http://web.archive.org/web/20110926000304/http://hindini.com/fursatiya/archives/195
अपनी पोस्ट में मैंने पुस्तक चर्चा की बात की थी। सभी मित्रों ने इसके प्रति उत्साह दिखाया है और हर संभव सहयोग देने की बात कही है। तमाम नाम भी सुझाये गये हैं। इतने नामों में से एक नाम चुनना मंत्रिमंडल से प्रधानमंत्री चुनने जैसा काम है। सबसे ज्यादा लोगों ने प्रत्यक्षाजी द्वारा सुझाये नाम -किताबी कोना का समर्थन किया है। लिहाजा यही नाम तय करना शायद सबसे ज्यादा ठीक रहेगा। लेकिन हमारे एक मित्र, पाठक ने एक और नाम सुझाया है -किताबनामा। यह भी नाम बढ़िया लगता है। अब तमाम दूसरे अच्छे और बहुत अच्छे नामों, जिनमें मेरा प्रस्तावित नाम ‘पुस्तक चर्चा’ भी शामिल है, को सहेजकर रखकर इन्हीं दो नामों में से एक तय करने का मेरा सुझाव है।
अब प्रत्यक्षाजी अपना कैमरा चाहे जिसके सुझाव पर खरीदें लेकिन किताबों की चर्चा के लिये नाम उनको ‘फाइनल’ करना है। बाकी साथी किताबी कोना और किताबनामा मे से कौन सा नाम तय हो इसके लिये राय जाहिर कर सकते हैं लेकिन अंतिम चुनाव का अधिकार प्रत्यक्षाजी को है। वे अपने काम को जिम्मेदारी से निभाते हुये तय करें कि नाम क्या रखा जाये-‘किताबी कोना’ या फिर ‘किताबनामा’। आपका समय शुरू होता है अब!
किताबों के बारे में बातचीत कहां की जाये इस बारे में कम लोगों की राय आयीं। लेकिन जितनी आयीं उतनी निर्णय लेने भर को काफी हैं। पहले मेरा विचार ब्लागस्पाट या फिर वर्डप्रेस में नया ब्लाग बना कर चर्चा शुरू करने का था लेकिन हमारे स्वामीजी ने सुझाया कि ब्लागस्पाट या वर्डप्रेस पर नये ब्लाग बनाने की बजाय किसी साईट पर यह काम किया जाये तो बेहतर होगा।
प्रसंगत: यह बता दें कि नारद के बैठ जाने का मुख्य कारण ब्लागों की अनियंत्रित संख्या भी रही। लोगों ने अपने चिठ्ठे बनाये, स्वागत कराया और फिर बैठ गये। परिणामत: बंद चिठ्ठों की परिक्रमा करते-करते नारद भी थककर बैठ गये। बइठे तो अइसे बइठे कि अभी तक उठने के लिये सेठों, चौधरियों का मुंह ताक रहे हैं। देखिये कब खड़े होते हैं दुबारा नारदजी!
अब जब साइट पर पुस्तक चर्चा की बात आयी तो अधिकतर साथियों का मत था कि यह काम ऐसी साइट पर होना चाहिये जिससे सबका लगाव, जुड़ा़व हो। इसलिये यह तय हुआ कि नारद की साइट जब बन जायेगी तब उसी पर पुस्तक चर्चा के लिये एक ब्लाग बनाया जायेगा जिसमें सभी इच्छुक लोगों को अपने लेख खुद प्रकाशित करने की सुविधा होगी। जो लोग यदा-कदा लेख लिखना चाहें वे भी और जो सदा सर्वदा करना चाहते हैं वे भी वहां अपनी पढ़ी पसंदीदा किताबों के बारे में चर्चा कर सकते हैं। साथी लोग ई-मेल से भी अपने लेख भेज सकते हैं। उन प्रकाशित किया जा सकता है।
इस साइट को सजाने-संवारने की जिम्मेदारी हमारे तकनीकी दिग्गजों की होगी। इसके लिये स्वामीजी मेहनत करें और साज-सिंगार की व्यवस्था करने-करवाने का जुगाड़ करें।
कालजयी किताबों के बारे में तो हम लोग लिखेंगे ही लेकिन मेरा सुझाव यह भी है कि हम विभिन्न प्रकाशकों को अपने पुस्तक चर्चा अभियान के बारे में लिखें। उनसे कम से कम दो प्रतियां भेजने के लिये कहें। एक प्रति चर्चा करने वाले लेखक के पास और एक अपने पास रखने के लिये। यह जो अपने पास रखने वाली बात है वह इसलिये ताकि जो पुस्तकें इस तरह जमा हों उनको हम समय-समय पर अपने चिठ्ठाकार साथियों को किसी न किसी तरह उपहार में देने की सोचें।अब कैसे दें,कब दें यह बाद में सोचा जायेगा। वैसे मौका कोई भी हो सकता है- जन्मदिन या फिर कुछ और। यह भी हो सकता है कि हम किसी आयोजन में जैसे कि इंडीब्लागीस प्रतियोगिता या फ़िर किसी अन्य अवसर पर इनाम देने के लिये उनका उपयोग कर सकते हैं। यह मेरा सुझाव है ,अमल में लाने के लिये सबकी सहमति जरूरी है।
मुझे तो पुस्तकों से बड़ा कोई उपहार नहीं लगता। अपने विवाह के अवसर पर मिले तमाम उपहार हमसे विदा ले चुके हैं, स्कूटर पुराना होकर बिक गया, रेडियो, टेप बंद पड़े हैं लेकिन उस अवसर पर अपनी पत्नी की बड़ी दीदी द्वारा उपहार में मिलीं दो पुस्तकें ययाति (लेखक-विष्णु सखाराम खाण्डेकर)और चित्रप्रिया(लेखक-अखिलन) अभी भी मेरी सबसे बड़ी धरोहर के रूप में मेरे पास हैं।
