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…और ये फ़ुरसतिया के तीन साल
By फ़ुरसतिया on August 21, 2007
और ये लो फ़ुरसतिया के तीन साल पूरे हो गये।
तीन साल पहले रवि रतलामी के लेख ब्लाग-अभिव्यक्ति का नया माध्यम के झांसे में आकर लिखना शुरू किया था। धीरे-धीरे रमता गया,जमता गया। धंसना और फ़ंसना भी होता गया।
पहले हफ़्ते में एक लेख नहीं लिख पाते थे, अब सोचते हैं रोज एक ठेल दें।
इधर लिखने वाले बढ़ते गये। लेखकों में विविधता आयी है। अलग-अलग रुचि के लोग शामिल हुये हैं ब्लाग जगत में। कई लोग तो इतना रुचिकर लिखते हैं कि उनका लिखा पढ़ना अपने आप में एक शानदार अनुभव है।
इधर शामिल हुये लोगों में ज्ञानदत्तजी और आलोक पुराणिकजी तो सबेरे की चाय के साथी हो गये हैं।
ब्लागजगत में अभी भी कवियों की बहुतायत है। तमाम लोग अच्छी और बहुत अच्छी कवितायें लिखते हैं। लेकिन मेरी कविता की समझ उत्ती अच्छी नहीं है। यह भी लगता है कि जीवन जितना जटिल, बहुस्तरीय होता जा रहा है कवितायें उसके हिसाब से इकहरी और कम प्रभावी सी हैं। मुझे यह लगता है कि अपने ब्लाग जगत में लिखी जा रही कवितायें , कवितायें कम कविता के लिये कच्चा मसाला ज्यादा हैं।
यह मेरी अपनी समझ है। संभव है मुझे उतनी जानकारी न हो। इसको कविगण मेरी अल्पज्ञता समझ कर हंसी में उड़ा दें और अगली कविता लिखने में जुट जायें।
समीरलाल जैसे चंपू लेखक अपवाद हैं जो कविता के दरवाजे से घुसे और गद्य के दरवाजे पर भी अपना तंबू तान के बैठ गये। चंपू लेखक से बुरा मानने की जरूरत नहीं है। यह हम कल ही संस्कृत की कक्षा नौ की किताब में पढ़े कि जो गद्य और पद्य दोनों में लिखता है वह
चंपू लेखक कहलाता है।
चंपू लेखक कहलाता है।
वैसे समीरलाल जी शायद कुछ दिन और कविता-कानन में ही टहलते रहते अगर हम उनको गद्य लिखने के लिये अनुरोध न करते।
गद्य तो प्रियंकरजी भी बड़ा धांसू च फ़ांसू लिखते हैं। ऐसा बहता हुआ जिसकी तारीफ़ के लिये ही शायद लिखा गया है-बड़ा मुश्किल है जीवन की कहानी कहना/जैसे बहते हुये पानी पर पानी लिखना। लेकिन अफ़सोस अभी तक इनका ज्यादातर गद्य केवल टिप्पणियों के रूप में सामने आया है या फ़िर किसी की पोल खोलू लेखन के रूप में।
यह कुछ ऐसी ही बात है जैसे कोई मारवाड़ी अपनी दुकान में मौजूद शानदार कलम का इस्तेमाल अपनी पीठ खुजाने के लिये करे। इससे पहले कि उनको उनके अपराध की कोई सजा मिले, उनको संभल जाना चाहिये।
यह कुछ ऐसी ही बात है जैसे कोई मारवाड़ी अपनी दुकान में मौजूद शानदार कलम का इस्तेमाल अपनी पीठ खुजाने के लिये करे। इससे पहले कि उनको उनके अपराध की कोई सजा मिले, उनको संभल जाना चाहिये।
तमाम और लेखक हैं जिनको पढ़ना अपने आप में खुशनुमा अहसास है। प्रमोदसिंह की शब्दों की ड्रिबलिंग देखकर ताज्जुब होता है। पतनशील लबादा ऒढ़कर जो गद्य वे लिखते हैं उसकी पड़ताल करने वाला भी कोई होना चाहिये। हमारे ब्लाग जगत में विषय-वस्तु की तारीफ़ करने वाले तमाम लोग हैं लेकिन भाषा, कहने के अंदाज पर अपने विचार रखने वाले अभी आने बाकी हैं।
