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वहां रहता है अपना बचपन का यार फ़त्ते,
बता रहा था वहां वो थोक में बेचता है गत्ते
लौटते में हमेशा सिलवा देता है कपड़े लत्ते!
बच्चा बोला पापा हमें भी अपने साथ लेते चलते,
हम बोले बोर होगे लौटने को कहोगे अधरस्ते,
बच्चा बोले हम भी देखेंगे नई जगहें,नये-नये रस्ते,
ट्रेन में संस्कृत के रूप भी रट लेंगे स:,तौ, ते।
सादा जीवन उच्च विचार
क्या ये भी झेलाओगे यार
सुन लेंगे यदि लोग दो-चार
कोसेंगे, रोयेंगे, दौड़ा लेंगे यार!
मौज-मसाला बना रहे,चकाचक जमा रहे फ़ुरसतिया रंग!
आज कहें या काल्हि सुन, है बड़े काम की बात,
मुंह लटका यदि आपका, होगा बहुत बड़ा व्याघात!
होगा बहुत बड़ा व्याघात उधड़ जायेगी जिंदगी की सीवन
छौक मसाला मौज का जियो धांस के सादा जीवन।
सूरज बोला
झुलसेगा शरीर
चल जा भाग। परछाइयां
दुबक गयीं सब
धंसी खुद में।
जरा सी बात
फ़ैली गर्म लू जैसी
चिलचिलाती।
कोई दिखे न
सन्नाटा पसरा है
चारो तरफ़।
अमलताश
खिलखिलाता खड़ा
बाकी उदास।
धरती तपी
बर्फ़ भी पिघलेगी
डूबेंगे सब।
अपनी गर्मी
सब बाहर करें
सनसनाते।
‘एच’ अलग
‘टू’ भी दूर भगेगा
सब अकेले।
पौशाला है ये
खुद खड़ा धूप में
पानी पिलाता।
सोचते हैं चले ही जायें अगले हफ़्ते कलकत्ते
By फ़ुरसतिया on June 17, 2009
एक
सोचते हैं चले ही जायें अगले हफ़्ते कलकत्तेवहां रहता है अपना बचपन का यार फ़त्ते,
बता रहा था वहां वो थोक में बेचता है गत्ते
लौटते में हमेशा सिलवा देता है कपड़े लत्ते!
बच्चा बोला पापा हमें भी अपने साथ लेते चलते,
हम बोले बोर होगे लौटने को कहोगे अधरस्ते,
बच्चा बोले हम भी देखेंगे नई जगहें,नये-नये रस्ते,
ट्रेन में संस्कृत के रूप भी रट लेंगे स:,तौ, ते।
दो
सादा जीवन उच्च विचार
क्या ये भी झेलाओगे यार
सुन लेंगे यदि लोग दो-चार
कोसेंगे, रोयेंगे, दौड़ा लेंगे यार!
तीन
जीवन सादा अच्छा है,लेकिन कुछ एक्सेपशन के संगमौज-मसाला बना रहे,चकाचक जमा रहे फ़ुरसतिया रंग!
आज कहें या काल्हि सुन, है बड़े काम की बात,
मुंह लटका यदि आपका, होगा बहुत बड़ा व्याघात!
होगा बहुत बड़ा व्याघात उधड़ जायेगी जिंदगी की सीवन
छौक मसाला मौज का जियो धांस के सादा जीवन।
चार
झुलसेगा शरीर
चल जा भाग। परछाइयां
दुबक गयीं सब
धंसी खुद में।
जरा सी बात
फ़ैली गर्म लू जैसी
चिलचिलाती।
कोई दिखे न
सन्नाटा पसरा है
चारो तरफ़।
अमलताश
खिलखिलाता खड़ा
बाकी उदास।
धरती तपी
बर्फ़ भी पिघलेगी
डूबेंगे सब।
अपनी गर्मी
सब बाहर करें
सनसनाते।
‘एच’ अलग
‘टू’ भी दूर भगेगा
सब अकेले।
पौशाला है ये
खुद खड़ा धूप में
पानी पिलाता।
आप पहुँच भी गये होँगेँ रस्ते ..
अब हुई समझो ..फत्ते !!
- लावण्या
मुंह लटका यदि आपका, होगा बहुत बड़ा व्याघात!
सही
प्रस्थान तिथि की सूचना अविलम्ब दें,
रिजेक्टेड टिप्पणियों के कुछ गत्ते इधर भी पड़े हैं,
फ़त्ते को दे दीजियेगा, बिल्कुल मुफ़्त !
स: तौ ते,
तम् तौ तान्
तेन् ताभ्याम् तै
तस्माय ताभ्याम् तेभ्य:
तस्मात् ताभ्याम् तेभ्य:
तस्य तयो तेषाम्
तस्मिन तयो तेषु
कहो तो बालक, बालिका और पठति के पांचों विभक्तियों में रूप सुना दें, भूतकाल वाला सबसे कठिन होता था
वैसे क्या बात हैं, आज फ़ुरसतिया मिजाज अलग नजर आ रहे हैं। सब खैरियत तो है? आप भी कहीं निरापद लेखन के चक्कर में तो नहीं फ़ंस गये
वैसे कविता कितनी अच्छी कर लेते हैं आप. गौरैय्या पर भी कुछ लिखिये न!! ज्ञान जी का भी मन रह जायेगा.
और गौरैया पर लिखने की कोशीश भी कापीराईट का उल्लंघन होगा. इसका कापी राईट ज्ञानजी ने हमको किया है. आप अपने लिये कोई अन्य निरापद सबजेक्ट मांग लिजिये.
रामराम.
ट्रेन में संस्कृत के रूप भी रट लेंगे स:,तौ, ते।
———-
इतनी सुन्दर कविता का करते हम सम्मान।
तम् तौ तान्, तम् तौ तान्!
गर्मी से बेहाल हुए सब
झुलस रहा पूरा कलकत्ता
लिए पसीना घूम रहे सब
भीगा रहता कपड़ा-लत्ता
बिजली भी अब गायब रहती
पूरे दिन में छ-छ घंटे
जीवन जाने कैसे गुजरे
गले पड़े हैं कितने टंटे
फत्ते को कुछ समय दीजिये
ताकि कर ले कुछ तैयारी
बारिश की भी कृपा रहे गर
जीवन से जाए दुस्वारी
“हवा चली डाल हिली
गिरा एक पत्ता
दिल्ली से उड़ा उड़ा
पहुंचा कलकत्ता
वाह रे रंगीले पिया
ये तुमने क्या किया
बासंती मौसम में
ले आये छत्ता”
नीरज
औसत हिन्दुतानी कविता के बोझ से नहीं मारा जा रहा है मी लोर्ड …वो बेचारा अभिव्यक्ति के बोझ से मरा जा रहा है …..आपकी इन प्रतीकात्मक चेष्टाओं से कोई उपाय नहीं निकलने वाला हे कवि .क्यूंकि अभिव्यक्ति का कोई मेनिफेस्टो नाही होता …..इ बात समझने में ओर समझाने में …दोनों में बहुत टाइम लगता है…..
पुनाश्चा :गौरया पे लिखी कविता की प्रतीक्षा रहेगी
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-Zakir Ali ‘Rajnish’
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