Tuesday, December 16, 2008

मुस्कराते हुये लोग कित्ते अच्छे लगने लगते हैं

http://web.archive.org/web/20140419214743/http://hindini.com/fursatiya/archives/562

32 responses to “मुस्कराते हुये लोग कित्ते अच्छे लगने लगते हैं”

  1. .Arvind Mishra
    नयनाभिराम चित्र ! इन दिनों ये जूता जूता बहुत हो रहा है -क्या मात्र संयोग ?
  2. विवेक सिंह
    आज तो स्टाइल लौट आई . चिर परिचित अंदाज .
  3. - लावण्या
    :-)
    आपकी बात सही है अनूप जी
    और नाम बडे और दर्शन छोटेवाली बात भी एकदम सही
    (अपने महापुरुषों का मूल्यांकन जब हम करते हैं तो ऐसे ही उनको दूर से देखते हैं। सबके बड़े-बड़े काम बौने-बौने लगते हैं। ऐसा लगता है उन्होंने ऐसा कर दिया तो कौन बड़ा काम कर दिया। ये तो कोई भी कर सकता है।)
    - लावण्या
  4. seema gupta
    मुस्कराते हुये लोग कित्ते अच्छे लगने लगते हैं? है न!
    आप भी मुस्कराइये न थोड़ा सा
    Regards
  5. seema gupta
    मुस्कराते हुये लोग कित्ते अच्छे लगने लगते हैं? है न!
    आप भी मुस्कराइये न थोड़ा सा
    ” अरे हम तो इ बात कब से कहे रहे , कोई सुनी ना का करें इब..”
    regards
  6. Prashant (PD)
    पक्का फुरसतिया पोस्ट है जी..
    हम नैनीताल के किस्से पढने के लालच में ललचा कर आये थे और यहाँ कुछ और ही पुराण चालू था.. सोचा बिच्चे में से उठकर टिपिया देते हैं.. मगर फिर खुद को संभाला.. नहीं वत्स, थोडा और सब्र करो.. थोडा और पढो.. बच्चे थे तो पप्पा कहते थे “पढोगे लिखोगे तो होगे नवाब” सो पप्पा कि बात रख लिए और देखिये नैनीताल के किस्से भी मिले.. क्या बात है सरजी.. किसी से जूता मांगने का इरादा है या फिर किसी से जूता खाने का या फिर मंदिर से किसी का जूता उडाने का या फिर अपने फटे जूते से किसी को जूतियाने का?? :)
  7. कविता वाचक्नवी
    तब तो दीखते भालते व सामने पड़ने वाले लोग ही अच्छे लगते होंगे, आँख ओझल तो पहाड़ ओझल।
    मुस्कान या हँसी की भली क्या बिसात कि ओझल न लगे।
    amazing!
  8. संजय बेंगाणी
    मुस्कराते हुये लोग कित्ते अच्छे लगने लगते हैं?
    लो जी कोल्गेटिया मुस्कान. हम तो जन्म से ही अच्छे लगते है, यह भ्रम पाले हुए है आप भी मुस्काईये.. :)
    जगह जगह बरहा अवतार करवा रहें है आप. :)
  9. सुरेश चंद्र गुप्ता
    मुस्कुराते हुए लोग बहुत अच्छे लगते हैं, पर आज कल लोग मुस्कुराने से ही परहेज करने लगे हैं. पता नहीं किस ने उन्हें यह बता दिया कि मुस्कुराना एक बीमारी है. हर समय होंठ खिंचे रहते हैं और त्योरियां चढ़ी रहती हैं. अक्सर यह त्योरियां माथे से उतर कर हाथों में आ जाती हैं.
    खरीदने और बेचने की ओन-लाइन ट्रेनिंग राजनीतिबाजों को दी जानी चाहिए. कम से कम असलियत में तो देश खरीदे और बेचे जाने से बचा रहेगा.
  10. ताऊ रामपुरिया
    बहुत चकाचक विवरण दिया आपने फ़ुरसतिया स्टाईल मे ! आपकी भाषा का प्रवाह ऐसा है कि कब शुरु और कब खत्म , ये पता ही नही चलता ! इसीलिये आपकी फ़ुरसतिया पोस्ट हमेशा ही छोटी लगती है !
