पुस्तक मेले में कई मित्रों से मुलाकात हुई। कई मित्रों ने किताबें खरीदकर ऑटोग्राफ़ लिये। कुछ मित्र तो खासकर मिलने और किताब लेने आने आये। मिनी सेलेब्रिटी का एहसास सा कराते। दोस्तों से पहली बार मिलने के बावजूद पुरानी जान-पहचान का एहसास हुआ। शाम को सुभाष जी की ’हंसती हुई कहानियां’ का विमोचन हुआ। हम खरीद चुके थे। उस पर सुभाष जी के दस्तखत भी ले लिये थे। शाम को विमोचन के समय हमको भी बैठा दिया सुभाष जी ने कुर्सी में। बोले –बैठो। हम बैठ गये। सुभाष जी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल के अनुसार 47 किताबों के लेखक हैं सुभाष जी। बस तीन कम पचास किताब। अपन की कुल जमा 5 किताबें आई हैं। 5 किताबों का लेखक 46 किताबों के महालेखक की किताब का विमोचन करे। हम सकुचाये बैठे रहे।
कार्यक्रम शुरु हुआ। संचालक ने बोलने के लिये बोला- हमने मना किया। लेकिन सुभाष जी बोले- ’अनूप शुक्ल भी बोलेंगे।’ बोलना पड़ा। अशोक चक्रधर जी, प्रेम जन्मेजय जी, आलोक पुराणिक जी , खुद सुभाष जी भी बोले। अच्छा बोले। अशोक चक्रधर जी ने हंसती हुई कहानियां को हंसी से जोड़ते हुये अपनी कविता भी सुना दी:
“हंसी आती है
तो आती है,
नहीं आती तो नहीं आती।“
बाद में हमको लगा कि मौका चूक गये। अपन भी हंसी पर लिखी कविता सुना देते:
“हंसी का भी बहुत बड़ा परिवार है
कई बहने है जिनके नाम है-
सजीली,कंटीली,चटकीली,मटकीली
नखरीली और ये देखो आ गई टिलीलिली,
हंसी का सिर्फ एक भाई है
जिसका नाम है ठहाका
टनाटन हेल्थ है छोरा है बांका
हंसी के मां-बाप ने
एक लड़के की चाह में
इतनी लड़कियां पैदा की
परिवार नियोजन कार्यक्रम की
ऐसी-तैसी कर दी।
हंसी की एक बच्ची है
जिसका नाम मुस्कान है
अब यह अलग बात कि उसमें
हंसी से कहीं ज्यादा जान है।“
लेकिन अब समय चूकि पुनि का पछताने। दिन भर कई किताबों के विमोचन करवाने वाले सुभाष जी अब खुद अपनी किताब का विमोचन करवा रहे थे। जैसे कोई पण्डित जी कई शादियां करवाने के बाद अपने लिये मण्डप में बैठ जाये। विमोचन के बाद विमोचित किताब साथ विमोचन करने वाले को भेंट की गयी। विमोचन मेहनताना। हमको पहले किताब खरीदने का अफ़सोस हुआ। लेकिन अब जो हुआ सो हुआ। विमोचन की खबर सुभाष जी की फ़ेसबुक वाल से ही :
“ हास्य कहानी संग्रह 'हँसती हुई कहानियां' का विमोचन प्रभात प्रकाशन के स्टाल पर हुआ।संग्रह का लोकार्पण करते हुए प्रो.अशोक चक्रधर ने कहा कि हास्य मनुष्य को बेहतर बनाने में मदद करता है। वह मनुष्य को आईना दिखाने का काम भी करता है। सुभाष चन्दर ने व्यंग्य के साथ हास्य पर भी उल्लेखनीय काम किया है। उनका हास्य अधरों को ऊर्ध्व बनाने का काम करता है।इसका सबूत उनका यह तीसरा हास्य कथा संग्रह है। इस अवसर पर डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा कि सुभाष चन्दर को चुनौतियों को स्वीकार करना अच्छा लगता है। व्यंग्य का इतिहास नहीं था ,उन्होंने व्यंग्य का इतिहास लिख दिया।हिंदी में हास्य कथाओं पर काम नही हो रहा था।उन्होंने तीन हास्य संग्रह दे दिए।आलोक पुराणिक ने कहा कि सुभाष चंदर जी जैसे बड़े लेखक जब हास्य के क्षेत्र में उतरते हैं तो व्यंग्य के मठाधीश भी हास्य को नकारने का साहस नहीं जुटा पाते।