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Friday, July 24, 2009
Thursday, July 23, 2009
रामू, जरा चाय पिलाओ
http://web.archive.org/web/20140419214301/http://hindini.com/fursatiya/archives/659
रामू, जरा चाय पिलाओ
By फ़ुरसतिया on July 23, 2009
गर्मी का मौसम बदस्तूर जारी है। बारिश आई लेकिन हांफ़ते हुये। लगता है
बादलों का पानी रास्ते में बिचौलिये ले उड़े। या फ़िर बादलों को लग रहा होगा
कहीं धरती पर सम्मानित न कर दिये जायें इसलिये तमाम बादल रास्ते से कट
लिये। इन्द्र भगवान हलकान हैं। उनको तमाम इलाकों से बारिश की प्रार्थनाओं
के पैकेज मिले थे। कई भगवानों ने सिफ़ारिशें की थीं कि फ़लां इलाके में एक
बादल ज्यादा पानी गिरा देना वहां हमारा भक्त रहता है। भक्त भगवान से विनती
करते हुये कई बार चेतावनी दे चुका है- अबकी पानी न बरसाया तो
दूसरा भगवान ज्वाइन कर लूंगा। ऐसे भगवान का क्या फ़ायदा जो मौके पर बारिश भी
न करा सके। हमें कमी नहीं है भगवानों की। आप अकेले नहीं हैं। करोंड़ों
भगवान हैं। रोज फ़ोन आते हैं मोबाइल पर। सस्ती प्रार्थना दर पर भगवान की
सेवायें प्राप्त करें।
किसी ने इन्द्र भगवान को बादलों पर आयोग बैठाने की सलाह दी। लेकिन उनको पता चला कि आयोग बैठ जाता है और साथ में जांच को बैठा लेता है। जांच और आयोग सालों तक बैठे रहते हैं। कुछ नहीं करते। बैठे-बैठे दोनों बालिग हो जाते हैं । बालिग लोगों को आपसी सहमति से जो मन आये वो करने की छूट है इसलिये जांच और आयोग के मामले में कोई कुछ बोलता भी नहीं। बहुत हल्ला मचाओ तो एक ठो रिपोर्ट पैदा करके थमा देते हैं ! जांच और आयोग मिलकर असलियत की जमीन पर रिपोर्ट की फ़सल उगाने का काम करते हैं।
इसलिये इन्द्र भगवान असलियल जानने के लिये बादलों से बात करते हैं। बादल-बादल , बदली-बदली पूछताछ करते हैं। उनके पास अपने बहाने हैं।
कोई बादल कह रहा है कि उसके पास पानी ज्यादा है। ले जाने के लिये कुली बादल दिया जाये। भगवान टोंकते हैं सालों से तुम खुद अकेले बरसने जा रहे हो और आज क्यों तुम्हें कुली बादल चाहिये?
