Thursday, October 26, 2006

प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत

http://web.archive.org/web/20110925122945/http://hindini.com/fursatiya/archives/205

प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत

प्रत्यक्षा
प्रत्यक्षा
हिंदी ब्लाग जगत में प्रत्यक्षा के बारे में कुछ बताना तो सूरज को दिया दिखाना है या फिर ऐसा कहें कि पूरे पढ़े लेख के नीचे उसका लिंक देना है। वे कवियत्री है, कथाकार है, चित्रकार हैं, मूर्तिकार हैं, धुरंधर पाठिका हैं, संगीतप्रेमी हैं और चिट्ठाकार तो खैर हैं हीं। उनकी रुचियों और क्षमताऒं की सूची बड़ी लंबी है। वो तो कहो उनके ऊपर आलस्य का ठिठौना लगा है वर्ना मानव सभ्यता के सबसे काबिल लोगों में उनका नाम शामिल करने की मुहिम शुरू हो गयी होती। प्रत्यक्षा की कहानियां-कवितायें, लेख नेट पर तो अर्से से उपलब्ध हैं लेकिन अब पिछले माह से वे प्रिंट मीडिया की भी धाकड़ लेखिका बनने की राह पर चल डगरी हैं। संपादकगण उनसे कहानी मांगकर छाप रहे हैं यह सब प्रत्यक्षा को नया-नया और खुशनुमा लग रहा है आजकल।
निरंतर की जब दुबारा शुरुआत हुई तो सुनील दीपक का सबसे पहला सवाल यही था- अरे ये क्या? यहां कोई महिला संपादिका तो है ही नहीं। अगले ही दिन सर्वसम्मति से प्रत्यक्षा संपादक मंडल से जुड़ गयीं और निरंतर के संपादक मंडल का कहानी/कविताऒं लिखने, लिखवाने और संपादन-प्रकाशन का सारा बोझ, काम समझकर प्रत्यक्षा ने संभाल लिया। पाठकों की राय के अनुसार आगे बढ़ने वाली कहानी लालपरी@ रेडिफमेलमेल. काम की अगली किस्त का पाठ्कों को बेसब्री से इंतजार है।
जिन चिट्ठों को वे पढ़ती हैं और पसंद करती हैं उन पर टिप्पणी जरूर करतीं हैं। उनके लेखन और टिप्पणियों में खिलंदड़ापन और गंभीरता का गजब का ब्रिटेनिया बिस्कुट टाइप का आकर्षक मिश्रण रहता है। कवितायें लिखना बहुत पसंद है लेकिन लेख उनके हमको ज्यादा आकर्षक लगते हैं।
पावर ग्रिड कारपोरेशन में वित्त अधिकारी प्रत्यक्षा के पास शौक और रुचियों की फ़ौज है और समय वही फकत चौबीस घंटे। उसी में सभी रुचियों को सुघड़ता से पालती-पोसती परवान चढा़ती हैं। बिटिया पाखी, बेटा हर्षिल और पति संतोष के साथ खुशनुमा जीवन बिताने वाली प्रत्यक्षा वैसे तो संतोषी जीव हैं लेकिन तारीफ आप कितनी ही कर लें उनकी वो उसका बुरा नहीं मानतीं।
वैसे तो आज के इस लेख में भी उनके बारे में और ज्यादा लिखने का विचार था लेकिन वह फिर कभी। फिलहाल तो आपको बता दें कि आज प्रत्यक्षा का जन्मदिन है। मैं अपनी तरफ़ से उनको जन्मदिन की मुबारकबाद देता हूं। कामना करता हूं कि वे आने वाले समय में उपलब्धियों के नये-नये सोपान चढें, उनकी क्षमताऒं में नये क्षितिज जुड़े और वे हमेशा खुशहाल रहें-सपरिवार, दोस्तों, शुभचिंतकों समेत।
उनके जन्मदिन के अवसर पर हमने उनसे कुछ बातचीत की। इस बातचीत से आप उनके बारे में बेहतर जान पायेंगे। प्रस्तुत है उनसे हुयी बातचीत के मुख्य अंश।
दो दिन बाद आपके ब्लाग सफर को डेढ़ वर्ष पूरे होने वाले हैं। कैसा रहा ये सफर?
अच्छा डेढ़ वर्ष हो गये । पता ही नहीं चला । ब्लॉग सफ़र बढ़िया रहा । खुद का लिखना और दूसरों को पढ़ना बहुत आन‍ंद आता है । लोगों की तकनीकी और अन्य सहायता के लिये तत्परता मन को बहुत प्रफ़ुल्लित करती है ।