रवीशजी के संस्मरण लगभग सभी को अपने लगते हैं। अनामदास, हिंदीब्लागर,उन्मुक्तजी ,जगदीश भाटिया, संजीव ,संजीत, अरुण अरोरा, बिहारी बाबू, शुऐब और तमाम साथी वास्तव में ऐसा लिखते हैं जिनका पढ़ने के लिये और तमाम काम स्थगित किये जा सकते हैं। संजय तिवारी न दैन्यम न पलायनम के लेख नयी सोच देते हैं। सृजन शिल्पी सोचते बहुत हैं और इसीलिये सोचनीय हद तक कम लिखते हैं। शब्दों की डगर के माध्यम से नित नये अंदाज में पता चलता है।
महिला ब्लागरों में प्रत्यक्षाजी तो स्थापित लेखिका भी बनने की राह पर चल डगरी हैं। इसके अलावा बेजीजी, धुधुतीबासाती, सुनीताशानू, मानोशी, रचनाबजाज,रचनासिंह आदि भी महिला ब्लागरों का प्रतिनिधित्व शानदार तरीके से करती हैं। सुजाताजी(नोटपैड) अपने बिंदास लेखन से और नीलिमाजी अपने विचार लगातार शानदार तरीके से लिखती रहीं हैं।
अपने साथियों देबाशीष, जीतेंन्द्र, रविरतलामी जैसों के बारे में क्या कहें! उनकी तारीफ़ इतनी कर चुके कि हम ही बोर हो गये। देबाशीष ने पिछले दिनों ब्लागजगत की प्रवृत्ति पर जो लेख लिखा था वह अपने आप में एक दस्तावेज है। स्वामीजी तो लगता है रमणकौल तथा अतुल अरोरा का साथ पकड़ लिये, दिखते नहीं।
न दिखने वालों में आशीष, निधि और रत्नाजी भी शामिल हैं। रचना बजाज शायद कुछ दिन बाद फ़िर सक्रिय हों।
लिस्ट बहुत लम्बी है। यह नामपुराण अतंत है। अत: इसे छोड़ते हुये दूसरी बातें की जायें। समय कम है। लेख भी लंबा हो जायेगा न! मेरा विचार है कि सारे ब्लागर साथियों के लेखन पर परिचयात्मक लेख लिखूं।
पिछले दिन ब्लागजगत के विवाद के भी रहे। तमाम विवाद उछले, लोगों ने संवाद उछाले, प्रतिवाद हुये।
सबसे ज्यादा विवाद नारद को लेकर रहे। वह सब ब्लागजगत में दर्ज है। उस विवाद के बहाने तमाम लोगों के विचार सामने आ गये। आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार का मानना है कि हिंदी ब्लाग जगत में गाली गलौज शुरू हो गया। यह इस बात का सूचक है कि हिंदी ब्लागजगत अंग्रेजी के ब्लागजगत जैसा पापुलर होने की राह पर है।
जगदीश भाटियाजी ने अपने एक लेख में पूछा था कि ब्लाग बढ़ रहे हैं लेकिन पाठक कम हो रहे हैं। मुझे लगता है कि ऐसा इसलिये हुआ कि पाठक वही हैं जो ब्लागर हैं। ब्लाग बढ़ने के साथ उनके पास विकल्प बढ़े हैं। अत: लोग अपनी पसंद का पढ़ते हैं। पाठक शायद तभी बढ़ें जब गैर लेखक लोग भी पाठक की हैसियत से जुड़ें।
बातें बहुत सी हैं। लेकिन जब भी मैं स्मृतियों की बात करता हूं तो लोग टोंकने लगते हैं कि कहां चले गये पुराने में। इसलिये फिर कभी। अभी आफिस जाना है। इस बीच अगर आपको हमसे कोई शिकायत हो तो उसे रवि रतलामी के खाते में डालें क्योंकि उन्हीं के उकसावे पर लिखना शुरू किया। जिनके नाम जिक्र करने छूट गये वे केवल समयाभाव के कारण।
Posted in सूचना | 44 Responses
किसी पुराने चिट्ठाकार से बिना लगा लपेट विवरण की अपेक्षा है. अभी और इंतजार करते हैं.
