http://web.archive.org/web/20110101211818/http://hindini.com/fursatiya/archives/193
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
चिट्ठा चर्चा के बहाने पुस्तक चर्चा
जैसा कि सब जानते हैं कि नारद की अनुपस्थिति में लोगों का चिट्ठालिखना पढ़ना प्रभावित हुआ है। नारद को आये तो अभी साल भर नहीं हुआ शायद। इसके पहले यह काम चिट्ठाविश्व
करता था। जब चिट्ठाविश्व बनाया था देबाशीष ने बहुत धूम मची थी और एक बार
इंडीब्लागर्स इनाम भी मिला था। चिट्ठाविश्व में बाद में कुछ धीमे होने की
बात चली और तेजी की मांग ने नारद को जन्मदिया। चिट्ठाविश्व के कुछ ‘फीचर’
अभी भी नारद में नहीं थे जैसे कि हिंदीतर भाषाऒं के चिट्ठों की जानकारी,
नये ब्लागर्स की जानकारी आदि। नये रूप में शायद आयेंगे कुछ और नये अंदाज।
लेकिन जब चिट्ठाविश्व था और नारद नहीं था तब हम लोग नई पोस्ट के लिये उस पर पूरी तरह निर्भर नहीं थे। अपने ब्लाग में दूसरे ब्लाग के लिंक रखते थे और नियम से देखते थे,टिप्पणी करते थे। किसी दिन चिट्ठाविश्व देखते तो पता चलता अरे यार ये तो नया ब्लाग आ गया। हर बार रिफ़्रेश करने पर ब्लागर परिचय आ जाता और हम देखते पंकज,अतुल,रविरतलामी, आलोककुमार और बाद में जीतेंद्र को परिचय समेत। नारद में यह खासियत लाई जानी है,जानी चाहिये अगर कोई तकनीकी समस्या न हो।
कुछ दिन बाद चिट्ठाचर्चा शुरू हुआ। इसके शुरुआत की कहानी दिलचस्प है। भारतीय ब्लागमेला में अंग्रेजी के ब्लागर्स अपने ब्लाग के बारे में बात करते हैं। हर बार अलग-अलग लोग सप्ताह भर में लिखे गये चिट्ठों का जिक्र करते थे। हमने उसकी प्रविष्टि में हिंदी के ब्लाग दिये। कुछ लोगों ने जिक्र किया हिंदी ब्लागों का और अतुल ताली बजाते हुये कई बार बोले -हिंदी ब्लाग में छा गयी।
लेकिन कुछ लोगों को या तो हिंदी आती नहीं थी या कुछ चिढ़ रही होगी हिंदी से तो उन्होंने कुछ ऐसी बातें कहीं जो अतुल को बुरी लगीं और बाद में हमें भी सो हम मौके की नजाकत देखकर ताव में आये और चिट्ठाचर्चा शुरू कर दिया। शुरुआत इस ऐंठ के साथ थी कि दुनिया के हर भाषा के चिट्ठे की चर्चा का यहां प्रयास होगा। साथियों ने कहा वाह ,बहुत अच्छे और तमाम लोगों ने तमाम बार सहयोग की बात कही कि इस भाषा के चिट्ठे हम लिखेंगे इसके हम। कुछ दिन हम अंग्रेजी हिंदी के चिट्ठों के बारे में लिखते भी रहे।
बाद में लोगों के सहयोग और रुचि के अभाव में मेरा रुझान कम होता गया और फिर हमने लिखना स्थगित कर दिया। अभी नारद के बंद होने के कुछ दिन पहले हमें लगा कि नारद केवल सूचना पट है और यांत्रिक अंदाज में यह पोस्ट की सूचना देता है। यह इस सुविधा की कमी है इसका कोई हल नहीं है सिवाय इसके कि कोई प्रतिदिन चिट्ठों के बारे में लिखे। इस विचार ने