बादल ने सूचना दी कि अब उसका प्रमोशन हो गया है और उसे नियमानुसार पानी उठाकर ले जाने के लिये कुली बादल चाहिये।
इन्द्र भगवान उसे बहला रहे हैं- यार लेते जाओ पानी। जैसे पहले बरसते आये वैसे बरस आओ। कुली के पैसे क्लेम कर लेना। हम बिल पास करवा देंगे।
बादल अपने पिछले बिल के अभी तक पास न होने का उलाहना देता है। इन्द्र भगवान उसे आश्वासन देते हैं कि जल्द ही उसे पास करवा देगे और आगे बढ़ते हुये बिल क्लर्क को चाय-पानी करवा देने की समझाइस देते जाते हैं।
दूसरा बादल अपनी परेशानियां बताता है कि उसके साथ की बदली उसको छेड़ती है और रास्ते भर कहती है- तुम तो बादल लगते ही नहीं हो। कित्ते क्यूट हो। कहां बरसने के लिये पानी लिये जा रहे हो। ये पानी मुझे दे दो न! हमें अपना मेकअप छुड़ाना है।
इन्द्र भगवान उसको समझाते हैं- असल में वो वाली बदली शापग्रस्त अप्सरा है। मेकअप करने और छुड़ाने के अलावा उसे और कुछ आता नहीं। तुम्हारे साथ इसीलिये लगाया कि तुम जैसे रूखे-सूखे के बादल के साथ रहेगी तो कुछ बरसना भी सीखेगी। वैसे भी वो एक साल के लिये ही शापित है। इसके बाद फ़िर उसे महफ़िलों में सजना है। न जाने कितने देवताओं को प्रिय है। कईयों की मुंहलगी है। उससे कुछ कहते भी नहीं बनता।
एक बदली उलाहना देती है- साहब अब बरसने से क्या फ़ायदा। पहले बरसते थे तो लोग भीगते थे हमारे पानी से। बच्चे छप्प-छप्प , छैयां-छैयां खेलते थे। अब तो जहां बरसाती हूं लोग छतरी तान देते हैं। कित्ता दुख होता। हम यहां से बरसने के लिये धरती पर जायें और वो हमसे परदा कर लें। छाते की नोक भाले सी चुभती है।
इन्द्र भगवान बदली को निहारते हुये उवाचते हैं- तुम तो सब जानती हो। सबने तो अपने यहां बोरिंग करवा रखी है। अपने बाथरूम में भीग लेते हैं रोज शावर लगाकर। लेकिन तुम भी तो अपनी आदत से बाज आओ। न जाने क्यों तुमको शहर ही ज्यादा रास आते हैं। बरसने के लिये। गांव-देहात में जाया करो बरसने के लिये। वहां लोग सूनीं आखें लिये तुम्हारा इंतजार करते रहते हैं। यहां क्या मिलता है तुमको जाम सीवर , बंद नालों और खुदी सड़कों के सिवा। क्यों भारत माता ग्राम वासिनी का पल्ला छोड़कर शहरनिवासिनी के पास जाती हो हमेशा?
बदली ने कारण बताते हुये कहा- अब साहब आपसे क्या छिपायें? आपकी बात सही है कि शहरों में कूड़ा,कचरा के सिवा और कुछ नहीं है लेकिन बड़े-बड़े माल्स तो हैं। वहां अपना पानी फ़ेंक कर मैं किसी माल में घुस जाती हूं और एक के साथ दो फ़्री वाली स्कीम से अपनी पसंद के क्रीम पाउडर ले आती हूं। इसलिये शहर मुझे ज्यादा पसंद आते हैं।
इन्द्रजी ने चेताते हुये कहा- वो तो सब ठीक है लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? ड्यूटी चार्ट में तुमको गांवों में बरसने की ड्यूटी दी जाती है। लेकिन बरसती तुम शहरों में हो। किसी ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेकर सवाल पूछ दिये तो रोते नहीं बनेगा। सारा क्रीम पाउडर धुल-पुछ जायेगा।
बदली इठलाती और बल खाते हुये बोली- आपके रहते हुये मुझे किसी बात की चिन्ता नहीं। अब मैं चली। शहर के माल खुल गये होंगे। देखूं कौन से नये ब्रांड की क्रीम की सेल लगी है आज!
इन्द्र भगवान आगे खड़े ढेर सारे बादलों से पूछताछ के लिये बढ़े लेकिन तब तक पता चला कि बादलों का चाय का समय हो चुका था। इंद्र भगवान को भी चयास लगी थी। वे लपक कर अपने चैम्बर में पहुंचे और घंटी बजाकर बोले- रामू, जरा चाय पिलाओ।
किसी ने इन्द्र भगवान को बादलों पर आयोग बैठाने की सलाह दी। लेकिन उनको पता चला कि आयोग बैठ जाता है और साथ में जांच को बैठा लेता है। जांच और आयोग सालों तक बैठे रहते हैं। कुछ नहीं करते। बैठे-बैठे दोनों बालिग हो जाते हैं । बालिग लोगों को आपसी सहमति से जो मन आये वो करने की छूट है इसलिये जांच और आयोग के मामले में कोई कुछ बोलता भी नहीं। बहुत हल्ला मचाओ तो एक ठो रिपोर्ट पैदा करके थमा देते हैं ! जांच और आयोग मिलकर असलियत की जमीन पर रिपोर्ट की फ़सल उगाने का काम करते हैं।
इसलिये इन्द्र भगवान असलियल जानने के लिये बादलों से बात करते हैं। बादल-बादल , बदली-बदली पूछताछ करते हैं। उनके पास अपने बहाने हैं।
कोई बादल कह रहा है कि उसके पास पानी ज्यादा है। ले जाने के लिये कुली बादल दिया जाये। भगवान टोंकते हैं सालों से तुम खुद अकेले बरसने जा रहे हो और आज क्यों तुम्हें कुली बादल चाहिये?
