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भारतीय आयुध निर्माणियां- जन्मदिन के बहाने एक पोस्ट
By फ़ुरसतिया on March 19, 2010
भारतीय आयुध निर्माणियाँ सबसे पुरानी एवं सबसे बड़ा औद्योगिक ढांचा
हैं जो रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग के अंतर्गत कार्य करती हैं।
आयुध निर्माणियां रक्षा हार्डवेयर ( यंत्र सामग्री ) सामान एवं उपस्कर के
स्वदेशी उत्पादन के लिए सशस्त्र सेनाओं को आधुनिकतम युध्दभूमि उपस्करों से
सज्जित करने के प्रारंभिक उद्वेश्यों के साथ एकनिष्ठ आधार की संरचना करती
हैं।
कल 18 मार्च को हमारी निर्माणियों ने अपना 208 वां जन्मदिन मनाया। इस मौके पर देश भर की निर्माणियों में और उससे जुड़े दूसरे संस्थानों में कार्यक्रम हुये। हमारी निर्माणी में भी हुये। सुबह-सुबह सात बजे प्रभात फ़ेरी नुमा जुलूस में फ़ैक्ट्री इस्टेट से चलकर फ़ैक्ट्री तक आये। पांच-सात किलोमीटर की इस यात्रा फ़ैक्ट्री के सैकड़ों लोग साथ थे। एक बार फ़िर सामूहिकता का सौंन्दर्य दिखा। फ़ैक्ट्री में निर्माणी संगठन का झंडा फ़हराया गया।
सुबह ही फ़ैक्ट्री इस्टेट के समाज सदन में तीन फ़ैक्ट्रियों (आयुध निर्माणी, फ़ील्ड गन और स्माल आर्मस) के उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गयी। जिन उत्पादों को हम बनाते हैं उनको आम जनता को दिखाया गया। हमारे छोटे हथियारों को लोग अपने हाथ में पकड़कर, पोज बनाकर फ़ोटों खिंचवा रहे थे। खाली रिवाल्वर से पटापट फ़ायरिंग कर रहे थे।
वहां पिनाक राकेट के हिस्से जो आयुध निर्माणी में बनाये जाते हैं उनको एक बार फ़िर से देखकर पुराने दिन याद आये। जब मैं आयुध निर्माणी में था तब हफ़्ते में दो दिन सुबह छह बजे से मीटिंग होती थी ताकि उनके बनाने में आने वाली कठियाइयां दूर की जा सकें और बाकी काम भी न रुकें।
कलाम साहब की वैज्ञानिक प्रतिभा के बारे में मैं नहीं अच्छी तरह से नहीं जानता लेकिन जो जो प्रोजेक्ट उनके निर्देशन में पूरे हुये उससे उनकी अद्भुत नेतृत्व क्षमता के बारे में पता चलता है। अग्नि मिसाइल और दूसरे प्रोजेक्ट में जो तरह-तरह के काम होते हैं उनको कराने की सुविधायें देश में एक जगह कहीं एक साथ उपलब्ध नहीं होती। अलग-अलग संस्थानों अलग-अलग तरह की क्षमतायें होती हैं। उन सबके बारे में जानकारी इकट्ठा करना और क्षमता के अनुसार उनको काम देना और समय पर पूरा करवाने में बहुत जटिल काम है।
बड़ी तोपों के गोलों को देखकर युद्ध के मैदान में सैनिकों की तकलीफ़ों का फ़िर से अंदाजा हुआ। एक तोप का खाली (बिना बारूद भरा) गोला करीब 40 से 45 किलो का होता है। बारूद भरने और फ़्यूज लगने के बाद वजन 60-70 पारकर जाता होगा। लड़ाई के समय उनको जल्दी-जल्दी उठाकर तोप में लोड करना और फ़ायरिंग करते रहना बहुत मेहनत और जीवट का काम है। गर्म इलाकों में तो और हाल खराब होते हैं।
प्रदर्शनी स्थल पर कैरिज (तोप गाड़ी) पर रखी गन को कैरिज सहित इधर-उधर करने पर झिक-झिक होती रही काफ़ी देर कि वो इधर से उधर कैसी होगी! लड़ाई के मैदान में ऐसी झिकझिक का समय किसके पास होता होगा।
कभी किसी रिपोर्ट में पढ़ा था कि एक दिन की लड़ाई में 1000 करोड़ रुपये स्वाहा हो जाता हैं। हम आस-पास के देश बात-बात पर एक-दूसरे की नेस्तनाबूद करने की बात करते रहते हैं। अगर मान लीजिये किसी ने किसी दूसरे देश के ऊपर हमला कर भी दिया और लड़ाई एक महीने चली तो तीस हजार करोड़ निपट जायेंगे। हासिल भी क्या होगा- सिवाय एक नयी सीमा रेखा के और हजारों विकलांगों, विधवाओं और अनाथ बच्चों को?
