Sunday, October 28, 2007

आलोक और जगदीश भाटिया के चिट्ठे ब्लागवाणी पर वापस

http://web.archive.org/web/20140419212601/http://hindini.com/fursatiya/archives/358

आलोक और जगदीश भाटिया के चिट्ठे ब्लागवाणी पर वापस

कल संजय बेंगाणी की पोस्ट से जनता को जानकारी हुयी कि ब्लागवाणी से आदि चिट्ठाकार आलोक और जगदीश भाटिया का चिट्ठा हट गया है। इसके पहले विपुल जैन का चिट्ठा भी हटा था। इसके पीछे ब्लागवाणी और चिट्ठाजगतकी आपसी तनातनी बताई गयी। यह भी ब्लागवाणी से जुड़े लोगों के चिट्ठे भी चिट्ठाजगत से हटाये गये (जिसके लिये आलोक ने बताया कि चिट्ठाजगत से कोई चिट्ठे नहीं हटाये गये।)
बहरहाल, कल और आज मैंने मैथिलीजी से तथा आलोक से भी बात की। मैथिलीजी ने तुरन्त आलोक और जगदीश भाटिया के चिट्ठे ब्लागबाणी में जोड़ने का आश्वासन दि्या। प्रदीप जैन जी के चिट्ठे के बारे में उनका कहना था कि उन्होंने फोटोब्लाग होने के कारण इसे रखा नहीं/हटा दिया। ब्लागवाणी में उनके भी फोटो ब्लाग शामिल नहीं हैं। मुझे लगता है कि उनके इस कदम से तमाम अनावश्यक बयानबाजी थम जायेगी।
ब्लागवाणी से जुड़े चिट्ठों के बारे में हालांकि आलोक का कहना है कि वे चिट्ठाजगत से हटाये ही नहीं गये हैं। किसी भी किसिम की परेशानी होने पर तुरन्त आवश्यक कार्यवाही की जायेगी।
मैं ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत के संचालकों का आभारी हूं कि इस बारे में उन्होंने मेरी बात को खुले मन से सुना।
इस समय हम लोगों को यह भी सोचना चाहिये कि हम अपनी नीतियां और नियम कैसे बनायें ताकि इस तरह की घटनायें बचाई जा सकें। सभी से अनुरोध है कि इस बारे में ठंडे मन से ईमानदारी से सोचते हुये अपनी नीतियों और व्यवहार पर विचार कर सकें तो करें। यह भी सोचें कि नेट भी ऐसा ही माध्यम है जहां देर-सबेर सब बातें खुल ही जातीं हैं।
आखिर ब्लाग नहीं होगा तो ब्लाग संकलक क्या करेगा। है कि नहीं ? :)

12 responses to “आलोक और जगदीश भाटिया के चिट्ठे ब्लागवाणी पर वापस”

  1. RC Mishra
    सभी को बधाई हो, :)
  2. kakesh
    बोलो भीष्म पितामह महाराज जी जय.
  3. Cyril Gupta
    ब्लागवाणी ब्लाग्स को स्वयं के विवेक पर जोड़ता है पर इसे ब्लागर की इच्छा के विपरीत कतई जोड़े नहीं रखता.
    श्री जगदीश भाटिया का चिठ्ठा ब्लागवाणी से हटाया नहीं गया था बल्कि श्री जगदीश भाटिया ने स्वयं ई-मेल की थी कि ब्लागवाणी पर गंदे ब्लाग्स शामिल है इसलिये उनके ब्लाग को ब्लागवाणी से हटा दिया जाय. श्री जगदीश भाटिया की ओर से ब्लाग्स पुन: शामिल करने के लिये स्वीकारोक्ति की प्रतीक्षा है.
    आपकी इच्छानुसार मान्यवर आलोक का ब्लाग ब्लागवाणी में शामिल कर लिया गया है.
  4. rachna
    good keep meditating soon we may need more individuals like u because the more the number of bloggers , the more the number of aggregators , the more will be the number of fights . i think it would be best if we can make a rule and specify and categorize names whose blogs CANNOT be removed ever from any aggrgator . if old and reputed bloggers are feeling so much space crunch , imagine those bloggers who are waiting in que to be registered .
    but great work on your part sir
  5. श्रीश शर्मा
    है :)
    खुशी है कि मामला खत्म हो गया। मैथिली जी एवं आलोक भैया का आभार कि उन्होंने हम सब की बात मान कर उचित निर्णय लिया।
  6. राजीव
    शायद इसे ही कहते हों – सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीँ कहते!
  7. संजय बेंगाणी
    चलिये भाई अंततः सब सही हो गया. फिर से हम साथ साथ है. बोलो ब्लॉगवाणी की जै. चिट्ठाजगत की जै.
  8. arun arora
    हम भी बस यही कहेगे “बोलो भीष्म पितामह महाराज जी जय.” वैसे ये याद दिलादू ये पितामह तभी आंख खोलते है. जब कौरव पांडवो की आंख मे डंडा कर पांडवो से बचते फ़िर रहे होते है..हमने तो पितामह को मान दे दिया लेकिन आलोक जी अब तो झुठ मत बोलिये कहे तो आपकी मेल छाप दू….?
  9. समीर लाल
    सभी मित्रों को बहुत बहुत बधाई.
    ऐसे ही सौहार्दपूर्ण वातावरण बना रहे, यही कामना है.
    अनूप जी का हमेशा की तरह बहुत आभार.
  10. फुरसतिया » फ़ुरसतियाजी आप चुगद हैं
    [...] मैंने ब्लागवाणी के मैथिलीजी से इस बारे में अनुरोध किया कि वे आलोक का ब्लाग जोड़ दें। उन्होंने मेरे कहने पर उनका ब्लाग जोड़ दिया। जगदीश भाटियाजी का ब्लाग भी जोड़ दिया। हालांकि जगदीश भाटियाजी बहुत उत्सुक न थे। इस आशय की टिप्पणी भी की थी उन्होंने मेरे ब्लाग में लेकिन मैंने उसे शामिल नहीं किया और उनसे अनुरोध किया कि वे ब्लागवाणी को अपना ब्लाग शामिल करने की अनुमति देते हुये मेल लिख दें। मेरे अनुरोध पर उन्होंने ब्लागवाणी के संचालक को मेल भेजी और उन्होंने उनका ब्लाग जोड़ लिया। [...]
  11. अजित वडनेरकर
    उत्तम।
  12. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] [...]

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