http://web.archive.org/web/20101229042919/http://hindini.com/fursatiya/archives/446
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
पूछिये फ़ुरसतिया से- एक चिरकुट चिंतन
हमारी पिछली पोस्ट में तमाम लोगों ने आग्रह किया कि हम पूछिये फ़ुरसतिया से शुरू करें। कुछ लोगों ने सवाल भी भेज दिया। जीतेंन्द्र ने
पुराने अनुत्तरित सवालों का हवाला दिया है। जैसा कि होता है इस तरह के काम
एक तात्कालिक चिरकुटई के तहत ही किये जाते हैं। लोग एकाध सवाल पूछते हैं
फिर कोई सवाल पूछता नहीं या जबाब नहीं सूझते। पूछिये फ़ुरसतिया में हमारे
सवालों का संपादन देबाशीष
करते थे। सौंदर्यीकरण भी उनके पल्ले ही था। देबू कभी व्यक्तिगत सवालों को
लिफ़्ट नहीं देने देते थे। एक बार किसी ने सवाल जीतेंन्द्र के बारे में पूछा
था। हमने ‘टनाटन’ और ‘चौचक’ जबाब बनाया था लेकिन वह देबू की संपादन के
कैंची के नीचे आ गया। संपादक वैसे भी बड़ी बकैत चीज होता है।
बहरहाल अंजाम जो होगा सो देख जायेगा। फ़िलहाल तो पूछिये फ़ुरसतिया का फ़ीता काट रहे हैं। यह कालम अनियमित रहेगा लेकिन कोशिश यह रहेगी कि यह अनियमितता नियमित रूप से की जा सके। चूंकि काम ही चिरकुटई का है सो शुरूआत भी वहीं से।
सवाल: नितिन पूछते हैं- “चिरकुट” का मतलब बतायें? यह महान शब्द कब और कैसे इस दुनिया में आया?
जबाब: भैया नितिन चिरकुट का मतलब वही होता है जो आप समझ रहे हैं। चिरकुट का शाब्दिक अर्थ जैसा कि समांतर कोश में बताया गया है होता है- चीथड़ा,चिथड़ा, गूदड़, चित्थड़, लत्ता ,जीर्ण परिधान, फ़टा पुराना कपड़ा, कथरी, गड़गूदड़!
इससे साफ़ जाहिर होता है कि यह मामला कपड़े-लत्ते से संबंधित है। अब सवाल उठता है कि अगर मामला कपड़े-लत्ते से संबंधित है तो फ़िर आदमियों को चिरकुट क्यों कहा जाता है? अच्छे खासे जवान-जहान आदमी की तुलना लोग फ़टे पुराने कपड़े से क्यों करते हैं? शायद ऐसा संगति दोष के कारण होता होगा। आदमी कपड़े पहनता है। जब कभी कपड़ा चिरकुट हो गया तो उसको पहनने वाला उससे बड़ा चिरकुट!
लत्ता वाली बात से ऐसा संदेह होता है कि कहावत -तन पर नहीं लत्ता , पान खायें अलबत्ता। किस चिरकुट को नीचा दिखाने की जलनशील भावना के तहत ही कही गयी होगी।
चिरकुटई को लोगो छुद्र हरकतों से जोड़कर देखते हैं। जो लोग छुद्र हरकते करते हैं उनको लोग चिरकुट की उपाधि से नवाज देते हैं। इसमें एक अच्छाई है कि नोबल पुरस्कारों की तरह साल भर कयास लगाने की जरूरत नहीं होती कि अगली नोबल नकेल किसके डाली जायेगी। जिसको मन आये उसको आप चिरकुट उपाधि से नवाज सकते हैं। चिरकुटई किसी तर्क की भी मोहताज नहीं है। दूसरा भले की कितना अकल की बात करे लेकिन किसी को चिरकुट कहने का सर्वाधिकार चिरकुट की उपाधि देने वाले के हाथ में रहता है। एक उदाहरण से शायद यह बात साफ़ हो सके। अब जैसे अमेरिका नरेश बुश जी ने अपनी और तमाम अमेरिका वासियों की नजर में यह बहुत मार्के की बात कही थी कि भारत के लोग पेटू होते हैं इसीलिये दुनिया में अनाज की कमी है। लेकिन हम इसे निहायत चिरकुटई का बयान मानते हैं।