मेरे पहले के विचार को कि, नारद के चलते कौन पढे़गा इसे, उठाकर पटक दिया। मुझे लगा कि लोगों को अपनी पोस्ट के बारे में जानने की उत्सुकता जरूर रहती है चाहे वह टिप्पणियॊं के माध्यम से हो या किसी चर्चा के माध्यम से। इसी विचार से दोबारा क्या तिबारा ,चौबारा फिर से शुरू किया गया चिट्ठाचर्चा। और अब पखवाड़ा ,हफ्ते के बजाय प्रतिदिन चर्चा और हम अकेले नहीं हैं इस बार। हमारे साथ व्यंजल सम्राट रविरतलामी हैं, कुंडलिया नरेश समीर लाल हैं और हैं सदाबहार चिट्ठाकार अतुल।इन धुरंधरों के चलते लोगों की रुचि बनी है और अब चिट्ठाचर्चा मेरे ख्याल से लोग नियमित देखते हैं।
अभी मेरे हिस्से चार दिन का लेखन है। यह दिन भी मुझसे जल्दी ही छिनने वाले हैं और दूसरे समर्थ लोग अपने हथियार पैने कर रहे हैं। आगे शायद कुछ और वैविध्य पूर्ण चर्चा आपको पढ़ने को मिले।
यह जानकारी जिसे बहुत लोग जानते होंगे इसलिये दी गई कि नये साथी चिट्ठाचर्चा से जुड़ी पुरानी बातें जान सकें।
सुनील दीपक जी ने अपनी एक टिप्पणी में कहा:-
चिट्ठा चर्चा का शीर्षक कहता है कि सब भाषाओं के चिट्ठा जगतों से समाचार लाने का ध्येय है पर बात केवल हिंदी चिट्ठा जगत पर ही अटक गयी लगती है, शायद इसलिए कि जितनी रोचक बातें हम लोग हिंदी में कर रहे हें वैसी कोई और नहीं कर रहा! पर इस रोचक चिट्ठावलोकन के लिए बहुत धन्यवाद.
सुनील जी को हम यही सफाई पेश करते हैं कि हमारे पास जो भी चिट्ठे आते हैं हम उनका विवरण देते हैं। हिंदी के अलावा अन्य भाषाऒं के चिट्ठों की चर्चा के लिये जो साथी उत्सुक,इच्छुक हैं उनका स्वागत है। वे हमें बतायें हम उनको चिट्ठाचर्चा लिखने के लिये आमंत्रित करेंगे। हिंदी के अलावा दूसरी भाषाऒं के लिये लिखने वालों के लिये तो दिन की भी कोई समस्या नहीं है। सातों दिन खुले हैं। हिंदी में भी जो साथी लिखना चाहते हैं वे हमें सूचित करें,हम उनको लिखने के लिये निमंत्रण
भेजने की व्यवस्था करेंगे।
चिट्ठाचर्चा के अलावा हमारा विचार एक और ब्लाग शुरू करने का है। हममें से अधिकांश लोग पढा़कू किस्म के हैं। कई लोगों के सबसे अच्छे अच्छे शौकों में किताबें पढ़ना सबसे ऊपर आता है। वहीं तमाम लोग ऐसे भी हैं जो लिखते तो बहुत अच्छा हैं
लेकिन संयोगवश उन्होंने पढा़ नही है उतना। अक्सर ऐसे में कौन सी किताब अच्छी है ,पढ़ने लायक है,जरूर पढ़ने लायक है यह बताकर उनका सहयोग किया जा सकता है,उनको पढ़ने के लिये उकसाया जा सकता है।
जैसे मैं बताऊं कि कुछ दिन पहले तक मैंने बहुत किताबें पढ़ीं। पहला गिरमिटिया (लेखक गिरिराज किशोर)और मुझे चांद चाहिये(लेखक सुरेंद्र वर्मा) जैसी किताबें तो बाथरूम की लाइट तक में पढ़ीं ताकि घर वालों को रोशनी से परेशानी न हो। ऐसा करना कोई अनूठी बात नही है। किताबों को पूरा करने की ललक रही बस। स्व.विष्णुकांत शाष्त्री जी कहते थे कि उन्होंने अपना अधिकांश पाठक धर्म रिक्शा,ट्रेन,टाम,बस और अन्य यात्राऒं में निभाया है।
