http://web.archive.org/web/20140420082644/http://hindini.com/fursatiya/archives/3020
बेवकूफ़ी का सौंदर्य अद्भुत होता है
By फ़ुरसतिया on May 30, 2012
सोचते हैं कोई बहुत बड़ी बेवकूफ़ी की बात कह डालें लेकिन फ़िर आलस्य हावी हो जाता है। इस चक्कर में दूसरे बाजी मार ले जाते हैं।
ये बात हमने कल फ़ेसबुक पर लिखी। देखते ही देखते हमारे स्टेटस को बीस लोगों ने पसंद कर डाला और नौ लोगों ने टिपिया दिया। जिन लोगों ने पसंद किया उससे यह पता नहीं चलता कि उन्होंने इसे ’ऊंची बात’ मानकर पसंद किया या फ़िर कोई बेवकूफ़ी की बात। लेकिन जिन लोगों ने टिपियाया उन्होंने यही साबित करने की कोशिश की हम उनसे ज्यादा बड़े बेवकूफ़ है। हमारे नेतृत्व में आस्था टाइप व्यक्त कर डाली। हमारी ताजपोशी कर डाली। पद तय नहीं किया लेकिन “बेवकूफ़ शिरोमणि” से कम क्या मिलेगा।
इसी चक्कर में कुछ लोगों ने तो इत्ती आला बेवकूफ़ी की बातें कहीं कि मन किया कि उनको दुनिया का सर्वेश्रेष्ठ बेवकूफ़ घोषित कर दें। लेकिन फ़िर आलस्य ने बाजी मार ली। साथ में बहाना भी कि ऐसे किसी को बेवकूफ़ घोषित करना उचित नहीं होगा। लोग मनमानी और तानाशाही च मठाधीशी का आरोप लगायेंगे। कायदे से टीम बनाकर सर्वे करके फ़िर वोटिंग कराकर “सर्वेश्रेष्ठ बेवकूफ़” तय करना चाहिये।
क्या पता कल को कोई ऐसा आनलाइन सर्वे कराने भी लगे। कहे दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ़ चुने जाने के लिये अपना नामांकन भेजें। वोटिंग होगी। लोग एस.एम.एस. करें- अपने प्यारे दोस्त को सबसे बड़ा बेवकूफ़ अवश्य चुनें। वोटिंग के लिये ये वाला बटन दबायें। किसी का कोई प्रशंसक मेल करे कि फ़लाने भाई साहब को सबसे बड़ी बेवकूफ़ी और सबसे बड़े बेवकूफ़ दोनों के लिये वोट दें। उससे ज्यादा बड़ा कायदे का बेवकूफ़ और कोई नहीं है दुनिया में। लोग अपने को सबसे बड़ा बेवकूफ़ साबित करने के लिये ज्ञानियों की सहायता से अपने बेवकूफ़ी के किस्से बयान करें। तमाम नयी कम्पनियां खुल जायें बेवकूफ़ी का बायोडाटा बनाने वाली। किसी नुक्कड़ पर साइनबोर्ड लगा दिखे- यहां सब भाषाओं में बेवकूफ़ों के बायोडाटा लिखे जाते हैं। यूनीकोड सुविधा उपलब्ध।
दुनिया में बेवकूफ़ी का अस्तित्व हमेशा से रहा है। लेकिन बेवकूफ़ी को उचित सम्मान कभी नहीं मिला। बहुमत हमेशा उपेक्षित रहा। हर व्यक्ति बेवकूफ़ी से अपना पल्ला छुड़ाने की कोशिश करता दिखता है। किसी को बेवकूफ़ कह दो तो वह और ज्यादा बेवकूफ़ी का तर्क देते हुये कहेगा – हम बेवकूफ़ न हैं। अगर बहुत उदारता में अपने को बेवकूफ़ मान भी लिया तो इस शर्त के साथ मानेगा कि आप उससे बड़े बेवकूफ़ हैं। ये वे लोग होते हैं जो अशुद्ध बेवकूफ़ होते हैं। जिनकी बेवकूफ़ी में अकल की मिलावट हो जाती है। शुद्ध बेवकूफ़ कभी अपने को ज्ञानी कहलाने के फ़ेर में नहीं पड़ता। शुद्ध बेवकूफ़ पवित्रात्मा होता है। निर्मल। निडर। बेखौफ़। वह अशुद्ध बेवकूफ़ों और फ़र्जी ज्ञानियों की तरह अपने को बेवकूफ़ी से दूर दिखाने के झमेले में नहीं पड़ता। छाती ठोंककर कहता है – हां भाई हम बेवकूफ़ हैं।
