बहुत अच्छा लगा। शुकुल तुम्हारी हैंडराइटिंग देखकर पंडित गिरिजाशकर की याद आ गयी, बचपन में, वो हमें पंचाग लिखकर देते है, घर घर पहुँचाने के लिए। हम उसमे गोले (Circles) लगाया करते थे। बहुत मजा आता था, इच्छा तो हो रही है इसमे भी गोले, वर्गाकार खाने बनाए, एक सिरे से दूसरे सिरे को जोड़े, कार्टून बनाने, लेकिन तकनीक ने हाथ बांध दिए, उस जमाने मे पीडीएफ़ होती तो हम शरारत ना कर सकते।
अच्छा प्रयास है, राइटिंग भी काफी अच्छी है। लगे रहो……
एक बार शायद देबू दा ने टिप्पणी की थी कि आपको हाथ से लिखेने की क्या जरूरत है आप तो लिखने से ज्यादा स्पीड से टाईप कर लेते हैं। मगर यहां देख कर कहना पड़ रहा है कि आपको टाईप करने की क्या जरूरत है आप तो टाईप से ज्यादा सुंदर लिख लेते हैं। अच्छा है, कभी कभी हर तरह के बदलाव और प्रयोग होते रहने चाहियें।
आपका तो बिल्कुल एक नंबर का मामला है। इंकियाने का मजा ही कुछ अऊर है, हमरी भी आदत छूट गई है पर कोशिश अवश्य करेंगे। कभी न कभी। बाकी समीरजी तो अच्छा लिखते ही हैं इस पर कुछ अधिक बात नहीं हो सकती। हाँ वे कविताएँ ज्यादा अच्छी लिखते हैं या व्यंग्य यह विवाद का विषय हो सकता है।
ये तकनीक के मारे तो नाक में दम है. यहां अच्छा भला लेख पढ़ने आये थे पर क्यूरियॉसिटी चालू हो गयी इंक-ब्लॉगिंग की. एक तकनीक सीखो; तब तक वो कन्डम हो जाती है. फिर नया नाम/नयी तकनीक. ये कविता सुनाओ, सुनैबे करो; नयी तकनीक न चमकाओ श्याम पैंया पड़ूं.
इंक-ब्लागिंग पसंद करने और तारीफ़/प्रतिक्रिया देने के लिये सभी पाठकों का शुक्रिया। @अरुणजी, आपको न जाने गधों से क्या अपनापा लगता है। सब दोस्तों को भी उसी अवतार में देखना चाहते हो। समीरलाल जी भी अभी देखना आयेंगे इंक-ब्लागिंग में। @आलोक, शुक्रिया! इसी बहाने बहुत दिन टिप्पणी मिली आपकी!:) @मैथिलीजी, शुक्रिया! @जीतू, शुक्रिया। लगे हैं, लगे रहेंगे। कभी-कभी हाथ से लिखते रहेंगे। @प्रेमेन्द्र, शुक्रिया! @संजय बेंगाणी,हाथ से चिपकाना था न इसे। इस खुशफ़हमी में मत रहो कि हाथ से लिखने से पोस्ट की लंबाई कम हो जायेगी। @श्रीश, शुक्रिया, लिखना जारी रहेगा। @समीरजी, आपकी तो सभी कवितायें अच्छी हैं। फिर छांटते क्यों हैं? ये दुबली वाली फोटो उस समय की है जिस समय रमन कौल आपके पास से बिना कविता सुने चले गये थे। यकीनन आप इतने ही दुबले लग रहे थे। न मानते हो तो घर में भाभी से पूछ लो।:) @जगदीश भाटिया, आप सच कह रहे हैं। नये प्रयास करते रहने चाहिये। @मान्या, शुक्रिया! @रत्नाजी, शुक्रिया! @रचनाजी, शुक्रिया! आगे भी प्रयास जारी रहेंगे! @अभिनव, भैया समीरजी के कविता-व्यंग्य के विवाद में न पड़ो। इंक-ब्लागिंग शुरू करो! जल्द ही। @ममताजी. धन्यवाद! @रमनजी, आओगे अबकी बार कानपुर तब चक्की भी दिखा देंगे। वैसे इंक-ब्लागिंग तो अभी सीख रहे हैं। आगे कुछ और करेंगे।:) @नितिन, शुक्रिया! @पाण्डेयजी, नयी तकनीक से घबरायें न! आप तो स्वयं नव्यतम तकनीक के वाहक और प्रयोगकर्ता हैं। कुछ कन्डम न होगा। सब प्रयोग होगा। देखते जाइये। @सुजाताजी, शुक्रिया। आपको नियमित अपनेपन का एहसास कराते रहेंगे! @स्वामीजी, शुक्रिया।
चलिए इस नई तकनीक के बहाने आपका हस्तलेख देखने का मौका मिला . वरना अब सम्पादक के पास भी टाइप या शब्द-संयोजित लेख-कविताऎ ही आते हैं . अच्छे और विद्वान लोगों का सुंदर हस्तलेख देखने के लिए आंखें तरस जाती हैं . सुलेखन-खुशखत-कैलीग्राफी तो अब बीते जमाने की बात हो चली है .