अक्सर साथी लोग यह भी पूछते हैं कि कुछ अच्छी किताबों के नाम बताऒ। बताने पर कुछ लोग पढ़ते हैं कुछ लोग तो किताब देने के बाद भी नहीं पढ़ पाते कि आराम से पढ़ेंगे।
बहरहाल मेरा मानना है कि पढ़ना अपने आप में बहुत अच्छी चीज है और अच्छी किताब का प्रचार करना ताकि दूसरे लोग भी उसका लाभ उठा सकें और भी अच्छी चीज है।
यही मानते हुये मैं चाहता हूं कि चिट्ठाचर्चा की तर्ज पर किताबों की चर्चा के लिये एक ब्लाग शुरू किया जाये। इसमें लोग जो भी किताब पढे़ उसके बारे में लेख लिखें और दूसरे पाठकों के बारे में जानकारी दें ताकि वे भी उसका लाभ उठा सकें। इस ब्लाग के बारे में मेरी सोच यह है:-
यदि आप मेरी बात से सहमत हैं तो मेहरबानी करके इस ब्लाग का नाम सुझायें और अपने अन्य सुझावों से हमें इस काम को करने में सहायता दें। यदि आप किताबों के बारे में लिखना चाहें तो बतायें ताकि हम आपको निमंत्रण भेज सकें। इस बारे में आगे के सभी निर्णय सबकी सहमति से और खासकर पुस्तकों के बारे में लिखने वाले लेखकगणों की सहमति से होंगे।
मेरी भूमिका केवल एक लेखक की होगी।
जो लोग नियमित न लिखना चाहें और सदस्यों में न शामिल होना चाहें वे हमें ई-मेल से अपने लेख भेज सकते हैं।
तो अगर आपको इस विचार में कुछ अच्छाई और हमारे इरादे में कुछ सच्चाई दिखती है तो आप अपने सुझाव हमें बतायें। या तो यहीं टिप्पणी करके या मुझे मेल लिखकर (anupkidak@gmail.com)।
हां इसमे यह भी बता दूं कि जिन लोगों को यह संकोच है कि उनकी वर्तनी में कुछ लोचा है तो वे अपने संकोच को रिसाइकिल बिन में डालकर खाली कर दें। हम वो सारे काम कर लेंगे और इसमें कोई चिंता की बात नहीं है। मुख्य बात है पठनीय पुस्तकों के बारे में जानना न कि व्याकरणाचार्य खोजना।
नाम मेरे विचार में एक आया था। चिट्ठाचर्चा की तर्ज पर पुस्तक चर्चा । लेकिन और साथी लोग शायद बेहतर और खूबसूरत नाम सुझा सकें।
और हां ब्लागस्पाट या वर्ड्प्रेस की जगह इसे किसी साइट पर बनाना अच्छा रहेगा शायद। तो यह देखें कि हिंदिनी पर क्या सारे लोग लिख सकते हैं अगर यह ब्लाग बनाया जाता है। यह बात स्वामीजी देख लें। ताकि यदि यह हिंदिनी पर बनाया जाता है तो उसमे कोई समस्या तो नहीं होगी लेखकों की संख्या को लेकर। ख्याल यही है कि यह ब्लाग सिर्फ किताबों की चर्चा के बारे में होगा।
तो अपने सुझाव भेजिये न!
लेकिन जब चिट्ठाविश्व था और नारद नहीं था तब हम लोग नई पोस्ट के लिये उस पर पूरी तरह निर्भर नहीं थे। अपने ब्लाग में दूसरे ब्लाग के लिंक रखते थे और नियम से देखते थे,टिप्पणी करते थे। किसी दिन चिट्ठाविश्व देखते तो पता चलता अरे यार ये तो नया ब्लाग आ गया। हर बार रिफ़्रेश करने पर ब्लागर परिचय आ जाता और हम देखते पंकज,अतुल,रविरतलामी, आलोककुमार और बाद में जीतेंद्र को परिचय समेत। नारद में यह खासियत लाई जानी है,जानी चाहिये अगर कोई तकनीकी समस्या न हो।