किताबों की चर्चा कैसे की जाये यह समय तय करेगा लेकिन जो सुझाव जीतेंद्र ने दिये उसमें लगभग सब कुछ आ जाता है। तो साथियों आप शुरू हो जाइये और अपनी पसंदीदा किताब के बारे में लिखिये न। फिलहाल अपने ब्लाग पर और बाद में नारद की साइट बन जाने के बाद उस पर।
यहां पर मेरी बात समाप्त हो जानी चाहिये लेकिन नहीं अभी तो बात शुरू भी नहीं हुयी है। यह तो मुख्य बात शुरू करने के पहले की भूमिका है। मेरा विचार यह है कि हम सभी किसी न किसी तरह हिंदी के प्रति अपने मन में प्यार रखते हैं, लगाव रखते हैं। अपने ब्लाग में तमाम तरह से इस भावना को जाहिर भी करते रहते
हैं। लेकिन इंटरनेट पर हिंदी की बढो़त्तरी के लिये कुछ और कर सकते हैं जो हम नहीं कर रहे हैं- कम से कम मैं अपने बारे में तो यह बात की-बोर्ड पर हाथ रखकर कह सकता हूं।
योगदान का ऐसा है कि जो है वह बिखरा-बिखरा है। हमने अपने ब्लाग पर तमाम सारा लिखा लेकिन वह् हमारे ब्लाग तक ही सीमित है। जो है उसके हम ही मालिक हैं हम ही रखवैया। अगर कोई उसमें कुछ सुधार करना चाहे तो उसे हमारी शरण में आना पड़ेगा। जबकि यह सारा कुछ ऐसी जगह होना चाहिये जिससे कि इसमें जो चाहे वह सुधार कर सके, जो चाहे और सुधार कर सके। पढ़ तो खैर सब सकें ही।
ऐसी जगह आजकी तारीख में एक ही है वह है विकिपीडिया।
विकिपीडिया के बारे में जानने के लिये निरंतर पर मितुल का लेख देखिये। विकिपीडिया जानकारी का ऐसा खजाना है जिसमें आप भी अपना योगदान दे सकते हैं। आप भी लिख सकते हैं, लिखे हुये को संसोधित कर सकते हैं, संसोधित को पुन: संसोधित कर सकते हैं। जितनी बार चाहें उतनी बार, जैसे मन चाहे वैसे। विकिपीडिया में काम करना अपना ब्लाग लिखने से भी ज्यादा आसान है। आप विकिपीडिया में जाइये और अपना खाता खोलिये। खाता खोलने के लिये आपको कुछ नहीं चाहिये केवल खाता नाम(यूजर आई डी), पासवर्ड और ईमेल पता। जहां आपने यह भरा नहीं कि आप ज्ञान के समुद्र के किनारे पहुंच गये। आपका जैसे मन करे वैसे इसका आनंद उठायें। स्वयं आनंद लें और दूसरों को आनंद दें।
आप क्या योगदान दे सकते हैं यह सवाल अगर आपके मन में है तो उसका मुस्कराता हुआ जवाब यही है कि आप क्या नहीं दे सकते हैं। आपके पास जो भी जानकारी है उस सबका उपयोग करिये और उसे यथा संभव अच्छे तरीके से यहां सौंप दीजिये। आपकी सारी जानकारी यहां काम की है, स्वागत योग्य है, कुछ भी बेकार नहीं है।
आप क्या कर सकते हैं यह बताने से पहले मैं यह बता दूं कि मैंने अब तक क्या किया। मितुल और स्वामीजी के उकसाने पर मैंने विकिपीडिया में अपना खाता खोला और अपने प्यारे राष्ट्रपति कलाम साहब का पन्ना खोला। उसमें हमने देखा कि कलाम से साथ (खिलाफ) जो चुनाव लड़ीं थीं वे हैं कैप्टन (डा.)लक्ष्मी सहगल। लेकिन वहां पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार ऐसा लग रहा था कि लक्ष्मी सहगल कोई पुरुष हैं और नाम भी लिखा था लक्षमी सहगल। बस हमने तुरंत लागिन किया और संपादन वाला बटन दबाकर संपादन कर दिया। हमारे पल्ले विकिपीडिया में संसोधन का सुख जुड़ गया और साथ ही संकल्प भी कि कैप्टन (डा.) लक्ष्मी सहगल से मिलकर उनके बारे में पूरी जानकारी विकिपीडिया में डालनी है। आखिर वे हमारे शहर का गौरव हैं।
अब आप क्या कर सकते हैं यह आप अपने आप तय कर सकते हैं। लेकिन अगर आप हमसे ही सुनने के लिये उतावले हैं तो सुनिये। आप विकीपीडिया में जिलों की सूची देखें। अगर आपका जिला इसमें है ही नहीं तो पहले जिला जोड़ें। फिर अपने जिले के बारे में जो भी जानकारी आपको पता हो वह डाल दीजिये। पूरी न पता हो तो अधूरी सही , सही न पता हो नाम सही, जैसी भी पता हो डालिये तो सही। कोई न कोई आयेगा उसे ठीक करने के लिये। इमारतें, व्यक्तित्व, साहित्य, साइंस, सिनेमाघर, सड़कें, बाग-बगीचे, स्कूल, कालेज, विश्विद्यालय, खान-पान, अलां-बलां, अटरम-शटरम जो मन आये डाल दीजिये। सब सुधर जायेगा अगर गलत होगा। शरमाइये नहीं शुरू तो करिये। आपको अच्छा लगेगा।
