Saturday, December 31, 2011

फ़ेसबुक स्टेटस 2011

मुंबई में आंदोलन थोड़ा तो और सौंन्दर्यपूर्ण लगेगा। जब बालीवुड के लोग भ्रष्टाचार हटाने की बात करेंगे तो हम भी आंख खोल के उनके बयान सुनेंगे। (24-12-11)

आजकल का भ्रष्टाचार बहुत जटिल टाइप का हो गया है। इसकी पहचान के लिये एक्सपर्ट की आवश्यकता पड़ती है। (24-12-11)

नौकरशाही में आदमी जब आता है तो ईमानदार होता है। नौकरशाही उसे बेईमान बना देती है।-- भूतपूर्व चेयरमैन विजिलेंस कमीशन (24-12-11)

भ्रष्टाचार अगर अच्छी-अच्छी संस्थायें बनाने से दूर होता तो अब तक यह अपने देश से कब का गो,वेन्ट,गॉन हो गया होता। (24-12-11)

बेचारी सी.बी.आई. की हालत दौप्रदी सरीखी होती जा रही है। लोकपाल आने पर पांच-पांच लोगों को रिपोर्ट करना पड़ेगा उसे। (24-12-11)

टीम अन्ना के लोगों के मुंह से भी बयान झरते रहते हैं। देखकर लगता है जैसे सर्दी के मौसम में पहाड़ों पर बर्फ़ गिर रही है।  (24-12-11)

राजनीति करने वालों का तो खैर काम ही पालिटिक्स करना होता है। बयान देना,मुकर जाना, पलट जाना उनकी कोर कम्पीटेन्सी होती है। (24-12-11)

मीडिया वाले जिस किसी के भी मुंह के माइक आगे सटा देते हैं। लोकपाल के बारे में उनके मुंह से बयान घसीट लेते हैं।  (24-12-11)

सारा देश इंतजार कर रहा है। लोकपाल का अवतार हो- भ्रष्टाचार के राक्षस का संहार करे। बवाल कटे। (24-12-11)

शासन का घूंसा किसी बडी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है पर न जाने किस चमत्कार से बडी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूंसा पड जाता है-परसाई (24-12-11)

कामचोरी को नौकरीशुदा कर्मचारी का मौलिक अधिकार माना जाये या सहज सामाजिक शिष्‍टाचार!- इस मुद्‍दे पर आध्‍यात्‍मिक चिँतन होना चाहिए! (19-12-11)

  सचिन को भारत रत्‍न देने से ठाकरे जी खफा हो सकते है कि मुँबई वाले को भारत रत्‍न कैसे दे दिया? (16-12-11)

रेल में दाल, सब्‍जी, चावल,दही, पराठा 32/- में. पानी,अचार मुफ्‍त. माल मेँ समोसा 40/- का मिलता है. हमे माल नहीं रेल चाहिये. (14-12-11)

आज समय और बाजार दो गुँडोँ की तरह एक हो गये हैँ.इसलिए आज का समय कठोर और हिँसक तो होगा हीऔर माहौल को वैसा ही बनाएगा. हदयेश (14-12-11)

Waiting room attendent ne sab detail likhwane ke bad andar aane diya lekin usane mere blog ka URL nahi poochha.Surprising hai na? (14-12-11)

Lokpal aur Sachin ki century ka masla nipatane ke bad Gabbar poochhega - Ab tera kya hoga Media? (14-12-11)

Doller aur Rupaya milkar sachin se pahale century banane ke chaakkar me hain. (13-12-11)

अपनी पोस्ट लिखने के बाद एक आम ब्लॉगर की तरह मुझे भी हमेशा यह डर लगता है कि उसको पढ़ने के बाद कहीं कोई पकड़कर सम्मानित न कर दे! (12-12-11)

लोकपाल, करप्‍शन, शराबबँदी आदि के बाद मीडिया अन्‍ना से परिवार नियोजन, नाभिकीय ऊर्जा, सोलर सिस्‍टम आदि के बारे में भी सवाल पूछ सकती है . (24-11-11)

रेल रात भर अकेली पटरी पर खरामा खरामा चलती रही. किसी ने उससे कोई बदसलूकी नहीं की. इससे लगा कि पटरी पर कानून व्‍यवस्‍था अच्‍छी है. (22-11-11)

रेल किस्‍तोँ मेँ लेट हो रही है ऎसे मेँ यह इल्‍जाम भी नहीं लगाया जा सकता कि रेलवे ने हमको धोखा दिया. (22-11-11)

मत कहो नोयडा में कोहरा घना है / यह किसी की व्‍यक्‍तिगत आलोचना है. (22-11-11)

कलकत्‍ता में वाहन अपराध और राजनीति की तरह सट के चलते है (14-11-11)

कलकत्‍ता में सब कुछ चौङा है समय,सङक,गाङी और आदमी भी. (14-11-11)

शाही जोड़े का पहला चुम्बन देखकर लगा जैसे दो बड़े बच्चे प्रेम-पीटी कर रहे हों जिनको हिदायत दी गयी हो-खबरदार होंठ के अलावा कोई और अंग छुआ तो सब कुछ दुबारा करना पड़ेगा!  (30-04-11)

मिस्बाहुल हक से एक संवाददाता ने पूछा कि उन्होंने तेज खेलना शुरू करने में इतनी देर क्यों की!
इस पर मिस्बाहुल हक ने जबाब दिया- मुझे लगा जैसे अपने यहां जम्हूरियत बहाल करने और जनरलों की वर्दी उतारने की तारीख बढ़ती है वैसे ही ओवर भी जरूर बढ़ेंगे। लेकिन वहां ऐसा हुआ नहीं! मैं गफ़लत में रहा!(03-04-11)

एक संवाददाता: धोनी जब आप बैटिग कर रहे थे उस समय आपके मन में क्या चल रहा था?
धोनी : मैं सोच रहा था कि अगर मैं अच्छा नहीं खेला और भारत हार गया तो लोग फ़िर मेरा घर तोड़ डालेंगे। भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि उसने मेरा घर बचा लिया।  (03-04-11)

पिछले दिनों उन्होंने विज्ञापन विभाग के सभी कर्मचारियों को निकाल दिया है। बस एक कम्प्यूटर आपरेटर को रखा है। वह विज्ञापन के सारे मसाले को विकीलिक्स को भेज देता है। विकीलिक्स वाले उस जानकारी/बातचीत/मसाले को अखबारों और मीडिया को लीक कर देता है। वे उसे प्रमुखता से कवरेज देते हैं। इसे कहते हैं नयी तकनीक का त्वरित उपयोग।  (30-03-11)