कुछ दिन बाद चिट्ठाचर्चा शुरू हुआ। इसके शुरुआत की कहानी दिलचस्प है। भारतीय ब्लागमेला में अंग्रेजी के ब्लागर्स अपने ब्लाग के बारे में बात करते हैं। हर बार अलग-अलग लोग सप्ताह भर में लिखे गये चिट्ठों का जिक्र करते थे। हमने उसकी प्रविष्टि में हिंदी के ब्लाग दिये। कुछ लोगों ने जिक्र किया हिंदी ब्लागों का और अतुल ताली बजाते हुये कई बार बोले -हिंदी ब्लाग में छा गयी।
लेकिन कुछ लोगों को या तो हिंदी आती नहीं थी या कुछ चिढ़ रही होगी हिंदी से तो उन्होंने कुछ ऐसी बातें कहीं जो अतुल को बुरी लगीं और बाद में हमें भी सो हम मौके की नजाकत देखकर ताव में आये और चिट्ठाचर्चा शुरू कर दिया। शुरुआत इस ऐंठ के साथ थी कि दुनिया के हर भाषा के चिट्ठे की चर्चा का यहां प्रयास होगा। साथियों ने कहा वाह ,बहुत अच्छे और तमाम लोगों ने तमाम बार सहयोग की बात कही कि इस भाषा के चिट्ठे हम लिखेंगे इसके हम। कुछ दिन हम अंग्रेजी हिंदी के चिट्ठों के बारे में लिखते भी रहे।
बाद में लोगों के सहयोग और रुचि के अभाव में मेरा रुझान कम होता गया और फिर हमने लिखना स्थगित कर दिया। अभी नारद के बंद होने के कुछ दिन पहले हमें लगा कि नारद केवल सूचना पट है और यांत्रिक अंदाज में यह पोस्ट की सूचना देता है। यह इस सुविधा की कमी है इसका कोई हल नहीं है सिवाय इसके कि कोई प्रतिदिन चिट्ठों के बारे में लिखे। इस विचार ने
मेरे पहले के विचार को कि, नारद के चलते कौन पढे़गा इसे, उठाकर पटक दिया। मुझे लगा कि लोगों को अपनी पोस्ट के बारे में जानने की उत्सुकता जरूर रहती है चाहे वह टिप्पणियॊं के माध्यम से हो या किसी चर्चा के माध्यम से। इसी विचार से दोबारा क्या तिबारा ,चौबारा फिर से शुरू किया गया चिट्ठाचर्चा। और अब पखवाड़ा ,हफ्ते के बजाय प्रतिदिन चर्चा और हम अकेले नहीं हैं इस बार। हमारे साथ व्यंजल सम्राट रविरतलामी हैं, कुंडलिया नरेश समीर लाल हैं और हैं सदाबहार चिट्ठाकार अतुल।इन धुरंधरों के चलते लोगों की रुचि बनी है और अब चिट्ठाचर्चा मेरे ख्याल से लोग नियमित देखते हैं।
अभी मेरे हिस्से चार दिन का लेखन है। यह दिन भी मुझसे जल्दी ही छिनने वाले हैं और दूसरे समर्थ लोग अपने हथियार पैने कर रहे हैं। आगे शायद कुछ और वैविध्य पूर्ण चर्चा आपको पढ़ने को मिले।
यह जानकारी जिसे बहुत लोग जानते होंगे इसलिये दी गई कि नये साथी चिट्ठाचर्चा से जुड़ी पुरानी बातें जान सकें।
सुनील दीपक जी ने अपनी एक टिप्पणी में कहा:-
चिट्ठा चर्चा का शीर्षक कहता है कि सब भाषाओं के चिट्ठा जगतों से समाचार लाने का ध्येय है पर बात केवल हिंदी चिट्ठा जगत पर ही अटक गयी लगती है, शायद इसलिए कि जितनी रोचक बातें हम लोग हिंदी में कर रहे हें वैसी कोई और नहीं कर रहा! पर इस रोचक चिट्ठावलोकन के लिए बहुत धन्यवाद.