अपने शहर के बारे में लिखना जहां आपने शुरू किया तो न जाने किन-किन सूत्रों से होते हुये आप पूरी दुनिया से जुड़ जायेंगे। फर्ज कीजिये आप महात्मा गांधी के बारे में कुछ लिखना शुरू करते हैं तो फिर आप पोरबंदर, गुजरात, दक्षिण अफ्रीका, नेल्शन मंडेला, क्रांतिकारी आंदोलन, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, जालियांवाला बाग, पंजाब, चंडीगढ़, इलाहाबाद, नेहरूजी, निराला, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हालैंड हाल, हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट, संसद, धूमिल, संविधान, मूल अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी से होते-होते कब ब्लागिंग तक पहुंच जायेंगे आपको पता ही नहीं चलेगा। यह तो हमने बताया रास्ता। हम लौट आये ब्लागिंग पर काहे से कि हमें आगे लिखना है लेकिन आपको जितना मन आये जहां मन आये वैसे, वहां विचरण करिये। जितनी देर मन आये उतनी देरे रहिये और जब मन आये तब वापस अपने घर। फिर जब मन आये आप पसंदीदा पेज, जगह पर पहुंच जाइये और कर दीजिये शुरू खुटुर-पुटुर। यह वह जगह है दोस्तों जहां आपके हर योगदान का स्वागत है।
लिखने को जो हम लोग अभी लिख रहे हैं उसमें से ही बहुत कुछ विकिपीडिया में जोड़ा जा सकता है। कुछ जस का तस कुछ मामूली संसोधन के साथ। रत्नाजी अपने रसोई के पकवान वहां पेश करें, रचना बजाज खरगौन को वहां गुलजार करें, अतुल-जीतेंद्र देखें कि कानपुर का पन्ना बिल्कुल सूना है और तुम्हारे योगदान को तरस रहा है। स्वामीजी ने बहुत पहले भोंपू कथा लिखी थी और आशीष गर्ग ने सौर ऊर्जा और जल संयचन के बारे में लेख लिखे हैं वे सब वहां डाले जा सकते हैं। वंदेमातरम के साथी तो अपना हर लेख यहां डाल सकते हैं। सुनील दीपकजी विकलांगों के यौनजीवन के बारे में अपने शोध को जोड़ सकते हैं तो नीरज दीवान पत्रकारिता के दिग्गजों के बारे में जानकारी दे सकते हैं। लक्ष्मी गुप्तजी बचपन में सुनी कहावतों का संग्रह करें तो निधि अपने नाना के बारे में लिखें। अफला तून जी के पास तो पूरा बनारस है, बीएचयू है, रामनगर की रामलीला है लिखने के लिये। बनारस का तो हर कोना-अतरा फन्ने खां लोगों से अटा पड़ा है। लिखिये न! और हमारे तकनीकी वीरों को क्या बताना वे तो जो चाहें सो करें। सूरज को क्या दिया दिखाना!
हमारे जीवन के हर पहलू की जानकारी हम डाल सकते हैं विकीपीडिया में। बहुत पहले स्वामीने एक डायलाग मारा था:-
जानकारी के लिये बता दें कि आज की तारीख में विकिपीडिया में उपलब्ध कुल सामग्री का पचास प्रतिशत अंग्रेजी में है जिसके लगभग १४ लाख पेज हैं। हिंदी के कुल जमा पेज तीन हजार से भी कम हैं। यह हमारी हिंदी की स्थिति है। अन्य भारतीया भाषाओं में स्थिति भी कमोबेश यही होगी। अब यह सच है इसके
लिये दुखद, दयनीय, सोचपूर्ण, दुर्भाग्यपूर्ण जैसी बातें करने का न कोई मतलब नहीं है न जरूरत। ऐसे समय के लिये ही शायद हमारे सिकरी नरेश राजेश कुमार सिंह ने कविता लिखी है-
हम जहां हैं,
वहीं से आगे बढ़ेंगे।
तो साथियों अगर आप मेरी बात से सहमत हों तो तुरंत अपना खाता खोलें विकिपीडिया में। हिंदी में और अपनी मातृभाषा में भी और इसके अलावा हर उस भाषा में जिससे आप लगाव-जुड़ाव महसूस करते हैं। खाता खोलने के साथ ही आप दुनिया के साथ जुड़ेंगे और जिस भाषा में भी योगदान देंगे उस भाषा से आपका लगाव बढ़ेगा और निश्चित तौर पर आप उस भाषा के बोलने-बरतने वाले लोगों से लगाव-प्यार-अपनापा महसूस करने लगेगें। चोरी-चुपके कब आपके मन में
लोगों के लिये प्यार पनपने लगेगा, आपको पताइच नहीं लगेगा। आप भी कहेंगे कि विकिपीडिया तो प्यार की खेती है।
विकीपीडिया में योगदान का मतलब यह नहीं है कि आप अपना लिखना स्थगित कर दें या कम कर दें। अरे न भाई ऐसा ‘कत्तई’ नहीं। हम तो कहते हैं आप वो भी करो ये भी। ब्लाग भी लिखें, विकीपीडिया में लेख भी डालें और पुराने पड़े लेखों में संसोधन,संवर्द्धन भी करें बोले तो बकौल स्व. मनोहर श्याम जोशी “ये में ले, वो में ले, वो हू में ले”। मतलब इसमें भी लिखें, उसमें भी लिखें और उसमें भी।
अब बात फिर किताब की। आपसे अनुरोध है कि आप जो किताब पढ़ें उसके बारे में लिखें जरूर। सौ पेज अगर लेखक ने लिखे तो उसके बारे में एक पेज तो लिख ही सकते हैं। सो आप लिखें और फिलहाल अपने ब्लाग में लिखें। अपने लेख को जैसा बने विकिपीडिया में डाल दें। किसी न किसी तरह लोगों को इस बारे में बतायें। अपनी ब्लाग-पोस्ट में या फिर ई-मेल से। आप देखेंगे कि देखते ही देखते आपका लेख आकर्षक से आकर्षक होता जायेगा। कभी-कभी तो ऐसा भी कि आपको भी विश्वास करने में समय लगेगा कि उस लेख की अनगढ़ शुरुआत आपने ही की थी। दुनिया की सबसे आकर्षक चीजों की शुरुआत ही अनगढ़ता से होती है। जब हम लोगों की साइत बन जाइयेगी तो उसमें आपका लेखा शामिल कर लेंगे। ठीक है न!