बादल ने सूचना दी कि अब उसका प्रमोशन हो गया है और उसे नियमानुसार पानी उठाकर ले जाने के लिये कुली बादल चाहिये।
इन्द्र भगवान उसे बहला रहे हैं- यार लेते जाओ पानी। जैसे पहले बरसते आये वैसे बरस आओ। कुली के पैसे क्लेम कर लेना। हम बिल पास करवा देंगे।
बादल अपने पिछले बिल के अभी तक पास न होने का उलाहना देता है। इन्द्र भगवान उसे आश्वासन देते हैं कि जल्द ही उसे पास करवा देगे और आगे बढ़ते हुये बिल क्लर्क को चाय-पानी करवा देने की समझाइस देते जाते हैं।
दूसरा बादल अपनी परेशानियां बताता है कि उसके साथ की बदली उसको छेड़ती है और रास्ते भर कहती है- तुम तो बादल लगते ही नहीं हो। कित्ते क्यूट हो। कहां बरसने के लिये पानी लिये जा रहे हो। ये पानी मुझे दे दो न! हमें अपना मेकअप छुड़ाना है।
इन्द्र भगवान उसको समझाते हैं- असल में वो वाली बदली शापग्रस्त अप्सरा है। मेकअप करने और छुड़ाने के अलावा उसे और कुछ आता नहीं। तुम्हारे साथ इसीलिये लगाया कि तुम जैसे रूखे-सूखे के बादल के साथ रहेगी तो कुछ बरसना भी सीखेगी। वैसे भी वो एक साल के लिये ही शापित है। इसके बाद फ़िर उसे महफ़िलों में सजना है। न जाने कितने देवताओं को प्रिय है। कईयों की मुंहलगी है। उससे कुछ कहते भी नहीं बनता।
एक बदली उलाहना देती है- साहब अब बरसने से क्या फ़ायदा। पहले बरसते थे तो लोग भीगते थे हमारे पानी से। बच्चे छप्प-छप्प , छैयां-छैयां खेलते थे। अब तो जहां बरसाती हूं लोग छतरी तान देते हैं। कित्ता दुख होता। हम यहां से बरसने के लिये धरती पर जायें और वो हमसे परदा कर लें। छाते की नोक भाले सी चुभती है।
इन्द्र भगवान बदली को निहारते हुये उवाचते हैं- तुम तो सब जानती हो। सबने तो अपने यहां बोरिंग करवा रखी है। अपने बाथरूम में भीग लेते हैं रोज शावर लगाकर। लेकिन तुम भी तो अपनी आदत से बाज आओ। न जाने क्यों तुमको शहर ही ज्यादा रास आते हैं। बरसने के लिये। गांव-देहात में जाया करो बरसने के लिये। वहां लोग सूनीं आखें लिये तुम्हारा इंतजार करते रहते हैं। यहां क्या मिलता है तुमको जाम सीवर , बंद नालों और खुदी सड़कों के सिवा। क्यों भारत माता ग्राम वासिनी का पल्ला छोड़कर शहरनिवासिनी के पास जाती हो हमेशा?
बदली ने कारण बताते हुये कहा- अब साहब आपसे क्या छिपायें? आपकी बात सही है कि शहरों में कूड़ा,कचरा के सिवा और कुछ नहीं है लेकिन बड़े-बड़े माल्स तो हैं। वहां अपना पानी फ़ेंक कर मैं किसी माल में घुस जाती हूं और एक के साथ दो फ़्री वाली स्कीम से अपनी पसंद के क्रीम पाउडर ले आती हूं। इसलिये शहर मुझे ज्यादा पसंद आते हैं।
इन्द्रजी ने चेताते हुये कहा- वो तो सब ठीक है लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? ड्यूटी चार्ट में तुमको गांवों में बरसने की ड्यूटी दी जाती है। लेकिन बरसती तुम शहरों में हो। किसी ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेकर सवाल पूछ दिये तो रोते नहीं बनेगा। सारा क्रीम पाउडर धुल-पुछ जायेगा।
बदली इठलाती और बल खाते हुये बोली- आपके रहते हुये मुझे किसी बात की चिन्ता नहीं। अब मैं चली। शहर के माल खुल गये होंगे। देखूं कौन से नये ब्रांड की क्रीम की सेल लगी है आज!
इन्द्र भगवान आगे खड़े ढेर सारे बादलों से पूछताछ के लिये बढ़े लेकिन तब तक पता चला कि बादलों का चाय का समय हो चुका था। इंद्र भगवान को भी चयास लगी थी। वे लपक कर अपने चैम्बर में पहुंचे और घंटी बजाकर बोले- रामू, जरा चाय पिलाओ।
33 responses to “रामू, जरा चाय पिलाओ”
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हमने तो आपका मॉल से अपना माल उठा लिया..
साहब अब बरसने से क्या फ़ायदा। पहले बरसते थे तो लोग भीगते थे हमारे पानी से। बच्चे छप्प-छप्प , छैयां-छैयां खेलते थे। अब तो जहां बरसाती हूं लोग छतरी तान देते हैं। कित्ता दुख होता। हम यहां से बरसने के लिये धरती पर जायें और वो हमसे परदा कर लें। छाते की नोक भाले सी चुभती है।
बहुत सही लिखा है जी.. -
मैं तो इंदर देवता की आराधना कर कहता हूँ कुछ काले घने पुरायट बादलों के लिए कुछ निर्झर बदलियाँ कानपुर जल्दी भिजवाए -कानपुरिया बिचारे निराश हो चले हैं !
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सुबह सुबह मजा आ गया. बाहर बारिश हो रही है.!
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रामू चाय के साथ भजिये भी……………..आखिर बारिश का मौसम है………
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ऐसा मूर्ख बादल तो हमने आज तक नहीं देखा जो बदली के छेड़ने से परेशान है,
लल्लू कहीं का ! -
बदली ने कारण बताते हुये कहा- अब साहब आपसे क्या छिपायें? आपकी बात सही है कि शहरों में कूड़ा,कचरा के सिवा और कुछ नहीं है लेकिन बड़े-बड़े माल्स तो हैं। वहां अपना पानी फ़ेंक कर मैं किसी माल में घुस जाती हूं और एक के साथ दो फ़्री वाली स्कीम से अपनी पसंद के क्रीम पाउडर ले आती हूं। इसलिये शहर मुझे ज्यादा पसंद आते हैं।
इन्द्रजी ने चेताते हुये कहा- वो तो सब ठीक है लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? ड्यूटी चार्ट में तुमको गांवों में बरसने की ड्यूटी दी जाती है। लेकिन बरसती तुम शहरों में हो। किसी ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेकर सवाल पूछ दिये तो रोते नहीं बनेगा। सारा क्रीम पाउडर धुल-पुछ जायेगा।
बदली इठलाती और बल खाते हुये बोली- आपके रहते हुये मुझे किसी बात की चिन्ता नहीं। अब मैं चली। शहर के माल खुल गये होंगे। देखूं कौन से नये ब्रांड की क्रीम की सेल लगी है आज!
इन्द्र भगवान आगे खड़े ढेर सारे बादलों से पूछताछ के लिये बढ़े लेकिन तब तक पता चला कि बादलों का चाय का समय हो चुका था। इंद्र भगवान को भी चयास लगी थी। वे लपक कर अपने चैम्बर में पहुंचे और घंटी बजाकर बोले- रामू, जरा चाय पिलाओ।………..
बहुत बेबाक और सटीक चित्रण है . -
आज बहुत दिनों बाद फुरसतिया जी असली रंग -ढंग में दिखे हैं ..सुन्दर!
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कोन इंदर? कैसा इंदर? उस की बादलों पर सियासत कभी की छिन चुकी। किसन जी की गोरधन पूजा का नहीं पता क्या। अब तो वह भी पुराना पड़ गया। हमारे यहाँ तो बरसात के राजा दारू के शौकीन देवता घास भैरू हैं। जो कहीं अली-गली में नाली के किनारे पड़े रहते थे। जब बरसात न होती तब उन्हें याद किया जाता है। पूजा कर के, नारियल चढ़ाते हुए बैलों की जोड़ियों से बिना पहिए की लकड़ी के तीन टुकड़ों को जोड़ कर बनाई गई गाड़ी को खींचा जाता है। वह अटक जाती है तो और बैल जोड़ियां लगाई जाती हैं। सैंकड़ो नारियल फोड़ दिए जाते हैं। इस के बाद बारिश हो ही जाती है।
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@ विवेक सिंह,
मूर्ख नहीं मित्र यह उसकी मज़बूरी है । बदली को नये ज़माने की हवा लगेली है, वह पुरुष मानसिकता का ताना दे देकर बेचारे को बिलगाये हुये है । क्या करे बेचारा, वह भरा बैठा है..
बदलिया ससुरी मान जाय तो झड़ी लगाये
एक सँभावना यह भी कि उस बेचारे की फ़ाइलें सचिवालय में घूम रही हों, बाबू ने दबा रखा हो कि, सूखा राहत का पैसा रिलीज़ हो जाये, तो वह इनके बरसने की समयसारिणी दराज़ से बाहर निकाले ।
निट्ठल्ला स्टिंग आपरेशन वाले तो यह भी दावा कर रहे हैं कि, केन्द्र और राज्य के झगड़ों की माया ने हाई कोर्ट से स्थगनादेश ले रखा है कि पहले तय होजाय कि यह किसके परिक्षेत्र का मामला है, और इसमें एक दूसरे को बदनाम करने की कितनी सँभावनायें हैं ।
मत भूलो कि तुम फ़ुरसतिया के ब्लाग पर टिप्पणी दे रहे हो । सँभावनाये अनन्त हैं, प्रभु ।
इण्डिया इज़ अ कँन्ट्री फ़ुल आफ़ पासिबिलीटीज़ – हिल्लोरी
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बहुत ही सुंदर। भाषा भी खूब है। बधाई।
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रामू ज़रा चाय पिलाओ। तीन स्पेशल … एक हमारे लिए, एक इस फ़ुरसतिया बादल के लिए और एक इस बदली के चक्कर में हुए बवाल के लिए। मलाई मार के……………
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हम तो रोज़ सुबह इन्द्र देव से यही प्रार्थना बार-बार करते हैं लेकिन असर नहीं हो रहा, कृपया हमारी भी गुहार सुनी जाये, बारिश की झमाझम बोछार हम तक भी आये। और रामू से चाय के साथ समोसे जरुर मगंवायें।
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अन्दर की बात बताऊ, टैंकरों से पानी सप्लाई करने वाले जल माफिया गिरोह के लोगो से कुछ सांठ-गाँठ हुई है, इन्द्र के मत्रिमंडल के कुछ मंत्री उस इलाके में मंडराते देखे गए है !
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हाय, हम बादल न हुये!
रामू की चाय पी पी कर ऊब लिये हैं। टूर पर निकलें तो शायद कोई बदरी दिखे! -
वाह…मजेदार
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जे बदली …..किस दिशा में निकली है .जरा बतलायेगे शुक्ल जी.. वो क्या है की हम भी मार्केट निकलने की सोच रहे थे….