कभी तो लगता है कि काश बेवकूफ़ी का भी कोई डी.एन.ए. टेस्ट होता। जो इंकार करे इसे अपनाने से डी.एन.ए. टेस्ट कराकर बेवकूफ़ी को उसका हक दिला दिया जाये।
आप भले इसे बेवकूफ़ी की बात कहें लेकिन सच यही है कि दुनिया में बेवकूफ़ी न होती तो अकलवाले के हाल कौड़ी के तीन होते। दुनिया का सारा कारोबार लोगों की बेवकूफ़ी के सहारे चल रहा है। लोगों में बेवकूफ़ी न हो तो जित्ते सारे इस्मार्ट, इंटेलीजेन्ट, दिमागी लोग हैं सबका भौकाल लोगों की बेवकूफ़ी के चलते ही है। लोग अपनी बेवकूफ़ी की सप्लाई जरा सा कम कर लें देखिये अकल वालों के दम घुटने लगेंगे। उदाहरण क्या बतायें आपको। आप तो खुद ही समझदार हैं। कोई बेवकूफ़ थोड़ी हैं। आप मेरी बात से फ़ट से सहमत हो जायेंगे।
किसी भी बात पर फ़ट से सहमत हो जाना समझदार होने का साइनबोर्ड है।
बेवकूफ़ी का सौंन्दर्य अद्भुत होता है। अनिर्वचनीय। अवर्णनीय। गूंगे का गुड़ टाइप। आधुनिक ज्ञानसौंन्दर्य के उलट। आज के ज्ञानी लोग अपने ज्ञान के प्रदर्शन और सर्टिफ़िकेट के पसीना-पसीना होते हैं। अपने को सबसे होशियार साबित करने के लिये कम्पटीशन में भाग लेते हैं। कोचिंग करते हैं। घूस देते हैं। चोरी करते हैं। सोर्स भिड़ाते हैं। हिंदी छोड़कर अंग्रेजी पढ़ते हैं। अंग्रेजी के साथ फ़्रेंच। फ़्रेंच के साथ जर्मन। ये सीखते हैं, वो भूलते हैं। किसी सीख से नुकसान हुआ तो उसको तलाक देकर नयी सीख के साथ घरबसाई कर लेते हैं। गर्ज यह कि दुनिया की हर बेवकूफ़ी करते हैं सिर्फ़ इसलिये कि लोग उनको होशियार समझें। काबिल मानें। बेवकूफ़ न समझें।
” जाने-अनजाने कहीं कोई बेवकूफ़ी न हो जाये” का असुरक्षा भाव हर होशियार व्यक्ति का पीछा वोडाफ़ोन वाले कुत्ते की तरह करता रहता है।
समझदार व्यक्ति सरेआम बेवकूफ़ी से संबंध जाहिर करने से बचता है। वे अपनी बेवकूफ़ी के साथ वैसा ही व्यवहार करता है जैसा पुराने जमाने के रईस अपनी अवैध सन्तान से करते थे। इसके उलट बेवकूफ़ समझदारी से संबंध स्वीकारने में हिचकता नहीं। समझदार डरता है। बेवकूफ़ी निडर होती है। निडर, बिन्दास, निर्द्वन्द।
यह ज्ञानगंगा देश/समाज में भी बहती रहती है। हिन्दुस्तान अमेरिका हो जाना चाहता, अमेरिका हिन्दुस्तान होने की सोचता है। पाकिस्तान … अब छोड़िये पाकिस्तान के बारे में क्या कहें। पड़ोसी मुल्क के बारे में कुछ कहना शोभा नहीं देता।
बेवकूफ़ इन सब झमेलों में कत्तई नहीं पड़ता। वह किसी और जैसा होने के लिये नहीं हुड़कता। उसको ये ललक नहीं होती कि लोग उसको ज्ञानी समझें। न यह हुड़क कि वह इतिहास के सबसे बड़े बेवकूफ़ के रूप में जाना जाये।
न जाने और क्या-क्या लिखना चाहता था बेवकूफ़ी के सौंन्दर्य के बखान में। लेकिन सब कुछ गड्ड-मड्ड हो रहा है। सिर्फ़ दुनिया भर में पसरा बेवकूफ़ी का अद्भुत सौंन्दर्य दिख रहा है। अद्भुत। अनिर्वचनीय। अवर्णनीय।
आइये आप भी इस अद्भुत सौंदर्य का आचमन करिये न!