यह लेख मैंने अपने उन साथियों के लिये लिखा है जिनको विकिपीडिया के बारे में जानकारी नहीं है। ज्ञानीजनों, विद्वानों को इसमें तमाम खामियां नजर आयेंगी। ऐसे विद्वानों से अनुरोध है कि वे इसमें सुधार करें और बतायें कि कैसे नेट पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाऒं को बढ़ाया जा सकता है। जो साथी हमारी बात से सहमत हैं उनसे अनुरोध है कि तुरंत अपना योगदान शुरू कर दें गांधीजी को याद करके जिनका मूल मंत्र ही था स्वाबलंबन, स्वदेशी, सत्य, अहिंसा।
यह लेख लिखने का कितना असर हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाऒं को आगे बढाने में होगा इसके बारे में मैं स्वेट मार्टन के अहा! जिंदगी पत्रिका में छपे शब्द दोहराता हूं-
तो हमारा पूरे मन से आवाहन है – साथी हाथ बढ़ाना, निज भाषा हित कुछ कर जाना।
संदर्भ:-१. निरंतर पर मितुल का लेख विकिपीडिया:हिन्दी की समृद्धि की राह
२. हिंदी विकिपीडिया
३.विकिपीडिया पर अपना खाता खोलें
४.अपने शहर की सूची देखें, जोड़ें
मेरी पसंद
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
विकिपीडिया – साथी हाथ बढ़ाना…
आज है दो अक्टूबर का दिन आज का दिन है बड़ा महानआज दशहरा के कारण छुट्टी का दिन है नहीं तो आज के दिन यह गाना पूरे देश में सबसे ज्यादा बजने वाला गाना होता है। कल दक्षिण अफ्रीका में गांधी के आन्दोलन के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर कार्यक्रम हुये। आज पूरा देश अपने दो महापुरुषों महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री के प्रति अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है। इस अवसर पर मैं भी इन दोनों महापुरुषों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। सभी मित्रों, पाठकों, शुभचिंतकों को दशहरा, दुर्गापूजा और नवरात्र की शुभकामनायें देता हूं।
आज के दिन दो फूल खिले थे जिनसे महका हिंदुस्तान।
अपनी पोस्ट में मैंने पुस्तक चर्चा की बात की थी। सभी मित्रों ने इसके प्रति उत्साह दिखाया है और हर संभव सहयोग देने की बात कही है। तमाम नाम भी सुझाये गये हैं। इतने नामों में से एक नाम चुनना मंत्रिमंडल से प्रधानमंत्री चुनने जैसा काम है। सबसे ज्यादा लोगों ने प्रत्यक्षाजी द्वारा सुझाये नाम -किताबी कोना का समर्थन किया है। लिहाजा यही नाम तय करना शायद सबसे ज्यादा ठीक रहेगा। लेकिन हमारे एक मित्र, पाठक ने एक और नाम सुझाया है -किताबनामा। यह भी नाम बढ़िया लगता है। अब तमाम दूसरे अच्छे और बहुत अच्छे नामों, जिनमें मेरा प्रस्तावित नाम ‘पुस्तक चर्चा’ भी शामिल है, को सहेजकर रखकर इन्हीं दो नामों में से एक तय करने का मेरा सुझाव है।
अब प्रत्यक्षाजी अपना कैमरा चाहे जिसके सुझाव पर खरीदें लेकिन किताबों की चर्चा के लिये नाम उनको ‘फाइनल’ करना है। बाकी साथी किताबी कोना और किताबनामा मे से कौन सा नाम तय हो इसके लिये राय जाहिर कर सकते हैं लेकिन अंतिम चुनाव का अधिकार प्रत्यक्षाजी को है। वे अपने काम को जिम्मेदारी से निभाते हुये तय करें कि नाम क्या रखा जाये-‘किताबी कोना’ या फिर ‘किताबनामा’। आपका समय शुरू होता है अब!
किताबों के बारे में बातचीत कहां की जाये इस बारे में कम लोगों की राय आयीं। लेकिन जितनी आयीं उतनी निर्णय लेने भर को काफी हैं। पहले मेरा विचार ब्लागस्पाट या फिर वर्डप्रेस में नया ब्लाग बना कर चर्चा शुरू करने का था लेकिन हमारे स्वामीजी ने सुझाया कि ब्लागस्पाट या वर्डप्रेस पर नये ब्लाग बनाने की बजाय किसी साईट पर यह काम किया जाये तो बेहतर होगा।
प्रसंगत: यह बता दें कि नारद के बैठ जाने का मुख्य कारण ब्लागों की अनियंत्रित संख्या भी रही। लोगों ने अपने चिठ्ठे बनाये, स्वागत कराया और फिर बैठ गये। परिणामत: बंद चिठ्ठों की परिक्रमा करते-करते नारद भी थककर बैठ गये। बइठे तो अइसे बइठे कि अभी तक उठने के लिये सेठों, चौधरियों का मुंह ताक रहे हैं। देखिये कब खड़े होते हैं दुबारा नारदजी!
