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अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
एक पोस्ट हवाई अड्डे से
बहुत दिन से हुये हमने घोषणा की थी देबाशीष को तीन किताबें देने के
लिये। पोस्ट आफिस घर के एकदम पास होने के बावजूद हम किताबें पोस्ट नहीं कर
पाये। आज सोचा खुद ही दे आते हैं। सो हम चले किताबें लेकर पूना की तरफ।
कानपुर से लखनऊ टैक्सी से तथा लखनऊ से दिल्ली सबेरे हवाई जहाज से आ गये।
अब इस समय पूना जाने के लिये लिये मुम्बई के हवाई जहाज का इंतजार किया जा रहा है।
पूना जाने के लिये मुम्बई का जहाज हमारे ट्रैवेल एजेंट की मेहबानी से मिला। असल में मेरा जाने का कार्यक्रम अचानक बना । ट्रैवेल एजेंट ने टिकट भी तुरंत दे दिया। हम दिल्ली भी सकुशल आ गये। दिल्ली में अपने दोस्त पाठक जी से भी मिले तथा नंदकिशोर तिवारी से भी। पाठक हमारे कालेज के साथी हैं तथा फिलहाल एनसीसी आफिस में अधिकारी हैं। नंदकिशोर पत्रकार हैं तथा शीघ्र ही किसी दिन किसी अखबार के सम्पादक हो जायें तो अचरज उन्हें भले हो हमें न होगा।
तो हम गये पाठक जी के दर्शन करने के लिये तथा दोनों के दर्शनों के लिये नंदू को बुला लिया। वहां बैठते ही बात आरक्षण पर आ गयी। किसी ने डायलाग मारा -ठाकुरों से हमारा विश्वास उठ गया है । जब पाया आरक्षण बढ़ा दिया।बहरहाल हम करीब घंटा भर गपियाने-बतियाने चाय-पान के बाद निकल लिये। इस बीच नंदकिशोर ने पता नहीं किसको बताया-तुम कपिल सिब्बल को कवर कर लो,तुम फलाने को कवर कर लो। हम थोड़ा व्यस्त हैं।
हमने इसे हवा-पानी दिखाने का प्रयास मानते हुये कहा-नहीं,बालक तुम निकलो। फिर हम सब निकल आये।
खैर,जब हम हवाई अड्डे आये तो चार बजे थे। करीब घंटा भर हम हवाई अड्डे के ही कैफे से कुछ ब्लाग पर कमेंट करते रहे। देखा जाये तो ५० रुपया प्रति घंटा की दर की किसी सेवा से हम पहली बार कमेंट कर रहे थे। तो यह बात जीतू तथा प्रत्यक्षा को समझनी चाहिये कि उनके ब्लाग पर आज के कमेंट कितने मूल्यवान हैं।
हमने तो यह भी सोचा था कि पोस्ट भी लिखा जाय लेकिन उड़ान का समय छह बजे था सो हम साढ़े पांच बजे चले अपनी सीट टटोलने।
सीट के लिये जब हमने टिकटें बढ़ाई काउंटर की तरफ तो हमें देखा गया गहराई से तथा बताया गया -ये फ्लाइट तो चली गयी चार बजे। ये छह बजे का टाइम किसने बताया आपको?हमने चेहरे पर अवसरानुकूल दीनता चिपकाते हुये माजरा बयान किया कि हमारी टिकट पर छह बजे लिखा है फ्लाइट का समय तो हम उसी के हिसाब से आये हैं। अब आप बतायें कि क्या कर सकते हैं?
