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अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
[परिचयों की कड़ी में अगली कड़ी है राजेश कुमार सिंह । राजेश का आज जन्मदिन है। आप उनको शुभकामनायें दे सकते हैं तथा उपहार के रूप में राजेश द्वारा आयोजित तेहरवीं अनुगूंज में अपना लेख लिख सकते हैं। विषय है -संगति की गति। ]
अतुल के लेख पर रमण ने सवाल किया था:-
तो रमणजी सूचनार्थ निवेदित है कि एक और महारथी ने सितम्बर में ही अवतार लिया था वो हैं राजेश कुमार सिंह। राजेश के बारे में बताने लायक बातें पहले ही बताई जा चुकी हैं। कुछ और बचा नहीं है बताने लायक।
लेकिन राजेश का आज जन्मदिन है। वो घर से दूर हैं । लिहाजा शुभकामनाओं पर तो उनका हक तो बनता ही है। अब जब शुभकामनायें दी जायेंगी तो कुछ कहना भी जरूरी है लिहाजा कुछ बातें अपने राजन के बारे में।
राजेश से मुलाकात हमारी हुई मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कालेज,इलाहाबाद में। समय इफरात था वहां । समय का जितना उन्मुक्त उपयोग उन दिनों किया गया शायद फिर कभी नहीं हुआ होगा। इधर-घूमना,उधर गपियाना और जब कुछ समझ में न आये तो पढ़ भी लेना।
जैसा कि लिखा जा चुका है:-
वैसे राजेश की खुशमिजाज पत्नीश्री, सागरिका से जब मैंने राजेश की कविताओं के बारे में कल राय पूछी तो बताया गया:-
भाई साहब हम अभी तक इस पचड़े में नहीं पड़े कि इनकी कवितायें पढ़ने की आफत मोल लें। जब मैंने बताया कि नहीं राजन अब समझ में आने वाली कवितायें लिखने लगे हैं तो उन्होंने कहा-आप कहते हैं तो मान लेते हैं लेकिन मुझे ऐसा लगता नहीं।
अब झेंले प्रियवर अपने मेल डिलीट न करने के आलस्य का खामियाजा। अगर किसी बात पर इनकी बेवकूफी का अहसास कराने की कोशिश की जायेगी तो जवाब आयेगा:-
पुराने जमाने में राजा लोग जहां कुछ दिन रहते थे एक घर बसा लेते थे।अब इतने बहादुर तो नहीं हैं आज के ठाकुर लेकिन आदत का मुजाहरा ब्लागिंग में करने से चूके नहीं। कल्पवृक्ष के बाद छाया को लाये और अब अभिप्राय। फिर भी इस मामले में राजेश जीतेन्द्र के सामने कहीं नहीं ठहरते जो कहीं भी,जगह हो या विचार, अगर एक घंटे टिक जाते हैं तो उस पर एक ब्लाग बना डालते हैं। जिसके लिये स्वामीजी कहते हैं:-
अपने पसंदीदा लेखक का सबकुछ पढ़ने का राजेश को जुनून है। एक बार शाहजहांपुर आये तो मेरे घर की रद्दी में डूब गये। पूरे दिन पुरानी किताबों में न जाने किन-किन रचनाओं की खोज करते रहे।
राजेश को जन्मदिन के अवसर पर अनेकानेक मंगलकामनायें।उपहार में उन्हीं की कविता से बढ़िया उपहार मुझे कुछ दूसरा नजर नहीं आता।
मेरी पसंद
हम जहाँ हैं,
वहीं से, आगे बढ़ेंगे।
हैं अगर यदि भीड़ में भी, हम खड़े तो,
है यकीं कि, हम नहीं,
पीछें हटेंगे।
देश के, बंजर समय के, बाँझपन में,
या कि, अपनी लालसाओं के,
अंधेरे सघन वन मे,
पंथ, खुद अपना चुनेंगे।
या, अगर हैं हम,
परिस्थितियों की तलहटी में,
तो, वहीं से,
बादलों के रूप में, ऊपर उठेंगे।
-राजेश कुमार सिंह
अतुल के लेख पर रमण ने सवाल किया था:-
क्या बात है! सभी दिग्गज चिट्ठाकारों का एक साथ जन्म-दिन। सितम्बर में ऐसी क्या बात है भाई कि चिट्ठाकार जनता है? और अभी तो आधा ही गया है। और कौन कौन महारथी हैं आने वाले?