महाभारत में दिन भर के यु्द्ध के बाद योद्धा लोग शाम को विरोधी शिविरों में जाकर आपस में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते थे। बहुत दिनों बाद यह मोहाली शिविर में चर्चा का कार्यक्रम तय हुआ है। उस दिन चूंकि क्रिकेट का सेमीफ़ाइनल होना तय हुआ है अत: एक दिन का युद्धविराम रखा गया है।(29-03-11)

खाक चेष्टा, नको ध्यानम, चटक निद्रा तथैव च,
पिज्जाहारी, कक्षात्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणम।(28-03-11)

गूगलस्था तु या विद्या, स्विस बैंक गतम धनम,
कार्य काले समुत्पन्ने , न सा विद्या न तदधनम।(26-03-11)

Friday, December 30, 2011

वाल मार्ट के व्यवहारिक उपयोग

http://web.archive.org/web/20140419212638/http://hindini.com/fursatiya/archives/2393

वाल मार्ट के व्यवहारिक उपयोग


वाल मार्ट
अपने देश में अनगिनत लफ़ड़े हैं। गरीबी, आबादी, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, ये वाद-वो वाद, आदि-इत्यादि तो स्थायी लफ़ड़े हैं। इनको ही झेलते-झेलते हम बोर न हो जायें इस लिये जायका बदलने के लिये समय-समय पर मौसमी लफ़ड़ों का जुगाड़ भी होता रहता है। तरह-तरह के घपले, घोटाले, इस्कैम-फ़िस्कैम, गिरफ़्तारी-फ़िरफ़्तारी भी अपनी क्षमता के हिसाब के लफ़ड़ों की एकरसता तोड़ने के लिये अवतरित होते रहते हैं।
इधर दो दिन हुये एक नये लफ़ड़े ने अवतार लिया है लफ़ड़े का नाम है विदेशी खुदरा कम्पनी! वालमार्ट और दूसरी कम्पनियों के आने की बात चली है। देश के सारे बयानों का ट्रैफ़िक वालमार्ट की तरफ़ डाइवर्ट हो गया है। पता नहीं क्यों इसपर अभी तक अन्ना हजारे जी का बयान क्यों नहीं आया है जबकि वे मौनव्रत पर भी नहीं हैं।
वालमार्ट के समर्थन और विरोध में दे दनादन तर्कतीर चल रहे हैं। समर्थक कह रहे हैं कि इससे उपभोक्ता को फ़ायदा होगा। विरोधियो का कहना है कि इससे खुदरा व्यापारियों की कमर टूट जायेगी। समर्थक कह रहे हैं इससे ग्राहक फ़लेगा-फ़ूलेगा। विरोधी कह रहे हैं कि इससे जनता लुट जायेगी/पिट जायेगी।
मोटा-मोटी देखने से लगता है कि वाल मार्ट वाले परोपकाराय सतां बिभूतया टाइप के लोग हैं। भारत के किसानों का दुख उनसे देखा नहीं गया। किसानों के दुख से पसीजकर उसने उनके उद्दार के लिये कमर कस ली है। अब लगता है कि किसानों का भला होकर ही रहेगा।
व्यक्तिगत तौर पर मुझे शापिंग मॉल जैसी जगहें शहर में स्थित सबसे वाहियात जगहों में से लगती है। उसमें से कुछ कारण ये हैं:
  1. जो चाय बाहर तीन रुपये की मिलती है उससे कई गुना घटिया चाय शापिंग मॉल में तीस रुपये में मिलती है।
  2. मॉल में सिवाय सफ़ाई, रोशनी और एअरकंडीशनिंग के बाकी सब स्थितियां अमानवीय लगती हैं। न ग्राहक और न सेल्सस्टाफ़ किसी के बैठने का कोई जुगाड़ नहीं होता।
  3. एक ही चीज के दाम जिस तरह वहां बदलते हैं उस तरह तो जनप्रतिनिधियों के बयान भी नहीं बदलते।
लेकिन हमारी पसंद-नापसन्द से देश के लफ़ड़े नहीं तय होते। इसलिये अगर कल को हमारे शहर में भी कल को कोई वाल मार्ट-शाल मार्ट खुल गया तो भी हम क्या कर लेंगे। और लफ़ड़ों के साथ इसको भी झेलेंगे। लोगों ने कहा है कि हर चीज के दो पहलू होते हैं एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक। तो भले आदमी की तरह हमें सकारात्मक पहलू ही देखने की आजादी है। सो देख रहे हैं और वाल मार्ट के व्यवहारिक उपयोग की सूची बना रहे हैं:
  1. वाल मार्ट शहर में आते ही अपने लिये कोई स्लोगन तलाशेगा। वो हमारे शहर के ’ठग्गू के लड्डू’ वाला नारा खरीद लेगा- ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं। इसके बाद जब जब कभी कौन बनेगा करोड़पति या सवाल इंडिया का में पूछेगा कि यह नारा किसका है तो हम तड़ से बता देंगे -वाल मार्ट का। लोग हमको ज्ञानी समझेंगे!
  2. लोग कहते हैं कि वालमार्ट के आने से किसानों को फ़ायदा होगा। बिचौलिये बरबाद हो जायेंगे। अगर सच में ऐसा होगा तो बिचौलियों के पास मौका होगा कि वे फ़िर से किसानी करने लगें। इससे देश फ़िर से कृषि प्रधान हो जायेगा। इस देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती के दिन फ़िर लौट आयेंगे।