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अद्भुत!
इन्द्र के दरबार का स्टिंग ऑपरेशन! बड़ा रोचक दरबार है इन्द्र बाबू का. -
गर्मी का मौसम बदस्तूर जारी है। बारिश आई लेकिन हांफ़ते हुये। लगता है बादलों का पानी रास्ते में बिचौलिये ले उड़े।
भाई वो ताऊ हांक लेगया आपके बादलों को तो अपनी भैंस समझ कर. और उसके शहर मे कल १५ घंटे मे ९ इंच बारिश करवा ली. आपको करवाना हो तो इंद्र को छोडो..ताऊओं से बात करो. आजकल बारिश का ठेका भी उनके पास ही है और ठेका जरा ज्यादा मे छूटा है सो पैसे तगडे लगेंगे.:)
रामराम. -
मस्त सरकारीकरण किया है, पूरे मामले का |
पोस्ट पढ़कर लगता है किसी ने बहुत बड़ा मानसून घोटाला किया है |
जांच होनी चाहिए !
बढ़िया लेखन | -
मजेदार!!!! इन्द्र भगवान के यहां भी व्यवस्था एकदम धरती के जैसी.
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वाह जी बहुत मजा आया, रोचक।
मुंबई पर मेहरबान है यहां दिल्ली में हम परेशान हैं -
वाह!!!!मज़ा आ गया. वैसे यहां भी बादलों का हाल कुछ ऐसा ही है.
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एक एक लाइन बेजोड़………कित्ता आनंद आया ,क्या बताएं…..बादल बदली ले न जाने कहाँ कहाँ बरस आये…..
लाजवाब लिखा है आपने…वाह !! -
ये हुई न रियल फुरसतिया पोस्ट..क्या चित्र खींचा है.
जान गये कि काहे बम्बई पर बादल बदली का कहर बरप रहा है और ग्राम सूखे पड़े हैं.
वाह!!
अब चाय पी जाये. -
बदरी बरसी -फ़ाईनली!
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तो असली कारन ये हैं… वो शापग्रस्त अप्सरा वाला इंसिडेंट मस्त है !
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अजी, इन्दर भगवान को क्या मस्का मारना, क्लौड सीडिंग कराई देबे:)
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मजेदार!
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दिनों बाद फुरसत मिली है अबके देव को?….
यहाँ बिहार में तो खूब जम के बरसी है दू ठो बदली कल से…… -
यहाँ दमन में तो लग रहा है बादल और बदली मिल गए है इसीलिए चार दिन से लगातार जोरदार बारिश हो रही है हा ए़क बात है जैसे यह केंद्र शासित राज्य है और यहाँ कि सुरक्षा राष्ट्रपती करता है वैसे शायद वहा भी कोई अलग इंतजाम किया हो इन्द्र देवता ने
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मज़ा आ गया सर जी ! जांच और आयोग वाला पैरा तो मुझे अत्यंत प्रिय है!
आप है ना, बड़े कलाकार हैं, बड़ी भारी भारी बातेँ बड़े ही हल्के फुल्के से लिख डालते हैं…
ज़रूर इन्द्र देव ने सभी बदलियों को मेकअप भत्ता नहीं दिया होगा… या फिर दिया भी होगा तो किसी ने बीच में ही सड़प लिया होगा… तभी बहाने कर रही हैं…! -
मस्त! लवली जी से सहमत, आज बहुत दिन बाद फुरसतिया टिपिकल मौजी स्टाइल में लिखे हैं!
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: फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176 June 21, 2011 at 11:24 pm | Permalink[...] रामू, जरा चाय पिलाओ [...]
टब सा उसको उलट दो, आये जान में जान!
-आप तो बारिश में कवि हो लिए जी!! कुछ लेते क्यूँ नहीं?