    आगे आपने लिखा :- “जहं-जहं हाथ फ़िरे बालक के , बाराहा ने लिया फ़ौरन अवतार।”
    तो ये बराह भगवान का अवतार आपने हमारे कम्प्युटरवा पर भी करवा दिया है पर ज्ञान जी का “ज्ञा” नही लिखा जा रहा है ! कूछ प्रकाश डाला जाये ! :)
    राम राम !
  11. cmpershad
    सुंदर प्राकृतिक चित्र, विदेश भ्रमण करने वाले यह चित्र देखें, तो बहुत फारेन एक्स्चेंज बच सकता है।
    रही बात जूते का मुंह खुलने की, तो आप भी मजबूर थे कि उस जंगल के किसी बुश में कोई बुश दिखाई देता तो उसका सदुपयोग हो जाता। चलो, जूते बचा लाए – बधाई।
  12. anil pusadkar
    आणंद आ गया। नैनीताल कभी जाना नही हुआ है आपने तस्वीरो से ही दर्शन करा दिये। वैसे पहाड,जंगल और घाटियां तो हमारे बस्तर की भी वैसी ही है बस बर्फ़ नही होती यहां। और हां जूते के मुंह खोलने पर हुआ प्रवचन आपके लिये एक शानदार संभावना के संकेत दे रहा है। आप भी बाबा वाली दूकान खोल सकते हैं,बढिया चलेगी।
  13. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    मुस्कराते? पूरी पोस्ट तो दांत चियारते पढ़ी है!
  14. विष्‍णु बैरागी
    पढ लिए और समझ लिए कि वहां क्‍या सीखे-सिखाए । साफ नजर आ रहा है कि टृ्ेनिंग तो आन-लाइन की दी गई थी लेकिन आप तो आफ-लाइन हो गए ।
    जय हो फुरसतियाजी की ।
  15. himanshu
    लीजिये मुस्करा दिये. थोड़ा सा ही नहीं, बहुत सा .
    नहीं दिखा न ! कि दिख गया.
  16. कुश
    सोच रहा हू आपको बहुत सारी बधाई दे डालु इतने उत्कृष्ठ लेखन के लिए… आपको मेरी ये टिप्पणी अच्छी लगी होगी..
    वैसे सच तो यह है मुझे पता नहीं। अगर आपको कुछ अच्छा लग जाता है तो उसमें मेरा कोई दोष नहीं (बोले तो आई प्लीड नाट गिल्टी) अपने आप हो जाता होगा। अनजाने में किये पाप को पाप नहीं माना जाता न
  17. Shiv Kumar Mishra
    “अपने महापुरुषों का मूल्यांकन जब हम करते हैं तो ऐसे ही उनको दूर से देखते हैं। सबके बड़े-बड़े काम बौने-बौने लगते हैं। ऐसा लगता है उन्होंने ऐसा कर दिया तो कौन बड़ा काम कर दिया। ये तो कोई भी कर सकता है।”
    शानदार!
    बताईये, ऐसा-ऐसा लिखते हैं और हमारे ऊपर आरोप लगाते हैं कि हम आपको मामू बना रहे हैं?….ग़लत बात नहीं है का?
  18. Abhishek Ojha
    बड़ा बढ़िया जी, अंत अंत में हम भी मुस्कुरा ही दिए :-)
  19. मुकेश कुमार तिवारी
    अनूप जी,
    सबसे पहले तो आपको धन्यवाद कि आपने मेरी कविता “लड़्कियाँ तितली सी होती है” को अपनी पसंद की. मैं चिट्ठाचर्चा को भी धन्यवाद देता हूँ.
    मुकेश कुमार तिवारी
  20. Dr.Anurag
    हम दांत कोलगेट से मांजते है जी……..देखिये मुस्करा दिए …..
  21. anitakumar
    नैनिताल प्रवचन बहुत बड़िया चल रहा है आप लिखते रहिये हम दीदे फ़ाड़ कर पढ़ रहे हैं। सुन्दर फ़ोटू, इसी बहाने नैनिताल देख लिए। लेकिन एक बात बताइए ये आप की क्लास में हर मेज के साथ एक एक बाल्टी काहे रखी थी,क्या इसका आशय ये था जो भी सीखो फ़ौरन बाल्टी के हवाले कर दो…॥:)
