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घर परिवार में सपोर्टिव रोल निभाती बेटियों के बारे में रचनाजी का रुख सदैव आशावादी रहा। वे उनको पेंटिंग कीप्रतियोगिताऒं में ले गयीं | बेटी के बारें में उनकी सोच सदा धनात्मक रही-
जीवन मे हम सबको यूँ ही बस आना है..
By फ़ुरसतिया on June 10, 2007
समीरलाल जी से लगभग रोज ही पांच-सात मिनट की आनलाइन बातचीत हो ही जाती है। दो दिन पहले भी जब मिले तो और बातों के अलावा यह भी बात हुयी कि इस बार रचनाजी ने वुधवार को चिट्ठाचर्चा में नहीं कुछ लिख कर भेजा नहीं, न ही कोई पोस्ट लिखी।
शायद कहीं व्यस्त होंगी इसीलिये कुछ दिनों से आनलाइन भी नहीं दिखीं -समीरलाल जी ने कहा।
उसी दिन दोपहर को जब मैंने अपनी मेल देखने के लिये जीमेल खोला तो जीतेंन्द्र के नाम के आगे ‘दुख भरी खबर’ का लिंक लगा था। जब उसे देखा तो स्तब्ध रह गया। अभी तक विश्वास करने का मन नहीं होता कि रचनाजी की बड़ी बिटिया पूर्वी अब हमारे बीच नहीं है।
दो दिन से लगातार पूर्वी की तस्वीर आंखों के सामने है।
जब हमारे यह हाल हैं तो उस बच्ची के मां-बाप की क्या स्थिति होगी जिन्होंने असमय अपनी बिटिया को खो दिया।
नियति का यह कैसा विधान है कि मासूम बच्ची को उसके मां-बाप-बहन परिवार से दूर कर देता है।
पूर्वी ने ही उनको ब्लाग लिखने के लिये प्रेरित किया था। और जैसा मनीष ने बताया, “अत्यंत शांत, सौम्य और संवेदनशील व्यक्तित्व पाया था पूर्वी ने। इतनी कम उम्र में ही समाज के नीचे तबकों की सहायता करने का जज्बा था इस बच्ची में।”
अभी तक की रचनाजी कविताऒं और दूसरी रचनाऒं के स्वर आशावादी रहे। उनके अंग्रेजी ब्लाग का नाम ‘फ़्लाइंग होप’ रखने के पीछे भी शायद उनकी बच्चियों की प्रेरणा रही होगी।
मैंने रचनाजी के ब्लाग की तकरीबन सारी रचनायें पढ़ी हैं। हिंदी और अंग्रेजी दोनों। उनकी कई रचनायें अपने परिवार और उसमें से भी अधिकतर अपनी बेटियों पर या मां पर केंद्रित रहीं।
मां तुझे सलाम कविता में मां के बारे में ईश्वर से एक ही मै मन्नत मनाऊँ, हर एक जनम मे यही माँ मै पाऊँलिखते हुये अपनी बच्ची के बारे में बताना नहीं भूलतीं
आज के दिन सुबह-सुबह मेरी बेटी मुझे एक कार्ड देती है, जो वो पिछले २/३ दिनों से बना रही होती है! मुझसे छुपाकर! हालाँकि ये बताना नही भूलती कि मै आपके लिये कुछ बना रही हूँ! :). उसे नही पसंद कि उस कार्ड को मै अपनी किसी पुस्तक मे रख दूँ, उसे मुझे कुछ महीने अपने पर्स मे रखना होता है! आज वो अपनी मौसी के घर है, तो मुझे अपने कार्ड के लिये, उसके यहाँ पहुँचने तक इन्तजार करना है!
अपनी पोस्ट नॊनवेजिटेरियोफ़ोबिया में सामिष खाने के प्रति अपनी अरुचि/एलर्जी के बारे में बताते हुये रचनाजी लिखती हैं
मेरी ज्यादा चिन्ता मेरी बेटियो को लेकर है, मेरी इस बीमारी के लक्षण उनमे भी दिखाई दे रहे है…..इसके इलाज की खोज जारी है…..