अब जब साइट पर पुस्तक चर्चा की बात आयी तो अधिकतर साथियों का मत था कि यह काम ऐसी साइट पर होना चाहिये जिससे सबका लगाव, जुड़ा़व हो। इसलिये यह तय हुआ कि नारद की साइट जब बन जायेगी तब उसी पर पुस्तक चर्चा के लिये एक ब्लाग बनाया जायेगा जिसमें सभी इच्छुक लोगों को अपने लेख खुद प्रकाशित करने की सुविधा होगी। जो लोग यदा-कदा लेख लिखना चाहें वे भी और जो सदा सर्वदा करना चाहते हैं वे भी वहां अपनी पढ़ी पसंदीदा किताबों के बारे में चर्चा कर सकते हैं। साथी लोग ई-मेल से भी अपने लेख भेज सकते हैं। उन प्रकाशित किया जा सकता है।
इस साइट को सजाने-संवारने की जिम्मेदारी हमारे तकनीकी दिग्गजों की होगी। इसके लिये स्वामीजी मेहनत करें और साज-सिंगार की व्यवस्था करने-करवाने का जुगाड़ करें।
कालजयी किताबों के बारे में तो हम लोग लिखेंगे ही लेकिन मेरा सुझाव यह भी है कि हम विभिन्न प्रकाशकों को अपने पुस्तक चर्चा अभियान के बारे में लिखें। उनसे कम से कम दो प्रतियां भेजने के लिये कहें। एक प्रति चर्चा करने वाले लेखक के पास और एक अपने पास रखने के लिये। यह जो अपने पास रखने वाली बात है वह इसलिये ताकि जो पुस्तकें इस तरह जमा हों उनको हम समय-समय पर अपने चिठ्ठाकार साथियों को किसी न किसी तरह उपहार में देने की सोचें।अब कैसे दें,कब दें यह बाद में सोचा जायेगा। वैसे मौका कोई भी हो सकता है- जन्मदिन या फिर कुछ और। यह भी हो सकता है कि हम किसी आयोजन में जैसे कि इंडीब्लागीस प्रतियोगिता या फ़िर किसी अन्य अवसर पर इनाम देने के लिये उनका उपयोग कर सकते हैं। यह मेरा सुझाव है ,अमल में लाने के लिये सबकी सहमति जरूरी है।
मुझे तो पुस्तकों से बड़ा कोई उपहार नहीं लगता। अपने विवाह के अवसर पर मिले तमाम उपहार हमसे विदा ले चुके हैं, स्कूटर पुराना होकर बिक गया, रेडियो, टेप बंद पड़े हैं लेकिन उस अवसर पर अपनी पत्नी की बड़ी दीदी द्वारा उपहार में मिलीं दो पुस्तकें ययाति (लेखक-विष्णु सखाराम खाण्डेकर)और चित्रप्रिया(लेखक-अखिलन) अभी भी मेरी सबसे बड़ी धरोहर के रूप में मेरे पास हैं।
किताबों की चर्चा कैसे की जाये यह समय तय करेगा लेकिन जो सुझाव जीतेंद्र ने दिये उसमें लगभग सब कुछ आ जाता है। तो साथियों आप शुरू हो जाइये और अपनी पसंदीदा किताब के बारे में लिखिये न। फिलहाल अपने ब्लाग पर और बाद में नारद की साइट बन जाने के बाद उस पर।
यहां पर मेरी बात समाप्त हो जानी चाहिये लेकिन नहीं अभी तो बात शुरू भी नहीं हुयी है। यह तो मुख्य बात शुरू करने के पहले की भूमिका है। मेरा विचार यह है कि हम सभी किसी न किसी तरह हिंदी के प्रति अपने मन में प्यार रखते हैं, लगाव रखते हैं। अपने ब्लाग में तमाम तरह से इस भावना को जाहिर भी करते रहते
हैं। लेकिन इंटरनेट पर हिंदी की बढो़त्तरी के लिये कुछ और कर सकते हैं जो हम नहीं कर रहे हैं- कम से कम मैं अपने बारे में तो यह बात की-बोर्ड पर हाथ रखकर कह सकता हूं।
योगदान का ऐसा है कि जो है वह बिखरा-बिखरा है। हमने अपने ब्लाग पर तमाम सारा लिखा लेकिन वह् हमारे ब्लाग तक ही सीमित है। जो है उसके हम ही मालिक हैं हम ही रखवैया। अगर कोई उसमें कुछ सुधार करना चाहे तो उसे हमारी शरण में आना पड़ेगा। जबकि यह सारा कुछ ऐसी जगह होना चाहिये जिससे कि इसमें जो चाहे वह सुधार कर सके, जो चाहे और सुधार कर सके। पढ़ तो खैर सब सकें ही।
ऐसी जगह आजकी तारीख में एक ही है वह है विकिपीडिया।
विकिपीडिया के बारे में जानने के लिये निरंतर पर मितुल का लेख देखिये। विकिपीडिया जानकारी का ऐसा खजाना है जिसमें आप भी अपना योगदान दे सकते हैं। आप भी लिख सकते हैं, लिखे हुये को संसोधित कर सकते हैं, संसोधित को पुन: संसोधित कर सकते हैं। जितनी बार चाहें उतनी बार, जैसे मन चाहे वैसे। विकिपीडिया में काम करना अपना ब्लाग लिखने से भी ज्यादा आसान है। आप विकिपीडिया में जाइये और अपना खाता खोलिये। खाता खोलने के लिये आपको कुछ नहीं चाहिये केवल खाता नाम(यूजर आई डी), पासवर्ड और ईमेल पता। जहां आपने यह भरा नहीं कि आप ज्ञान के समुद्र के किनारे पहुंच गये। आपका जैसे मन करे वैसे इसका आनंद उठायें। स्वयं आनंद लें और दूसरों को आनंद दें।