सुनील जी को हम यही सफाई पेश करते हैं कि हमारे पास जो भी चिट्ठे आते हैं हम उनका विवरण देते हैं। हिंदी के अलावा अन्य भाषाऒं के चिट्ठों की चर्चा के लिये जो साथी उत्सुक,इच्छुक हैं उनका स्वागत है। वे हमें बतायें हम उनको चिट्ठाचर्चा लिखने के लिये आमंत्रित करेंगे। हिंदी के अलावा दूसरी भाषाऒं के लिये लिखने वालों के लिये तो दिन की भी कोई समस्या नहीं है। सातों दिन खुले हैं। हिंदी में भी जो साथी लिखना चाहते हैं वे हमें सूचित करें,हम उनको लिखने के लिये निमंत्रण
भेजने की व्यवस्था करेंगे।
चिट्ठाचर्चा के अलावा हमारा विचार एक और ब्लाग शुरू करने का है। हममें से अधिकांश लोग पढा़कू किस्म के हैं। कई लोगों के सबसे अच्छे अच्छे शौकों में किताबें पढ़ना सबसे ऊपर आता है। वहीं तमाम लोग ऐसे भी हैं जो लिखते तो बहुत अच्छा हैं
लेकिन संयोगवश उन्होंने पढा़ नही है उतना। अक्सर ऐसे में कौन सी किताब अच्छी है ,पढ़ने लायक है,जरूर पढ़ने लायक है यह बताकर उनका सहयोग किया जा सकता है,उनको पढ़ने के लिये उकसाया जा सकता है।
जैसे मैं बताऊं कि कुछ दिन पहले तक मैंने बहुत किताबें पढ़ीं। पहला गिरमिटिया (लेखक गिरिराज किशोर)और मुझे चांद चाहिये(लेखक सुरेंद्र वर्मा) जैसी किताबें तो बाथरूम की लाइट तक में पढ़ीं ताकि घर वालों को रोशनी से परेशानी न हो। ऐसा करना कोई अनूठी बात नही है। किताबों को पूरा करने की ललक रही बस। स्व.विष्णुकांत शाष्त्री जी कहते थे कि उन्होंने अपना अधिकांश पाठक धर्म रिक्शा,ट्रेन,टाम,बस और अन्य यात्राऒं में निभाया है।
अक्सर साथी लोग यह भी पूछते हैं कि कुछ अच्छी किताबों के नाम बताऒ। बताने पर कुछ लोग पढ़ते हैं कुछ लोग तो किताब देने के बाद भी नहीं पढ़ पाते कि आराम से पढ़ेंगे।
बहरहाल मेरा मानना है कि पढ़ना अपने आप में बहुत अच्छी चीज है और अच्छी किताब का प्रचार करना ताकि दूसरे लोग भी उसका लाभ उठा सकें और भी अच्छी चीज है।
यही मानते हुये मैं चाहता हूं कि चिट्ठाचर्चा की तर्ज पर किताबों की चर्चा के लिये एक ब्लाग शुरू किया जाये। इसमें लोग जो भी किताब पढे़ उसके बारे में लेख लिखें और दूसरे पाठकों के बारे में जानकारी दें ताकि वे भी उसका लाभ उठा सकें। इस ब्लाग के बारे में मेरी सोच यह है:-
१.इसमें किसी भी भाषा की किताब का जिक्र हो सके। केवल पोस्ट की भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी भाषा हो।इसके अलावा और कोई भी सुझाव जो सबको उचित लगे।
२.लिखने के लिये कोई पाबंदी नहीं जो जितनी किताबों के बारे में लिखना चाहे लिखे।
३.लेखकों की संख्या पर कोई पाबंदी नहीं जो लिखना चाहे लिखे।
४.जो बहुत अच्छे लेख लगें उनको विकीपीडिया में डाला सके।
५.पुस्तकों के विवरण में यदि सम्भव हो तो लेखक का संक्षिप्त परिचय,प्रकाशक लगभग कीमत और पुस्तक के रोचक अंश और किताब से जुड़ी रोचक जानकारी भी रहे ताकि पाठक की रुचि उस किताब को पढ़ने के लिये बने।
यदि आप मेरी बात से सहमत हैं तो मेहरबानी करके इस ब्लाग का नाम सुझायें और अपने अन्य सुझावों से हमें इस काम को करने में सहायता दें। यदि आप किताबों के बारे में लिखना चाहें तो बतायें ताकि हम आपको निमंत्रण भेज सकें। इस बारे में आगे के सभी निर्णय सबकी सहमति से और खासकर पुस्तकों के बारे में लिखने वाले लेखकगणों की सहमति से होंगे।
मेरी भूमिका केवल एक लेखक की होगी।
जो लोग नियमित न लिखना चाहें और सदस्यों में न शामिल होना चाहें वे हमें ई-मेल से अपने लेख भेज सकते हैं।
तो अगर आपको इस विचार में कुछ अच्छाई और हमारे इरादे में कुछ सच्चाई दिखती है तो आप अपने सुझाव हमें बतायें। या तो यहीं टिप्पणी करके या मुझे मेल लिखकर (anupkidak@gmail.com)।
हां इसमे यह भी बता दूं कि जिन लोगों को यह संकोच है कि उनकी वर्तनी में कुछ लोचा है तो वे अपने संकोच को रिसाइकिल बिन में डालकर खाली कर दें। हम वो सारे काम कर लेंगे और इसमें कोई चिंता की बात नहीं है। मुख्य बात है पठनीय पुस्तकों के बारे में जानना न कि व्याकरणाचार्य खोजना।
नाम मेरे विचार में एक आया था। चिट्ठाचर्चा की तर्ज पर पुस्तक चर्चा । लेकिन और साथी लोग शायद बेहतर और खूबसूरत नाम सुझा सकें।
और हां ब्लागस्पाट या वर्ड्प्रेस की जगह इसे किसी साइट पर बनाना अच्छा रहेगा शायद। तो यह देखें कि हिंदिनी पर क्या सारे लोग लिख सकते हैं अगर यह ब्लाग बनाया जाता है। यह बात स्वामीजी देख लें। ताकि यदि यह हिंदिनी पर बनाया जाता है तो उसमे कोई समस्या तो नहीं होगी लेखकों की संख्या को लेकर। ख्याल यही है कि यह ब्लाग सिर्फ किताबों की चर्चा के बारे में होगा।
तो अपने सुझाव भेजिये न!