कहानियां कवितायें आप पहले भी लिखती रहीं हैं। ब्लागिंग से जुड़ने के बाद इस कार्यक्रम में क्या फर्क आया? लिखने में सहयोग मिला या लिखना बाधित हुआ?

ब्लागिंग से जुड़ने के बाद लेख और आपबीती भी लिखना शुरु किया । पहले ही समय की कमी थी । अब मुश्किल और बढ़ गई । फ़िर भी जब कहानी लिखती हूँ तब कविता, लेख लिखना कम हो जाता है। जब चिट्ठा लिखती हूँ तो बाकी चीज़ें सुस्त पड़ जाती हैं ।

साहित्य, कला, संगीत लगभग हर विधा में आपकी रुचि है। किसी भी विधा को आपने नहीं बख्सा। इनमें कौन सी विधा है जिसमें सबसे ज्यादा मन रमता है?

ऐसा है कि किसी भी विधा ने मुझे नहीं बख्शा । जुनून की हद तक पढ़ती हूँ । संगीत, खासकर शास्त्रीय, सूफ़ी और गज़ल दूसरी दुनिया में ले जाता है। चित्रकारी तो बस ऐसे ही ,डूडल कह लें। बस रंगों का संयोजन या लकीरों की लचक आकर्षित करती है। कभी कुछ पढ़ कर या सुनकर बरबस आँसू भी निकल जाते हैं। ये संवेदनशीलता नियामत है और कभी कभी बड़ा बोझ भी।
निरंतर से जुड़ना कैसा अनुभव रहा? आपको रिंगमास्टर बताया गया। कैसी चल रही है रिंगमास्टरी?
मेज़ के उसपार कैसा लगता है अब पता चला। रिंगमास्टर तो आपलोगों ने बना दिया पर ‘लॉंगडिस्टेंस रिंगमास्टरी’ कैसे की जाती है ये गुर अभी सीखना बाकी है ।

निरंतर में आपकी लाल परी @रेडिफमेल.काम कहानी काफी चर्चित कहानी है। इसको लिखने का विचार कैसे बना?आपके पुराने चैटिंग के अनुभव काम आ रहे हैं या सब हवा हवाई है?