  3. ठग्गू के लड्डू
    जब बिचौलिये रहेंगे नहीं तो बिचौलियों के कारण होने वाले घपले घोटाले अपने आप कम हो जायेंगे। जब घपले नहीं होंगे तो देश में भ्रष्टाचार कम होगा। फ़िर तो झकमार देश को खुशहाल होना पड़ेगा।
  4. किसानों का जो भी भला करता है उसको वे देवता मानने लगते हैं। इस तरह वालमार्ट देवता का अवतार होगा। जगह-जगह जगह घेरकर वाल मार्ट देव के मंदिरों का निर्माण होना शुरु हो जायेगा।
  5. साहित्य में भी एक नया युग आयेगा। वालमार्ट के आने के बाद लिखा गया साहित्य उत्तर वाल मार्ट युग के नाम से जाना जायेगा।
  6. शहरों में आमतौर पर बिजली गायब रहती है। लेकिन वालमार्ट में ए.सी. का जुगाड़ रहेगा। शहर भर के लोग सड़ी गर्मी से निजात पाने के लिये वालमार्ट में पिले पड़े रहेंगे। जगह कम होने पर वालमार्ट का रकबा बढ़ाने के लिये आंदोलन होना शुरू होगा।
  7. जो बच्चे बिजली न आने के कारण पढ़ लिख नहीं पाते वे भी लिये किताबें-नोटबुक वालमार्ट की तरफ़ भागते नजर आयेंगे।
  8. किसानों से सीधे सामान खरीदने के चक्कर में वालमार्ट से गांवों तक जाने वाली सड़कें की मरम्मत हो जायेगी। जिस मोहल्ले के लोगों को अपने यहां सड़क बनवानी होगी वे अपने आसपास सब्जी उगाने लगेंगे। वालमार्ट से उस मोहल्ले तक फ़ौरन सड़क बन जायेगी।
  9. संभव है कि परिवहन की लागत बचाने के लिये नये तरीके अपनाये जायें। क्या पता कल को आलू के बोरों के ढुलाई के लिये मिसाइलों का उपयोग होंगे लगे। चार बोरे एक कंटेनर में लादकर उसको एक मिसाइल के माध्यम से सीधे वालमार्ट के लिये प्रक्षेपित किया जाये। इससे विकसित देशों के गोदामों में सड़ रही मोबाइलों मिसाइलों का सामाजिक उपयोग हो सकेगा। इसी बहाने विकसित देशों की पतली हालत में थोड़ा मोटापा आ सकेगा।
  10. वालमार्ट आने वाले समय में युवाओं के लिये प्रेम-श्रेम करने का नया ठिकाना बनेंगे। डलियों में सामान खरीदकर बिक भुगतान करते के लिये लाइन में लगे हुये लोग कुछ न कुछ जरूर ऐसा करेंगे जिससे अनगिनत उत्तर वालमार्टीय प्रेम कहानियों का जन्म होगा। क्या कोई लड़का वालमार्ट में घूमती किसी लड़की से पूछे- तेरा बिल हो गया। इससे शुरु हुई बातचीत फ़िर न जाने कित्ते बिलों के इधर-उधर होने की कहानी कहे। कभी मंदिर जाने के बहाने मिलने आने वाली नायिकाये आने वाले समय में गाने लगेंगी- मैं तुझसे मिलने आई वाल मार्ट जाने के बहाने।
  11. भारत में अभी तमाम तरह की विषमतायें हैं। लोग जातिवाद, धर्म, सम्प्रदाय, प्रदेश, जिला,मोहल्ले, लिंग भेद के नाम पर बंटे हुये हैं। वाल मार्ट आने और छाने के बाद ये सारे भेदभाव मिट जायेंगे और अपने देश में सिर्फ़ दो तरह के लोग रहेंगे। एक वे लोग होंगे जिनकी हालत वालमार्ट के चलते चमक जायेगी दूसरे वे लोग होंगे जो वालमार्ट की वजह से बरबाद हुये। भले ही दूसरी तरह के लोग बहुमत में होंगे लेकिन यह अपने आप में कम सुकून की बात नहीं कि और तमाम भेदभाव अतीत की बात हो जायेंगे।
वाल मार्ट के आने न आने को लेकर और भी तमाम तरह के बयान जारी हो रहे हैं। कुछ के बयानों को सुनकर तो लगता है कि शायद इसी के लिये रागदरबारी में अवधी कहावत का जिक्र हुआ है जिसका मतलब है – नंगे आदमी के स्थान विशेष में पौधा उगा तो वह यह सोचकर नृत्यरत हो गया कि भविष्य में इससे छाया की व्यवस्था होगी।
आपके भी कुछ विचार/बयान हैं क्या इस बारे में? :)
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34 responses to “वाल मार्ट के व्यवहारिक उपयोग”