कानपुर से पधारे व्यंग्यकार अनूप शुक्ल ने कहा कि हास्य के क्षेत्र में यह बड़ा काम है। सुभाष चंदर ने कहा कि पाठक हास्य पढ़ना चाहता पर आलोचक उस पर बात नहीं करना चाहता।उसे लगभग अश्लील और दोयम दर्ज़े का मानकर चलता है।इस प्रवृत्ति से बचने की जरूरत है। इस अवसर पर श्रवण कुमार उर्मलिया,कमलेश पांडे,संतराम पांडे,डॉ पवन विजय,डॉ. अनीस अहमद,सुनील जैन राही,नीतू सिंह राय,अनिता यादव, अनिल मीत,अमित शर्मा,राजीव तनेजा,फ़ारूक़ आफरीदी,प्रवीन कुमार,सत्यदीप कुमार,निर्मल गुप्त,अर्चना चतुर्वेदी,सरिता भाटिया,संगीता कुमारी,अलंकार रस्तोगी,तरुणा मिश्र,बलराम अग्रवाल,दीपशिखा,आरके मिश्र,शंखधर दुबे,संदीप तोमर,सुनील चतुर्वेदी,छत्र छाजेड़, पंकज शर्मा,संजीव,अतुल चतुर्वेदी,समीक्षा तेलंग,शशि पांडे,सुनीता शानू ,एम एम एम.एम. चन्द्राआदि उपस्थित थे।संचालन प्रभात प्रकाशन के व्यवस्थापक प्रभात शर्मा ने किया।“
इस संग्रह की कुछ कहानियां हमने पढी हैं। सुभाष जी ने आम जिन्दगी से जुड़े मजेदार किस्से इसमें लिखे हैं। किताब के बारे में अलग से लिखा जायेगा।
पुस्तक मेले के दौरान खूब सारे लेख लिखे गये। अभी भी लिखे जा रहे हैं। कईयों में विमोचनातुर वरिष्ठों के मजे लिये गये हैं। चुटकुले भी बने। लेकिन विमोचन करने वाले वरिष्ठ लोगों का पक्ष रखने वाले लेख नहीं आये। लोग विमोचन करवाना भी चाहते हैं और विमोचन करने वाले के मजे भी लेना चाहते हैं। इस बारे में श्रीलाल शुक्ल जी के एक लेख का अंश देखिये:
“लिखने का एक कारण मुरव्वत भी है। आपने गांव की सुन्दरी की कहानी सुनी होगी। उसकी बदचलनी के किस्सों से आजिज आकर उसकी सहेली ने जब उसे फ़टकार लगाई तो उसने धीरे समझाया कि ” क्या करूं बहन, लोग जब इतनी खुशामद करते हैं और हाथ पकड़ लेते हैं तो मारे मुरव्वत के मुझसे ‘नहीं’ नहीं कहते बनती।” तो बहुत सा लेखन इसी मुरव्वत का नतीजा है- कम से कम , यह टिप्पणी तो है ही! उनके सहयोगी और सम्पादक जब रचना का आग्रह करने लगते हैं तो कागज पर अच्छी रचना भले ही न उतरे, वहां मुरव्वत की स्याही तो फ़ैलती ही है।“
कवि यहां यह कहना चाहता है कि अधिकतर विमोचन , भूमिका लेखन मुरव्वत का नतीजा होता है। कोई मुरव्वत के चलते आपकी किताब की भूमिका लिख रहा है, विमोचन करने आ रहा तो यह उसकी भलमनसाहत भी है। इसकी तारीफ़ भी होनी चाहिये। सिर्फ मजे लेना बहुत नाइन्साफी है।
भलमनसाहत से याद आया कि पुस्तक मेले में
प्रेम जनमेजय जी और
Subhash Chander जी की भलमनसाहत का नाजायज फ़ायदा उठाते हुये हमने अपनी साल भर पहले आई किताबों के फ़िर से विमोचन करवा लिये। तारीफ़ भी झटक ली। प्रेम जी ने कहा कि अनूप शुक्ल बिना लाग लपेट के अपनी बात कह लेते हैं । सुभाष जी ने बताया कि अनूप शुक्ल को पढने में मजा आता है। इन वक्तव्यों के वीडियो अलग से।
हमने तारीफ़ तो करवा ली अपनी किताबों की लेकिन बाद में अपराध बोध भी हुआ कि जबरियन तारीफ़ करवा ली। कित्ती खराब बात है। लेकिन अब जो हुआ सो हुआ। उदारमना प्रेम जी और सुभाष जी इसके लिये माफ़ कर देंगे।
पुस्तक मेले के किस्से और भी हैं। वे सब अब फ़िर कभी फ़ुटकर तरीके से आयेंगे। एक बेहतरीन अनुभव रहा यह मेला।
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