चैट मज़ा लिया नही। इतनी फ़ुरसत नहीं। पूरी कहानी हवा हवाई है। चूँकि नेटमैगज़ीन में कहानी आनी थी तो लगा कि चैट पर आधारित विषय शायद पाठकों को आकर्षित करे। वैसे भी मुझे तो सिर्फ़ कहानी का ढाँचा भर देना था, पात्रों को फ़्लेश आउट करना है। आगे की कहानी की स्टीयरिंग तो पाठकों के हाथ में है ।
रेडिफमेल का मेसेंजर तो सबसे कम प्रचलन में है। उसके बनिस्बत याहू मैसेंजर सबसे ज्यादा प्रचलन में है। फिर आपने चैटिंग के लिये नायिका का खाता रेडिफमेल में क्यों खुलवाया?
लालपरी के साथ रिडिफ़मेल ऐसे फ़िट हुआ जैसे हाथ में दास्ताना। नाम बढिया लगा बस। यही तो मज़ा है लिखने का, सब अपनी मर्ज़ी का होता है। जहाँ मर्ज़ी हो वहाँ खाता खुलवा दें ।
आपने कहानियां तमाम लिखी हैं लेकिन बुनो कहानी में कोई शिरकत नहीं की। कोई अधूरी कहानी पूरी करने का मन नहीं करता?
कहानी की शुरुआत जितनी कहें उतनी कर दें पर खत्म करना? सोचना पड़ेगा। कभी सोचा ही नहीं ।
अनुगूंज पर भी आपकी गूंज बहुत कम सुनायी दी। ऐसा क्यों?
वही व्यथा यहाँ भी है। सोचा नहीं। फ़िर टाईमबाउंड चीज़ें हमारी बाउंडरी के बाहर चली जाती हैं ।
आपकी जुगलबंदियां काफ़ी चर्चित रहीं। इस जवाबी लेखन के प्रति रुचि के कुछ खास कारण हैं?
अच्छी कविता पढ़्ते ही उँगलियाँ कुलबुलाने लगती हैं जवाबी कविताई करने के लिये। कभी-कभी कोई एक शब्द ही ट्रिगर होता है एक पूरे कविता लिख डालने के लिये। अनूप भार्गव और राकेश खंडेलवाल के साथ खूब जुगलबंदियाँ की। बड़ा मज़ा आता है खासकर बड़ी उत्कंठा होती है कि कविता-दर-कविता क्या नया रुख लेगी ।
आपके यात्रा विवरण अधबीच में ठहरे हुये हैं। ऐसा क्यों?
तब हमारे पास ‘डिजीकैम’ नहीं था । यात्रा के दौरान हम शूट करते रहे ‘विडियोकैम’ से। अब विडियोकैम से स्टिलफ़ोटो पीसी में अपलोड करना नहीं आता, तकनीकी बुद्धु जो ठहरे। फ़िर भाई लोगों ने बिना फ़ोटो के ये मानने से इंकार कर दिया कि हम केरल गये थे। तो जबतक फ़ोटो नहीं तब तक यात्रा विवरण भी खटाई में।(क्या कुछ लोगों ने राहत की साँस ली !)
आपकी कहानी वागर्थ जैसी कथा पत्रिका में छपी और अब आगे नया ज्ञानोदय में आपकी कहानी आ रही है। संपादको ने स्वयं आपसे संपर्क करके कहानी मांगी है। तो क्या आपको यह अपना प्रिंट मीडिया की तरफ प्रस्थान बिंदु लगता है?
एक नयी और बहुत महत्त्वपूर्ण शुरुआत ज़रूर है। मैं आभारी हूँ श्री रवीन्द्र कालिया की कि उन्होंने इतना प्रोत्साहन दिया, इतना भरोसा किया, श्री ए पी जैन (भारतीय ज्ञानपीठ के ट्रस्टी )जिन्होंने मेरी कहानी पढ़कर मेरी इतनी हौसला अफ़ज़ाई की। ये मेरे जैसे नये-नवेले लिखने वाले के लिये बहुत बहुत बड़ी बात है। मेरे उम्मीद के बाहर की बात है।जाल-पत्रिकाओं से जुड़ाव हमेशा रहेगा। पूर्णिमा वर्मन और रति सक्सेना जैसे लोग हैं जिन्होंने मुझे लिखना शुरु करने की और फ़िर लिखते रहने की प्रेरणा दी।

ब्लाग लिखने के विषय कैसे सोचती हैं?

सोचने के लिये समय चाहिये और ये ‘लक्जरी‘ मुझे मुहैया नहीं। बस ऐसे ही लिख डालती हूँ। हाँ किताबी कोना ( प्रियंकर को ये नाम पसंद नहीं , इसपर चर्चा करेंगे उनसे )के लिये ज़रूर सोचा था कि ये लिखते रहना है।

अपनी सबसे अच्छी पोस्ट कौन सी लगती है?

