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अपने-अपने यूरेका
By फ़ुरसतिया on August 31, 2007
आर्किमीडीज स्नान घर में। नहान टब में धंसे। टब से पानी गिरा। वे नंगे बदन ही चिल्लाते-भागते चले गये- यूरेका, यूरेका।(पा लिया, पा लिया)
जित्ता हम पढ़े हैं उत्ते से यही पता चलता है कि आर्किमीडीज को एक मुकुट में सोने में मिलावट का पता लगाना था। सोचते रहे, सोचते रहे। इत्ता कि शायद हालत सोचनीय हो गयी हो। नहान टब से पानी गिरा तो आइडिया आ गया कि जब कोई चीज पानी में डुबाई जाती है तो अपने आयतन के बराबर पानी हटाती है। इसी तरह की और बातें। बहरहाल वे समस्या का हल पाने पर नंगे भागते हुये चले गये।
वे नंगे क्यों भागे? किधर भागे? कित्ता भागे? लोगों ने क्या कहा? उस समय नंगे सड़क पर भागना अपराध था या पाप इसके कोई प्रमाण नहीं मिलते।
जो आर्किमीडीज के बारे में ज्यादा नहीं जानते वे भी कह लेते हैं एक था वो कोई साइंटिस्ट जिसको अपनी समस्या का हल मिला तो वो नंगा ही भाग गया। नाम कुछ डीज से था। नहीं नहीं फिडीफ़िडीज नहीं वो तो हाकी खेलता था, नहीं नहीं हाकी नहीं रेसिंग में था। मैराथन।
मतलब यह कि आर्किमीडीज की खोज को उसके नंगेपन ने पिछाड़ दिया। स्वाभाविक भी है। दुनिया नंगे से डरती है।
जैसी खूबसूरती से अजित वडनेरकर जी शब्द-सफ़र करते हैं वैसे अगर इस बात की खोज हो सके कि आर्किमीडीज नंगा क्यों भागा तो मजा आ जाये। है कि नहीं।
लोग बताते हैं आदमी अपने चरम उत्साह के क्षणों में अपनी नितान्त स्वाभाविक अवस्था में होता है। आर्किमीडीज की फ़ितरत में होगा कपड़े उतार कर भागना। खोज हुयी और वह भागता चला गया अपने नितांत मौलिक रूप में।
पहले भी वह नहाया होगा। अपने जमाने के हिसाब से गाना भी शायद गाया हो- आज ही हमने बदले हैं कपड़े, आज ही हम नहाये हुये हैं।
पहले भी पानी गिरा होगा टब से। लेकिन तब तक उसके दिमाग में यूरेका न आया होगा।
क्या पता उस समय भी पानी का अकाल चलता हो। पानी फ़ैलाने पर सजा का प्रावधान हो। उससे पानी फ़ैल गया टब से तो बचने के लिये पानी गिराने की घटना को अपनी खोज से जोड़ दिया कि अगर यह पानी न बहता तो खोज न हो पाती। रिसर्च और विकास तमाम फ़ालतू के खर्चे एडजस्ट करने के बहाने की तरह इस्तेमाल किये जाते हैं।
हो तो यह भी सकता है कि उस समय वैज्ञानिकों की हालत बड़ी खराब रही हो। रिसर्च में कपड़े-लत्ते तक बिक जाते हों। लाज बचाने के लिये टब ही एक सहारा बचा हो।
हो यह भी सकता है कि उस समय तमाम साइंटिस्ट लगे हों इस बात की खोज में। जो सबसे पहले खोजेगा उसे इनाम मिलेगा। इसके चक्कर में वह अपनी सभ्यता, लोक-लाज को तिलांजलि देकर भागा हो सबसे पहला खोजकर्ता बनने के लिये।
इससे यह निष्कर्ष भी आसानी से निकाला जाता है -सबसे पहला होने की दौड़ आदमी को बहदवास कर देती है। वह नंगई पर उतर आता है।
बहरहाल, हम कहना यही चाहते थे कि आर्किमीडीज पहले भी नहाया होगा, बाथटब में पहले भी धंसा होगा। दुनिया में लाखों लोग धंसे होंगे। पानी गिरा होगा लेकिन प्लवन का सिद्धान्त उसी के नाम लिखा जाना होगा इसीलिये उसका नंगे भागना ऐतिहासिक हो गया।
लोगों ने उसके नंगे भागने को अच्छी तरह ग्रहण कर लिया। जिसको देखो बात-बात पर नंगई कर लेता है। सही भी है। विकास में जितना संभव है योगदान करना चाहिये। नंगे होने का काम हम कर लेते हैं। खोज का काम तुम देख लेना भाई!