इस पोस्ट के चित्र फ़्लिकर से साभार।
ये बात हमने कल फ़ेसबुक पर लिखी। देखते ही देखते हमारे स्टेटस को बीस लोगों ने पसंद कर डाला और नौ लोगों ने टिपिया दिया। जिन लोगों ने पसंद किया उससे यह पता नहीं चलता कि उन्होंने इसे ’ऊंची बात’ मानकर पसंद किया या फ़िर कोई बेवकूफ़ी की बात। लेकिन जिन लोगों ने टिपियाया उन्होंने यही साबित करने की कोशिश की हम उनसे ज्यादा बड़े बेवकूफ़ है। हमारे नेतृत्व में आस्था टाइप व्यक्त कर डाली। हमारी ताजपोशी कर डाली। पद तय नहीं किया लेकिन “बेवकूफ़ शिरोमणि” से कम क्या मिलेगा।
इसी चक्कर में कुछ लोगों ने तो इत्ती आला बेवकूफ़ी की बातें कहीं कि मन किया कि उनको दुनिया का सर्वेश्रेष्ठ बेवकूफ़ घोषित कर दें। लेकिन फ़िर आलस्य ने बाजी मार ली। साथ में बहाना भी कि ऐसे किसी को बेवकूफ़ घोषित करना उचित नहीं होगा। लोग मनमानी और तानाशाही च मठाधीशी का आरोप लगायेंगे। कायदे से टीम बनाकर सर्वे करके फ़िर वोटिंग कराकर “सर्वेश्रेष्ठ बेवकूफ़” तय करना चाहिये।
क्या पता कल को कोई ऐसा आनलाइन सर्वे कराने भी लगे। कहे दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ़ चुने जाने के लिये अपना नामांकन भेजें। वोटिंग होगी। लोग एस.एम.एस. करें- अपने प्यारे दोस्त को सबसे बड़ा बेवकूफ़ अवश्य चुनें। वोटिंग के लिये ये वाला बटन दबायें। किसी का कोई प्रशंसक मेल करे कि फ़लाने भाई साहब को सबसे बड़ी बेवकूफ़ी और सबसे बड़े बेवकूफ़ दोनों के लिये वोट दें। उससे ज्यादा बड़ा कायदे का बेवकूफ़ और कोई नहीं है दुनिया में। लोग अपने को सबसे बड़ा बेवकूफ़ साबित करने के लिये ज्ञानियों की सहायता से अपने बेवकूफ़ी के किस्से बयान करें। तमाम नयी कम्पनियां खुल जायें बेवकूफ़ी का बायोडाटा बनाने वाली। किसी नुक्कड़ पर साइनबोर्ड लगा दिखे- यहां सब भाषाओं में बेवकूफ़ों के बायोडाटा लिखे जाते हैं। यूनीकोड सुविधा उपलब्ध।
दुनिया में बेवकूफ़ी का अस्तित्व हमेशा से रहा है। लेकिन बेवकूफ़ी को उचित सम्मान कभी नहीं मिला। बहुमत हमेशा उपेक्षित रहा। हर व्यक्ति बेवकूफ़ी से अपना पल्ला छुड़ाने की कोशिश करता दिखता है। किसी को बेवकूफ़ कह दो तो वह और ज्यादा बेवकूफ़ी का तर्क देते हुये कहेगा – हम बेवकूफ़ न हैं। अगर बहुत उदारता में अपने को बेवकूफ़ मान भी लिया तो इस शर्त के साथ मानेगा कि आप उससे बड़े बेवकूफ़ हैं। ये वे लोग होते हैं जो अशुद्ध बेवकूफ़ होते हैं। जिनकी बेवकूफ़ी में अकल की मिलावट हो जाती है। शुद्ध बेवकूफ़ कभी अपने को ज्ञानी कहलाने के फ़ेर में नहीं पड़ता। शुद्ध बेवकूफ़ पवित्रात्मा होता है। निर्मल। निडर। बेखौफ़। वह अशुद्ध बेवकूफ़ों और फ़र्जी ज्ञानियों की तरह अपने को बेवकूफ़ी से दूर दिखाने के झमेले में नहीं पड़ता। छाती ठोंककर कहता है – हां भाई हम बेवकूफ़ हैं।