गठरी भर यादें संदूक भर फ़ोटो, चाँदनी बेगम, जन्नत यहाँ है, बचपन के दिन भी क्या दिन।
आपकी किसी पोस्ट से अभी तक यह पता नहीं चला कि आप गुस्सा भी होती हैं या नहीं। आपको गुस्सा भी आता है या ऐसे ही चलता है मामला सब जगह गुडी-गुडी?
हर बात थोड़े ही बतायी जाती है। इमेज़ का सवाल है भाई। पर सच मुझे कितना गुस्सा आता है ये मेरे परिवार से पूछें।

किस बात पर गुस्सा आता है?

मुझे बेतरतीबी पर गुस्सा आता है, मुझे गलत जब होता है तब गुस्सा आता है, मुझे अन्याय पर गुस्सा आता है, पर सबसे ज्यादा गुस्सा तब आता है जब मेरी बात नहीं मानी जाय ।
आपके पढ़ने की रेंज बहुत बड़ी है। आप कूड़ा साहित्य से लेकर कालजयी साहित्य तक समान भाव से पढ़ती हैं। ऐसा कैसे होता है?
जो मुझे हाथ लगे मैं पढ़ डालती हूँ, कागज़ के लिफ़ाफ़ों और ठोंगों तक। पढ़ना मेरे लिये एक सनक जैसा है। कालजयी किताबों की बात और है । उन्हें बार-बार पढ़ा जाने का सुख ही कुछ और है, हर बार कोई नयी परत हाथ लगती है।
आपने फुरसतिया की खिंचाई का अभियान शुरू किया था इसे बीच में छोड़ क्यों दिया?
बीड़ा उठाने वाले कई मिल गये राह में।
जीवन में और खासकर कार्यालय में काम करते हुये आपको महिलाऒं के प्रति लैंगिक भेदभाव का अहसास होता है क्या?
प्रत्यक्ष रूप में तो नहीं पर परोक्ष रूप में शायद कई बार। लैंगिक भेदभाव समाज के रेशे-रेशे में व्याप्त है। कई बार अपने आसपास इसके कई उदाहरण मिल जाते हैं। कार्यालय भी समाज का ही एक हिस्सा है तो वहाँ भी वही दरसता है जो और कहीं मौजूद है ।
महिलाऒं के बारे में,खासकर दफ्तरों में काम करने वाली महिलाऒं के प्रति पुरुषों की नजरिया एक महिला का ही रहता है चाहे वह महिला अधिकारी हो या क्लर्क। आपको अपने अनुभवों से कैसा लगता है इस बारे में?
मुझे ऐसा नहीं लगता। अगर मैं जिस तरीके से महिला सहकर्मियों से बात करती हूँ उसी सहजता से पुरुष सहकर्मी से भी पेश आऊँ तो कोई भी बुद्धिमान पुरुष उसी भाव को रेसीप्रोकेट करेगा। अगर आमने-सामने बराबरी और इज़्ज़त का बर्ताव है तो पीठ पीछे उसके नज़रिये से मुझे क्या लेना देना। किसी की सोच को बदलना आसान नहीं लेकिन अपना व्यवहार हमारे नियंत्रण में होता है। प्रोफ़ेशनल रेस्पेक्ट अर्जित की जाती है। शुरु में काफ़ी कठिनाई ज़रूर होती है पर एक बार आपके काम करने की मान्यता हो जाये तो ‘अक्सेपटेंस’ आसान हो जाती है । हाँ काम में कोई कोताही नहीं होनी चाहिये। कई बार अपने कूवत को साबित करने के लिये पुरुष सहकर्मी से ज्यादा काम भी करना पड़ता है।
एक लेख में आपने बताया कि आपके पति काफ़ी समझदार हैं और इसी लिये आपको महिला मुक्ति के बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं लगती। क्या महिला मुक्ति को अपने तक ही सीमित मान लेना उचित है?
उस लेख में सिर्फ़ ये कहना चाहा था कि मुझे मुक्ति की ज़रूरत नहीं। मेरे और संतोष के विचार समान हैं इसलिये मुझे कभी कोई समस्या नहीं आई पर आसपास देखती हूँ जहाँ महिला मुक्ति की सख्त ज़रूरत है। मेरा तो ये मानना है कि नारी मुक्ति से ज्यादा ज़रूरी पुरुष मुक्ति है जहाँ पुरुष अपनी दोहरी मानसिकता से मुक्ति पायें।
आपकी कहानियों में ज्यादातर नाम बंगाली परिवेश से लिये लगते हैं। इस आकर्षण का कोई खास कारण है?
मुझे सुंदर नाम भाते हैं। अब अपने दोनों बच्चों के नाम तो रख लिये। बाकी के अरमान कहानी के पात्रों से पूरे किये जा रहे हैं। बंगाली नाम वैसे बड़े खूबसूरत होते हैं, मुस्लिम नाम भी।