खैर हमें ज्यादा शहीदाना गौरव का हक न देते हमारी टिकट रात की दिल्ली -मुम्बई फ्लाइट में कर दी गयी। मुम्बई इसलिये क्योंकि पूना के लिये अगली फ्लाइट कल शाम को ही है तथा हमारी काम वहां कल सबेरे है।इसके बाद हमने लखनऊ अपने दोस्त गिरिजेशमाथुर को फोन किया लखनऊ जो कि लखनऊ से उसी फ्लाइट में आने वाला है जिससे हमें आगे मुंबई जाना है। उसे भी पूना जाना है। कल मैं उससे कह रहा था कि क्या बेवकूफ हो यार,तुम पूना सीधा जाने की बजाय मुंबई होकर का रहे हो। आज उसी का साथ है। मुंबई से आगे के लिये उसने पहले से ही टैक्सी तय कर रखी है । गपियाते हुये जायेंगे।
तो इस तरह देबू को किताबें एक दिन और देर से मिलेंगी तथा हमारी ब्लागर मीट एक दिन और टल गयी।वैसे ब्लागर मीट तो हमने दिल्ली हवाई अड्डे पर भी करने का प्रयास किया लेकिन जिन ब्लागर्स से सम्पर्क लिया वे इस ऐतिहासिक काम में साथ न दे पाये।
जो हो लौटते समय कुछ करने की सम्भावनायें बरकरार हैं। मैं पूना से रात की उडा़न से २६ को लौटूंगा। २७ को सबेरे की उडा़न से लखनऊ जाउंगा।
फिलहाल इतना ही,बाकी पूने से। यात्रा की शुभकामनायें अतुल ने अभी आनलाइन बातकरते हुये दे दीं। बाकी की हम खुद ले लिये।किसी को कोई एतराज?
अब इस समय पूना जाने के लिये लिये मुम्बई के हवाई जहाज का इंतजार किया जा रहा है।
पूना जाने के लिये मुम्बई का जहाज हमारे ट्रैवेल एजेंट की मेहबानी से मिला। असल में मेरा जाने का कार्यक्रम अचानक बना । ट्रैवेल एजेंट ने टिकट भी तुरंत दे दिया। हम दिल्ली भी सकुशल आ गये। दिल्ली में अपने दोस्त पाठक जी से भी मिले तथा नंदकिशोर तिवारी से भी। पाठक हमारे कालेज के साथी हैं तथा फिलहाल एनसीसी आफिस में अधिकारी हैं। नंदकिशोर पत्रकार हैं तथा शीघ्र ही किसी दिन किसी अखबार के सम्पादक हो जायें तो अचरज उन्हें भले हो हमें न होगा।
तो हम गये पाठक जी के दर्शन करने के लिये तथा दोनों के दर्शनों के लिये नंदू को बुला लिया। वहां बैठते ही बात आरक्षण पर आ गयी। किसी ने डायलाग मारा -ठाकुरों से हमारा विश्वास उठ गया है । जब पाया आरक्षण बढ़ा दिया।बहरहाल हम करीब घंटा भर गपियाने-बतियाने चाय-पान के बाद निकल लिये। इस बीच नंदकिशोर ने पता नहीं किसको बताया-तुम कपिल सिब्बल को कवर कर लो,तुम फलाने को कवर कर लो। हम थोड़ा व्यस्त हैं।
हमने इसे हवा-पानी दिखाने का प्रयास मानते हुये कहा-नहीं,बालक तुम निकलो। फिर हम सब निकल आये।
खैर,जब हम हवाई अड्डे आये तो चार बजे थे। करीब घंटा भर हम हवाई अड्डे के ही कैफे से कुछ ब्लाग पर कमेंट करते रहे। देखा जाये तो ५० रुपया प्रति घंटा की दर की किसी सेवा से हम पहली बार कमेंट कर रहे थे। तो यह बात जीतू तथा प्रत्यक्षा को समझनी चाहिये कि उनके ब्लाग पर आज के कमेंट कितने मूल्यवान हैं।
हमने तो यह भी सोचा था कि पोस्ट भी लिखा जाय लेकिन उड़ान का समय छह बजे था सो हम साढ़े पांच बजे चले अपनी सीट टटोलने।
सीट के लिये जब हमने टिकटें बढ़ाई काउंटर की तरफ तो हमें देखा गया गहराई से तथा बताया गया -ये फ्लाइट तो चली गयी चार बजे। ये छह बजे का टाइम किसने बताया आपको?हमने चेहरे पर अवसरानुकूल दीनता चिपकाते हुये माजरा बयान किया कि हमारी टिकट पर छह बजे लिखा है फ्लाइट का समय तो हम उसी के हिसाब से आये हैं। अब आप बतायें कि क्या कर सकते हैं?