तो रमणजी सूचनार्थ निवेदित है कि एक और महारथी ने सितम्बर में ही अवतार लिया था वो हैं राजेश कुमार सिंह। राजेश के बारे में बताने लायक बातें पहले ही बताई जा चुकी हैं। कुछ और बचा नहीं है बताने लायक।
लेकिन राजेश का आज जन्मदिन है। वो घर से दूर हैं । लिहाजा शुभकामनाओं पर तो उनका हक तो बनता ही है। अब जब शुभकामनायें दी जायेंगी तो कुछ कहना भी जरूरी है लिहाजा कुछ बातें अपने राजन के बारे में।
राजेश से मुलाकात हमारी हुई मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कालेज,इलाहाबाद में। समय इफरात था वहां । समय का जितना उन्मुक्त उपयोग उन दिनों किया गया शायद फिर कभी नहीं हुआ होगा। इधर-घूमना,उधर गपियाना और जब कुछ समझ में न आये तो पढ़ भी लेना।
जैसा कि लिखा जा चुका है:-
अपनों के बीच मुखर, समूह में मौन रहने वाले राजेश जब किसी कवि की कविता का पाठ करते थे तो सन्नाटा छा जाता था। शुरुआती पसंदीदा कवि श्रीकांत वर्मा रहे। लेखकों में प्रियंवद पर जान छिड़कते रहे। फिलहाल यह पसंद प्रियंवद से सरककर प्रियंवदा (ऊषा) पर आ ठिठकी है।‘प्रियंवद’ राजेश के पसंदीदा कथाकार रहे काफी दिन। राजेश कभी कभी कविता पाठ करते थे। गजराज की चाल से कविता पढ़ने के लिये माइक की तरफ जाते। श्रीकांत वर्मा की कविता पढ़कर लौटते तो लगता तोप चला के आ रहे हैं। दूसरों की कवितायें पढ़ते-पढ़ते कब यह बालक खुद लिखने के चक्कर में पढ़ गया यह आज भी खोज का विषय है।
राजेश
कभी कभी कविता पाठ करते थे। गजराज की चाल से कविता पढ़ने के लिये माइक की
तरफ जाते। श्रीकांत वर्मा की कविता पढ़कर लौटते तो लगता तोप चला के आ रहे
हैं।
अभी हाल-फिलहाल तक राजेश अतुकान्त और काफी गूढ़ कवितायें लिखते थे। उतनी
अपील नहीं करतीं थी। मेरा मानना है कि कविता पढ़ने के बाद याद न रह जाये
तो कविता दमदार नहीं है। यह अच्छी बात रही कि राजेश ने चिट्ठाकारी की
शुरुआत समझ में आने वाली कविताओं से की। ‘हम जहां हैं वहीं से आगे बढ़ेंगे’
तो मेरी अभी तक की पढ़ी सबसे अच्छी कविताओं में है।वैसे राजेश की खुशमिजाज पत्नीश्री, सागरिका से जब मैंने राजेश की कविताओं के बारे में कल राय पूछी तो बताया गया:-
भाई साहब हम अभी तक इस पचड़े में नहीं पड़े कि इनकी कवितायें पढ़ने की आफत मोल लें। जब मैंने बताया कि नहीं राजन अब समझ में आने वाली कवितायें लिखने लगे हैं तो उन्होंने कहा-आप कहते हैं तो मान लेते हैं लेकिन मुझे ऐसा लगता नहीं।
राजेश
आपके बारे में वो विवरण बता सकते हैं जो आप कभी का भूल चुके होंगे। आप से
जुड़े उन लोगों के बारे में पूछ सकते हैं जिनके बारे में आप सोचने को बाध्य
होंगे-हां याद तो आ रहा है कुछ-कुछ।
राजेश आपके बारे में वो विवरण बता सकते हैं जो आप कभी का भूल चुके
होंगे। आप से जुड़े उन लोगों के बारे में पूछ सकते हैं जिनके बारे में आप
सोचने को बाध्य होंगे-हां याद तो आ रहा है कुछ-कुछ। सालों बाद मिलने पर
राजेश के पहले सवालों में यह यह तकादा हो सकता है -आपने मेरी तीन मेलों का जवाब नहीं दिया। अगर आपको राजेश ने कुछ मेल लिखीं हैं तो यह आपके हित में है कि आप उन्हें सहेज के रखें क्योंकि किसी दिन राजेश कह सकते हैं- प्रियवर
मेरे पास सितम्बर २००३ से लेकर जनवरी २००४ तक की आपकी लिखी मेले तो हैं
लेकिन जो मैंने आपको लिखीं वे नहीं मिल रही हैं। अगर आपके पास हों तो मुझे
भेज दें।अब झेंले प्रियवर अपने मेल डिलीट न करने के आलस्य का खामियाजा। अगर किसी बात पर इनकी बेवकूफी का अहसास कराने की कोशिश की जायेगी तो जवाब आयेगा:-