आप क्या योगदान दे सकते हैं यह सवाल अगर आपके मन में है तो उसका मुस्कराता हुआ जवाब यही है कि आप क्या नहीं दे सकते हैं। आपके पास जो भी जानकारी है उस सबका उपयोग करिये और उसे यथा संभव अच्छे तरीके से यहां सौंप दीजिये। आपकी सारी जानकारी यहां काम की है, स्वागत योग्य है, कुछ भी बेकार नहीं है।
आप क्या कर सकते हैं यह बताने से पहले मैं यह बता दूं कि मैंने अब तक क्या किया। मितुल और स्वामीजी के उकसाने पर मैंने विकिपीडिया में अपना खाता खोला और अपने प्यारे राष्ट्रपति कलाम साहब का पन्ना खोला। उसमें हमने देखा कि कलाम से साथ (खिलाफ) जो चुनाव लड़ीं थीं वे हैं कैप्टन (डा.)लक्ष्मी सहगल। लेकिन वहां पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार ऐसा लग रहा था कि लक्ष्मी सहगल कोई पुरुष हैं और नाम भी लिखा था लक्षमी सहगल। बस हमने तुरंत लागिन किया और संपादन वाला बटन दबाकर संपादन कर दिया। हमारे पल्ले विकिपीडिया में संसोधन का सुख जुड़ गया और साथ ही संकल्प भी कि कैप्टन (डा.) लक्ष्मी सहगल से मिलकर उनके बारे में पूरी जानकारी विकिपीडिया में डालनी है। आखिर वे हमारे शहर का गौरव हैं।
अब आप क्या कर सकते हैं यह आप अपने आप तय कर सकते हैं। लेकिन अगर आप हमसे ही सुनने के लिये उतावले हैं तो सुनिये। आप विकीपीडिया में जिलों की सूची देखें। अगर आपका जिला इसमें है ही नहीं तो पहले जिला जोड़ें। फिर अपने जिले के बारे में जो भी जानकारी आपको पता हो वह डाल दीजिये। पूरी न पता हो तो अधूरी सही , सही न पता हो नाम सही, जैसी भी पता हो डालिये तो सही। कोई न कोई आयेगा उसे ठीक करने के लिये। इमारतें, व्यक्तित्व, साहित्य, साइंस, सिनेमाघर, सड़कें, बाग-बगीचे, स्कूल, कालेज, विश्विद्यालय, खान-पान, अलां-बलां, अटरम-शटरम जो मन आये डाल दीजिये। सब सुधर जायेगा अगर गलत होगा। शरमाइये नहीं शुरू तो करिये। आपको अच्छा लगेगा।
अपने शहर के बारे में लिखना जहां आपने शुरू किया तो न जाने किन-किन सूत्रों से होते हुये आप पूरी दुनिया से जुड़ जायेंगे। फर्ज कीजिये आप महात्मा गांधी के बारे में कुछ लिखना शुरू करते हैं तो फिर आप पोरबंदर, गुजरात, दक्षिण अफ्रीका, नेल्शन मंडेला, क्रांतिकारी आंदोलन, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, जालियांवाला बाग, पंजाब, चंडीगढ़, इलाहाबाद, नेहरूजी, निराला, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हालैंड हाल, हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट, संसद, धूमिल, संविधान, मूल अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी से होते-होते कब ब्लागिंग तक पहुंच जायेंगे आपको पता ही नहीं चलेगा। यह तो हमने बताया रास्ता। हम लौट आये ब्लागिंग पर काहे से कि हमें आगे लिखना है लेकिन आपको जितना मन आये जहां मन आये वैसे, वहां विचरण करिये। जितनी देर मन आये उतनी देरे रहिये और जब मन आये तब वापस अपने घर। फिर जब मन आये आप पसंदीदा पेज, जगह पर पहुंच जाइये और कर दीजिये शुरू खुटुर-पुटुर। यह वह जगह है दोस्तों जहां आपके हर योगदान का स्वागत है।
लिखने को जो हम लोग अभी लिख रहे हैं उसमें से ही बहुत कुछ विकिपीडिया में जोड़ा जा सकता है। कुछ जस का तस कुछ मामूली संसोधन के साथ। रत्नाजी अपने रसोई के पकवान वहां पेश करें, रचना बजाज खरगौन को वहां गुलजार करें, अतुल-जीतेंद्र देखें कि कानपुर का पन्ना बिल्कुल सूना है और तुम्हारे योगदान को तरस रहा है। स्वामीजी ने बहुत पहले भोंपू कथा लिखी थी और आशीष गर्ग ने सौर ऊर्जा और जल संयचन के बारे में लेख लिखे हैं वे सब वहां डाले जा सकते हैं। वंदेमातरम के साथी तो अपना हर लेख यहां डाल सकते हैं। सुनील दीपकजी विकलांगों के यौनजीवन के बारे में अपने शोध को जोड़ सकते हैं तो नीरज दीवान पत्रकारिता के दिग्गजों के बारे में जानकारी दे सकते हैं। लक्ष्मी गुप्तजी बचपन में सुनी कहावतों का संग्रह करें तो निधि अपने नाना के बारे में लिखें। अफला तून जी के पास तो पूरा बनारस है, बीएचयू है, रामनगर की रामलीला है लिखने के लिये। बनारस का तो हर कोना-अतरा फन्ने खां लोगों से अटा पड़ा है। लिखिये न! और हमारे तकनीकी वीरों को क्या बताना वे तो जो चाहें सो करें। सूरज को क्या दिया दिखाना!
