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ब्लाग की हाफ़ लाइफ़ का हिंदी अनुवाद
By फ़ुरसतिया on May 27, 2008
ज्ञानजी आज साइंस पढ़ाने लगे। कुछ -कुछ मास्टर मोतीराम की तरह। आज का विषय रहा ब्लाग की हाफ़ लाइफ़!
इस लेख का हिंदी अनुवाद कुछ यों होगा।
संसार में तमाम तरह के रेडियो एक्टिव पदार्थ पाये जाते हैं। ब्लाग भी उनमें से एक है। ब्लाग से पोस्टें रेडियो एक्टिव किरणॊं के रूप में निकलती हैं। कुछ किरणें हानिकारक होती हैं कुछ लाभदायक। कुछ किरणें बस ऐं-वैं टाइप होती हैं।
ब्लाग ऐसा रेडियो धर्मी पदार्थ होता है जिसे चलाने के लिये एक ब्लागर की आवश्यकता होती है। जैसे एक्सरे के लिये रेडियोलाजिस्ट चाहिये होता है वैसे ही ब्लाग के लिये ब्लागिस्ट चाहिये होता है। जैसे रेडियोलाजिस्ट अच्छा होने से एक्सरे अच्छा आता है वैसे ही ब्लागिस्ट अच्छा होने से ब्लाग से उत्सर्जन होता है। जैसे खराब रेडियोलाजिस्ट कामचोरी के चलते एक्सरे मशीन खराब करके सुर्ती मलता है, पान-मसाला खाता है और ऐंडि़याता रहता है वैसे ही ब्लागिस्ट तमाम तरह के बहाने बनाकर ब्लागिंग से कतराता है। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो खाली इसीलिये ब्लाग उत्सर्जन कम कर देते हैं ताकि उनको समथिंग डिफ़रेंट टाइप का माना
कुछ ब्लागिस्ट अपनी ब्लाग मशीन मोहल्ले की शुरुआती गली में रखते हैं। जो आता है उसका एक्सरे उतार देते हैं। अगर फ़ीस चुकाने से कम रहा तो उसका गमछा उतार लेते हैं। इज्जत तो वे मशीन पर लेटाते ही उतार देते हैं। उनका मानना है आदमी जितना हलका रहे उतना अच्छा।
कुछ अगड़म -बगड़म टाइप के ब्लागिस्ट क्या करते हैं कि इधर-उधर के एक्सरे की कापी करके आपको दिखा देते हैं। कहते हैं इस एक्सरे ने टाप किया था जी एक्सरे इम्हान में। आप इसे अपना ही मानो। लोग माले मुफ़्त दिले बेरहम समझ कर मान लेते हैं।
कुछ लोग अपनी एक्सरे मशीन आसमान में उड़ाते हैं। ऊपर से ही फोटो खींचते हैं। गूगल अर्थ से सेटिंग है। फ़्री फोटो बांटते हैं। टिप अलग से। लोग मस्त रहते हैं। सोचते हैं ऊपर वाला भेजिस है। क्या फोटो है।
जिसकी ब्लागिस्ट की दुकान कम चलती है वह अपनी दुकान बन्द करने की धमकी दे देता है। साथ ब्लागिस्ट अपने कुछ ग्राहक उसके यहां भेज देते हैं। जाओ भैया – शिवकुमार की दुकान से एक्सरे करवा लो। बेचारे दुखी हैं। भुनभुनाता अलग होगा- कहीं ऐसे दुकान चलती है। लिखेंगे डायरी कलमुंहे दुर्योधन की और सोचेंगे ग्राहक आयें। ग्राह्क दुर्योधन की डायरी काहे पढ़ेगा। खुद बनेगा नहीं दुर्योधन ?
कुछ फ़ुरसतिया टाइप के ब्लागर होते हैं उनको देखकर लगता है कि शायद आंख के अन्धे नाम नयन सुख इनके लिये ही खास तौर पर बनाया गया है। बात फ़ुरसत फ़ुर्सत की करते हैं और हर बार रोते हैं टाइम नहीं है। इनके समय की कमी के मगरमच्छी आंसू देखकर वे वीर बालक याद आते हैं जो महिलाओं / वंचितों की लड़ाई लड़ते हुये उनकी इज्जत उतारते रहते हैं ताकि वे हल्की रहें और प्रगति की राह में फ़ुर्र-फ़ुर्र उड़ें। इसे अंग्रेजी में कहते हैं- आधुनिक समाज का द्बंदात्मक प्रगतिवाद।
देखिये कित्ते मन से हम पढ़ा रहे थे आपको। लेकिन कोई शैतान घंटा बजा दिया। कायदे से पढ़ाने भी नहीं देते। इसीलिये देश में शिक्षा का स्तर हिंदी ब्लागिंग के स्तर से होड़ ले रहा है।
बहरहाल, हम बड़े दुखी मन से जा रहे हैं। कभी फिर बतायेंगे। सुनियेगा?
फ़ीड बैक बताइये कैसा लगा ये पाठ?