  1. आशीष 'झालिया नरेश' विज्ञान विश्व वाले
    हम इस विषय पर अपनी विशेष टिप्पणी नही करेंगे!
    आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..स्ट्रींग सिद्धांत : परिचय
  2. देवेन्द्र पाण्डेय
    कुल विचार तो झटक लिये महाराज! हम तो अबहीं सोच ही रहे थे कि कब फुर्सत मिले और बताया जाय।
    बनारस जैसे शहरों में जहां गढ्ढों पर सड़क नाम की चींज रेंगती है, धूल से दुकाने हमेशा तर रहती हैं, वाल मार्क सांस लेने से पहले ही दम तोड़ देगा। हम तो राह चलते, झटके में, पटरी-ठेले पर लगी ताजा सब्जी खरीदने के आदी हैं। ई वाल मार्क समय भी बर्बाद करेगा। ब्लागिंग का कीमती समय ई वाल मार्क से सब्जी खरीदने में ही जाया हो जायेगा। यह अलग बात है कि ब्लॉगरों को रोज नई पोस्ट लिखने के लिए विषय मिल जायेगा।
    मूल बात यह कि विदेशी यहां पैसा, कमाने के लिए लगायेंगे कोई परोपकार करने के लिए नहीं। पहले सड़कें बना लो, लोगों को बिल भरने लायक पढ़ा लिखा दो, दवा-दारू का इंतजाम कर लो, फिर सोचना वाल मार्क..साल मार्क।
    ….ब्लॉगरों का इस विषय में ध्यान केंद्रित कर नींद से जगाने की दृष्टि से यह पोस्ट मस्त है।
  3. rachna
    वाल मार्ट – भारती एयर टेल के साथ भारत में पहले ही आ चूका हैं
    कर्फुर भी मुझे दिल्ली में दिखा
    जहाँ तक मेरा ख्याल हैं वाल मार्ट में बिकने वाला सामान सब चाइना का होगा , दाल सब्जी समेत क्युकी वहाँ से सस्ता कहीं नहीं मिलता . वहाँ से खरीद कर वालमार्ट सब जगह बेचता हैं
    भारत से भी तमाम एक्सपोर्टर अपना माल इन कंपनियों को बेचते हैं लेकिन ओपन अकाउंट और क्रेडिट पर लेकिन उन मे से ९० प्रतिशत भी खुद कुछ नहीं बनाते हैं . सब बनवाते हैं
    यानी बिचोलिये ही हैं
    वाल मार्ट की अपनी ऑफिस बंगलौर में २० साल से माल खरीदने कर आगे बेचने के लिये वहाँ भारतीये नौकरी करते हैं पर एक्सपोर्टर से तगड़ा कमीशन लेते हैं माल पास करने का
    छोटे एक्सपोर्टर को कोई नहीं गिनता
    वालमार्ट के आने से बेरोजगारी बढ़ेगी
    और हाँ अभी जो बच्चे खेतो में काम करते हैं वो भी नहीं कर सकेगे क्युकी बाल मजदूरी वालमार्ट को मंजूर नहीं
    तैयार हो जाए चाइना का ५० किलो का कद्दू का एक टुकड़ा खाने के लिये या २० किलो के टमाटर का एक टुकड़ा खाने के लिये
    अभी अगर फ्रीज से काम चला लेते हैं तो पत्नी श्री के लिये डीप फ्रीजर लेने के लिये वालमार्ट ही जाना होगा
    rachna की हालिया प्रविष्टी..अनामिका की उलझन हैं की वो क्या करे
  4. arvind mishra
    अथ ब्लाग मध्ये प्रथमो वाल मार्टाय व्यंग अलेखाय अभिनन्दनम करिष्योहम् :)
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कौए की निजी ज़िंदगी
  5. संतोष त्रिवेदी
    हमारे यहाँ के दफ़ा तो लफड़े पैदा ही किये जाते हैं कि उनके पूर्ववर्ती(लफड़े) रफा-दफ़ा हो जाएँ ! अन्ना को सरकने के लिए पूरा राजनैतिक तंत्र जुटा हुआ है ऐसे में आये दिन ऐसे लफड़े होते रहेंगे !
    आपसे किसने कह दिया कि माल-वगैरह में चाय के पैसे लिए जाते हैं.लोग तो वहाँ ‘चक्षु-दर्शन’ का टैक्स देते हैं !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगिंग के साइड-इफेक्ट !
  6. घनश्‍याम मौर्य
    अपन तो मिडिल क्‍लास के आदमी हैं जिसके घर में मेहमान के आने पर जब नमकीन नहीं होती तो पडोस की दुकान से किसी को भेजकर तुरत फुरत मंगवा लेते हैं। शापिंग माल तो खाली घूमने जाते हैं कि मार्केट में किस किस टाइप के प्रोडक्‍ट आये हुए हैं। दरअसल शापिंग माल मिडिल क्‍लास के लिए अपनी फ्रस्‍ट्रेशन निकालने और ‘फील गुड’ का जरिया भर है। वालमार्ट आये या कार्फू, हिन्‍दुस्‍तान में नुक्‍कड वाली दुकान हमेशा बरकरार रहेगी।
    घनश्‍याम मौर्य की हालिया प्रविष्टी..इंदिरा गोस्‍वामी जी का निधन
  7. Gyandutt Pandey
    इतने बिरवे लगेंगे कि छाया ही छाया होगी। पेटा की सुन्दरियां उन बिरवों को पहन फोटो खिंचायेंगी! :-)
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..आठ बिगहा पर आगे चर्चा
  8. प्रवीण पाण्डेय
    आपके बहुत सुझावों से सहमत हैं, मॉलों में कृत्रिमता बहुत खटकती है।
  9. सलिल वर्मा
    पहली बार यह पोस्ट “फ़ुरसतिया” की नहीं “हडबडिया” की लगी… पोस्ट तो रापचिक हइये है.. इसमें बताए गए नुस्खे अचूक हैं क्योंकि इनको हम दोनों मित्रों ने बाकायदा नोएडा के मॉल में टेस्ट करके भी देखा है… जैसे गर्मी से बेहाल होने पर सपरिवार वहाँ जाकर शीतल बयार का आनद लेना, इम्तिहान के समय आराम से रट्टा मारना और पढ़ना… पत्नीको शोपिंग करने भेजकर थोड़ा नयनसुख भी प्राप्त कर लेना ;)
    लीजिए इस चक्कर में पहले वाली बात तो रह गयी “हडबडिया” वाली… आपने लिखा है:
    .
    १. पता नहीं क्यों इसपर अभी तक अन्ना हजारे जी का बयान क्यों नहीं आया है.
    २. इससे विकसित देशों के गोदामों में सड़ रही मोबाइलों का सामाजिक उपयोग हो सकेगा।
    .
    मस्त है बाकी तो!!
    सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉग-बस्टर पखवाड़ा
  10. Puja Upadhyay
    वालमार्ट आने के पहले ही ब्लॉग्गिंग में नए युग की शुरुआत हो चुकी है…और ओपनिंग हमेशा की तरह फुरसतिया जी के सौजन्य से :D मन प्रफुल्लित हो गया सुबह सुबह ये कहानी सुन कर…धन्य धन्य. आपकी इस कथा को सुनते ही आसमान से पुष्पवर्षा होनी शुरू हो गयी…कहना न होगा कि आसमान में थोक भाव में फूल वालमार्ट से ही आये थे. :) :)
  11. aradhana
    अब हम का बताएँ? सालों से महानगर में रहने के बाद भी हम ना आज तक किसी मॉल में गए हैं, ना मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखी है और ना कैफे कॉफी डे में कॉफी पी है. हम आई.सी.एस.एस.आर. जाकर वहाँ के डायरेक्टर से सीधे बात कर सकते हैं, पर मॉल परिवार से परिचय बढ़ाने में हमारा कस्बाई मन अब भी हिचकता है.
    कुछ बातें तो इस लेख की वाकई सच होने वाली हैं :) सच्ची. आपने ठग्गू के लड्डू की याद दिलाकर जाने क्या-क्या याद दिला दिया, जिसमें मुख्य है- शुक्लागंज की दूध की बर्फी.चाचा गंगाघाट में पोस्टेड थे तो जब आते थे, ये बर्फी ज़रूर लाते थे.
    ‘उद्दार’ को ‘उद्धार’ कर लीजिए. बकिया तो सब ठीक ही है.