हमारे जीवन के हर पहलू की जानकारी हम डाल सकते हैं विकीपीडिया में। बहुत पहले स्वामीने एक डायलाग मारा था:-
जब देखो हिन्दी ना पढे जाने का स्यापा करते हैं. ऐसे नही होगा, जब तक आपकी माताजी आपकी धर्म-पत्नी को हिन्दी मे अचार बनाने की विधी पीसी से हिंदी मे ना भेज सकें ये सारी ब्लागबाजी व्यर्थ है. पहले तकनीक आसान करो और जनजन तक फ़ोकट में पहुंचाओ – क्या समझे?यानि कि नेट की सार्थकता तब होगी जब सास अपनी बहू को अचार डालने की तरकीब पीसी/ नेट से निकाल के दे दे और सास बिना बहू को परेशान किये अपने मतलब की नयी से नयी जानकारी नेट से ले सके। तो यह कैसे होगा? तभी न जब ये सारी जानकारियां नेट पर अपनी भाषा में मौजूद होंगी। और यह तभी होगा जब हम-आप-सब लोग अपने-अपने स्तर से प्रयास करके नेट पर अपनी भाषा में जानकारी उपलब्ध करें। यह हमारे अपने लिये है, हमारी आगामी पीढ़ियों के लिये है। यह किसी के ऊपर अहसान नहीं है। हमें भाषा विरासत में मिली है। अब हमारा यह दायित्व है कि जो हमें विरासत में मिला उसमें हम कुछ तो अपनी तरफ से जोड़ें कुछ तो ‘वैल्यू एडीशन’ करें।
जानकारी के लिये बता दें कि आज की तारीख में विकिपीडिया में उपलब्ध कुल सामग्री का पचास प्रतिशत अंग्रेजी में है जिसके लगभग १४ लाख पेज हैं। हिंदी के कुल जमा पेज तीन हजार से भी कम हैं। यह हमारी हिंदी की स्थिति है। अन्य भारतीया भाषाओं में स्थिति भी कमोबेश यही होगी। अब यह सच है इसके
लिये दुखद, दयनीय, सोचपूर्ण, दुर्भाग्यपूर्ण जैसी बातें करने का न कोई मतलब नहीं है न जरूरत। ऐसे समय के लिये ही शायद हमारे सिकरी नरेश राजेश कुमार सिंह ने कविता लिखी है-
हम जहां हैं,
वहीं से आगे बढ़ेंगे।
तो साथियों अगर आप मेरी बात से सहमत हों तो तुरंत अपना खाता खोलें विकिपीडिया में। हिंदी में और अपनी मातृभाषा में भी और इसके अलावा हर उस भाषा में जिससे आप लगाव-जुड़ाव महसूस करते हैं। खाता खोलने के साथ ही आप दुनिया के साथ जुड़ेंगे और जिस भाषा में भी योगदान देंगे उस भाषा से आपका लगाव बढ़ेगा और निश्चित तौर पर आप उस भाषा के बोलने-बरतने वाले लोगों से लगाव-प्यार-अपनापा महसूस करने लगेगें। चोरी-चुपके कब आपके मन में
लोगों के लिये प्यार पनपने लगेगा, आपको पताइच नहीं लगेगा। आप भी कहेंगे कि विकिपीडिया तो प्यार की खेती है।
विकीपीडिया में योगदान का मतलब यह नहीं है कि आप अपना लिखना स्थगित कर दें या कम कर दें। अरे न भाई ऐसा ‘कत्तई’ नहीं। हम तो कहते हैं आप वो भी करो ये भी। ब्लाग भी लिखें, विकीपीडिया में लेख भी डालें और पुराने पड़े लेखों में संसोधन,संवर्द्धन भी करें बोले तो बकौल स्व. मनोहर श्याम जोशी “ये में ले, वो में ले, वो हू में ले”। मतलब इसमें भी लिखें, उसमें भी लिखें और उसमें भी।
अब बात फिर किताब की। आपसे अनुरोध है कि आप जो किताब पढ़ें उसके बारे में लिखें जरूर। सौ पेज अगर लेखक ने लिखे तो उसके बारे में एक पेज तो लिख ही सकते हैं। सो आप लिखें और फिलहाल अपने ब्लाग में लिखें। अपने लेख को जैसा बने विकिपीडिया में डाल दें। किसी न किसी तरह लोगों को इस बारे में बतायें। अपनी ब्लाग-पोस्ट में या फिर ई-मेल से। आप देखेंगे कि देखते ही देखते आपका लेख आकर्षक से आकर्षक होता जायेगा। कभी-कभी तो ऐसा भी कि आपको भी विश्वास करने में समय लगेगा कि उस लेख की अनगढ़ शुरुआत आपने ही की थी। दुनिया की सबसे आकर्षक चीजों की शुरुआत ही अनगढ़ता से होती है। जब हम लोगों की साइत बन जाइयेगी तो उसमें आपका लेखा शामिल कर लेंगे। ठीक है न!