गुरुवर आपने ही किसी पोस्ट में लिखा है:-मतलब कायदे से गुस्सा होने का आपका अधिकार भी केवल झुंझलाने तक सीमित कर दिया गया।
पढ़ सको तो मेरे मन की भाषा पढ़ो,
मौन रहने से अच्छा है झुंझला पढ़ो।
पुराने जमाने में राजा लोग जहां कुछ दिन रहते थे एक घर बसा लेते थे।अब इतने बहादुर तो नहीं हैं आज के ठाकुर लेकिन आदत का मुजाहरा ब्लागिंग में करने से चूके नहीं। कल्पवृक्ष के बाद छाया को लाये और अब अभिप्राय। फिर भी इस मामले में राजेश जीतेन्द्र के सामने कहीं नहीं ठहरते जो कहीं भी,जगह हो या विचार, अगर एक घंटे टिक जाते हैं तो उस पर एक ब्लाग बना डालते हैं। जिसके लिये स्वामीजी कहते हैं:-
प्रभु मेरे,राजेश टिप्पणी लिखने तथा अपनी राय व्यक्त करने में भले संकोच करते हों लेकिन पढ़ने में कोई कोताही नहीं बरतते। मेरे फुरसतिया पर लिखते रहने का एक कारण यह भी रहा कि वहां कुछ लोग नियमित आते रहे जिनमें इन्डोनेशिया से राजेश भी हैं।
क्यों ना पूरे इंटरनेट पर बिखेर दो अपने लेख – ८-१० और अकाउन्ट बना डालो २ मिनट तो लगते हैं -एक सलीकेदार बरगद से १०० कुकुरमुत्ते भले – है ना! बुरा नही मान रहा – मैं तो बहुत खुश हो रिया हूं – ब्लाग्स की खेती हो री है.
अपने पसंदीदा लेखक का सबकुछ पढ़ने का राजेश को जुनून है। एक बार शाहजहांपुर आये तो मेरे घर की रद्दी में डूब गये। पूरे दिन पुरानी किताबों में न जाने किन-किन रचनाओं की खोज करते रहे।
बहुत मुश्किल होता है बीस साल की यादों से कुछ यादों को छांटना।स्मृतियां एक-दूसरे को धकियाती हैं।
बहुत मुश्किल होता है बीस साल की यादों से कुछ यादों को
छांटना।स्मृतियां एक-दूसरे को धकियाती हैं। तमाम पुराने पत्र राजेश के हैं
मेरे पास। पता है- राजेश कुमार सिंह ,सिकरी वाया बबुरी। हम लोग जब बनारस में पढ़ते थे तो राजेश के गांव भी गये एकाध बार।राजेश को जन्मदिन के अवसर पर अनेकानेक मंगलकामनायें।उपहार में उन्हीं की कविता से बढ़िया उपहार मुझे कुछ दूसरा नजर नहीं आता।
मेरी पसंद
हम जहाँ हैं,
वहीं से, आगे बढ़ेंगे।
हैं अगर यदि भीड़ में भी, हम खड़े तो,
है यकीं कि, हम नहीं,
पीछें हटेंगे।
देश के, बंजर समय के, बाँझपन में,
या कि, अपनी लालसाओं के,
अंधेरे सघन वन मे,
पंथ, खुद अपना चुनेंगे।
या, अगर हैं हम,
परिस्थितियों की तलहटी में,
तो, वहीं से,
बादलों के रूप में, ऊपर उठेंगे।
-राजेश कुमार सिंह
Posted in इनसे मिलिये | 19 Responses
राजेश भाई को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाईयाँ. ईश्वर करे आपकी सारी मनोकामनाये पूरी हो.
रमण भाई की बात पर मैंने भी गौर किया है। मेरी समझ में तो यही आया , कि हालाँकि हमारे जन्मदिन के सितम्बर में ही पड़ने के जवाबदेह हम नहीं , लेकिन , पितृपक्ष की घटनाएँ , चूँकि शुभ नहीं मानी जाती हैं , शायद , इसीलिये , हमारा जन्मदिन भी सितम्बर में ही पड़ा है।
जीतेन्द्र जी , टाँगखिचाई भी संगति की ही गति है ! सिंह को गजराज बनना पड़ गया । पर क्या करें , जन्मदिन पर परिचय लिखवाने की आइडिया भी तो आप की ही है !
पंकज जी , मेरे लिये एक खुशी की बात और है, कि , आजकल , हम और अनूप जी क्लासफेलो हो गये हैं। क्लास लगती है , “अनुशाला” पर । यकीन न मानें , तो “अनुशाला” पर आ कर देख लें । “ब्लाग” को बेलाग करने का श्रेय तो शुक्ला जी के ही पास है ।
अतुल जी , बधाई तो स्वीकार करने के लिये हम बाध्य हैं । पर चाहिये तो उपहार भी !