चिरकुट व्यक्ति छुद्र हरकतें क्यों करता है? इसके पीछे कारण तलाशने पर ज्ञात हुआ कि चिरकुट जो होता है वह संतोषी टाइप का जीव होता है। वह छोटी-छोटी हरकतों (जिसे हिंदी में छुद्र हरकतें कहा जाता है) में ही संतोषम परमम सुखम की तर्ज प्र खुश हो लेता है। उसके यह हवस नहीं होती कि बड़े-बड़े कामों में अपनी टांग फ़ंसाये। वस्तुत: देखा जाये तो चिरकुट व्यक्ति अपने को छुद्र को साबित करके दूसरे को महान साबित करने के मौके देता है। वह परमार्थी होता है। बड़े-बड़े काम करने की भावुकता से वह अपने को बचा के रखता है। इससे उसकी अपनी ऊर्जा तो बचती ही है समाज की भी ऊर्जा बचती है। क्योंकि देखा गया कि जित्ते भी महापुरुष विदा हुये वे अपने तमाम अधूरे काम पीछे छोड़ गये। अब आप समझिये कि महान व्यक्ति ने महान काम शुरु किया और उसे आधा छोड़ दिया तो जितनी ऊर्जा आधे काम में लगायी उतनी तो बरबाद हो गयी न! तो चिरकुट व्यक्ति वस्तुत: ऊर्जा सरंक्षक होता है। आप इस बात से अन्दाजा लगा सकते हैं कि दुनिया में अगर चिरकुट न होते तो ऊर्जा की कित्ती कमी कर दी होती महान लोगों ने। एकदम कंगाली में आटा गीला टाइप!:)
चिरकुट व्यक्ति का उदाहरण देते हुये लोग भावुकता के पाले में चले जाते हैं। जैसे मेरे एक मित्र दूसरे के यहां दो घंटे बैठे रहे। उसको दोस्त ने चाय पिलाया न पानी उलटे अपना ब्लाग पढ़वा कर वाह-वाह और करवा ली। मित्र ने लौटकर बताया कि अजीब चिरकुट ब्लागर है। वह हालांकि सही हो सकता है लेकिन मुझे लगता है उसका निष्कर्ष भावुकता में लिया गया निर्णय है। उसे शायद यह नहीं पता उसका मित्र उसको दुनिया के बड़ी चिरकटई का सामना करने के किये समर्थ बना रहा है। छोटी-छोटी चिरकुटई को झेलने से ही बड़ी चिरकटई को झेलने का माद्दा बनता है जी।
छोटे चिरकुट और बड़े चिरकुट की बात को आगे बढ़ाते हुये कोई पुस्तक-पठित वीर कह सकता है -वैसे तो सब चिरकुट बराबर होते हैं लेकिन कुछ चिरकुट ज्यादा बराबर होते हैं।
चिरकुट के बारे में सवाल यह भी है कि यह महान शब्द कब और कैसे इस दुनिया में आया? इस सवाल से प्रश्नकर्ता के मन मे जो चिरकुटों के प्रति आदर का भाव है वह छलकता है। इस सवाल का आधिकारिक जबाब तो अजित भाई ही दे सकते हैं लेकिन आजकल वे पंगेबाज से उलझे हैं सो हम ही कोशिश करते हैं।
चिरकुट शब्द का अस्तित्व मेरे ख्याल से तब से दुनिया में आया जब से दुनिया में पहली चिरकुटई हुई होगी। दुनिया की पहली चिरकुटई जैसा कि सब जानते हैं उस समय हुई जब हमारे बाबा आदम और दादी हव्वा को एक जरा सा सेव खाने के कारण स्वर्ग से निकाल दिया गया। आप ही बताइये कि भला सेव खा लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया। सेव खाने की चीज होती ही है। लोग तो न जाने क्या-क्या खा जाते हैं। पैसा, रुपया, ईमान-धरम, कसम,देश तक लोग खा जाते हैं लेकिन हम लोग कब्भी उनसे कुछ नहीं कहते। वहां से जरा सा सेव खाने के कारण निकाल दिया गया। खाया भी कहां था भाई चखा था केवल। इत्ते पर वहां से उनका “हेवन आउट” बोले तो “स्वर्ग निकाला” हो गया। स्वर्ग बदर होते ही आदम और हव्वा ने आपस में जरूर कहा होगा – अजीब चिरकुट है यार। एक सेब के लिये यहां से निकाल दिया। उसी समय से चिरकुट शब्द अस्तित्व में आया होगा।