इस लेख का हिंदी अनुवाद कुछ यों होगा।
संसार में तमाम तरह के रेडियो एक्टिव पदार्थ पाये जाते हैं। ब्लाग भी उनमें से एक है। ब्लाग से पोस्टें रेडियो एक्टिव किरणॊं के रूप में निकलती हैं। कुछ किरणें हानिकारक होती हैं कुछ लाभदायक। कुछ किरणें बस ऐं-वैं टाइप होती हैं।
ब्लाग ऐसा रेडियो धर्मी पदार्थ होता है जिसे चलाने के लिये एक ब्लागर की आवश्यकता होती है। जैसे एक्सरे के लिये रेडियोलाजिस्ट चाहिये होता है वैसे ही ब्लाग के लिये ब्लागिस्ट चाहिये होता है। जैसे रेडियोलाजिस्ट अच्छा होने से एक्सरे अच्छा आता है वैसे ही ब्लागिस्ट अच्छा होने से ब्लाग से उत्सर्जन होता है। जैसे खराब रेडियोलाजिस्ट कामचोरी के चलते एक्सरे मशीन खराब करके सुर्ती मलता है, पान-मसाला खाता है और ऐंडि़याता रहता है वैसे ही ब्लागिस्ट तमाम तरह के बहाने बनाकर ब्लागिंग से कतराता है। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो खाली इसीलिये ब्लाग उत्सर्जन कम कर देते हैं ताकि उनको समथिंग डिफ़रेंट टाइप का माना
कुछ ब्लागिस्ट अपनी ब्लाग मशीन मोहल्ले की शुरुआती गली में रखते हैं। जो आता है उसका एक्सरे उतार देते हैं। अगर फ़ीस चुकाने से कम रहा तो उसका गमछा उतार लेते हैं। इज्जत तो वे मशीन पर लेटाते ही उतार देते हैं। उनका मानना है आदमी जितना हलका रहे उतना अच्छा।
कुछ अगड़म -बगड़म टाइप के ब्लागिस्ट क्या करते हैं कि इधर-उधर के एक्सरे की कापी करके आपको दिखा देते हैं। कहते हैं इस एक्सरे ने टाप किया था जी एक्सरे इम्हान में। आप इसे अपना ही मानो। लोग माले मुफ़्त दिले बेरहम समझ कर मान लेते हैं।
कुछ लोग अपनी एक्सरे मशीन आसमान में उड़ाते हैं। ऊपर से ही फोटो खींचते हैं। गूगल अर्थ से सेटिंग है। फ़्री फोटो बांटते हैं। टिप अलग से। लोग मस्त रहते हैं। सोचते हैं ऊपर वाला भेजिस है। क्या फोटो है।
जिसकी ब्लागिस्ट की दुकान कम चलती है वह अपनी दुकान बन्द करने की धमकी दे देता है। साथ ब्लागिस्ट अपने कुछ ग्राहक उसके यहां भेज देते हैं। जाओ भैया – शिवकुमार की दुकान से एक्सरे करवा लो। बेचारे दुखी हैं। भुनभुनाता अलग होगा- कहीं ऐसे दुकान चलती है। लिखेंगे डायरी कलमुंहे दुर्योधन की और सोचेंगे ग्राहक आयें। ग्राह्क दुर्योधन की डायरी काहे पढ़ेगा। खुद बनेगा नहीं दुर्योधन ?
कुछ फ़ुरसतिया टाइप के ब्लागर होते हैं उनको देखकर लगता है कि शायद आंख के अन्धे नाम नयन सुख इनके लिये ही खास तौर पर बनाया गया है। बात फ़ुरसत फ़ुर्सत की करते हैं और हर बार रोते हैं टाइम नहीं है। इनके समय की कमी के मगरमच्छी आंसू देखकर वे वीर बालक याद आते हैं जो महिलाओं / वंचितों की लड़ाई लड़ते हुये उनकी इज्जत उतारते रहते हैं ताकि वे हल्की रहें और प्रगति की राह में फ़ुर्र-फ़ुर्र उड़ें। इसे अंग्रेजी में कहते हैं- आधुनिक समाज का द्बंदात्मक प्रगतिवाद।
देखिये कित्ते मन से हम पढ़ा रहे थे आपको। लेकिन कोई शैतान घंटा बजा दिया। कायदे से पढ़ाने भी नहीं देते। इसीलिये देश में शिक्षा का स्तर हिंदी ब्लागिंग के स्तर से होड़ ले रहा है।
बहरहाल, हम बड़े दुखी मन से जा रहे हैं। कभी फिर बतायेंगे। सुनियेगा?
फ़ीड बैक बताइये कैसा लगा ये पाठ?
Posted in मेरी पसंद | 13 Responses
ज्ञान दद्दा ने ठीक से रेडियो एक्टिविटी नहीं पढी, आज पता चला है | हमे तो पूरा मसौदा मिल गया है एक पोस्ट ठेलने का, आप भी इन्तजार करें
“जिसकी ब्लागिस्ट की दुकान कम चलती है वह अपनी दुकान बन्द करने की धमकी दे देता है। साथ ब्लागिस्ट अपने कुछ ग्राहक उसके यहां भेज देते हैं। जाओ भैया – शिवकुमार की दुकान से एक्सरे करवा लो। बेचारे दुखी हैं। भुनभुनाता अलग होगा- कहीं ऐसे दुकान चलती है।”
ऐसा लिखने के लिए चांपू आब्सेर्वेशन कहाँ से लाते हैं
बड़ी बढ़िया फोटो खींची है.
बाकी सब सुंदर जमाये है.
पाठ तो बहुत शानदार था. अगली बार पाठ शुरू कीजियेगा तो शैतान लोगों से घंटा छुपा कर रख लीजियेगा….:-)
हम क्या करें इलाहाबाद और कानपुर जैसा हवा पानी हमको मिलते ही नहीं ससुर ।