सारिका जी , आप का भी धन्यवाद और आप की कविता पंक्ति “मित्र तुम कितने भले हो” लिखने का भी, जिसका उपयोग मैंने अतुल जी के लेख की सराहना के लिये कर लिया था , बिना आप के नाम का जिक्र किये और बिना आप की सहमति प्राप्त किये। किसी महिला चिठ्ठाकार की , “अनुगूँज” के लिये कोई प्रविष्टि नहीं। क्या आप से उम्मीद रखूँ , बतौर वर्षगाँठ का उपहार ।
अब , अनूप , आप से भी आखिरकार एक बात , कि , अगर आप अपना रेडिफ वाला “पासवर्ड” लिख दें , तो चिठ्ठियाँ , हम खुद छाँट लेगें ।
बाकी , एक बार फिर , जीतेन्द्र , पंकज , सारिका , रमण और अतुल का हार्दिक धन्यवाद ।
-राजेश
(सुमात्रा)
आशीष
प्रत्यक्षा
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ |
आप सब का हार्दिक धन्यवाद ।
आज, दूसरे दिन भी वर्षगाँठ मना रहा हूँ , आज पहली बार । कल की बधाईयाँ , तो प्रवासी भारतीयों की ओर से थीं । आज के बधाई संग्रह में , देश से आये संदेश ज्यादा हैं । लिहाजा बात थोड़ा हट कर है।
विनय जी , कल हमारी और आप की पोस्ट में सिर्फ १ मिनट का अन्तर है। इसलिये , कल आप का धन्यवाद ज्ञापित नहीं कर सका । वैसे , आप का URL मुझे मिल नहीं रहा है। अगर किसी के पास हो, तो कृपया अवश्य भेजें ।
आशीष जी , आप की बधाई को हमने आपके नाम के साथ पढ़ा , यानी आशीष मान कर ।
“मरना तो सबको है , जी के भी देख लें ” हमने आप का संदेश कुछ यूँ पढ़ा प्रत्यक्षा जी ।धन्यवाद ।
प्रतीक जी, आपने अपने ब्लाग पर इन्डोनेशिया के बारे में एक पोस्ट लिखी है । काफी पहले ,मई में शायद। मैंने , आज-कल में वह पढ़ी ।
तो , आप सभी लोगों को इन्डोनेशिया के बारे में कुछ और बताते हैं ,जिसकी वजह से , शायद अगर आप में से कभी कोई इन्डोनेशिया आये , तो सम्भवतः मुझे याद कर ले। यहाँ अंग्रेजी में , जिस तरह Good Morning , Good Night , Good Afternoon कहते हैं , वैसे ही यहाँ , इन शब्दों के लिये “सलामत पागी” (पागी यानी सुबह) , “सलामत मालम” (मालम यानी रात) और “सलामत सोरे” ( सोरे मतलब अपराह्न) कहते हैं।
अब आप सभी टिप्पणी कर्ता यह बतायें , कि अगर Happy Birthday को यहाँ , “सलामत उलांग ताहुन” कहते हैं , तो “उलांग” और “ताहुन” के क्या अर्थ होते हैं , यहाँ ?
और हाँ , काली…. जी , लिखते यहाँ बिलकुल वैसे ही हैं , जैसे आपने लिखा है। यानी , वर्णमाला अंग्रेजी की ही इस्तेमाल करते हैं । (यानी आप का दावा “I Am God” बिल्कुल सही है।)
अन्त में सभी से आग्रह है , कि कुछ लिखें अनुगूँज के लिये जल्द से जल्द , “संगति की गति” पर । गद्य न सही , पद्य ही लिखें ; समयाभाव की समस्या का यह भी एक हल है।
अनुनाद जी , आप की बधाई , बस अभी-अभी मिली है । चाहें तो, समय देख सकते हैं। आप का धन्यवाद , इस गणराज्य के शब्दों में “त्रिमा कसीह” ( यानी Thanks / धन्यवाद।)
पुनः सभी को धन्यवाद।
-राजेश
(सुमात्रा)
शशि सिंह
शीश नवा के , आप का , धन्यवाद स्वीकार किया । क्यों कि , पूरे चिठ्ठाजगत में , अभी तक , कोई भोजपुरी में पोस्ट लिखी गयी है , तो वह आप के ब्लाग पर ।
धन्यवाद भी , साधुवाद भी।
-राजेश
(सुमात्रा)
अनिता