तीन साल यूं बहुत होते हैं, पर तीन साल में हिंदी ब्लागिंग एक हजार ब्लागरों का आंकड़ा पार करने के आसपास पहुंच गयी है। हिंदी ब्लागों के पाठक सिर्फ ब्लागर ही ना हों, दूसरे भी हों, इस पर कुछ काम होना चाहिए। एक परिचर्चा, डिबेट, इस पर चलायी जानी चाहिए कि कैसे हिंदी ब्लागिंग के पाठकों की संख्या बढ़ायी जाये। कहां से कैसे, घेर बटोर कर पाठक लाये जायें। यह विषय खासा महत्वपूर्ण है। किसी फुरसत में इस पर भी सोचिये।
हिंदी चिट्ठाजगत के संस्मरण न सही अगले तीन सालों में हिंदी चिट्ठे कैसे होंगे इस बारे में अपने अनुभव से जरूर लिखें।
@जगदीश भाटिया, सस्ते में इसलिये कि सही में आफिस जाते हुये लिखा गया। संस्मरण आगे लिखे जायेंगे। वर्डप्रेस वाले जन्मदिन हमारे साथ मना रहे हैं, वाह! क्या संयोग है!
@उन्मक्तजी, बधाई के लिये शुक्रिया, शुभकामनाऒं के लिये आभार!
@नितिन बागला, हार्दिक धन्यवाद!
जमे रहें, मजे में रहें
@मसिजीवी, मुबारकबाद स्वीकारी। आप धन्यवाद संभालो।
@श्रीश शर्मा, बात मानने के लिये आभार!
चौथा साल शुरू हो गया और संकेत मिल रहे हैं कि साबूनुमा लेख चौथे बरस में नहीं दिखेंगे। उक्त गुटखालेख से ही काम चलेगा।
@नीरजदीवान, धन्यवाद! हां अब चाचा चौधरी अपना रंग दिखायेंगे।
@समीरजी, बहुत-बहुत बधाई के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद!
स्मूथ रहता मन ! आपकी बात मानी हमने, कबर किया जायेगा सबको कबर किया जायेगा
कैसा संयोग है कि हिन्दी चिठ्ठाजगत में तीन साऽऽऽल पूरे हो जाने में ब्लॉगर बुजुर्गों में गिना जाने लगता है। यानि आप भी अब…..
@सागर चन्द नाहर, धन्यवाद! हम बुजुर्गियत से इन्कार करते हुये मौज लेने लायक बने रहना चाहते हैं।
आशा है भविष्य में भी आप फ़ुरसत से ऐसे ही लेख लिखते रहेंगे और हम फ़ुरसत से बांचते रहेंगे…
@भुवनेश, बधाई के लिये धन्यवाद! अब ये झेलना-झिलाना तो चलता ही रहना चाहिये। है कि नहीं।
@श्रीधरजी, आपकी मुबारकबाद का दिल से शुक्रिया। आप लिखना भी शुरू करिये न!
३ साल पूरे करना बहुत लँबा अँतराल होता है !
और हिन्दी ब्लोग जगत के सभी साथी, आपकी विलक्षण शैली के,ज़बर्दस्त, प्रशँसक हैँ.
बधाई आपको और आगामी वर्षोँ मेँ , अबाध गति से लेखन कार्य चलता रहे उसकी शुभ कामना –
स स्नेह,
– लावण्या ( कोलम्बस निकले थे भारत की खोज मेँ पर पहुँच गये, अमरीका !
तीन साल बिता दिए आपने इस तिलिस्म में….पूरी ऐयारी आ गई है, सीख ली है आपने।
हमारी पहली पोस्ट पर आपकी ही टिप्पणी आई थी आज से साढ़े पांच माह पहले और आपने जो उक्ति हमने हैडर में लगाई है उसके हिज्जे दूरुस्त कराने का संकेत किया था। तब से आज तक आपका साथ खुशनुमा है। ईश्वर करे चलता रहे ये सफर । एकबार फिर बधाइयां।