है , इसमें बेचारे रिचर्ड या शिल्पा का क्या दोष । शिल्पा और रिचर्ड प्यारे लगे रहो मुन्ना भाई । लोगों को चिल्लाने दो , तुम तो गाना गाओ कि खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों । इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों ।