Monday, February 09, 2009

वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है…

http://web.archive.org/web/20140210192918/http://hindini.com/fursatiya/archives/584

38 responses to “वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है…”

  1. seema gupta
    पानी पर खीचकर लकीरें
    काट नहीं सकते जंजीरें
    आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं
    अग्निबिंदु और सघन हो गया.
    ” nyaa hai ya puraana hai jo bhi hai shaandara…”स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा wala picture mun ko bhaa gya….sundr”
    Regards
  2. ranjana
    क्या कहूँ……….आधुनिक वसंत का जबरदस्त आकलन है.एकदम laaaaaaajjjjjjjaaaaaaaaawaaaaaaaab !
  3. संजय बेंगाणी
    आपकी पसन्द बहुत सुन्दर है.. :)
    पढ़ कर लगा वसंत और वेलेंटाइन डे आ ही गया है और हम बेखबर पड़े थे…
  4. हिमांशु
    बहुत ही ज्यादा लिख देते हैं आप. बाद में पढ़ूंगा. आपके पास लिखने में धैर्य नहीं, पर पढ़ने में धैर्य की जरूरत तो है ही मुझे.
    यह टिप्पणी इसलिये कर रहा हूं कि ’नन्दन’ जी की रचना बहुत ही पसन्द आयी मुझे -
    “एक नाम अधरों पर आया,
    अंग-अंग चंदन वन हो गया.”
    धन्यवाद
  5. Dr.Arvind Mishra
    आपने पद्माकर की याद दिला दी और होठ बरबस ही बुदबुदा उठे -
    कूलनि में केलि में कछारन में कुंजन में क्यारिन में कलिन कलीन किल्क्न्त हैं ,,,,
    कहें पद्माकर परागन में पातहूँ में पानन में पीक में पलाशन पगंत हैं
    द्वार में दिशान में दुनीं में देश देशन में …….
    वीथिन में ब्रज में बगरयो बसंत है !
    और बलि जाऊं ऋतुराज के आगमन में बगींचों और खेतों में कलियों फूलों के जरिये फुरसतिया बसंत आख्यान का !
    आप ने ब्लाग बसंत ला दिया है -कामदेव ने पञ्च पुष्प वान का संधान कर दिया है -कैसा साम्य है वह भी अनंग है आभासी है और यह ब्लॉग भी -दोनों कैसे ब्लेंड हो रहे हैं .आपने संक्रामकता फैला दी है -मैं तो अभी भी चुप बैठा था ! पर यहाँ तो बसंत ने हुँकार भर दी है .
    मुबारक !
  6. समीर लाल
    दो साल सही..मगर बड़ा ताजा सा लेख लगा आज फिर.
    गौरव महाराज को सूचना तो दे ही देना चाहिये भई.
    मेरी पसंद वाली रचना पढ़कर बहुत आनन्द आया.
  7. Dr.anurag
    सही ठेले है शुक्ल जी ….उठा कर कोपी -पेस्ट कर दी आपने …भगवान् ऐसे फेनेवा सबको दे…..पर इस कॉपी-पेस्ट से हम जैसो का भला हो गया ..सुंदर सुंदर फोटू देखने को मिली ओर बसंत्नुमा पोस्ट ,वैसे नारदजी ओर विष्णु जी से कहियेगा बसंत के मौसम में जरा नीचे न उतरे तो अच्छा है….किसी मांजे में अटक गए तो मुश्किल होगी न…..
  8. प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर
    अब समझ में आया दाँत में अगर अच्छी क्वालिटी का मंजन किया हो तो दाँत दिखाए जाते हैं कि आप बार बार दातों कि चर्चा क्यों शामिल करते हैं ….. जनाब!!!
    वैसे क्या विष्णु जी का वैलेंटाइन अवतार नहीं हो सकता है ……. मन तो करता होगा स्प्रिंग टाइप शरीर फेकने का?????
  9. अजित वडनेरकर
    बहुत खूब…आप भी मज़े लेने से नहीं चूक रहे…अंधा पीसे, कुत्ता खाए….
    अब लिख कर भूल जाएंगे तो भी लोग तो तैयार बैठे हैं ….
  10. masijeevi
    सरसों के खेत में तितलियाँ देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह मंडरा रहीं थीं। हर पौधा तितलियों को देखकर थरथरा रहा था। भौंरे भी तितलियों के पीछे शोहदों की तरह मंडरा रहे थे। आनंदातिरेक से लहराते अलसी के फूलों को बासंती हवा दुलरा रही थे।
    वाह क्‍या काव्‍य रूढि़यॉं रची हैं।
  11. nirmla.kapila
    बहुत खूब इस अलग से विशय और चुटकी के लिये बधाई
  12. Gyan Dutt Pandey
    एक नाम अधरों पर आया,
    अंग-अंग चंदन वन हो गया.

    ——–
    कविता तो मसकने का मन कर रहा है। उसके साथ की फोटो आप रख लें। कविता हमें दे दें!
  13. Girish Billore "Mukul"
    गुरु देव
    जा बात सच्ची है कै रचना-”कालजयी”भई
    कित्ती पढ हो—————– !!……. नई की नई
    इतै नई छपी उतै छप गयी का फर्क
    अब देख्यो सुकुल भैया जे जो काग…जी…
    कागी-भौजी से चूंच लड़ा रए हैं अच्छो लगो
    मनो साँची बात जा है कै
    पिछले साल वैलें टाईन उर्फ़ विलेनटाइम
    पे कागी-भौजी कोऊ और हथी !!
    पिछली साल वारी कागी-भौजी को आवेदन हमाए दफ्तर में
    दाखिल है हम घरेलू हिंसा क़ानून में हमें “संरक्षण-अधिकारी जो बनाओ है “
  14. उन्मुक्त
    ‘ऐसे प्रशंसक भी कहां मिलते हैं भाई! जो आपकी रचनायें पढ़ें पसंद करें और उसको अपना समझें’ – मुझे भी अक्सर इस तरह प्रसन्नता करने का मौका मिलता है।
  15. डा. अमर कुमार

    बट..
    ऎवेंई..
    बाई द वे…
    या जो कुछ भी समझें, आज तो मैं
    मंदी का कैसा हो बसंत ..
    यह तलाशने निकला हूँ, जी..
    आप भी कृपया मदद करें ।

    बाद में पूरी पोस्ट पढ़ कर टिप्पणी होगी, जी ।
    अभी नेट पर फ़ुरसतियाने पर स्टे-आर्डर है ।
  16. anitakumar
    ये बंसत पुराण भी बहुत बड़िया रहा। एक एक वाक्य आनंदित करता हुआ। गेंदे और गुलाब की प्रेम कहानी, कौओं की बेमतलब की कांव कांव। प्रकृति की इस छटा से रोमांस सुनामी के जैसे उमड़ा पड़ रहा है। सारा वातावरण बसंतमय हो रहा है।
    लेकिन आप का ट्रेडमार्क भी है। हंसी हंसी में गहरी बात कह जाना। हां आजकल डे ज्यादा हो गये है और दिन कम। पोस्ट जरा लंबी हो गयी है लेकिन 5/5…।:) ऐसी पोस्ट तो उड़ायी ही जानी थी, गौरव का तारीफ़ करने का अंदाज पसंद आया, अब जब भी लिखने को कुछ न होगा तो पता है कहां रेड मारनी है…।:)
  17. Anonymous
    बहुत बढिया जी. बसंत आ गया और हमे खबर ही नही. लगता है अब तो विष्णु जी भी बसंत भुलकर वेलेंटाईन डे के फ़ांदे मे फ़ंस गये हैं. :)
    रामराम.
  18. ताऊ रामपुरिया
    बहुत लाजवाब पोस्ट. हमने तो आज पहली बार ही पढी. बिल्कुल वही मजा.
    और बसंत आने की याद दिलाई बहुत धन्यवाद.
    लगता है विष्णु जी भी मदनोत्सव को भुलाकर वेलेंटाईन डे के पीछे लग लिये हैं.:)
    रामराम.
  19. दिनेशराय द्विवेदी
    बहुत बहुत सुंदर! पूरा वसंत उतार दिया।
    पर वसंत में विष्णु अपनी ससुराल क्षीर सागर में नहीं होते।
  20. cmpershad
    एक नाम अधरों पर आया………..
    और अब वो ‘पुराना माल’ हो गया? इसे ही न कहते हैं हरजाई :)
  21. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    फुरसतिया जी लिख भये, दास्तान-ए-वसन्त।
    लोट पोट पढ़कर हुए, मजा न पाये अन्त ॥
    मजा न पाये अन्त, ताजगी बनी-ठनी है।
    वासन्ती मदमस्त भ्रमर की खूब बनी है॥
    सुन मन रमता जाय पगी है रस में बतिया।
    मुग्ध हुए सिद्धार्थ पोस्ट पढ़कर फुरसतिया॥
  22. vijay tiwari 'kislay'
    आदरणीय शुक्ल जी
    भूत, वर्तमान और भविष्य की दुनिया को समेटकर, नारद से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को न छोड़ते हुए , सबको लपेटे हुए आपका आलेख “वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है… ” बड़ा अच्छा लगा .
    - विजय
  23. Prashant (PD)
    हम चोरी का माल नहीं पढ़ते जी..
    आप क्या समझते हैं, बसंत कह कर कुछ भी पढ़वा देंगे? हम तो उहाँ जा रहे हैं पढने जहाँ से आपने चुराया है.. :)
  24. अनूप भार्गव
    ई मेरी पसन्द के नीचे एक फ़ोटुवा और एक कविता दिये है , कविता की बात तो समझ में आई ,. ये फ़ोटुवा लगाने से पहले भाभी जी को दिखा चुके हैं ना ?
    सुन्दर , सरस आनन्द के लिये धन्यवाद
  25. Manoshi
    दो साल पहले पढ़ा था, तब भी उतना ही मज़ा आया था जितना अब आया।
  26. विनय
    वाह साहब बहुत ज़ोरदार लिखा और आपकी पसंद की कविता तो लाजवाब है!