Posted in बस यूं ही | 33 Responses
इसके लिए हिंदिनी पर एक श्रेणी बनाई जा सकती है और लेखकों के लाग-इन भी. मुझे तो प्रसन्नता ही होगी. बस मुझे eswami at gmail . com पर मेल भेज दें या यहां टिप्पणी कर दें.
कागज़ कलम दवात
समीक्षा
मेरी तेरी उसकी बात
पिटारा
ख्याली पुलाव?
कथा कहानी
गाथा
अक्षर पर्व
इल्मी दुनिया
किताबी कोना
आपके लिये
अब ये मत कहियेगा कि क्यों पूछा मैंने नाम
हमारी गुजारीश है कि इस चिठठे की लेखक सुची मे हमे शामील किया जाये। रहा चिठ्ठे के नाम का सवाल जैसा संत लोग कहे !
जी हाँ, कहें कि 24X7 खुले हैं – यानी कि हर घंटे ऐसी चर्चाएँ प्रकाशित की जा सकती हैं, और कोई जरूरी नहीं कि बहुत से चिट्ठों के बारे में लिखा जाए. अगर किसी खास एक चिट्ठे के बारे में बताने को मन करता है तो वह भी लिखा जा सकता है.
किशन पटनायक की दो किताबों का लोकार्पण ,उनकी पहली पुण्य तिथि २७ सितम्बर को दिल्ली और मुजफ़्फ़रपुर में हुआ .चूंकि ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया ‘ पर आपने लिखा था , इसलिए जायज फ़रमाइश है कि इन पर आप ही लिखें .
गुजराती ,बांग्ला चिट्ठों पर यदाकदा आपको ई-मेल द्वारा कुछ भेजा करूंगा.ओडिया चिट्ठा शुरु करवाने के चक्कर में हूं.
शुभकामना
मुझे आप की पुस्तकचर्चा के चिट्ठे वाली बात बहुत अच्छी लगी. जितनी बार भारत जाता हूँ, यह जानना कि कौन सी नयी किताब आयी, कौन सी अच्छी है, इत्यादि जानना बहुत कठिन है. हर बार या तो दुकानदार की सलाह पर भरोसा करना पड़ता है या फ़िर घूम फ़िर कर पुराने जाने पहचाने लेखकों पर ही रुक जाईये.
इसी तरह से इस चिट्ठे में विदेशी भाषाओं में छपी किताबों के बारे में बताना भी मुझे ठीक लगता है, क्योंकि यह जानकारी हिंदी जगत में आसानी से उपलब्ध नहीं होती. इस चिट्ठे में अवश्य सहयोग देना चाहूँगा. वैसे तो नाम प्रत्यक्षा जी बहुत से सुझाएँ हैं, मेरा भी एक सुझाव है, “किताबी कीड़ा”.