अपनी पोस्ट तुम आंचल पसारकर अम्मा..में वे मां के बारे में विस्तार से लिखते हुये कहती हैं
आइये आज माँ की बात करते हैं…….३/४ साल तक के हर बच्चे के लिये उसकी माँ ही उसकी दुनिया होती है..७/८ साल की अधिकतर लड्कियों का सपना उसकी माँ जैसा बनना होता है..माँ ही उनका आदर्श होती है..जबकि ज्यादातर लडके इन्जीनियर, डॉक्टर आदि बनने की बात करते हैं, शायद ही कोई पिता जैसा बनने की बात कहता है…..फिर बच्चा बाहरी दुनिया से परिचित होता है, लेकिन माँ की छवि उसमे हमेशा बनी रहती है..माँ का रहन-सहन, पहनावा, डाँट, प्यार सब कुछ दिल के किसी कोने मे कैद रहता है
मै अपनी गलती जल्दी से मान लेती हूँ (अगर मैने की हो तो!!), लेकिन मेरी बेटी ऐसा नही मानती!!
बेटियों के बारे में रचनाजी की सोच इस बतकही से साफ़ पता चलती है:-
सार्वजनिक जगहों पर—
“कितने बच्चे है आपके?”
-जी दो बेटियाँ हैं.
“बेटा नही है?”
-जी नही.
” वैसे आजकल तो बेटियाँ भी बेटे की तरह ही होती हैं”
-हाँ….
** जी नही!!!बेटियाँ, बेटियों की तरह ही होती हैं!मै उन्हें उसी तरह सम्मान देना पसन्द करती हूँ!**
घर परिवार में सपोर्टिव रोल निभाती बेटियों के बारे में रचनाजी का रुख सदैव आशावादी रहा। वे उनको पेंटिंग कीप्रतियोगिताऒं में ले गयीं | बेटी के बारें में उनकी सोच सदा धनात्मक रही-
मत रोको उसे पढने दो,
मत बाँधो उसे बढने दो,
पत्नी होगी, माँ भी होगी,
उसका जीवन तो गढने दो!मत खीचों उसे चढने दो,
मत थामो उसे गिरने दो,
आसमानों को छू भी लेगी,
कुछ उसको भी उड लेने दो!मत टोको उसे हँसने दो,
मत छेडो उसे रोने दो,
सबका तो वो सुन ही लेगी,
कुछ उसको भी कह लेने दो!तुम जहाँ बढे वो वहाँ बढी,
तुम जहाँ रूके वो वहाँ रूकी,
अपनी मन्जिल पा लेगी वो,
कुछ उसको भी चल लेने दो!जग सो भी गया वो जगी रही,
कर्तव्यों से वो डगी नही,
सबका जीवन महका देगी,
खुद उसको तो खिल लेने दो!सब कामों को वो कर लेगी,
सब मुसीबतें वो हर लेगी,
सबके सपने सच कर देगी,
उसके सपने तो बुनने दो!!!
I am a little tiny girl,
Bright and fresh like a pearl.
I want to sing a beautiful song,
But sister says the lyric is wrong.
I like to watch the cartoon show,
But papa wants the news in a row.
इसके अलावा भी रचनाजी की कई पोस्टों में घर/परिवार सदैव मौजूद रहा। उसमें भी मां-बेटी की मौजूदगी सबसे अधिक रही।
ऐसे में अपनी बड़ी बेटी को खो देने की कल्पना ही अपने में भयावह है। रचनाजी और उनका परिवार आजकल इसी कठिन समय से गुजर रहे हैं। रचनाजी के पति दीपकजी मेरी बात हुयी थी। रचनाजी बात करने की स्थिति में नहीं थी।
हम लोग मानते हैं ऐसे दुख के घाव समय के साथ भरते हैं। लेकिन यह समझाने की बातें दुख के भंवर से पार निकलकर आने पर लागू होती हैं। जो झेलता है उसकी स्थिति वही समझ सकता है। हम केवल यह एहसास दिलाने का प्रयास कर सकते हैं कि दुख के इन गहनतम क्षणों में दूरस्थ साथी की तरह ही सही हम लोग आपके साथ हैं और कामना करते हैं कि ईश्वर आपको और आपके परिवार को इस अपार, असमय आन पड़े दुख को सहन करने की क्षमता प्रदान करे।
रचनाजी की बिटिया चली गयी। शायद उसका अपने परिवार के साथ इतना ही साथ बदा था। जैसा रमानाथजी कहा करते थे अपनी एक कविता में
आज आप हैं हम हैं लेकिन
कल कहां होंगे कल नहीं सकते
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
लेकिन अपने साथ जुड़े लोगों की स्मृतियों में पूर्वी सदैव रहेगी। प्रख्यात आलोचक रामविलाश शर्मा ने अपनी आत्मकथात्मक किताब ‘अपनी धरती अपने लोग’ में अपने बड़े भाई को लिखे एक पत्र में George Eliot नामक एक लेखिका के शब्दों का उल्लेख करते हुये लिखा था-Our dead persons are never dead to us ,unless we have forgotten them.