    रामायण का ऐसा भावार्थ न कभी पढ़ा न कभी सुना( वैसे तो रामायण भी नहीं सुनी सिर्फ़ रामानन्द सागर ने जितनी दिखाई, उतनी ही पता है)आप का रामायण का ये इन्टरप्रिटेशन न सिर्फ़ एक दम अनूठा है बल्कि विचारणीय है। पेटेंट निकलवा लिजिए इसके पहले की कोई मैनेजमेंट गुरु आप का आइडिया ले उड़े और भुना कर नाम और माल दोनों कमा ले।
  22. गौतम राजरिशी
    आपके अंदाज का दिवाना….और ये स्लाइड-शो खूब जंच रही है आलेख के संग
  23. दीपक
    तस्वीरे काफ़ी मजेदार है !! मुस्करा दिया जी पुरी बत्तीसी बाहर दिक रही है ।वैसे आप तस्वीरो मे क्यो नही मुस्करा रहे है !! क्या कहा सर्दी ज्यादा थी इसलिये……. हा हा हा
  24. दिनेशराय द्विवेदी
    महेन्द्र नेह साथ थे। उन्हें पूरी पोस्ट पढ़ कर सुना दी है। 21-22 को कानपुर में रहेंगे।
    आप की यह यात्रा कथा बहुत कुछ कहती है। आप का अँदाज और शिखरों की बेपरवाही उन्हें भा गई।
  25. राज भाटिया
    मुस्कराते हुये लोग कित्ते अच्छे लगने लगते हैं? है न!
    आप भी मुस्कराइये न थोड़ा सा अजी हम भी सीमा जी की बात दोहरा रहे है…:)
  26. खुपड़िया में लागा चोर
    बास, काश यह खोपड़ी मेरी होती … मन में बस यही तात्कालिक ख़्याल आया,
    सो बिना कैंची ब्लेड चलाये लिख दिया.. न खुपड़िया मिली न निग़ाहें फ़ुरसत !
    तुर्रा यह कि मेरी वाली पंडिताइन मुझको चिढ़ाते हुये घूमा करती हैं..
    ” तेरी खुपड़िया में लागा चोर रे पंडित.. खुपड़िया में लागा चोर ”
    सो, घर और घाट दोनों जगह हँसाई हो रही है.. यह महिमा है फ़ुरसतिया की !
    कूर्मांचल इतना और इतनी बार छाना हुआ है, कि घौत की दाल, भाँग के बीज की चटनी,
    और आलू गुटके, रायता इत्यादि हमारे रसोई में अपना स्थान कब का बना चुके हैं ।
    सो, उन पर टिप्पणी करने से पहले ही..
    आज भी एक नया मुहावरा बनने को उछल रहा है, लेकिन इसबार मैं नहीं लिखने वाला..कि,
    ” जँह जँह पाँव पड़े फ़ुरसतिया के.. बरहा लई लिहिन अवतार ”
    तो.. ऎसी महान आत्मा को मेरा नमस्कार !!

  27. ANYONAASTI
    “लो ये आयेंन, ये पढ़ेन , ये गयेन “|
  28. gourav kumar soni
    bhai saheb, kya baat kahi hai aapne. kasssam se dil khoosh hui gawa.
    ham to bas muskraa hi diye ..samjho
  29. …..जिंदगी धूप तुम घना साया
    [...] [...]
  30. ashish
    “अगर आपको कुछ अच्छा लग जाता है तो उसमें मेरा कोई दोष नहीं ”
    आपकी यही अदा तो पसंद है ,जूता आपका फटा और घसीट दिए राम जी को भी साथ में ….
    काम करते करते ब्रेक ले के आपको पढ़ लेते है ,मूड सही हो जाता है ….
    मुस्कुरा रहे है हम भी ……
    —आशीष श्रीवास्तव
  31. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] [...]
  32. : मुस्कराते रहें ….
    [...] रहें मतलब कीप स्माइलिंग। मुस्कराते हुये लोग कित्ते खूबसूरत लगते हैं। मिलकर मुस्कराते हुये तो और [...]

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