हर एक का अपना-अपना यूरेका होता है। आर्किमीडीज चूंकि अपनी समस्या से जूझ रहे थे इसलिये उन्होंने टब से पानी गिरने को अपने मतलब से ग्रहण किया।
संभव है उनके पहले किसी ने टब से पानी गिरते देखकर तमाम मौलिक कल्पनायें की हों। लेकिन उनको शब्द न दे पाये हों। शब्द दे पायें हों तो यूरेका न कह पाये हों। यूरेका कहा तो नंगे न भागे हों। नंगे भागे हों तो घर की चहारदीवारी में ही ठिठक गये हों। मतलब तमाम हो सकता है हो सकते हैं। हर हो सकता है के साथ एक इसलिये होगा।
संभव है उनके पहले किसी ने टब से पानी गिरते देखकर तमाम मौलिक कल्पनायें की हों। लेकिन उनको शब्द न दे पाये हों। शब्द दे पायें हों तो यूरेका न कह पाये हों। यूरेका कहा तो नंगे न भागे हों। नंगे भागे हों तो घर की चहारदीवारी में ही ठिठक गये हों। मतलब तमाम हो सकता है हो सकते हैं। हर हो सकता है के साथ एक इसलिये होगा।
गंभीर आस्था चैनल वाले बाबाजी टाइप लोग कह सकते हैं- जब तक प्रभ की कृपा नहीं होती , आपको आपका सत्य नहीं मिलता। वो आपके एकदम पास होगा लेकिन नजर नहीं आयेगा। उसके लिये प्रभ चरणों में आस्था रखना बहुत जरूरी है। जैसे ही आपकी आस्था प्रभु चरणों से जुड़ जायेगी आपको आपका सच दिख जायेगा। आपकी ज्ञान आंखें 6/6 हो जायेंगी।
इस आइडिया पुराण के बहाने हम कहना यह चाहते थे कि कुछ ज्ञान की बातें करके यह स्थापित कर सकूं कि एक ही घटना को हम लोग अलग-अलग नजरिये से देखते हैं। कैसे देखते हैं यह देखने वाले की मानसिक स्थिति और तत्कालीन सामाजिक स्थितियों ,जरूरतों पर निर्भर करता है। चिड़ियों को उड़ता देखकर लोगों ने हवाई जहाज बनाये। आज लोग उसी को देखकर हवाई बंगले बनाने की सोचने लगें।
सेव को गिरता देखकर न्यूटन गुरुत्व के नियम खोज लिये। आज कोई कृषि वैज्ञानिक/आर्थशास्त्री साबित कर सकता है कि यह जो लोन की प्रथा है वह पेडो़-पौधों में प्रचलित है। सेव का पेड़ धरती से तमाम पोषण तत्व उधार लेता है। फ़सल हो जाती है तब चुका देता है। पहले जब बिचौलिये न थे तब सीधे धरती को दे देता था। सेव नीचे गिर कर टूट जाता था। अब सब काम ठेके पर दे दिया। अब तो जो पेड़ उधार नहीं चुका पाते उनकी लकड़ी बेंचकर उधारी की रकम बसूल कर ली जाती है। जैसे कि बैंक वाले करते हैं।
इत्ता लिखने बाद भी हमें यही लगता है कि जो हम कहना चाहते थे, कह नहीं पाये। इसे भी आप दो तरीके से ग्रहण कर सकते हैं। कुछ तो कहेंगे- अच्छा है आगे फिर प्रयास करियेगा। कुछ कहेंगे कि इसी बहाने और आगे भी झेलाने का मन है क्या?