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…
  12. चंदन कुमार मिश्र
    वाह। लाजवाब। क्या लिखते हैं? …मॉल-वाल सब बेकार है। छोट-मोट दुकान से सामान खरीदिए और इनसे मुक्ति प्राप्त करें। …उगले हीरो मोती…लेकिन उगले जाने के बाद सब गायब…
    वालमार्ट मन्दिर के बाद वालमार्ट पुराण, वालमार्टेश्वर महादेव। वालमार्ट की – जय कोई बोलेगा कैसे, लिख हम अकेले रहे हैं…
    साहित्य का इतिहास नहीं हिन्दी चिट्ठेकारी का सच्चा इतिहास- रामचन्द्र शुक्ल नहीं, अचार्य अनूप शुक्ल जी…काल विभाजन- किताब आएगी जल्द ही, तब पढेंगे। …
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..योद्धा महापंडित: राहुल सांकृत्यायन (भाग-3)
  13. चंदन कुमार मिश्र
    आदरणीय देवेन्द्र जी, फुरसतिया अन्ना की बात समझ ही रहे हैं और वालमार्ट का हाल भी…लेकिन यहाँ इशारेवादी साहित्य की विधा में हम पढ रहे हैं। …अन्ना चुप रहेंगे क्योंकि इस मामले में कोई उनकी मदद नहीं कर रहा, सीखा नहीं रहा, न किरण, न कमल, न कुबेर, न कबूतर…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..योद्धा महापंडित: राहुल सांकृत्यायन (भाग-3)
  14. shikha varshney
    वाल मार्ट पर गहन अध्यन वो भी फुरसतिया अंदाज में ..जय हो.
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..जीना यहाँ.. मरना यहाँ ..
  15. vijay gaur
    बेहतरीन गद्ध्य और बेहतरीन व्यंग्य !! ब्लागिया लेखन का नायाब नमूना| मज़ा आ गया |
    vijay gaur की हालिया प्रविष्टी..तीन सौ पैंसठ दिन तीन सौ पैंसठ प्रजातियों के भात का भोग
  16. सतीश पंचम
    रागदरबारी की क्या कहें, हर फर्रा एकदम खर्रा। अब तो मन करता है एक बार काशी का अस्सी फिर पढ़ूँ। भारी भरकम किराये खातिर विदेशी महिला मादलेन हेतु पंडित धर्मनाथ शास्त्री अपने महादेव जी की मूर्ति हटा उस कक्ष में टायलेट बनवाने पर तुल गये…….सोच रहे थे अब अपने लईका बच्चा भी कानों में इयरफोन ठूंस वाकमैन सुनैंगे………जियो पंडित धर्मनाथ शास्त्री जी……..का एंगल है :)
    अभी कुछ दिन पहले ही उदय प्रकाश जी का ही शायद कथन था कहीं – “जो कमजोर हैं, वो मारे जाएंगे”।
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..जिन्दगी का एक एपिसोड ऐसा भी रहा……
  17. shefali
    एकदम सही ….अब आ ही जाए वालमार्ट ….:}
  18. मनोज कुमार
    सामयिक समस्या पर असरदार पोस्ट!
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..प्रभावकारी अहिंसक शस्त्र
  19. Abhishek
    हा हा, गजब दूरदर्शी पोस्ट है. कसम वालमार्ट की :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..माल में माल ही माल (पटना ९)
  20. देवांशु निगम
    पहले तो बधाई कि इतनी मुद्दे कि बात आप सबके सामने लेकर आये …शैली व्यंग्यात्मक है लेकिन बातें सीधा प्रहार है…
    समझने वाली बात ये भी है कि वालमार्ट को स्टोर्स खोलने कि इजाजत तो न्यूयोर्क में भी नहीं है …
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..साल्ट लेक सिटी ट्रिप…
  21. sanjay jha
    इंसानी फितरत तो गिरगिट से भी अधिक बदतमीज़ है………………रंग बदलने में…………………..लेकीन…..
    प्रकृति के नियम ये कहती है गरीब जित्ते कमेगी(मरेगी)…..गरीबी उत्ते बढ़ेगी(जियेगी) ……………….
    बकिया त्रिवेदीजी ने लाख टेक की बात कहे ‘चक्षु दर्शन’…….सच्ची बात……….
    pranam.
  22. अंतर्मन
    वाह!
    अंतर्मन की हालिया प्रविष्टी..कुछ शेर
  23. kmkhan
    वाल मार्ट का जैसा सजीव चित्रण अपने किया है वैसा तो बीजेपी भी नहीं कर पाई.
  24. चंद्र मौलेश्वर
    वाल माट…अर्थात अब दीवार पर भी माट-मेथी उगेगी :)
    चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..एक पुराना लेख
  25. Anonymous
    ये हमारा देश ही लफडिसतान हो गया हैं
  26. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] वाल मार्ट के व्यवहारिक उपयोग [...]
  27. सतीश चंद्र सत्यार्थी
    ये फायदों की लिस्ट ममता जी को फैक्स कर दें तो ममता जी सरकार को समर्थन के साथ-साथ कलकत्ता में दो-चार बीघा जमीन भी दे दें भाल-मार्ट खोलने के लिए ;)
    सतीश चंद्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी दिवस से नयी शुरुआत
  28. dhirusingh
    वाल मार्ट आपके सुझावों से बहुत कुछ सीख सकता है .रायल्टी के लिए तैयार रहे .
    dhirusingh की हालिया प्रविष्टी..आजादी में गिरफ्तार हम ….हमारा कसूर क्या
  29. ajit gupta
    चाहे वालमार्ट आ जाए और चाहे कोस्‍को, हम भारतीय उसकी ऐसी ऐसे की तेसी करेंगे कि वे भी चौकड़ी भूल जाएंगे। रिर्टन काउण्‍टर पर लम्‍बी लाइन होगी, बन्‍दा रोज ही सामान बदलवाएगा। कोस्‍को में तो आधे फल खाएगा और फिर पूरी पेटी वापस कर देगा। अपनी नीति यहाँ बदलनी नहीं पड़ी तो बता देना। वहाँ लोगों के पास पर्याप्‍य समय है तो धनिया खरीदने के लिए भी एक घण्‍टा बर्बाद कर देते हैं यहाँ तो घर के बाहर सब्‍जीवाला चाहिए। जो दो मिनट में सब्‍जी दे दे। इनका भविष्‍य दो चार महानगरों में ही तय हो जाएगा।
  30. गिरीश चन्द्र अग्निहोत्री
    अति फुनदर। आज फैक्टरी दे विच्चों राज भाषा फगवाड़ा मनान लई अफ़सरान दे विचकार हिन्दी वल्लों निबंध प्रतियोगिता करवाई गई सी। तो ओहदे वल्लों खाकसार ने भी पार्ट लित्ता सीगा। निबंध का टॉपिक था भारत की समस्याएँ । मैंने तो भारत की सिर्फ कुकरहाव की समस्या का जिक्र किया है।
  31. sonal rastogi
    आज की चर्चा मन कर रहा है वालमार्ट की दिवार पर जाकर चिपका दे उ भी तो जाने … और हाँ हम जैसे जो मजबूरीवश मॉल के देस में फंस गए है वो क्या करे ….
    sonal rastogi की हालिया प्रविष्टी..हरि अनंत हरी कथा अनंता !!!
  32. बेचारा वाल मार्ट पधार रहा है
    [...] पता चला वाल मार्ट आ रहा है। फ़िर कन्फ़र्म हुआ कि नहीं रहा है – [...]
  33. janmejay Mamgai
    अब तो आ ही गया कुछ गरमा गर्म मसाला लिखो की हम कुछ नहीं कर सकते यह तो महसूस हो.
    फिर रियल प्रॉब्लम पर ध्यान ही हट जाय, की बस बयान बाजियों से पेट भर ले.
  34. : हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने
    [...] मॉल आने का हांका हुआ था तो लग रहा था कि [...]