ब्लाग जगत में भी चिरकुटों की कमी नहीं है। हर चिरकुट अपने को दूसरे से बड़ा चिरकुट साबित करने में लगा है। तरह-तरह की चिरकुटई में जुटे हैं लोग। कोई खुल्लमखुल्ला तो कोई कम्बल ओढ़कर गुमनामी चिरकुटई करने में जी जान से जुटा है। लोग खुद हलकान है दूसरों को भी कर रहे है। कुछ तो इतने बड़े चिरकुट हैं कि ब्लागिंग को ही चिरकुटई कहते हैं। कहते भी हैं और करते भी हैं।
फ़िलहाल चिरकुटई पर इतना ही। शेर फ़िर। आपको पूछिये फ़ुरसतिया कैसा लगा। इस बारे में अपनी राय दीजियेगा। अगर कोई सवाल हो तो भेजियेगा। हम जबाब देने प्रयास करेंगे।
ये ऊपर वाला लोगो निरन्तर से लिया गया है। साभार भाई! फोकट में हम कुच्छ नहीं लेते।!
मेरी पसन्द
आधा जीवन जब बीत गया
वनवासी सा गाते रोते,
अब पता चला इस दुनिया में,
सोने के हिरन नहीं होते.
संबध सभी ने तोड़ लिये,
चिंता ने कभी नहीं तोड़े,
सब हाथ जोड़ कर चले गये,
पीङा ने हाथ नहीं जोड़े.
सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमें,
हम समझ गये पाषाणों में,
वाणी,मन,नयन नहीं होते.
मंदिर-मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकड़े,
उसने ही हाथ जलाये-जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकड़े.
जग जो कहना चाहे कहले
अविरल द्रग जल धारा बह ले,
पर जले हुये इन हाथों से
हमसे अब हवन नहीं होते.
–कन्हैयालाल बाजपेयी
चिरकुटई
किसी तर्क की भी मोहताज नहीं है। दूसरा भले की कितना अकल की बात करे
लेकिन किसी को चिरकुट कहने का सर्वाधिकार चिरकुट की उपाधि देने वाले के हाथ
में रहता है।
कुछ दिन पहले साथियों ने चाचा चौधरी की तर्ज पर कुछ सवाल-जबाब किये एक
ब्लाग में लेकिन वे भी बन्द हो गये। अब आप कहते हैं कि पूछिये फ़ुरसतिया से
शुरू करूं। तो इसका अंजाम भी शायद वही हो जो होता आया है कि कुछ दिन बाद यह
कालम शो पीस बनकर रह जाये। आखिर ऐसे ही थोड़ी न हम अपने को अधूरे कामों का
बादशाह कहते हैं।बहरहाल अंजाम जो होगा सो देख जायेगा। फ़िलहाल तो पूछिये फ़ुरसतिया का फ़ीता काट रहे हैं। यह कालम अनियमित रहेगा लेकिन कोशिश यह रहेगी कि यह अनियमितता नियमित रूप से की जा सके। चूंकि काम ही चिरकुटई का है सो शुरूआत भी वहीं से।
सवाल: नितिन पूछते हैं- “चिरकुट” का मतलब बतायें? यह महान शब्द कब और कैसे इस दुनिया में आया?
जबाब: भैया नितिन चिरकुट का मतलब वही होता है जो आप समझ रहे हैं। चिरकुट का शाब्दिक अर्थ जैसा कि समांतर कोश में बताया गया है होता है- चीथड़ा,चिथड़ा, गूदड़, चित्थड़, लत्ता ,जीर्ण परिधान, फ़टा पुराना कपड़ा, कथरी, गड़गूदड़!