भई वाह।।। पर एक चेतावनी आपने समीर जी कि कविताई को कूड़ा कहा…हम नहीं जानते कि वह कूड़ा है कि नहीं पर तुलसी और पंत के काव्य को कूड़ा कहे जाने पर आप के प्रदेश में खूब उफनाई हो रही है। जेल और अदालत का चक्कर चल रहा है…संभल कर रहें।
[...] हमारी इंक-ब्लागिंग और फिर फ़ुरसतिया टाइम्स को साथियों ने कुछ ज्यादा ही पसंद कर लिया। अखबार निकालने की तो ऐसी मांग हुयी कि हम अखबार के लिये आफिस, प्रिंटिंग प्रेस, कम्पोजीटर, प्रूफरीडर जुटाने की सोचने लगे। आखिर सोचने में कौन पैसा लगता है। जब प्रमोदजी बीस साल बाद रवीश कुमार के हाल सोच सकते हैं तो हम अपने अखबार के काहे न सोंचें! [...]
For example, when will i hunt for blog posts that fit what I wish to learn more about? Does somebody figure out how to Flick through blogs by matter or no matter what on blogger? .
On my friend’s weblogs they have got incorporated me in their web publication moves, but mine regularly rests at the end to the identify and fails to checklist as i write-up want it does for some individuals. Is this a setting that I have to transition or perhaps is this a choice they may have established? .
आपकी और समीर भाई की फ़ोटो यहा भी है देखे http://images.google.co.in/images?q=गदहे&svnum=10&um=1&hl=en&start=18&sa=N&filter=0&ndsp=18
मगर यहां देख कर कहना पड़ रहा है कि आपको टाईप करने की क्या जरूरत है आप तो टाईप से ज्यादा सुंदर लिख लेते हैं।
अच्छा है, कभी कभी हर तरह के बदलाव और प्रयोग होते रहने चाहियें।
अब इमेज मैप भी बढ़िया बन गया है। फ्लिकर का लिंक हटा दें।
ये कविता सुनाओ, सुनैबे करो;
नयी तकनीक न चमकाओ श्याम पैंया पड़ूं.
@अरुणजी, आपको न जाने गधों से क्या अपनापा लगता है। सब दोस्तों को भी उसी अवतार में देखना चाहते हो। समीरलाल जी भी अभी देखना आयेंगे इंक-ब्लागिंग में।
@आलोक, शुक्रिया! इसी बहाने बहुत दिन टिप्पणी मिली आपकी!:)
@मैथिलीजी, शुक्रिया!
@जीतू, शुक्रिया। लगे हैं, लगे रहेंगे। कभी-कभी हाथ से लिखते रहेंगे।
@प्रेमेन्द्र, शुक्रिया!
@संजय बेंगाणी,हाथ से चिपकाना था न इसे। इस खुशफ़हमी में मत रहो कि हाथ से लिखने से पोस्ट की लंबाई कम हो जायेगी।
@श्रीश, शुक्रिया, लिखना जारी रहेगा।
@समीरजी, आपकी तो सभी कवितायें अच्छी हैं। फिर छांटते क्यों हैं? ये दुबली वाली फोटो उस समय की है जिस समय रमन कौल आपके पास से बिना कविता सुने चले गये थे। यकीनन आप इतने ही दुबले लग रहे थे। न मानते हो तो घर में भाभी से पूछ लो।:)
@जगदीश भाटिया, आप सच कह रहे हैं। नये प्रयास करते रहने चाहिये।
@मान्या, शुक्रिया!
@रत्नाजी, शुक्रिया!
@रचनाजी, शुक्रिया! आगे भी प्रयास जारी रहेंगे!
@अभिनव, भैया समीरजी के कविता-व्यंग्य के विवाद में न पड़ो। इंक-ब्लागिंग शुरू करो! जल्द ही।
@ममताजी. धन्यवाद!
@रमनजी, आओगे अबकी बार कानपुर तब चक्की भी दिखा देंगे। वैसे इंक-ब्लागिंग तो अभी सीख रहे हैं। आगे कुछ और करेंगे।:)
@नितिन, शुक्रिया!
@पाण्डेयजी, नयी तकनीक से घबरायें न! आप तो स्वयं नव्यतम तकनीक के वाहक और प्रयोगकर्ता हैं। कुछ कन्डम न होगा। सब प्रयोग होगा। देखते जाइये।
@सुजाताजी, शुक्रिया। आपको नियमित अपनेपन का एहसास कराते रहेंगे!
@स्वामीजी, शुक्रिया।
पर एक चेतावनी आपने समीर जी कि कविताई को कूड़ा कहा…हम नहीं जानते कि वह कूड़ा है कि नहीं पर तुलसी और पंत के काव्य को कूड़ा कहे जाने पर आप के प्रदेश में खूब उफनाई हो रही है। जेल और अदालत का चक्कर चल रहा है…संभल कर रहें।
बहुत सुन्दर हस्तलिपी और उतना ही सुन्दर लेख। अगले लेख का इंतजार है।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..नीतीश कुमार के ब्लॉग से गायब कर दी गई मेरी टिप्पणी (हिन्दी दिवस आयोजन से लौटकर)