यह लेख मैंने अपने उन साथियों के लिये लिखा है जिनको विकिपीडिया के बारे में जानकारी नहीं है। ज्ञानीजनों, विद्वानों को इसमें तमाम खामियां नजर आयेंगी। ऐसे विद्वानों से अनुरोध है कि वे इसमें सुधार करें और बतायें कि कैसे नेट पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाऒं को बढ़ाया जा सकता है। जो साथी हमारी बात से सहमत हैं उनसे अनुरोध है कि तुरंत अपना योगदान शुरू कर दें गांधीजी को याद करके जिनका मूल मंत्र ही था स्वाबलंबन, स्वदेशी, सत्य, अहिंसा।
यह लेख लिखने का कितना असर हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाऒं को आगे बढाने में होगा इसके बारे में मैं स्वेट मार्टन के अहा! जिंदगी पत्रिका में छपे शब्द दोहराता हूं-
याद रखो कि जो कुछ तुम विश्व-चेतना से कहते हो, उसे तुम्हारे शरीर के सेल भी सुनते हैं, इसलिये अधिकार पूर्वक बात करो, सेल तुम्हारा आदेश मानेंगे। जो कुछ तुम्हें मिलता है, विश्व भंडार से मिलता है, इसलिये विश्व भंडार से कह देने भर की जरूरत है, जो कुछ तुम चाहते हो वह मिल जायेगा।
तो हमारा पूरे मन से आवाहन है – साथी हाथ बढ़ाना, निज भाषा हित कुछ कर जाना।
संदर्भ:-१. निरंतर पर मितुल का लेख विकिपीडिया:हिन्दी की समृद्धि की राह
२. हिंदी विकिपीडिया
३.विकिपीडिया पर अपना खाता खोलें
४.अपने शहर की सूची देखें, जोड़ें
मेरी पसंद
कुछ कर गुजरने के लिये-स्व.रमानाथ अवस्थी
मौसम नहीं, मन चाहिये!
थककर बैठो नहीं प्रतीक्षा कर रहा कोई कहीं
हारे नहीं जब हौसले
तब कम हुये सब फासले
दूरी कहीं कोई नहीं
केवल समर्पण चाहिये!
हर दर्द झूठा लग रहा सहकर मजा आता नहीं
आंसू वही आंखें वही
कुछ है गलत कुछ है सही
जिसमें नया कुछ दिख सके
वह एक दर्पण चाहिये!
राहें पुरानी पड़ गयीं आखिर मुसाफिर क्या करे!
सम्भोग से सन्यास तक
आवास से आकाश तक
भटके हुये इन्सान को
कुछ और जीवन चाहिये!
कोई न हो जब साथ तो एकान्त को आवाज दें!
इस पार क्या उस पार क्या!
पतवार क्या मंझधार क्या!!
हर प्यास को जो दे डुबा
वह एक सावन चाहिये!
कैसे जियें कैसे मरें यह तो पुरानी बात है!
जो कर सकें आओ करें
बदनामियों से क्यों डरें
जिसमें नियम-संयम न हो
वह प्यार का क्षण चाहिये!
कुछ कर गुजरने के लिये मौसम नहीं मन चाहिये!
Posted in बस यूं ही | 16 Responses
पुस्तक चर्चा का नाम तो अब प्रत्यक्षा जी तय कर ही देंगी, दोनो ही आकर्षक हैं.
स्व. रामनाथ अवस्थी जी की रचना बहुत पसंद आई:
“हारे नहीं जब हौसले
तब कम हुये सब फासले
दूरी कहीं कोई नहीं
केवल समर्पण चाहिये!”
विकी पीडिया पर में भारत रत्न की डिजाईन बनाने वाली एक महान महिला सावित्री बाई खानोलकर पर लेख लिखा है, जिसे पहले मेरे चिट्ठे पर भी लिखा था। मुझे इस बात का गर्व है कि सावित्री बाई के बारे अन्तर्जाल पर हिन्दी में अगर कोई सामग्री मौजूद है तो उसमें मेरा भी योगदान है।
बहुत ही आत्मसुख मिला मिला यह सोच कर कि आने वाली पीढीयों के लिये हम कुछ योगदान कर सकेंगे।
हां अक्षरग्राम के नए सर्वर पर पुस्तक-चर्चा के लिए स्थल जरूर होगा ही – आदर्श तौर पे पहले लेख विकी पर डले फ़िर पुस्तक चर्चा में और कुछ भी डालने से पहले देख लें की उस विषय पर क्या काम हुआ है क्या बचा है – हुआ भी है या नहीं. चर्चा में उस पर प्रतिक्रियाएं हों और फ़िर वही पुस्तक पढने वाला कोई और विकी को मजबूत करे.
पहले से ही विकि पर अपना योगदान देने की सोचता था। पर आलस कर जाता था, लेकिन आज आपने राह दिखा दी है और आँखे भी खोल दी है. अब यथा सम्भव योगदान देने को तत्पर हुँ
अभी खाता खोलते हैं ।
जहाँ तक नाम का सवाल है मुझे ‘पिटारा ‘नाम बहुत अच्छा लगा था , हर बार कौतुहल से देखते कि इस बार पिटारे से कौन सी पुस्तक चर्चा निकली है । पर चूँकि ज्यादा वोट किताबी कोना को मिली है तो जनमत सर्वोपरि रहे । चलिये नाम बता कर हम भार मुक्त हुये , बहुत काम कर लिया आज
मुसीबत ये है कि दो लेख लिखे है तिसरे की घोषना कर दी और बेचारा चिठ्ठा महीने भर से रास्ता ताक रहा है
पर विकिपीडिया पर लिखने की सही तकनीकी शिक्षा माला के बगैर हमेशा मन मुताबिक पृष्ठ तैयार नहीं कर पाया ?
कोई सहयता उपलब्ध हो नेट पर तो बताये !!
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..नीतीश कुमार के ब्लॉग से गायब कर दी गई मेरी टिप्पणी (हिन्दी दिवस आयोजन से लौटकर)