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Thursday, December 29, 2011

…देवलोक में लोकपाल

http://web.archive.org/web/20140419215821/http://hindini.com/fursatiya/archives/2473

…देवलोक में लोकपाल

नारद जी जम्बूद्वीपे भारतखण्डे का टूर बजाते हुये देवलोक पधारे तो तमाम देवताओं ने उन्हें घेर लिया और पूछा- क्या हाल हैं भारतभूमि के? धर्म की संस्थापना हम जो कर आये थे उसकी दशा कैसी है। बताओ हमें जानने की इच्छा हुई है।
धर्म-वर्म तो सर्दी और कोहरे के चलते दिखा नहीं। अलबत्ता वहां आजकल लोकपाल बिल का ही सब तरफ़ हल्ला है। आज लोकसभा में पास हो गया। कल राज्यसभा में बहस होगी – नारद जी ने मीडिया पत्रकार की तरह चिल्लाते हुये कहा!
एक देवता ने नारदजी की इस चिल्लाहट पर सवालिया निगाह उठाई तो नारद जी ने उसको बताया कि वहां ऐसे ही होता है। फ़ुसफ़ुसाहट भर की दूरी वाले श्रोता को भी मीडिया वाले चिल्लाहट मोड में जानकारी देते हैं। आगे उन्होंने यह भी बताया कि एक पत्रकार ने मीडिया के इस हुनर के बारे में बताते हुये लिखा है- चीख-चीख कर खबर बेचने वाले एँकर को देखो तो लगता है कि फुटपाथ पर कोई साँडे का तेल बेच रहा हो!
इसके बाद तो वो गदर मची वहां कि पूछो मत! सवाल के बम बरसने लगे, जिज्ञासाओं की गुमटियां खुल गयीं! सब लोग नारद जी से लोकपाल का नखशिख वर्णन करने का आग्रह करने लगे। वे कैसे हैं? सौंद्रर्य में किस देवता की भांति हैं? क्या पहनते हैं? किस वाहन की सवारी करते हैं? निवास कितै है? बीबी-बाल-बच्चे सबका स्टेटस और उनका प्रमख भक्त कौन है ? आदि-इत्यादि विषयों पर देवगण जिज्ञासा करने लगे।
नारदजी ने जब लोकपाल के बारे में अपनी जानकारी उनको दी तो सब देवता एक स्वर में देवलोक में भी लोकपाल की स्थापना की मांग करने लगे। एक नया देवता भारत से ही आया था। शायद तगड़ा नौकरशाह रहा होगा आने के पहले। उसने धीमे किंतु दृढ स्वर में कहा- वी मस्ट हैव इट! लोकपाल इज इसेन्सियल फ़ॉर अस।
कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि यहां क्या जरूरत है लोकपाल की? इसकी जरूरत तो वहां होती है जहां भ्रष्टाचार होता है। और भ्रष्टाचार वहां होता है जहां कुछ काम-धाम होता है। पसीना बहता है। एक के पसीने की कमाई दूसरे के खाते में चली जाती है। जाती रहती है। एक की भूख सब कुछ ताजिन्दगी खाते रहने पर भी नहीं खतम होती जबकि दूसरा खाने के अभाव में मरता है। यह सब तो धरती में होता है।
लेकिन देवलोक के हाल तो धरती के हाल से एकदम अलग हैं। यहां तो सब निठल्ले रहते हैं। कई देवगण सदियों तक करवट तक नहीं बदलते। लाखों सालों से एक ही पोज में पड़े रहते हैं। मेहनत नहीं होती तो पसीना भी नहीं आता। वास्तव में यहां तो पसीने का प्रवेश वर्जित ही है। आजतक किसी ने अपना पीताम्बर तक नहीं धुलाया/प्रेस कराया! यहां क्या आवश्यकता है लोकपाल की? खाली-मूली का बवाल!
आवश्यकता वाली बात पर एक देवता ने सालों से रटा हुआ श्लोक सुनाकर तरन्नुम में भी उच्चार दिया और लोगों के वाह-वाह कहने पर उसका मतलब भी समझा दिया:

अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
(कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।)
इसके अलावा किसी ने समझाया कि बना लेने में कौनौ हर्जा नहीं है। बन जायेगा तो पड़ा रहेगा। कोई कहेगा तो बता दिया जायेगा कि हमारे यहां भी लोकपाल है।
एक देवता तो एकदम गनगनाते हुये कहने लगा कि पूरे ब्रह्मांड में सबसे अधिक व्यक्तिगत भ्रष्टाचार देवलोक में ही होता है। उसकी आवाज की तेजी से लगा कि देवता बनने से पहले वह किसी लोकतांत्रिक देश में ताजिन्दगी विपक्ष में रहा होगा।
लोगों ने उस देवता की हाय-हाय कहकर भर्त्सना की तो वह और ताव खा गया। वह एकदम खांटी जबान पर उतर आया और उसने चेतावनी सी देते हुये कहा- अब हमारा मुंह मत खुलवाइये देवगण! हम अभी हाल ही में देवलोक में आये हैं। सब करतूतें देवलोक की बताने लगें तो जबाब नहीं देते बनेगा।
उसकी तेजी देखकर कुछ लोगों ने उसको शान्त करना शुरु कर दिया। उनके शान्त करने का तरीका वही था जैसे अपने यहां बीच-बचाव कराने वालों का होता है। उनके शान्त कराने के अनुभवी तरीके से वह अपना मुंह और खोलने के लिये मजबूर हो गया और उसने नाम ले-लेकर एक-एक वरिष्ठ देवता के कच्चे चिट्ठे पक्के राग की तरह खोलना शुरु किया। उसने देवताओं की तमाम गड़बड़ियां बताते हुये बताया कि उनके तमाम कृत्य भ्रष्टाचार की श्रेणी में आते हैं। कुछ उदाहरण देते हुये उसने कहा:

  1. देवता लोग प्राणियों के निर्माण में खराब सामान का उपयोग करते हैं। आज तक अरबों/खरबों लोगों को अपाहिज,लूला, लंगड़ा, अंधा, काना और तमाम लाइलाज बीमारियों से युक्त बनाकर अपना उत्पादन लक्ष्य पूरा करने की मंशा से धरती पर भेज दिया।
  2. अनगिनत किस्से हैं जिनमें देवताओं ने वरदान देने में वरिष्ठता की अनदेखी की। किसी की दो मिनट की तपस्या से खुश हो गये और किसी की सैकड़ों सालों की तपस्या का नोटिस तक नहीं लिया। एकदम जनतंत्र की सरकारों की तरह रवैया रहा देवगणों का।
  3. पृथ्वी लोक पर अनाचार फ़ैलाने में भी देवताओं का बड़ा हाथ रहा है। अनगिनत कुंवारी कन्याओं को सन्तानें प्रदान की। इससे उन कन्याओं का जीना दूभर हो गया। देवताओं को रोल माडल मानते हुये तमाम दुनियावी लोगों ने भी इसका अनुकरण किया और न जाने कितनी जिंदगियां तबाह हो गयीं।
  4. प्रसाद/चढ़ावे के रूप में बरबादी की परम्परा बढ़ाने में देवगणों का भयंकर योगदान रहा। देवस्थानों में इकट्ठे हुये धन ने लूटपाट की घटनाओं को बढ़ावा दिया।
  5. पूजा-पाठ-स्तुति के नाम पर देवताओं ने दुनिया में चापलूसी की प्रवृत्ति को जन्म दिया और बढावा दिया। इस देवता की पूजा करो तो ये फ़ल मिलेगा उसकी पूजा करो तो वह वरदान का दुष्प्रचार हुआ देवगणों के चलते ही हुआ।
  6. शरीर के साथ-साथ आत्मा के निर्माण में भी देवताओं का रिकार्ड बहुत खराब रहा। ऐसी-ऐसी जटिल मनोवृत्तियां डाल दी इंसान के अंदर कि कुछ पूछो मती।
  7. देवता लोगों के चलते धरती पर लोगों की विकास की संभावनायें खतम हो गयी हैं। किसी भी क्षेत्र के सबसे महान आदमी को उस क्षेत्र का देवता कहकर बात खतम कर देते हैं। गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले में देवता की उपाधि लिये मारे-मारे फ़िरते हैं लोग। एकदम सरकारी माहौल बन गया है- जो तीन साल समाज सेवा करे वो भी देवता और जो तीस साल खटे वो भी देवता।
  8. केवल अपने-अपने भक्तों का उद्धार करने की प्रवृत्ति के चलते देवताओं ने अनजाने ही धरती पर गुटबाजी को बढावा दिया है।
  9. देवता लोग केवल वरदान देने का काम करते हैं। इससे लोगों में काम-काज की प्रवृत्ति का विकास नहीं हुआ। हर प्राणी अंतत: देवता बनकर परजीवी बन जाना चाहता है।
  10. देवता लोग समय के हिसाब से चलने के मामले में बहुत कमजोर टाइप होते हैं। अरबों सालों से वहां कोई चुनाव नहीं हुये हैं। वही-वही देवता गद्दी पर जमे हुये हैं जो सृष्टि के उद्भव के समय थे। उसी को नजीर मानकर लोग भी सत्ता की डोर थामे रहना चाहते हैं।
इसी तरह के और न जाने कितने कारण उस नये देवता ने देवलोक में लोकपाल की स्थापना की आवश्यकता के पक्ष में बताये। तमाम देवताओं ने प्रकटत: तो साधु-साधु कहा लेकिन मन ही मन कहा -ये ससुरा नया देवता हमको भी फ़ंसवायेगा। न खुद ऐश करेगा न हमें करने देगा।
शाम तक उस नये देवता की कर्मकुंडली का आडिट हो गया और पाया गया कि वह गलती से स्वर्गलोग आ गया था। पाप-पुण्य का एकाउंट खंगाला गया। पाया गया कि कर्मों के हिसाब से वह स्वर्ग में आने का अधिकारी नहीं था। पाप-पुण्य के खाते तो चलो खैर इधर-उधर करके सही किये जा सकते थे लेकिन स्वर्ग में रहते हुये स्वर्ग की इतनी खिलाफ़त देवतागण स्वीकार न कर सके। अपनी बुराई सुनने के मामले में देवताओं का हाजमा बहुत खराब होता है।
बस फ़िर क्या! उस देवता को फ़ौरन पृथ्वी लोक में पुन: जन्म लेने हेतु किसी अनजान कोख की तरफ़ रवाना कर दिया गया। कर्मों के हिसाब-किताब अधिकारी को उसकी गड़बड़ी के लिये हमेशा की तरह किसी ने कुछ नहीं कहा।
शाम को देवलोक में फ़िर सुर-सरिता की नदी-नाले बहे। अप्सराओं ने नृत्य पेश किया। देवताओं ने आपस में एक-दूसरे की सराहना की। धरती से आये तोहफ़े निहारे। सारा वातावरण एकदम स्वर्गमय हो गया। :)
नोट: फ़ोटो फ़्लिकर से साभार। विवरण नारद जी से नाम न बताने की शर्त के साथ मिला।

41 responses to “…देवलोक में लोकपाल”