इससे साफ़ जाहिर होता है कि यह मामला कपड़े-लत्ते से संबंधित है। अब सवाल उठता है कि अगर मामला कपड़े-लत्ते से संबंधित है तो फ़िर आदमियों को चिरकुट क्यों कहा जाता है? अच्छे खासे जवान-जहान आदमी की तुलना लोग फ़टे पुराने कपड़े से क्यों करते हैं? शायद ऐसा संगति दोष के कारण होता होगा। आदमी कपड़े पहनता है। जब कभी कपड़ा चिरकुट हो गया तो उसको पहनने वाला उससे बड़ा चिरकुट!
लत्ता वाली बात से ऐसा संदेह होता है कि कहावत -तन पर नहीं लत्ता , पान खायें अलबत्ता। किस चिरकुट को नीचा दिखाने की जलनशील भावना के तहत ही कही गयी होगी।
चिरकुटई को लोगो छुद्र हरकतों से जोड़कर देखते हैं। जो लोग छुद्र हरकते करते हैं उनको लोग चिरकुट की उपाधि से नवाज देते हैं। इसमें एक अच्छाई है कि नोबल पुरस्कारों की तरह साल भर कयास लगाने की जरूरत नहीं होती कि अगली नोबल नकेल किसके डाली जायेगी। जिसको मन आये उसको आप चिरकुट उपाधि से नवाज सकते हैं। चिरकुटई किसी तर्क की भी मोहताज नहीं है। दूसरा भले की कितना अकल की बात करे लेकिन किसी को चिरकुट कहने का सर्वाधिकार चिरकुट की उपाधि देने वाले के हाथ में रहता है। एक उदाहरण से शायद यह बात साफ़ हो सके। अब जैसे अमेरिका नरेश बुश जी ने अपनी और तमाम अमेरिका वासियों की नजर में यह बहुत मार्के की बात कही थी कि भारत के लोग पेटू होते हैं इसीलिये दुनिया में अनाज की कमी है। लेकिन हम इसे निहायत चिरकुटई का बयान मानते हैं।
चिरकुट व्यक्ति छुद्र हरकतें क्यों करता है? इसके पीछे कारण तलाशने पर ज्ञात हुआ कि चिरकुट जो होता है वह संतोषी टाइप का जीव होता है। वह छोटी-छोटी हरकतों (जिसे हिंदी में छुद्र हरकतें कहा जाता है) में ही संतोषम परमम सुखम की तर्ज प्र खुश हो लेता है। उसके यह हवस नहीं होती कि बड़े-बड़े कामों में अपनी टांग फ़ंसाये। वस्तुत: देखा जाये तो चिरकुट व्यक्ति अपने को छुद्र को साबित करके दूसरे को महान साबित करने के मौके देता है। वह परमार्थी होता है। बड़े-बड़े काम करने की भावुकता से वह अपने को बचा के रखता है। इससे उसकी अपनी ऊर्जा तो बचती ही है समाज की भी ऊर्जा बचती है। क्योंकि देखा गया कि जित्ते भी महापुरुष विदा हुये वे अपने तमाम अधूरे काम पीछे छोड़ गये। अब आप समझिये कि महान व्यक्ति ने महान काम शुरु किया और उसे आधा छोड़ दिया तो जितनी ऊर्जा आधे काम में लगायी उतनी तो बरबाद हो गयी न! तो चिरकुट व्यक्ति वस्तुत: ऊर्जा सरंक्षक होता है। आप इस बात से अन्दाजा लगा सकते हैं कि दुनिया में अगर चिरकुट न होते तो ऊर्जा की कित्ती कमी कर दी होती महान लोगों ने। एकदम कंगाली में आटा गीला टाइप!:)
चिरकुट व्यक्ति का उदाहरण देते हुये लोग भावुकता के पाले में चले जाते हैं। जैसे मेरे एक मित्र दूसरे के यहां दो घंटे बैठे रहे। उसको दोस्त ने चाय पिलाया न पानी उलटे अपना ब्लाग पढ़वा कर वाह-वाह और करवा ली। मित्र ने लौटकर बताया कि अजीब चिरकुट ब्लागर है। वह हालांकि सही हो सकता है लेकिन मुझे लगता है उसका निष्कर्ष भावुकता में लिया गया निर्णय है। उसे शायद यह नहीं पता उसका मित्र उसको दुनिया के बड़ी चिरकटई का सामना करने के किये समर्थ बना रहा है। छोटी-छोटी चिरकुटई को झेलने से ही बड़ी चिरकटई को झेलने का माद्दा बनता है जी।