रचनाजी ने स्वयं अपनी तमाम पोस्टों में आशावादी रुख दिखाती रहीं। निराश नौजवान बच्चों को संबोधित करते हुये उन्होंने लिखा था-
छोड निराशा आशा बाँधो,
अब अपने लक्ष्यों को साधो!
क्यूँ छोटा करते अपना मन,
है बहुत सुन्दर ये जीवन!
जीवन मे हम सबको यूँ ही बस आना है,
थोडा ठहर करके फिर सबको जाना है.
थोडा-सा हँसना, और् थोडा-सा रोना है,
अपने-अपने कर्म हम सबको करना है.सदियों से आज तक सबने ही माना है,
निश्चित है सब यहाँ! ना कुछ बदलना है!
जीवन मे हम सबको यूँ ही बस आना है,
थोडा ठहर करके फिर सबको जाना है!!
चिट्ठाजगत से जुड़े दो साल से अधिक के समय में यह सबसे ब्दुखद सूचना है कि हमारे ब्लागर परिवार के एक सदस्य की मृत्यु हुई। इसके पहले धनंजय शर्मा का निधन हुआ था जिनके कि निधन की खबर हम लोगों तक देर में पहुंच पायी थी। रचनाजी की बड़ी बिटिया के इस असमय निधन से हम सभी बहुत दुखी हैं।
अपने तमाम साथियों के साथ मैं कामना करता हूं कि रचनाजी और उनके परिवार के लोग इस कठिन समय में हौसला बनाये रखें। अपनी एक पोस्ट में रचनाजी ने एक बच्ची सीमा को हौसला बंधाते हुये लिखा था-सीमा तुम जहाँ कहीं भी हो मुझे याद आती हो!जितनी हिम्मत तुममे तब थी उतनी ही बनाये रखना….एक दिन तुम जरूर शिक्षिका बन जाओगी
मैं कामना करता हूं कि इस कठिन समय में ईश्वर उनके परिवार को हिम्मत दे ताकि वे इस दुख के अथाह सागर से उबर सकें।
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
आलोक पुराणिक
आपने बिलकुल सही कहा कि पूर्वी हमेशा अपनी माँ को लिखने के लिए प्रेरित करती थी । अपनी उम्र से ज्यादा परिपक्वता पाई थी उसने । उसके उदार व्यक्तित्व की एक झलक जो मुझे कुछ-कुछ याद है वो यहाँ बताना चाहूँगा।
She is 1 of da most decent,polite & understanding ppl i have met & i c her as a perfect disciple of Mahatma Gandhi.
कुछ लोग आपके जहन में हमेशा रहते हैं। रचना जी उनमें से हैं। उनकी चिट्ठियों में पर एक भावनात्मक स्तर रहता है जो कि आपको हमेशा उनकी शख्सियत से जोड़ता है। मेरी चिट्ठियों पर कभी कभी उनकी टिप्पणियां मिलती हैं। उनका हमेशा इंतजार भी रहता है। यह दुखद हादसा हुआ तब मैं कशमीर में था। लौट कर आया तब एक दो चिट्टियां लिखी। उनकी न तो कई टिप्पणी न ही कोई चिट्टी। फिर जीतू जी की पोस्ट। तब समझ में आया।
मैंने कल ही रचना जी की पॉडकास्ट सुना। चलना ही जीवन है। आशा है रचना जी पुनः चलना शुरू करेंगी।
उस पार गगन मदमाती सी बाँहों में,
जो तबसे मेरी याद में आकुल बैठी हैं,
जब आया पहली बार था मैं इस राहों में।
ईश्वर उनके हृदय में इस दुख को सहने की शक्ति बनाये रखे.. ये मेरी प्रार्थना है..
इस प्यारी बच्ची के बारे में जानने के बाद लगता है कि जितने सह्रदय लोग होते हैं वे अपनों को छोड़कर इसी तरह असमय चले जाते हैं, या फिर उपर वाला उन्हें अपने पास बुला लेता है।
जब ले ही लेना था तो फिर दिया ही क्यों? क्यों मोह जगाया?
हमारी हार्दिक संवेदनाएं
ईश्वर की गोद में.. गहरी नींद.. हम सब सो जाएंगे..इस नींद में .. कोई जल्दी तो कोई देर से.. क्या कह सकता हूं मैं.. बस यादें रह जाएंगी.
उनकी माँ से अब क्या सहानुभूति जताऊँ ?
ईश्वर भी कभी कभी कैसी निष्ठुरता करते हैँ …
…हे राम!