  1. चंदन कुमार मिश्र
    देखिए ई साफ पक्षधरता है!
    नाम नहीं बताने की शर्त और नाम बता भी रहे हैं ?
    वइसे लोकपाल पर बन्हिआ लिखा। हाँ, देवलोक पर हमारे यहाँ एगो है – ‘वरदान का फेर’ … जरूर पढिएगा।
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
  2. Shikha Varshney
    जय हो प्रभु ! आपका कोई सानी नहीं :):)..ज्ञान चक्षु खुल गए हमारे तो.
    Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..इतना सा फसाना …
  3. राजेन्द्र अवस्थी
    आदरणीय, आपने तो गजब कर दिया, मैने तो कल्पना ही नहीँ की थी कि देवताओँ मेँ भी भ्रष्टाचार व्याप्त है, मै तो आपसे पूर्णतयाः सहमत हूँ, बहुत ही लाजवाब लेख।
  4. दीपक बाबा
    उ नारद जी ब्लॉग जगत में भी आये थे, लोकपाल का ब्यौरा लेने , पर उका रपट गायब है, – देवलोक में ब्लोगिंग को लेकर का का कारनामे हुए … इ भी शोध का विषय है…. देखिये, नारद जी जब चल ही पड़े हैं तो क्या क्या गुल खिलाएंगे,
  5. देवेन्द्र पाण्डेय
    पोस्ट की कुल बतिया का सांकेतिक अर्थ ई है कि जो भी लोकपाल का नाम लेगा उसे नर्क में ठेल दिया जायगा। पुनः मुसको भवः के आशीर्वाद के साथ। कमियाँ ढूंढने निकलो तो फुर्सतिया स्वर्क की असंख्य कमियाँ गिना सकता है…ई बात बहस के दरमियान उन नेताओं को समझनी चाहिए जो बार-बार चीख रहे हैं…का स्वर्ग से देवदूत आयेंगे लोकपाल बनकर कमी किसमें नहीं है!
    अब मुस्कुरा भी दें :) लेकिन सब बेकार है..हमरा फोटू तो वही खिजियाया पगले का आयेगा आपके ब्लॉग में।
  6. देवांशु निगम
    वाह वाह!!!
    सरकार सुन ले तो लोकपाल वापस लेकर बोले की भाई हम सब तो देवता हैं हमें लोकपाल नहीं चाहिए| :)
    नारद जी से नाम न बताने की शर्त आपने बखूबी निभायी, अगली बार आपसे बात करने में भी डरेंगे :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..आप आ रहे हो ना?
  7. vimal kumar shukla
    आपनि निगरानी कौनौ नहि चाहति न आदमी न देवता
  8. सिद्धार्थ जोशी
    वाह वाह…. स्‍वर्ग लोकपाल बिल की यह हश्र…
    तो जनलोकपाल का क्‍या होगा मुनिश्री…
    सिद्धार्थ जोशी की हालिया प्रविष्टी..कैसे पता लगेगा कि कम्‍प्‍यूटर क्‍या नुकसान दे रहा है??
  9. भारतीय नागरिक
    ये तो जोकपाल निकला. :D
  10. मनोज कुमार
    शीर्षक से ही भावनाओं की गहराई का एह्सास होता है।
  11. Abhishek
    नारायण. नारायण.
    शानदार. वैसे लोकपाल जो ना कराये. :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..टाइम, स्पेस और एक प्री-स्क्रिप्टेड शो
  12. arvind mishra
    दिए गए लिंक पर सांडे का तेल के बारे में जानकारी नहीं मिली -क्या यह सन्डे को लगाया जाने वाला कोई ख़ास तेल है ?
    कृपया समझाएं!
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..पुस्तक लोकार्पण: मैंने किया,मेरी हुई!
  13. संतोष त्रिवेदी
    जितना हो-हल्ला धरती लोक में लोकपाल को लेकर हो रहा है,ऐसे लोकपाल को देवता भी अपने यहाँ रखना चाहेंगे !
    हर्रा लगे न फिटकरी……!
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..संसद से सड़क तक !
  14. shefali
    लोकपाल हो या परलोकपाल बिल…. अंजाम एक ही होना है |
    shefali की हालिया प्रविष्टी..कोई अन्ना को समझाओ कि…..
  15. sanjay jha
    अब-तक तो इहे कहा जा रहा था के……..लोक पाल कोई आसमान (स्वर्ग) से उतरेगा ………………लेकिन अब तो लगता है……….उनके अवतरण से भी ऊई हाल होगा………..
    अब कोई समुद्रगुप्त ढूँढा जाई……………..औ पाताल लोक में सर्वे करवाई जाई……………जौन कोई ‘ताज़ा अन्ना’ मिल जाय तो साल छह महीने ……………… और खेला-बेला देखा जाय……………
    जित्ते तबियत से ‘मिड-नैट सेशन’ हमारे मान-नीय सांसद-गन बजा रहे थे……..उस-से लोकपाल तो क्या ‘लोक’ भी बच पाय तो गनीमत है……….
    @ “-ये ससुरा नया देवता हमको भी फ़ंसवायेगा। न खुद ऐश करेगा न हमें करने देगा।”………………………..
    ……….बस्स, इसई डर से भौकाल बने इत्ते दिनों ये लोग इत्ता भौंक रहे हैंगे …………….इनकी चल जाती तो ये ऐसा ‘जोकपाल’ बनाते…………………भ्रस्टाचारी बस बाहर होता बकिये सब अन्दर किये जाते………..
    ………………..नारायण…नारायण……नारायण……..
    प्रणाम.
  16. sanjay jha
    फोटू सही हुआ
  17. Suresh Chiplunkar
    क्या यह सब कुछ “इन्द्र” के इशारे पर हुआ? इसकी जाँच कबस (क्रिमिनल ब्यूरो ऑफ़ स्वर्ग) से करवाई जाए… :)
    Suresh Chiplunkar की हालिया प्रविष्टी..Darul Islam, Melvisharam, Tamilnadu, Dr Subramanian Swamy
  18. प्रवीण पाण्डेय
    इन संदर्भों में कभी लोकपाल को देखा ही नहीं गया, पुनः सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाये।
  19. इस्मत ज़ैदी
    बहुत ही मज़ेदार पोस्ट
    आप को और आप के परिवार को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ
  20. मनोज कुमार
    आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!
  21. abhi
    हा हा…जय हो,…
    एकदम मस्त टाईप का टाईट पोस्ट है :P
    abhi की हालिया प्रविष्टी..एक्स्पोज़्ड:प्रशांत एंड स्तुति
  22. आशीष श्रीवास्तव
    हा हा हा हा ..
    जब वहां पास नहीं हुआ तो यहाँ का होगा :).
    वहां तो पेश भी नहीं हो पाया , यहाँ कम से कम पेश तो हुआ ….. कुछ लोग ?? साधुवाद के पात्र भी होंगे ..उन तक हमारा साधुवाद पहुंचे..
    वैसे खबर ये भी है कि देवगण फुरसतिया की कर्म कुंडली भी खुलवाना चाहते है .. पूरी पोल खोल देते है आप देवलोक की…..
    —आशीष श्रीवास्तव
  23. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] …देवलोक में लोकपाल [...]