आपकी कविताऒं /कहानियों की नायिकायें आमतौर पर नायक के बेपनाह प्यार को हासिल करने के बाद अलगाव की त्रासदी की शिकार होती हैं.कारण कभी मतलबी विकल्प होते हैं कभी बेहद छोटे दिखने वाले अहम.पर नायिकायें कमजोर नहीं हैं वे आमतौर पर नायक को मुक्त,माफ करके बडप्पन का इजहार करती हैं.पिछले साल इसके जवाब में आपने कहा था, लगभग डराते हुये-अब देखिये..हम लिखते हैं एक धांसू सा …दुखी प्रतडित पुरुष की कहानी…फिर देखते हैं आप एक पैटर्न वाली कहनियों का इलज़ाम कैसे नहीं हटाते तो कोई कहानी लिखी प्रताणित पुरुष की?
प्रताडित तो नहीं पर एक कन्फ़्यूज़्ड पुरुष की कहानी ज़रूर लिखी थी, ‘मुक्ति’। अभिव्यक्ति में छपी भी थी ।

ब्लाग लेखन की आगे की सम्भावनायें क्या लगती हैं आपको?

सम्भावनायें तो बहुत हैं । लोग इतना अच्छा लिख रहे हैं । सिर्फ़ थोड़ा सा ऑरगनाईज़ करने की ज़रूरत है, अपने लेखन को, अपने विचारों को फ़िर सारा आकाश हमारा है ।
सबसे अच्छे और खराब चिट्ठे हैं कोई आपकी लिस्ट में?
अच्छे तो कई हैं , जिन्हें मैं ज़रूर पढती हूँ और टिप्पणी भी करती हूँ। पर नाम नहीं लूँगी। ये रहा ‘डिप्लोमैटिक’ जवाब। शायद जिनके चिट्ठे मुझे अच्छे लगते हैं उन्हें पता होगा ।
आगे कभी लिखा हुआ छपाने का विचार है?
अरे बिलकुल नहीं। वैसे भी कौन छापेगा मेरी बकवास ।
अपने जन्मदिन को कैसे मनायेंगी?
ये तो संतोष पर निर्भर करता है कि कैसे मनेगा ।

आपकी बचपन की ‘टाम ब्वाय’ की छवि से अब मध्यम उम्र की महिला तक के सफर के बीच ऐसे कौन से क्षण रहे जिनको आप अपने जीवन में सबसे निर्णायक मानती हैं।

कोई एक ऐसा क्षण तो नहीं। बचपन बड़ा खुशहाल बीता, इमोशनली और कलचरली। माँ पिता और चाचा के संस्कारों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। संतोष के साथ से आत्म विश्वास में बहुत फ़र्क पड़ा। आज जो भी कर रही हूँ उसमें उनका विश्वास बहुत भरोसा दिलाता है। आसपास अच्छे लोग हों तो सफ़र अच्छा कटता है।

आपके लेखन में कभी बिंदियों की लंबी फौज हुआ करती थी वो बिंदियां कहां गायब हो गयीं?