    चाँद, बादल और शाम
  27. अभय तिवारी
    ज्वाब नई त्वाडा!
  28. shelley
    likha achchha hai par padhne k liye bahut mehant karni padi.
  29. Abhishek Ojha
    इलू-इलू की लू कहीं ‘सावन के अंधे’ की तरह तो नहीं चल रही? :-)
  30. Priyankar
    वाह वा ! घणा धांसू लिख्या है जी.
    फोटुआ पे ज्ञान जी और अनूप भार्गव जी अचकचाए हुए हैं . ऊ का जाने आपके दिल की उमंग-तरंग को . आप तो जुवा मंडली को फोटुआ के सहारे ’कोबिता’ तक पहुंचाने का पुनीत कारज कर रहे हैं .
  31. puja upadhyay
    इसी प्रशंशक के कारण हमें ये पोस्ट पढने को मिली, आप तो भूल ही गए होंगे लिख कर :) मगर आप सच में बहुत उदार हैं…आपको गुस्सा नहीं आया…शायद बड़ा होना इसी को कहते हैं…क्षमा बडन को चाहिए छोटन को उत्पात की तर्ज पर माफ़ कर दिया आराम से. और सच्ची में क्या वर्णन है वसंत का…वाह…विष्णु जी ने इस वर्णन पर नारद को कोई वरदान नहीं दिया? हरि मुख जैसा कुछ…आख़िर वैलेंटाइन आ रहा है :)
  32. amrendra nath tripathi
    ”…….सरसों के खेत में तितलियाँ देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह मंडरा रहीं थीं। हर पौधा तितलियों को देखकर थरथरा रहा था। भौंरे भी तितलियों के पीछे शोहदों की तरह मंडरा रहे थे। आनंदातिरेक से लहराते अलसी के फूलों को बासंती हवा दुलरा रही थे। एक कोने में खिली गुलाब की कली सबकी नज़र बचाकर पास के गबरू गेंदे के फूल पर पसर-सी गई। अपना काँटा गेंदे के फूल को चुभाकर नखरियाते तथा लजाते हुए बोली, ”हटो, क्या करते हो? कोई देख लेगा।”
    —————– यह प्रकृति – चित्रण तो गजब ढा रहा है ,,, ऐसा पहले न पढ़ा ,,,
  33. कार्तिकेय मिश्र
    आधा पढ़े… और हिम्मत नहीं है! बहुत कर्री नींद आ रही है, सो अलग।
    बाकी का अगले साल पढ़ लेंगे… और लंबा लंबा लिखिये!
  34. कार्तिकेय मिश्र
    बाई द वे, भाई साहब की पहली ही पोस्ट “बंगला फिल्म” किसी उपन्यास में, या कहानी संग्रह में पढ़ी लगती है… पक्का पढ़ी हुई है।
  35. बसन्त राजा फ़ूलइ तोरी फ़ुलवारी!
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  36. suman
    nice
  37. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है… [...]
  38. अनूप शुक्ल
    हर तरफ़ बसंत की बयार बह रही है। लोग मदनोत्सव की तैयारी में जुटे हैं। कविगण अपनी यादों के तलछट से खोज-खोजकर बसंत की पुरानी कविताएँ सुना रहे हैं। कविताओं की खुशबू से कविगण भावविभोर हो रहे हैं। कविताओं की खुशबू हवा में मिलकर के नथुनों में घुसकर उन्हें आनंदित कर रही है।

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