कि चिरकुटों की आपस में तुलना करना अपने आप में चिरकुटई है। हर चिरकुटई अपने आप स्वतंत्र और अतुलनात्मक गतिविधि हई।
कुछ लोग दो चिरकुटों की आपस में तुलना करते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि
चिरकुटों की आपस में तुलना करना अपने आप में चिरकुटई है। हर चिरकुटई अपने
आप स्वतंत्र और अतुलनात्मक गतिविधि हई। अक्सर लोग किसी की तारीफ़ करते हुये
कहते हैं- वह एक अकेला हजार चिरकुटों के बराबर है।
लेकिन यह कहने वाले चिरकुट को यह पता नहीं होता इस तरह तुलना अपने आप में
एक चिरकुटई का काम है। आज जिसे आप छोटा चिरकुट बता रहे हैं कल बह सबसे बड़ा
साबित हो सकता है। कहने का मतलब यह कि चिरकुटई में तात्कालिक छोटाई बड़ाई तो
चल सकती है। छोटा चिरकुट-बड़ा चिरकुट तो सकता है लेकिन एक हजार के बराबर है
इस तरह की बात नहीं कही जा सकती। चिरकुटई को डिजिटाइज नहीं किया जा सकता।छोटे चिरकुट और बड़े चिरकुट की बात को आगे बढ़ाते हुये कोई पुस्तक-पठित वीर कह सकता है -वैसे तो सब चिरकुट बराबर होते हैं लेकिन कुछ चिरकुट ज्यादा बराबर होते हैं।
चिरकुट के बारे में सवाल यह भी है कि यह महान शब्द कब और कैसे इस दुनिया में आया? इस सवाल से प्रश्नकर्ता के मन मे जो चिरकुटों के प्रति आदर का भाव है वह छलकता है। इस सवाल का आधिकारिक जबाब तो अजित भाई ही दे सकते हैं लेकिन आजकल वे पंगेबाज से उलझे हैं सो हम ही कोशिश करते हैं।
चिरकुट शब्द का अस्तित्व मेरे ख्याल से तब से दुनिया में आया जब से दुनिया में पहली चिरकुटई हुई होगी। दुनिया की पहली चिरकुटई जैसा कि सब जानते हैं उस समय हुई जब हमारे बाबा आदम और दादी हव्वा को एक जरा सा सेव खाने के कारण स्वर्ग से निकाल दिया गया। आप ही बताइये कि भला सेव खा लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया। सेव खाने की चीज होती ही है। लोग तो न जाने क्या-क्या खा जाते हैं। पैसा, रुपया, ईमान-धरम, कसम,देश तक लोग खा जाते हैं लेकिन हम लोग कब्भी उनसे कुछ नहीं कहते। वहां से जरा सा सेव खाने के कारण निकाल दिया गया। खाया भी कहां था भाई चखा था केवल। इत्ते पर वहां से उनका “हेवन आउट” बोले तो “स्वर्ग निकाला” हो गया। स्वर्ग बदर होते ही आदम और हव्वा ने आपस में जरूर कहा होगा – अजीब चिरकुट है यार। एक सेब के लिये यहां से निकाल दिया। उसी समय से चिरकुट शब्द अस्तित्व में आया होगा।
ब्लाग जगत में भी चिरकुटों की कमी नहीं है। हर चिरकुट अपने को दूसरे से बड़ा
चिरकुट साबित करने में लगा है। तरह-तरह की चिरकुटई में जुटे हैं लोग। कुछ
तो इतने बड़े चिरकुट हैं कि ब्लागिंग को ही चिरकुटई कहते हैं। कहते भी हैं
