Tuesday, July 11, 2006

एक पत्रकार दो अखबार

http://web.archive.org/web/20120416141100/http://hindini.com/fursatiya/archives/156

एक पत्रकार दो अखबार

पिछले हफ्ते दो बार लखनऊ जाना हुआ।
पहली बार गया था आफिस से संबंधित कुछ छपाई के काम से।वहाँ देखा कि प्रेस का काम’आफसेट’ प्रिंटिंग पर कैसे होता है। वहीं दो अखबारों के प्रकाशन का काम देखा। जिस प्रेस में छपाई का काम हो रहा था वहीं से दो अखबार भी निकलते हैं लखनऊ मेल तथा व्यास भारती।दोनों सांध्य दैनिक।
लखनऊ मेल के बारे में प्रेस के मालिक ने बताया कि यह तब से निकलता है जब लखनऊ में अटल बिहारी बाजपेयी तरुण भारत निकालते थे। उस समय यही दोनों अखबार निकलते थे।
चार-चार पेज के दोनों अखबारों में कुछ राष्ट्रीय खबरों के अलावा ज्यादातर स्थानीय खबरें रहती हैं।
अखबारों के बारे में आम धारणा है कि उनको निकालने के लिये तमाम लाव-लश्कर चाहिये। लेकिन इन दोनों अखबारों के प्रकाशन देखकर हमारी यह धारणा बदल गई। हमने देखा कि दोनों अखबारों के प्रकाशन का सारा काम-धाम एक अकेला शख्स करता है।वो शख्स हैं मोहन अवस्थी। बीच की उमर के सुदर्शन चेहरे ,घनी मूछों वाले, दुबले-पतले छरहरे, शरीर के मालिक मोहन अवस्थी एक साथ दो अखबारों के पत्रकार,टाइपिस्ट,प्रूफरीडर,संपादक,प्रकाशक यानि कि पीर, बाबर्ची , भिस्ती , खर हैं।
दोनों अखबारों की प्रसारण संख्या अलग-अलग करीब २-३ हजार है।
मैंने देखा कि सबेरे करीब ग्यारह बजे अपने हेलमेट,झोला उठाये मोहन अवस्थी आफिस में घुसते हैं।सामान अपने पीसी के पास मेज पर रखकर खुटुर-पुटुर शुरू कर देते हैं। सारा काम कृतिदेव फान्ट,पेजमेकर,फोटोशाप की सहायता से निपटाते हैं।खबरों के लिये बताया कि वे राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय खबरों के लिये नेट पर निर्भर रहते हैं। स्थानीय खबरें लोग खुद दे जाते हैं फोन पर बता देते हैं या घूमते-घूमते मिल जाती हैं। जिस पीसी पर काम करते हैं उसके की बोर्ड पर मजाल है कि कोई अक्षर आप देखकर पहचान लें। रवि रतलामी का कीबोर्ड भी अइसाइच होगा!
मैंने उनको ब्लाग के बारे में बताया तो उनको जानकारी नहीं थी। साथ के रिलायन्स मोबाइल से नेट लगाया तो समस्या वही विन्डो ९८ पीसी में चौकोर अक्षरों वाली। तख्ती की शरण में गये तो स्पीड भारत की विकास गति की तरह धीमी। खुल के ही नहीं दिया।कुछ खुला भी तो डाउनलोड नहीं हुआ। आगे इंतज़ार करने में संकोच हो रहा था क्योंकि मोहन अवस्थी का मोबाइल तथा समय फुंक रहा था।
फिर मैंने ब्लाग की जानकारी देने के लिये कुछ अंग्रेजी ब्लाग इंडिया अनकट दिखाया तथा बताया कि ये होता है ब्लाग। जानकारी को ग्रहण किया गया लेकिन अगर नेट से हिंदी का ब्लाग दिखता तो हिंदी ब्लाग जगत में शायद एक राजनीतिक ब्लाग अब तक बढ़ गया होता और साथ में एक ब्लागर मीट और जुड़ जाती हमारे नाम।
मैंने मालिक पुत्र ,जो कि काफी उत्साही नवजवान दिखते हैं, से पूछा कि जब आपके पास एक्सपी है तो उस पर क्यों नहीं नेट लगाते ?विन्डो ९८ में काहे पिले पड़े हो?
बताया गया कि एक्सपी के संस्करण में जरूरी पैकेज हैं,फाइलें हैं। नेट लगाने से वायरस आ जाता है।खराब हो जाता है इसलिये इसमें नेट नहीं लगाते।
दो अखबार एक आदमी निकाल रहा है लगातार,सालों से, यह हमारे लिये ताज्जुब की बात थी। शाम को हमें मोहन अवस्थी के बारे में और तमाम तारीफ सुनने को मिलीं उनके मालिकों से।ये किया ,वो किया। सवाल किया तो मुलायम सिंह जवाब नहीं दे पाये फिर शाम को बुलाया। आदि-इत्यादि।