कभी तो लगता है कि काश बेवकूफ़ी का भी कोई डी.एन.ए. टेस्ट होता। जो इंकार करे इसे अपनाने से डी.एन.ए. टेस्ट कराकर बेवकूफ़ी को उसका हक दिला दिया जाये।
आप भले इसे बेवकूफ़ी की बात कहें लेकिन सच यही है कि दुनिया में बेवकूफ़ी न होती तो अकलवाले के हाल कौड़ी के तीन होते। दुनिया का सारा कारोबार लोगों की बेवकूफ़ी के सहारे चल रहा है। लोगों में बेवकूफ़ी न हो तो जित्ते सारे इस्मार्ट, इंटेलीजेन्ट, दिमागी लोग हैं सबका भौकाल लोगों की बेवकूफ़ी के चलते ही है। लोग अपनी बेवकूफ़ी की सप्लाई जरा सा कम कर लें देखिये अकल वालों के दम घुटने लगेंगे। उदाहरण क्या बतायें आपको। आप तो खुद ही समझदार हैं। कोई बेवकूफ़ थोड़ी हैं। आप मेरी बात से फ़ट से सहमत हो जायेंगे।
किसी भी बात पर फ़ट से सहमत हो जाना समझदार होने का साइनबोर्ड है।
बेवकूफ़ी का सौंन्दर्य अद्भुत होता है। अनिर्वचनीय। अवर्णनीय। गूंगे का गुड़ टाइप। आधुनिक ज्ञानसौंन्दर्य के उलट। आज के ज्ञानी लोग अपने ज्ञान के प्रदर्शन और सर्टिफ़िकेट के पसीना-पसीना होते हैं। अपने को सबसे होशियार साबित करने के लिये कम्पटीशन में भाग लेते हैं। कोचिंग करते हैं। घूस देते हैं। चोरी करते हैं। सोर्स भिड़ाते हैं। हिंदी छोड़कर अंग्रेजी पढ़ते हैं। अंग्रेजी के साथ फ़्रेंच। फ़्रेंच के साथ जर्मन। ये सीखते हैं, वो भूलते हैं। किसी सीख से नुकसान हुआ तो उसको तलाक देकर नयी सीख के साथ घरबसाई कर लेते हैं। गर्ज यह कि दुनिया की हर बेवकूफ़ी करते हैं सिर्फ़ इसलिये कि लोग उनको होशियार समझें। काबिल मानें। बेवकूफ़ न समझें।
” जाने-अनजाने कहीं कोई बेवकूफ़ी न हो जाये” का असुरक्षा भाव हर होशियार व्यक्ति का पीछा वोडाफ़ोन वाले कुत्ते की तरह करता रहता है।
समझदार व्यक्ति सरेआम बेवकूफ़ी से संबंध जाहिर करने से बचता है। वे अपनी बेवकूफ़ी के साथ वैसा ही व्यवहार करता है जैसा पुराने जमाने के रईस अपनी अवैध सन्तान से करते थे। इसके उलट बेवकूफ़ समझदारी से संबंध स्वीकारने में हिचकता नहीं। समझदार डरता है। बेवकूफ़ी निडर होती है। निडर, बिन्दास, निर्द्वन्द।
यह ज्ञानगंगा देश/समाज में भी बहती रहती है। हिन्दुस्तान अमेरिका हो जाना चाहता, अमेरिका हिन्दुस्तान होने की सोचता है। पाकिस्तान … अब छोड़िये पाकिस्तान के बारे में क्या कहें। पड़ोसी मुल्क के बारे में कुछ कहना शोभा नहीं देता।
बेवकूफ़ इन सब झमेलों में कत्तई नहीं पड़ता। वह किसी और जैसा होने के लिये नहीं हुड़कता। उसको ये ललक नहीं होती कि लोग उसको ज्ञानी समझें। न यह हुड़क कि वह इतिहास के सबसे बड़े बेवकूफ़ के रूप में जाना जाये।
न जाने और क्या-क्या लिखना चाहता था बेवकूफ़ी के सौंन्दर्य के बखान में। लेकिन सब कुछ गड्ड-मड्ड हो रहा है। सिर्फ़ दुनिया भर में पसरा बेवकूफ़ी का अद्भुत सौंन्दर्य दिख रहा है। अद्भुत। अनिर्वचनीय। अवर्णनीय।
आइये आप भी इस अद्भुत सौंदर्य का आचमन करिये न!