आजकल हम रिवाल्वर बनाने और अपने बनाये हुये रिवाल्वर बेंचने में लगे हुये हैं। जिनको रिवाल्वर लेने की चिट्ठियां भेजी जा चुकी हैं उनको फोन करके बुला रहे हैं कि आओ भैया अपना रिवाल्वर ले जाओ। जिनको चिट्ठी नहीं मिली उनको फ़ैक्स भेज रहे हैं, स्कैन करके मेल भेज रहे हैं। साइट पर भी जानकारी डाल दी है। अपना भेजा ड्राफ़्ट नं और तारीख डालिये और अपने आर्डर की स्थिति पता करिये।
आपको तो नहीं चाहिये रिवाल्वर! चाहिये तो यहां जाइये और निकालिये फ़ार्म और भेज दीजिये ड्राफ़्ट लगाकर। चट बुकिंग पट सप्लाई के हिसाब से जल्दी ही मिल जायेगा।
कल का दिन यादगार रहा। दिन भर कार्यक्रम हुये और मजे की बात इस साल में एक दिन में सबसे ज्यादा लोग रिवाल्वर ले गये।
चला जाये अब आज दुकान खोलने का समय हो गया।
सूचना: ऊपर फोटो स्लाइड में आवाज बंद करने के लिये फ़ोटो के ऊपर वाला माइक बंद कर दें।
कल 18 मार्च को हमारी निर्माणियों ने अपना 208 वां जन्मदिन मनाया। इस मौके पर देश भर की निर्माणियों में और उससे जुड़े दूसरे संस्थानों में कार्यक्रम हुये। हमारी निर्माणी में भी हुये। सुबह-सुबह सात बजे प्रभात फ़ेरी नुमा जुलूस में फ़ैक्ट्री इस्टेट से चलकर फ़ैक्ट्री तक आये। पांच-सात किलोमीटर की इस यात्रा फ़ैक्ट्री के सैकड़ों लोग साथ थे। एक बार फ़िर सामूहिकता का सौंन्दर्य दिखा। फ़ैक्ट्री में निर्माणी संगठन का झंडा फ़हराया गया।
सुबह ही फ़ैक्ट्री इस्टेट के समाज सदन में तीन फ़ैक्ट्रियों (आयुध निर्माणी, फ़ील्ड गन और स्माल आर्मस) के उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गयी। जिन उत्पादों को हम बनाते हैं उनको आम जनता को दिखाया गया। हमारे छोटे हथियारों को लोग अपने हाथ में पकड़कर, पोज बनाकर फ़ोटों खिंचवा रहे थे। खाली रिवाल्वर से पटापट फ़ायरिंग कर रहे थे।
वहां पिनाक राकेट के हिस्से जो आयुध निर्माणी में बनाये जाते हैं उनको एक बार फ़िर से देखकर पुराने दिन याद आये। जब मैं आयुध निर्माणी में था तब हफ़्ते में दो दिन सुबह छह बजे से मीटिंग होती थी ताकि उनके बनाने में आने वाली कठियाइयां दूर की जा सकें और बाकी काम भी न रुकें।
कलाम साहब की वैज्ञानिक प्रतिभा के बारे में मैं नहीं अच्छी तरह से नहीं जानता लेकिन जो जो प्रोजेक्ट उनके निर्देशन में पूरे हुये उससे उनकी अद्भुत नेतृत्व क्षमता के बारे में पता चलता है। अग्नि मिसाइल और दूसरे प्रोजेक्ट में जो तरह-तरह के काम होते हैं उनको कराने की सुविधायें देश में एक जगह कहीं एक साथ उपलब्ध नहीं होती। अलग-अलग संस्थानों अलग-अलग तरह की क्षमतायें होती हैं। उन सबके बारे में जानकारी इकट्ठा करना और क्षमता के अनुसार उनको काम देना और समय पर पूरा करवाने में बहुत जटिल काम है।
बड़ी तोपों के गोलों को देखकर युद्ध के मैदान में सैनिकों की तकलीफ़ों का फ़िर से अंदाजा हुआ। एक तोप का खाली (बिना बारूद भरा) गोला करीब 40 से 45 किलो का होता है। बारूद भरने और फ़्यूज लगने के बाद वजन 60-70 पारकर जाता होगा। लड़ाई के समय उनको जल्दी-जल्दी उठाकर तोप में लोड करना और फ़ायरिंग करते रहना बहुत मेहनत और जीवट का काम है। गर्म इलाकों में तो और हाल खराब होते हैं।
प्रदर्शनी स्थल पर कैरिज (तोप गाड़ी) पर रखी गन को कैरिज सहित इधर-उधर करने पर झिक-झिक होती रही काफ़ी देर कि वो इधर से उधर कैसी होगी! लड़ाई के मैदान में ऐसी झिकझिक का समय किसके पास होता होगा।
कभी किसी रिपोर्ट में पढ़ा था कि एक दिन की लड़ाई में 1000 करोड़ रुपये स्वाहा हो जाता हैं। हम आस-पास के देश बात-बात पर एक-दूसरे की नेस्तनाबूद करने की बात करते रहते हैं। अगर मान लीजिये किसी ने किसी दूसरे देश के ऊपर हमला कर भी दिया और लड़ाई एक महीने चली तो तीस हजार करोड़ निपट जायेंगे। हासिल भी क्या होगा- सिवाय एक नयी सीमा रेखा के और हजारों विकलांगों, विधवाओं और अनाथ बच्चों को?