खैर हमें ज्यादा शहीदाना गौरव का हक न देते हमारी टिकट रात की दिल्ली -मुम्बई फ्लाइट में कर दी गयी। मुम्बई इसलिये क्योंकि पूना के लिये अगली फ्लाइट कल शाम को ही है तथा हमारी काम वहां कल सबेरे है।इसके बाद हमने लखनऊ अपने दोस्त गिरिजेशमाथुर को फोन किया लखनऊ जो कि लखनऊ से उसी फ्लाइट में आने वाला है जिससे हमें आगे मुंबई जाना है। उसे भी पूना जाना है। कल मैं उससे कह रहा था कि क्या बेवकूफ हो यार,तुम पूना सीधा जाने की बजाय मुंबई होकर का रहे हो। आज उसी का साथ है। मुंबई से आगे के लिये उसने पहले से ही टैक्सी तय कर रखी है । गपियाते हुये जायेंगे।
तो इस तरह देबू को किताबें एक दिन और देर से मिलेंगी तथा हमारी ब्लागर मीट एक दिन और टल गयी।वैसे ब्लागर मीट तो हमने दिल्ली हवाई अड्डे पर भी करने का प्रयास किया लेकिन जिन ब्लागर्स से सम्पर्क लिया वे इस ऐतिहासिक काम में साथ न दे पाये।
जो हो लौटते समय कुछ करने की सम्भावनायें बरकरार हैं। मैं पूना से रात की उडा़न से २६ को लौटूंगा। २७ को सबेरे की उडा़न से लखनऊ जाउंगा।
फिलहाल इतना ही,बाकी पूने से। यात्रा की शुभकामनायें अतुल ने अभी आनलाइन बातकरते हुये दे दीं। बाकी की हम खुद ले लिये।किसी को कोई एतराज?
Posted in बस यूं ही | 14 Responses
अब कुछ सावधानियां बरते:(ये कानपुर से भैजी ने हमको SMS करके बोला है कि आपको बता दें)
अंगोछें को कसकर बांधे रखे, पोटली से गुड़ निकालते समय एयरपोर्ट के फ़र्श पर ना फ़ैलाएं, गुड़ निकालकर, पोटली को अंगोछे से बांधकर वापस डंडे पर लटका लें।डन्डा सीट पर मत रखें, कन्धे पर सही रहेगा।
वो जो पड़ोस मे अंग्रेज दिखने वाली महिला बैठी है ना, उसकी तरफ़ ज्यादा मत देखें, उसकी मुस्कराहट बता रही है तो वो एमवे का सामान बेचती है।ध्यान रखें। और हाँ दवाइयां समय पर ले लें,ज्यादा तला वला मत खाएं।देबू को किसी बात पर गुस्सा मत दिलाएं।
बकिया चकाचक।
देबू को किताब देने खुद पूना की सैर, और हमें कोरियरे से निबटा दिया.
बहुत नाइंसाफ़ी है.
इसकी सजा मिलेगी.
इसकी सजा मिलेगी.
पूना से वापसी पर रतलाम में रुकना होगा.
नहीं तो…
रविजी,आपही ने बताया कि देबाशीष हिंदी ब्लागजगत के पितामह हैं तो पितामह को खास तवज्जो जरूरी थी। जल्दी ही आपसे भी मुलाकात होगी।
आशीष तुम परेशान न हो। हम आ रहे हैं जल्द ही मद्रास ,शायद अगले ही हफ्ते । हमें दो सप्ताह के लिये अरवनकाडू जाना है(ऊटी के पास)। सुना है रास्ता चेन्नई से होकर जाता है। ब्लागर मीट के लिये हो जाओ तैयार!
घर का नंबर है ३२९१२९५७( ये नम्बर घर का है जहां मै सोते समय रहता हूं)