हैं न सब। संभाल कर रखी हैं लॉक ऐंड की में। आपको चाहिये क्या ?
पसंदीदा ड्रेस क्या है?
साड़ी।
ढेर सारा खाली समय मिले तो उसे कैसे बितायेंगीं?
खूब पढ़ूँगी। संतोष के साथ खूब सारे गाने सुनूँगी। शायद पेंटिंग करूँ या फ़िर पॉटरी सीखूँ या शायद सितार। मुझे उनलोगों से बहुत ईर्ष्या होती है जो संगीत साधना में सुध-बुध खो देते हैं। जब छोटी थी तब एक सीरीयल आता था आर्कियोलॉजिकल खोज पर, तब लगता था ऐसी हो जिन्दगी या फ़िर स्टार ट्रेक के मिस्टर स्पॉक सा । अब सपने भी वही देखती हूँ जो व्यावहारिक हो तर्कसंगत हो। पर चमत्कार से विश्वास उठ जाने का दुख सालता है।
पसंदीदा खाना-पीना क्या है?
दाल चावल भुजिया।

अपनी सबसे पसंदीदा किताबों के बारे में बतायें जो आपने कई बार पढ़ीं या जिनको बार-बार पढ़ना चाहती हैं?

लिस्ट बहुत लंबी है। लाल टीन की छत, गर्दिशे रंगे चमन, जुलूस, राग दरबारी, नीलाचाँद, टू किल अ मॉकिंगबर्ड, सेनटेनियल्स, हाउ ग्रीन वास माई वैली, डार से बिछुडी, मित्रो मरजानी, मृत्युंजय, आधा गाँव, कसप, झूठा सच, गण देवता, ग्राईमस समर ट्री, किंग कोबोल्ड, सारा आकाश, कैचर इन द राई,फाउंटेनहेड – लिस्ट अनंत है।

वे किताबें कौन सी हैं जिनको अभी आपको पढ़ना है?

ये लिस्ट और भी लम्बी है ।
आजकल ब्लागिंग में कुंडलिया का बड़ा हल्ला है। आपने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया क्या बात है?
ये मेरे बूते के बाहर की चीज़ है । हिम्मत जुटानी होगी । गुरुज्ञान भी लेना पड़ेगा कुँडलिया गुरु से।

दलित साहित्य, स्त्री लेखन की बात अक्सर उठती है आजकल कि दलित या स्त्री ही अपनी बात बेहतर ढंग से कह सकते हैं। आप क्या सोचती हैं इस बारे में?

जहाँ पीड़ा हो दर्द हो वहाँ अभिव्यक्ति अपने आप सशक्त हो जाती है। दलित और स्त्री इसी पीड़ित वर्ग में आते हैं। धार तो तीखी पैनी होनी ही है।
साहित्य से समाज में बदलाव की आशा करना कितना तर्क संगत है?
दोनों इन्टरलिंक्ड हैं। परस्पर प्रभावी अनुभव और बदलाव अवश्यंभावी है।
आपकी रचनाओं के प्रथम पाठक कौन रहते हैं? घर में आपकी रचनाओं को कितना पढा जाता है?
पकड़ पकड़ कर पढ़ाया जाता है । ऐसे आसान पाठक और तुरत में कहाँ मिलेंगे । कभी-कभी बैकलॉग भी होजाता है पर रचनायें घर में सभी पढ़ी जाती हैं ।
आपके पसंदीदा रचनाकार कौन से हैं?
निर्मल वर्मा, श्रीलाल शुक्ल, यशपाल, रेणु, कुर्रुतुलएन हैदर, सोबती, मृणाल पाँडे, ममता कालिया, इस्मत चुगताई, हारपर ली , जेन औस्टेन, अगाथा क्रिस्टी,जेम्स मिशनर, हार्डी, प्रेमचंद, झुम्पा लाहिरी, सलमान रश्दी, स्टाएनबेक, असीमोव, आयनरैंड, अलिस्टेयर मैक्लीन। बहुत से नाम हैं जिन्हें कभी भी पढना अच्छा लगता है।

जीवन में सबसे खुशी का क्षण याद हो कोई?