मुला अपुन का तो अभी यही हाल है -
बादल से बदली भिड़ी फ़िर होती गयी तकरार,
विदा हुये जब बरसकर हो गया उनमें प्यार।
खुबसूरत पंक्तियाँ भई, उ का है न बादल बदली का प्यार वाह ”
regards
अब पैदा हो गई है.. बूंदे
खूब बरस रही है….. बूंदे
जोरो से होने लगी बरसात
पंडित जी आपकी रचना बहुत ही बढ़िया है . खूब लिखी है आपने .आभार
विदा हुये जब बरसकर हो गया उनमें प्यार।
waah bahut khub
विदा हुये जब बरसकर हो गया उनमें प्यार।
बादल ने ही कुछ कहा होगा पहिले….लेकिन अंत भला त सब भला.
कपड़ा अरगनी से उतार के, कमरा में दो डार।
उपरोक्त पंक्तियों से सिद्ध होता है कि बिना अम्मा के कहे कवि अपनी समझ से बाहर से कपड़ों को अन्दर नहीं लाता, और लाकर भी व्यवस्थित करके रखने की बजाय उससे यही उम्मीद की जाती है कि वह डाल ही दे तो काफ़ी है, अम्मा की नजरों में कवि कितने काम की चीज है इससे साफ़ पता चलता है .
बादल फ़टा पहाड़ पर मर गये दो सौ लोग,
जांच हुई पता चला उसको गुस्से का था रोग।
यहाँ बादल की गलती को रोग बताकर उसकी सजा कम करवाने की साजिश रचने से कवि के वकील होने का आभास होता है .
बादल से बदली भिड़ी फ़िर होती गयी तकरार,
विदा हुये जब बरसकर हो गया उनमें प्यार।
बादल से बदली भिड़ी को यह क्यों नहीं कहा कि बदली से बादल भिड़ा ? इससे कवि के पुरुषवादी , और महिला विरोधी विचारों का खुलासा हो रहा है.
बदरी-बदरे की प्रीत से सुलगे पंचायत के लोग,
फ़ांसी, आगी , चिता का अब प्रेमकुंडली में योग।
पंचायत के लोगों को सुलगा हुआ बताने में अतिशयोक्ति अलंकार है .
मुंबई डूबी रो रही, है कम्पू गर्मी से हलकान,
टब सा उसको उलट दो, आये जान में जान!
मुंबई को उलटने की बात कहकर कवि ने मराठी मानुष को ठेस पहुँचाई है .
जांच हुई पता चला उसको गुस्से का था रोग।
ये पहाडियों पर ही क्यों गुस्सा उतारा बादल जी ने ?
बारिश कब तक होएगी रुला रही है धूप.
रामराम.
“प्यार हुआ क्यूं देरी से?” बदली गयी है रूठ!!
मुम्बई मे साहस भरा, बादल से वो डरती नही!!
डर कर या फ़िर घबरा कर, ऐसे कभी वो रुकती नही!!
बढ़ गयी फिर तकरार ,
इहाँ इत्ती गर्मी बड़ी,
हमने कपडे लिए सब फाड़.
कोई डूबत है..कोई सूखत है,
अजब लीला है सरकार ,
ना जान इहाँ बचे , न जान उहाँ ,
कैसे होइंहें बेडा पार
विदा हुये जब बरसकर हो गया उनमें प्यार।……..
क्या खूब वर्णन है.
मजे की बात यह है की हम अनूप जी के ब्लॉग पर आ कर उनकी पोस्ट की धुलाई की तारीफ़ कर रहे हैं
और बज गया कविता का बंद बाजा
सस्नेह,
- लावण्या
चण्डीदत्त शुक्ल, फोकस टेलिविजन, नोएडा
महोदय अम्मा कवि से कपड़े उतारने को नही कह रही है।
कवि कोई हिरोइन थोड़े ही हैँ।
परिहास भी स्तरीय होने चाहिऐँ।
बिन बरखा कवि बन गए भैया फुरसतिया!
इहाँ (बंगलोर में) छुप के रहें
मौज मनावत छुप छुप के
उत्तर में लोगबाग झुलस रहे.