लेकिन हम अपने की बोर्ड को हाजिर-नाजिर मानकर कहना यह चाहते हैं कि हम सच में यही कहना चाहते थे जो कि हम सच में कह नहीं पाये कि हर एक का अपना-अपना यूरेका होता है। हर यूरेका का अपना महत्व होता। अपने यूरेका का महत्व पहचानें। किसी का यूरेका दूसरे के यूरेका से कमतर नहीं होता।
आलोक पुराणिक तो अपने आइडिये को भगवान और ग्राहक मानते हैं। डायरी लेकर सोते हैं। न जाने कब आ जायें। जैसे ही आइडिया आता है वे उसे नोट कर लेते हैं। लेकिन इस नोटा-नोटी में तमाम झमेले हैं। वे निश्चित तौर पर ऐसे उपायों की खोज में आर्किमीडीज की तरह हलकान होंगे कि आइडिया अपने आप नोट हो जायें। और बड़ी बात नहीं कि किसी दिन इसका सुराग मिलते ही उछल पड़ें और यूरेका-यूरेका कहते हुये किसी तरफ़ भागने लगें।
कैसे भागेंगे, इसकी कोई गारण्टी नहीं दी जा सकती। लेकिन यह तय सा है कि वे बिना कपड़े के नहीं भागेगें क्योंकि नंगेपन को अब कोई भाव नहीं देता। क्योंकि वह अब आम बात हो गयी है। और उन जैसे खास लोगों के लिये शकीब जलाली ने कहा है-
शकीब अपने तआरुफ़ के
बस इतना काफ़ी है
हम उस रास्ते नहीं जाते
जो रास्ता आम हो जाये।
शकीब अपने तआरुफ़ के
बस इतना काफ़ी है
हम उस रास्ते नहीं जाते
जो रास्ता आम हो जाये।
Posted in बस यूं ही | 13 Responses
जी आर्कीमिडीज साहब पश्चिम में थे, इसलिए आराम से नहा लेते थे। यहां तो बाथरुम में पानी लगातार आ जाये, तो हो यूरेका यूरेका हो लेती है। हमारे यूरेका की औकात बहुत छोटी है जी, पानी पे हो लेती है। बिजली लगातार आ जाये, तो हो लेती है। अपने -अपने यूरेका हैं जी।
चलो, कमेण्ट नहीं कर पा रहे हैं तो सवाल ही पूछ लें – आपके यहां कितने दिन से पानी नहीं आ रहा है? कितने दिन हुये नहाये? पीने के पानी का जुगाड़ तो हो जा रहा है न!
और एक शोधात्मक पोस्ट इस पर भी हो सकती है कि फुर्सतमिडीज़ के घर 15 दिन तक पानी नहीं आया तो उन्होने नहाने से बचे समय में टेलिस्कोप लेकर यूरेका नामक नीहारिका की खोज कर ली.
घुघूती बासूती
तथ्य और कथ्य में थोड़ा तो अन्तर होता ही है। आप कुछ भी कहें फ़ुरसतिया जी, पर “जैसे ही आपकी आस्था प्रभु चरणों से जुड़ जायेगी आपको आपका सच दिख जायेगा। आपकी ज्ञान आंखें 6/6 हो जायेंगी। ” पढ़ कर सच में ह्रदय आनन्द से आल्हादित हो गया। लगे रहिये…
हिन्दी फ़िल्म हनीमून ट्रैवेल्स के यूरेका की तरह क्या पता आप पर भी एक यूरेका गिर ही जाये।
शुभकामनायें…
पुनीत ओमर
http://punitomar.blogspot.com/