बच्चों का जन्म।

सबसे अवसाद का क्षण?

गनीमत है कि अचक्के में ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है।
अगर आपको फिर से जीवन जीनेका मौका मिले तो किस रूप में जीना चाहेंगीं?
थोड़ा बहुत फ़ेरबदल तो चाहूँगी पर मोटा मोटी जो है भला है। संतोषी जीव हूँ।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

26 responses to “प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत”

  1. जगदीश भाटिया
    “ये संवेदनशीलता नियामत है और कभी कभी बड़ा बोझ भी।”
    इतनी गहरी बात कितनी आसानी से कह दी प्रतक्ष्या जी ने। यह खूबी इनके लेखन में भी दिखती है। कहानी “सीड़ियों के साथ वाला कमरा” में भी आखिरी पंक्ति में कितनी सहजता से उस पात्र का सारा दर्द बयान हो जाता है।
    जन्मदिन मुबारक प्रत्यक्षा जी।
  2. Amit
    प्रत्यक्षा जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई। :)
  3. प्रतीक पाण्डे
    मेरी तरफ़ से प्रत्यक्षा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ। साथ ही अनूप जी का भी शुक्रिया इस रोचक साक्षात्कार को पेश करने के लिए।
  4. पूनम
    बहुत ही अछ्चा साक्षात्कार प्र्स्तुत किया है.अनूपजी और प्रत्यक्षा को हार्दिक बधाई.
  5. अनुराग श्रीवास्तव
    प्रत्यक्षा जी की कवितायें दिल को बहुत करीब से छू जाती हैं, शब्द आसान से और भावनायें दिल के बहुत करीब। उनके हृदय से कविता का जो प्रवाह आता है वह बड़ी सहजता से पाठक को अपने संग बहा ले जाता है, इस बहाव में बहने के लिये शब्दकोश के सहारे की आवश्यकता नहीं पड़ती – बस बहते रहिये और अपने को डूबो डुबो कर भिगोते रहिये। गहरी और अथाह लेकिन फिर भी आप अपने चुल्लू उसे समेट कर पी सकते हैं। उनकी कविताओं की यह सहजता और सरलता उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
    प्रत्यक्षा जी को जन्म दिन की मंगल कामनायें।
  6. जीतू
    प्रत्यक्षा जी तो उनके जन्मदिन पर हार्दिक बधाईयां। प्रत्यक्षा जी यूं ही ब्लॉगजगत को प्रकाशमान करती रहें। इन्ही शुभकामनाओं के साथ।
    -जीतू
  7. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    प्रत्‍यक्षा जी जन्‍म दिवस हार्दिक शुभकामनाऐ।
  8. bhuvnesh
    प्रत्यक्षाजी को जन्मदिन की शुभकामनायें और शुक्लाजी आपका भी धन्यवाद उनसे साक्षात्कार कराने के लिए।
  9. SHUAIB
    प्रत्यक्षा जी को हमारी ओर से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ। और अनूप जी आपका धन्यवाद
  10. premlatapandey
    प्रत्यक्षा जी को जन्मदिन की बधाई।
  11. Manish
    janmadin ki hardik badhai Pratyaksha ji !
  12. राकेश खंडेलवाल
    और मिले मधुपर्क शारदा से इस जन्मदिवस पर तुमको
    चले तूलिका और लेखनी, और कौनवस पर कागज़ पर
    उलझी हुई ज़िन्दगी के बन्दों को खोले लिखो कहानी
    शिलालेख बन जायें समय सिकता पर जो करदो हस्ताक्षर