चलते-चलते
पिछले दिनों हमने अपनी पुरानी पोस्टें एक जगह इकट्ठा की। ठेल और रिठेल मिलाकर सात सौ से कुछ कम। कभी-कभी दोस्त लोग कहते थे कि वो वाली बताओ, ये वाली दिखाओ। अपने को भी आराम हो गया। सब लिंक एक जगह। आप भी अगर हमारे पुराने लेख देखना चाहें तो इस पोस्ट जा सकते हैं। लिंक याद रखने के लिये 176 नंबर याद रखें। फ़ुरसतिया की कोई भी पोस्ट खोलकर उसमें पोस्ट नंबर 176 भरेंगे ये पोस्ट खुल जायेगी। http://hindini.com/fursatiya/archives/176इस पोस्ट के चित्र फ़्लिकर से साभार।
Posted in बस यूं ही | 46 Responses
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..तभी पढ़ें जब आपके पास प्रमाण-पत्र हो !
रवि की हालिया प्रविष्टी..हिंदी स्पीच टू टैक्स्ट प्रोग्राम श्रुतलेखन – राजभाषा का नया संस्करण जारी – आउटपुट यूनिकोड हिंदी में, 90 प्रतिशत शुद्धता के साथ.
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..लिखना नहीं, दिखना बन्द हो गया था
आपके इस ‘बेबकूफ़’ शब्द के सौंदर्य वर्णन ने ‘अक्लावालों’ का हाल तीन कौरी का karke chora hai.
pranam.
सादर
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..गोपाल विनायक गोडसे( Gopal Vinayak Godse ) की कुछ यादें -सतीश सक्सेना
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..ज़रा सोचिये ..
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..पेट्रोल के दाम – बुद्ध फिर मुस्कुराये.
सबसे बड़े बेवकूफ़ दोनों के लिये वोट दें। उससे ज्यादा बड़ा कायदे का बेवकूफ़
और कोई नहीं है दुनिया में।
इ वाला लाइन जो है ना हमको बहुते अच्छा लगा . आजकल ऐसा हो भी रहा है .
………….
बाय दी वे ..मैंने लिखा क्या है ? कोई बेवकूफी भरी बात तो नहीं लिखी न ?
सिर्फ़ बायोडाटा ही लिखा जाता है या नौकरी का भी जुगाड़ भी साथ में फ़्री मिलता है?
आप तो खुद ही समझदार हैं। कोई बेवकूफ़ थोड़ी हैं। आप मेरी बात से फ़ट से सहमत हो जायेंगे।
http://anitakumar-kutchhumkahein.blogspot.in/
ये कमाल की बात कही है आपने …..
बेवकूफी में रस भी होता है , बाकि आनंद आ गया पोस्ट पढ़कर
सहमत है आपसे “बेवकूफ़ी का सौंदर्य अद्भुत होता है” देश में यह सौंदर्य कितना है यह जानने के लिए बेवकूफी आधारित जनगड़ना करायी जा सकती है.. जाति के साथ ये आप्शन भी रखवा दिया जाये तो भला हो ……
—-आशीष श्रीवास्तव
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.."एक पगडण्डी नई …………"
अब ये बात कह देने के बाद तो हम भी लगता है बुडबक बिहारी या देहाती भुच्च की श्रेणी में पदोन्नत हो गए!! देखते हैं कोई स्कोप अगर हमारा भी बना!!
बिल्ला नंबर १७६ याद कर लिए हैं!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..अब तो सचमुच चला बिहारी!!
मुझे यह पोस्ट पसंद न आई … कहना बेवकूफ़ी होगी, पर हम बेवकूफ़ी करने में माहिर हैं, क्यों कि आपने भी तो यह पोस्ट लिखकर आला दर्ज़े की बेवकूफ़ी ही की है।
कोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता है
बेवकूफ़ों को सब कुछ भैया अच्छा लगता है
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..जोसेफ डोक और हेनरी पोलाक से मिलन
का गान कर रहे हैं
इस पोस्ट की कुछ लेने इधर उधर पढ़ी थी. पूरा माल आज ही मिल पाया
मस्त !
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..पुराने बैग से…