शायद आज के अधिकतर हिंदी के चिट्ठे पढ़ने वाले अँग्रेज़ी भी जानते हैं, और दुनिया की विभिन्न भाषाओं के चिट्ठा जगतों में क्या हो रहा है, यह तो वे लोग अँग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं. पर अगर इस बात को भविष्य की दृष्टि से देखा जाये तो शायद एक दिन कम्पयूटर रखने वाले या अंतरजाल पर घूमनेवालों का अँग्रेजी जानना आवश्यक नहीं होगा. उस दृष्टि से सोचने पर लगता है कि अगर चिट्ठा चर्चा पर कभी कभी अन्य भाषाओं के विषेश चिट्ठों की बात भी हो तो अच्छा रहेगा. बात हर बार वहीं पर आ कर रुक जाती है, विचार तो बहुत बढ़ियाँ हैं पर काम कौन करेगा!
सुनील
१) पुस्तक का नाम (टाइटिल)
२) लेखक का नाम
३) मुद्रक का नाम
४) पुस्तक का प्रथम पृष्ठ (इमेज)
५) विषय
६) मूल्य
७) वैबसाइट का लिंक (यदि कोई हो)
८) उसके बाद अपना रिव्यू या प्रिव्यू (विस्तृत रुप से)
इसको कंही भी होस्ट किया जा सकता है। अक्षरग्राम के नए सर्वर पर बहुत सारी जगह है हमारे पास, हम हिन्दी से सम्बंधित कुछ भी वहाँ पर होस्ट कर सकते है। बाकी जैसा संतजन चाहें।
पुस्तकों को रिव्यू/प्रिव्यू के लिए शामिल करने के लिए एक पैनल का गठन हो जाए तो क्या कहने, नही तो ऐसे भी शुरु किया जा सकता है। नारद के फारिग होने के बाद मै इस प्रोजेक्ट के लिए काम करने के लिये तैयार हूँ।
आशा है यह नया ब्लौग लोगों को किताबों के बारें में जानकारी दे कर उन की किताबों के प्रति रुची को बढायेगा । ब्लौग के लिये नाम तो प्रत्यक्षा नें इतनें सारे सुझा ही दिये हैं, ‘किताबी पुलाव” (to the tunes of “खयाली पुलाव”) और जोड़ लीजिये …
नारद और चिट्ठा चर्चा दोनों का अपना अलग ‘रोल’ है। यदि ‘चिट्ठा चर्चा’ के लिये लिखनें वालें लोग है तो उसे ज़ारी रखें । इन सब के लिये एक Common Website के बारे में सोचें । मैं सहायता करनें / साधन जुटानें के लिये तैयार हूँ ।
कुछ शीर्षक यह भी हो सकते है-
1 किताबों की बाते मेरी कलम से
2 किताबे बोलती है
3 किताबे के झरोखे से
जितुजी का कहना भी सही है कि अक्षरग्राम के नए सर्वर पर काफी जगह है तो इसे वहाँ पर भी लगाया जा सकता है। बाकी आप वरिष्ठ जन जैसा उचित समझें करें
हम भी इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए तैयार हैं। हमारे लायक जो भी कार्य हो निःसंकोच कहें।
अब कहने को कुछ बचा ही नहीं, मेरा भी पहला प्यार किताबे हैं.
मैं नाम देता “किताबी किड्ड़े”. मुझे जब भी कोई ऐसा कहता मुझे अच्छा लगता, यानी जिन्हे पुस्तको से प्यार हैं उन्हे यह शब्द प्रिय हैं और जिन्हे नहीं हैं वे इस शब्द से अपनी नफरत व्यक्त करते हैं.
‘वाङमुख’ और ‘वाङमय-विविधा’ पर भी विचार करें।
-प्रेमलता
पुस्तक धाम
पुस्तक सार
सारांश – सार सार को गहि रहे (नाम+ टैग लाइन)
हम भी जरूर लिखेंगे
इस दिशा मे समुचित प्रयास किए जाने चाहिए|
मैं भी इसमें कुछ सहयोग कर सकता हूँ
प्रविष्टि देखें-
http://raviratlami.blogspot.com/2006/09/blog-post_30.html
जब किसी और यूआरएल पर शुरू होगा, तब होगा। अभी तो यह चर्चा आपके ब्लॉग पर भी हो सकती है। आप किसी पुस्तक का चयन करें और सभी उसका यथोचित अध्ययन कर उसपर चर्चा करें।
ब्लॉग के नाम के बारे में मेरा सुझाव है – स्वाध्याय।
विचार उत्तम है। नाम के सुझाओं में ‘पुस्तक चर्चा’ या ‘कित्ताबी कोना’ अच्छे लगे।