    आभारी हैं शुक्ला जी के, बिम्बों को जो लाये बाहर
    छुपे कुए इक लेखक मन को सहज कर दिया आज उजागर
    बातों बातों में ही सारे, भेद खोल डाले लेखक के
    एक लेख में भर डाला है पूरे का पूरा रत्नाकर
  13. समीर लाल
    प्रत्यक्षा जी को जन्मदिन की बहुत बहुत मुबारकबाद और शुभकामनायें.
    भाई अनूप जी को बहुतेरा धन्यवाद इस शुभ मौके पर साक्षात्कार के लिये.
  14. रवि
    हैप्पी बर्थ डे टू यू…. प्रत्यक्षा
  15. उन्मुक्त
    प्रत्यक्षा जी को जन्म दिन की बधाई।
  16. अनूप भार्गव
    यहाँ दिन ज़रा देर से शुरु होता है , इसलिये विलम्बित शुभकामनाएं …
  17. nitin
    प्रत्यक्षा जी को जन्म दिन की बधाई।
  18. mitul
    प्रत्यक्षा जी को हमारी ओर से भी जन्म दिन की बधाई। आपने काफी अच्छा साक्षात्कार प्रस्तुत किया। एक बार पढ़ना शुरू किया तो खत्म कर के ही राहत मिली।
  19. pankaj bengani
    प्रत्यक्षा जी तो उनके जन्मदिन पर हार्दिक बधाईयां।
  20. प्रत्यक्षा
    आप सबों का बहुत बहुत आभार । इतनी सारी शुभकामनायें , दिन बहुत ही अच्छा बीता । और जैसा फुरसतिया जी ने लिखा तरीफ का मैं बिलकुल बुरा नहीं मानती :-)
    सो इतनी तरीफ पाने के बाद पाँव ज़मीन पर नहीं थे मेरे ।
    एक बार फिर , शुक्रिया
  21. nutan
    Pratyaksha Madam, Happy Birthday to You!
    I really enjoyed reading your interview and could see a great potential in Hindi lekhan arena, wish you all the very best!
    love, nutan.
  22. फ़ुरसतिया » प्रत्यक्षा की कहानी- हनीमून
    [...] [अभी पिछले ही माह एक हफ्ते पहले प्रत्यक्षा ने अपना जन्मदिन मनाया। उसी दिन उनको एक खास उपहार मिला। नया ज्ञानोदय में उनकी छ्पी कहानी ‘हनीमून’ मय पत्रिका उसी दिन उनको मिली। [...]
  23. फुरसतिया » प्रत्यक्षा-जन्मदिन मुबारक
    [...] में प्रत्यक्षा की कहानी सूचनाPopularity: 1% [?]Share This (No Ratings Yet)  Loading …  [...]
  24. एक चिट्ठी शिवजी के नाम
    [...] १. ब्लॉगरों में क्या सुर्खाब के पर लगे होते हैं ? २. कि ब्लॉगर बन गया जेंटलमैन…. ३.छुटके से ब्लागर तेरा दरद न जाने कोय ४. प्रियंकर- एक प्रीतिकर मुलाकात ५. अथ पूना ब्लागर भेंटवार्ता कथा… ६.बारिशों का मौसम है… ७. सबसे बुरा दिन ८. ब्लाग चोरी से बचने के कुछ सुगम उपाय ९.प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत [...]
  25. …सही बात पर स्टैंड भी लेना चाहिये-प्रत्यक्षा
    [...] १.मरना तो सबको है,जी के भी देख लें २. प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत ३.प्रत्यक्षा-जन्मदिन मुबारक [...]
  26. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] की सैर के बहाने पालीथीन से मुलाकात 11.प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत 12.हिंदी में कुछ वाक्य [...]

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