मुलायम सिंह जी की बात आई तो बताते चलें कि समाजवादी पार्टी की पत्रिका भी इसी प्रेस से छपती है। पुराने अंक देखे। एक में डा.राममनोहर लोहिया के बारे में मधु लिमये का लेख था। इस लेख में लोहिया जी की खूबियों- खामियों का विस्तार से जिक्र किया था। एक बात जो मुझे याद आ रही है उसका लब्बो-लुआब यह था कि :
हम भारतीय सदियों से दबे -पराजित रहे हैं। जरा सी बात से खुश हो जाते हैं। जरा से पराक्रम पर वीर पूजा करने लगते हैं। हमारा देश हजार सालों के खंड-खंड जीवन के बाद एक राष्ट्र के रूप में हमें मिला है। हमें इसका महत्व समझना चाहिये।
प्रेस में बैठे-बैठे हमने सोचा कि अगर हम अपने तथा साथियों के लेख छपवायें तो कितना खर्चा आयेगा? कई क्रमचय संचय(परमुटेशन-कम्बिनेशन) के बावजूद २०० पृष्ठ के पेपर बैक संस्करण की १००० प्रतियों की कीमत सौ रुपये से कम ही नहीं हुई। १०० पेज के लिये कीमत २५ रुपये कम हो जाती। सोचा कुछ दिन और सही तब देखा जायेगा।
दूसरे दिन शाम होते-होते हमारा काम हो गया। हमने जब प्रिंटिग किया हुआ सामान लादना शुरू किया तो पता चला कि एक गाड़ी में मामला नहीं आयेगा। मजबूरन गाड़ी भी मंगाई गयी। इस पचड़े में हम जब फोनोलाग कर रहे थे तब हमें पता ही नहीं चला कि कब हमारे बगल में कोई जीव आकर बैठ गया है तथा मुस्करा रहा है। हम जब फारिग हुये काम से तथा मुस्कान की यूआरएल पे क्लिक किया तो पता चला कि हमारे बचपन के दोस्त विकास गंगाधर राव तैलंग हमारे बगल में बैठे ढेर सारा मुस्करा चुके थे। हमने उनको धौल जमाते हुये हेलो किया और हाल-चाल की डाल पर बैठ कर बतियाने लगे।
विकास के साथ हम कक्षा छह से दस तक पढ़े। संगीतकार घराने के विकास का पूरा परिवार संगीतमय है। फिलहाल भातखंडे विश्वविद्यालय ,लखनऊ में संगीत-अध्यापक हैं। पिता श्री गंगाधर राव तैलंग कानपुर के जाने माने संगीतकार हैं। भाई भरत तैलंग संगीतकार , अधिकारी है।छुटपन में हम मनीराम बगिया के जिस घर में जाकर विकास से मुलाकात करते थे ,पता चला कि वहां कानपुर की प्रख्यात हस्ती डा.हीरालाल खन्ना रहते थे तथा कभी-कभी वहां शहीद भगत भी आकर रुकते थे।
विकास ने हमें गिरिजा देवी की ठुमरी ‘न जा रे पी परदेश’ का कैसेट देने का वायदा किया था जिसे अभी उनको पूरा करना है।
बहरहाल हम अपना काम करके लखनऊ से वापस आ गये। यह पहला मौका रहा जब हम लखनऊ में दो दिन रहने के बावजूद श्रीलाल शुक्ल जी से नहीं मिल पाये। न ही कोई ब्लागर मीट कर पाये जबकि सुना है कि लखनऊ में भी कुछ ब्लागर निवास करते हैं। खैर फिर सही!
यह रहा हमारे लखनऊ जाने तथा वापस आने का पहला किस्सा। दूसरे के लिये कुछ इंतजार कीजिये न!

5 responses to “एक पत्रकार दो अखबार”

  1. eshadow
    नवाबों के शहर लखनऊ को मेरा सलाम।
  2. Raman Kaul
    जहाँ विंडोज़ 98 दिखे, फटाफट बीबीसी हिन्दी की साइट पर जा कर फ़ॉण्ट डाउनलोड पर क्लिक किया करें। चोकोर बक्से दिखने बन्द हो जाएँगे।
  3. प्रत्यक्षा
    गिरिजा देवी की कैसेट मिल जाये तो बताईयेगा
  4. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] भेंटवार्ता 5.थोड़ा कहा बहुत समझना 6.एक पत्रकार दो अखबार 7.देखा मैंने उसे कानपुर पथ पर- 8.अनुगूंज [...]
  5. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
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