आजकल हम रिवाल्वर बनाने और अपने बनाये हुये रिवाल्वर बेंचने में लगे हुये हैं। जिनको रिवाल्वर लेने की चिट्ठियां भेजी जा चुकी हैं उनको फोन करके बुला रहे हैं कि आओ भैया अपना रिवाल्वर ले जाओ। जिनको चिट्ठी नहीं मिली उनको फ़ैक्स भेज रहे हैं, स्कैन करके मेल भेज रहे हैं। साइट पर भी जानकारी डाल दी है। अपना भेजा ड्राफ़्ट नं और तारीख डालिये और अपने आर्डर की स्थिति पता करिये।
आपको तो नहीं चाहिये रिवाल्वर! चाहिये तो यहां जाइये और निकालिये फ़ार्म और भेज दीजिये ड्राफ़्ट लगाकर। चट बुकिंग पट सप्लाई के हिसाब से जल्दी ही मिल जायेगा।
कल का दिन यादगार रहा। दिन भर कार्यक्रम हुये और मजे की बात इस साल में एक दिन में सबसे ज्यादा लोग रिवाल्वर ले गये।
चला जाये अब आज दुकान खोलने का समय हो गया।
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:आयुध निर्माणियां- विनाशाय च दुष्कृताम
Posted in सूचना | 23 Responses
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बढ़िया जानकारी दी स्थापना दिवस पर..अब मिठाई खिलवाई जाये…
ये आपलोगों की मेहनत हए देव जिससे हमजैसों का सर्वाइवल है। यक़ीनन! बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूँ इस पोस्ट को पढ़कर। आर्टिलरी के गोलों की बाबत आपकी फिक्र और उनके उठाने में लगी मेहनत का जिक्र…बरबस होठों पे मुस्कान और कारगिल की याद ले आयी।
इंसास और एके एम्युनिशन के बारे में जानने की इच्छा थी। कभी लिखियेगा इस पर फुरसत से कि अपना ब्रेड-बटर तो वही है…
हाफ-स्लीव शर्ट और उजली टोपी में जुलूस के आगे खड़े अच्छे लग रहे हो आप…निगाहें अटक गयी किंतु आसमान में उड़ते उस बैलून के गुच्छे पर।…और जुलूस में कर्मचारियों के परिजनों को भी शामिल देखकर और अच्छा लगा।
ट्रायपाड पर खड़ी अपनी दुलारी एमएमजी को देखकर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। इस एक हथियार ने कितने ही मुश्किल आपरेशनों को आसान बना दिया है कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में संघर्षरत भारतीय सेना के लिये….
और ये know ur enemy…लगभग हर रोज गुनगुनाता हूँ अपने आइ-पाड पे ग्रीन डे के साथ…आपके स्लाइड-शो के साथ भी गुनगुना रहा हूँ…
do u know ur enemy we gotta know the enemy oye oye
violence is an energy against the enemy
bringing on the fury the choir infantry revolt against the honor to obey….
silence is the enemy against ur urgency…so rally uo the demons of ur soul
और मेरा सबसे फेवरिट लाइन इस गीत का
the insuregency will rise when the blood is being sacrificed, dont be blinded by the lies in ur eyes
we gott know the enemy…
हमारा तो एंथेम बन चुका है ये गीत जबसे सुना था पहली बार…कि we know our enemy
खैर…
थो को ठो पढ़ा जाये
अब बार बार क्या कहें – बहुत जानदार-शानदारश्च पोस्ट!
मजे की बात इस साल में एक दिन में सबसे ज्यादा लोग रिवाल्वर ले गये।…..कानपूर की शांति समिति वाले …….ओर “भाई लोग “दोनों आपसे पता पूछने शायद दूकान पर बैठे होगे .यूँ भी कानपूर फेमस इसी पिस्तोल वास्ते है ….कलम साहब की जीवनी हमारे पास अब भी रखी है….देश का दुर्भाग्य है उन्हें दोबारा राष्टपति बनने का मौका नहीं मिला राजनातिक दलों की वजह से ……..
खैर पिस्तोल शिस्तोल का गिफ्ट शिफ्ट होता है क्या…..
मैंने आपकी आयुध फैक्ट्री से ९ साल पहले ही ले लिया था रिवाल्वर,नहीं तो कल जरूर आता .
आपके यहा निर्मित रिवालवर ने लोगो को रिवाल्वर वाला बना दिया . बेबले स्काट की अच्छी कापी है कनपुरिया औजार . मेरे पास तो स्मिथ वेन्सन है
बढ़िया जानकारी दी आपने…
हम रिवाल्वर लेके का करेंगे? हमारे लायक भी कुछ बनाइये तो लेंगे.
अनुप जी अब पता चला कि आपकी पोस्टें क्यों इतनी धमाकेदार होती है । मार बारूद भर भर कर जो लिखते हैं ।