और करते भी हैं। कुछ कुछ उसी तरह जैसे लोग देख को खा-पी, ओढ़-बिछा भी रहे
हैं और देश को गरिया भी रहिये हैं।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि चिरकुट शब्द का सम्बंध चिरकीन संप्रदाय
से है। चिरकीन संप्रदाय के लोग चिरकुट कहलाते हैं। लेकिन इस मत के विरोधी
लोगों का कहना है कि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि चिरकीन
संप्रदाय के लोग चिरकुटई की हरकतें बहुतायत में करते हैं लेकिन इससे यह
साबित नहीं किया जा सकता है कि जो चिरकीन संप्रदाय का नहीं है वह चिरकुटई
करने का अधिकारी नहीं है। अगर ऐसा होता तो फ़िर दुनिया भर के तमाम बड़े
चिरकुट अपनी चिरकुटई कैसे करते। बुशजी तो चिरकीन के बारे में उतना भी नहीं
जानते जितना वे भारत के बारे में जानते हैं। अगर चिरकुटई का चिरकीन से कुछ
संबंध होता तो बुशजी इत्ती बड़ी चिरकुटई की बात इतने विश्वास से कैसे कह
पाते। ब्लाग जगत में भी चिरकुटों की कमी नहीं है। हर चिरकुट अपने को दूसरे से बड़ा चिरकुट साबित करने में लगा है। तरह-तरह की चिरकुटई में जुटे हैं लोग। कोई खुल्लमखुल्ला तो कोई कम्बल ओढ़कर गुमनामी चिरकुटई करने में जी जान से जुटा है। लोग खुद हलकान है दूसरों को भी कर रहे है। कुछ तो इतने बड़े चिरकुट हैं कि ब्लागिंग को ही चिरकुटई कहते हैं। कहते भी हैं और करते भी हैं।
फ़िलहाल चिरकुटई पर इतना ही। शेर फ़िर। आपको पूछिये फ़ुरसतिया कैसा लगा। इस बारे में अपनी राय दीजियेगा। अगर कोई सवाल हो तो भेजियेगा। हम जबाब देने प्रयास करेंगे।
ये ऊपर वाला लोगो निरन्तर से लिया गया है। साभार भाई! फोकट में हम कुच्छ नहीं लेते।!
मेरी पसन्द
आधा जीवन जब बीत गया
वनवासी सा गाते रोते,
अब पता चला इस दुनिया में,
सोने के हिरन नहीं होते.
संबध सभी ने तोड़ लिये,
चिंता ने कभी नहीं तोड़े,
सब हाथ जोड़ कर चले गये,
पीङा ने हाथ नहीं जोड़े.
सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमें,
हम समझ गये पाषाणों में,
वाणी,मन,नयन नहीं होते.
मंदिर-मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकड़े,
उसने ही हाथ जलाये-जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकड़े.
जग जो कहना चाहे कहले
अविरल द्रग जल धारा बह ले,
पर जले हुये इन हाथों से
हमसे अब हवन नहीं होते.
–कन्हैयालाल बाजपेयी
कविता बेहद अच्छी लगी…पर आप कन्हैयालाल नंदन की जगह वाजपेयी लिख गये..
प्रश्न: ब्लाग जगत मे सफल कौन है और उस सफलता को अर्जित करने के रास्ते कौन-कौन से है?
विस्तारपूर्वक रौशनी डालें.
पुण्य कार्य के लिये चिरकुट समाज आपको सादर नमन करता है।
हे मुनिवर, अब आप मुझे इन दो प्रश्नों का उत्तर समान आर्शीवाद प्रदान करें –
१. आदम समाज के तथाकथित बुध्दीजन कई बार किसी भी चिरकुट की तुलना “गधे” नामक विशाल ह्रदय के सामाजिक प्राणी से क्यों कर देते है?
२. क्या गर्दभ समाज में भी “आदमी चिरकुट कहीं का” समान कोई उपाधि का प्रावधान है?
चिरकुटों में भी कई प्रकार के चिरकुट होते हैं और इनका आपस में निम्न सम्बन्ध होता है
दर चिरकुट = १० चिरकुट
बम चिरकुट = १०० चिरकुट
वज्र चिरकुट = १००० चिरकुट
परम चिरकुट = १०००० चिरकुट
हम सोच रहे थे ये पूछेंगे वो पूछेंगे ।
अचानकए आप सुरू हो गये तो हम कन्फुजिया और फुजिया गये हैं ।
भींगे हुए हैं । फुरसत से सवाल पूछेंगे ।
चिन्ता कीजिए ।
बहुतए पूछेंगे ।
अब ये बताइए कि लोग ब्लोगिंग में भी प्रतिस्पर्धा क्युं करते हैं किसका ब्लोग सबसे अच्छा और क्युं? क्या फ़रक पड़ जाएगा?
आप तो सचमुच नटखट नारद निकले!
चिरकुट?
इस शब्द से मैं भी परेशान हूँ।
सही अर्थ और प्रयोग ढूँढते ढूँढते थक गया था।
किसी से पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई।
क्या पता उत्तर मिले: “अरे, इतना भी नहीं जानते? चिरकुट हो क्या?”
जब नितिन भाई ने भी अपना अज्ञान सार्वजनिक किया तो थोड़ी सी सांत्वना हुई। चलो एक और बुद्धु मिल गया। अब दोनों फ़ुर्सतियाजी के अपार ज्ञान का लाभ उठाएंगे।
बडे चाव से आपका गहरा विश्लेषण पढ़ने लगा और पढ़ते पढ़ते अज्ञान की खाई में और नीचे उतरता गया।
आपने आदम की बात छेडी। सोचा, चलो शायद चिरकाल से चला आ रहा शब्द है यह। फ़ुर्सतियाजी इसके इतिहास से शुरू कर रहे हैं।
फ़िर आपने सेव की बात की। सो़चा चलो, इसका सच्चा अर्थ शायद इसके बीज के अन्दर छुपा है और आप बीज को कुरेदकर इस रहस्यमय अर्थ को ढूंढ निकालने जा रहे हैं।
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हमें अज्ञान की खाइ में और गहरा धकेलकर आप चल दिये।
है कोई जो अंग्रे़ज़ी की रस्सी फ़ेंककर मुझे इस खाई से निकलने में मदद कर सके?
बस चिरकुट का अंग्रेज़ी शब्द क्या है? हिन्दी में समझाना असंभव लगता है।
लिखते रहिये, और आज से मेरी टिप्पणियाँ भी झेलते रहिए।
नमस्कार और शुभकामनाएँ
गोपालकृष्ण विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु
पाया कि निहायत चिरकुटई चल रही है !
सत्य वचन, सारा गोरखधँधा चिरकुटई पर ही टिका है ।
By the चिरकुट्स For theचिरकुट्स.. और भी न जाने क्या क्या ?
किंतु यह प्रामाणिक चिरकुट चिंतन बहुत कुछ कह रहा है, बड़े महीन हो गुरु !
चिरकुटई का पाठ खूब बढिया पढाया है ।चिरकुट आम बोल – चाल की भाषा मे खूब प्रयोग करते रहे है लेकिन कभी इसके गूढ अर्थ के बारे मे कभी ध्यान ही नही दिया । शब्द ग्यान के लिए बहुत – बहुत धन्यवाद ! पाठ को कुछ ज्यादा लम्बा खीचने से पढ्ने मे थोडी दिक्कर हुई । आगे से शार्ट मे जवाब दे तो पढ्ने मे आनन्द आएगा ।
मास्टर जी जरा यह बताए कि आप इतने फुरसतिया कैसे है ?
चिरकुटई का पाठ खूब बढिया पढाया है ।चिरकुट आम बोल – चाल की भाषा मे खूब प्रयोग करते रहे है लेकिन कभी इसके गूढ अर्थ के बारे मे कभी ध्यान ही नही दिया । शब्द ग्यान के लिए बहुत – बहुत धन्यवाद ! पाठ को कुछ ज्यादा लम्बा खीचने से पढ्ने मे थोडी दिक्कर हुई । आगे से शार्ट मे जवाब दे तो पढ्ने मे आनन्द आएगा ।
मास्टर जी जरा यह बताए कि आप इतने फुरसतिया कैसे है ?
दूसरा सवाल है कि ये साला – साली शब्द का उद्भव कैसे हुआ ?
घुघूती बासूती