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आपके विरोध में नियमित लिखने वाला ब्लागर आपके लिये बिना पैसे का प्रचारक है
By फ़ुरसतिया on May 15, 2010
[समर्पण:यह पोस्ट समर्पित हैं उन तमाम अनाम
ब्लॉगरों के नाम जो अपना बहुमूल्य समय मेरे प्रति प्रेम प्रदर्शन में खपाते
रहते हैं। उनकी मेहनत देखकर मेरा निस्वार्थ श्रम की भावना में विश्वास बना
हुआ है। मैं जब भी उनकी मेहनत के बारे में सोचता हूं मुझे बहुत अफ़सोस होता
है कि काश इतनी मेहनत वे अपने नाम से कर पाते। एक नामी-गिरामी ब्लॉगर जो
सालों से ब्लॉगिंग करता आ रहा है जब बेनामी पोस्ट लिखने के लिये अपना फ़र्जी
ब्लॉग बनाता है , लिखता है, पोस्ट करता है, फ़िर अपने नाम से ही फ़र्जी
टिप्पणियां करके उसको बेगार करने वाले कुली की तरह संकलक में ऊपर उठाता है
तो उसकी मेहनत का अंदाजा करके कलेजा मुंह को आता है। अनामी पोस्ट लिखने के
बाद ब्लॉगों पर अपने नाम से टिपियाता है,कहीं मुस्कराता है कहीं बतियाता
है। इसके बाद फ़िर अनामी बन जाता है। इस सब को देखकर मुझे अपने यहां सीवर
लाइन में काम करने वाला कामगार याद आता है। वो बेचारा सीवर लाइन में काम के
लिये घुसते समय मास्क लगाता है। काम करता है। पसीने से लथपथ हो जाता है।
ऊपर आकर फ़िर से दूसरे काम में जुट जाता है। लेकिन सीवर वाला सफ़ाई कर्मचारी
कुछ अलग होता है। वो गन्दगी हटाता है ये बेचारा गन्दगी फ़ैलाता है। बस इसी
लिये बेचारा बदनाम हो जाता है। लेकिन इसकी मेहनत को देखकर सच में बहुत तरस
आता है। ]
पिछले दो दिनों से कई अनामी ब्लागर साथियों का अपने प्रति प्रेम देखकर मन भर आया, गला रुंध गया। भावुक हो गया मैं। मेरे एक मित्र श्रम विभाग में हैं। ब्लॉग भी देखते हैं। एक दिन फ़ोन करके पूछने लगे- इन लेखकों को किस दर से भुगतान करते हो?
मैंने कहा -भुगतान? मैं तो इनको जानता ही नहीं।
मित्र बोले- ऐसा कैसे हो सकता है कि जो तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता है तुम उसके बारे में कुछ नहीं जानते।
मैंने कहा- जैसे इंसान भगवान के बारे में कुछ नहीं जानता लेकिन भगवान इंसान की सब पोल पट्टी जानता है वैसे ही ये अनामी ब्लॉगर पोस्ट-पोस्ट बासी हैं।
मित्र बोले- लेकिन जब ये तुम्हारे बारे में इतना कुछ लिख लिखते हैं, पसीना बहाते हैं तो कुछ तो लेते होंगे तुमसे!
मैंने कहा- अरे न भाई, ये मेरे बिना पैसे के प्रचारक हैं।
मित्र बोले- लेकिन भाई ये तो कानून के खिलाफ़ है कि तुम इनसे बिना न्यूनतम मजदूरी दिये काम कराते हो। कल को ये किसी अदालत में चले गये तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
मैं बोला- लेन-देन तो तब हो जब ये सामने आयें। कुछ मांगे। लेकिन ये तो निस्वार्थ सेवा का व्रत लिये हुये हैं। इनको गधों की तरह अनथक सेवा भाव से पसीना बहाते देखकर कभी-कभी तो बड़ा दुख होता है। अपनी पोलपट्टी खोलने वाली पोस्टों को खोजने के लिये हांफ़ते-पसीना बहाते, ब्लॉग पर सटाते देखकर मन इनके प्रति दयाभाव से भर जाता है। गीला हो जाता है।
मित्र बोला- नाटक मत करो। ऐसे बात कर रहे हो जैसे पोस्ट लिखते हो। उड़ो मत! हम सब समझते हैं तुम आंसू की आड़ में अपनी चिरकुटई को छिपा रहे हो। ये भावुकता के चोंचले अपने ब्लॉगजगत के लिये रखो। हमें केवल सच बताओ।
मैं बोला- मैं सच कह रहा हूं भाई! कभी-कभी तो मेरा मन करता है कि अपनी सारी पोलपट्टी खोलने वाली पोस्टों के लिंक इनको देकर इनका गदहाश्रम कुछ तो कम करूं।
मित्र बोला- तो करते क्यों नहीं?
मै बोला- इसलिये नहीं करता कि फ़िर इनके जीवन का उद्देश्य समाप्त हो जायेगा। अभी ये पोलपट्टी खोलने के काम को अपने जीवन का परम कर्तव्य समझकर उसमें चींटें की तरह चपटे हैं। जैसे ही इनका काम मैं कर दूंगा इनकी जीवनलीला टी-20 में भारत की चुनौती की तरह खतम हो जायेगी।
मित्र बोला- लेकिन कल को किसी ने पूछा कि तुम किस नियम के तहत इनसे बेगार करवाते हो तो क्या जबाब दोगे?
मैं बोला- ये काम ब्लॉगिंग के सिद्धांत संख्या 24 के अनुसार एकदम उचित है। उसी के अनुसार इसको सही साबित करने का प्रयास करूंगा।
ब्लॉगिंग के सिद्धांत की बात सुनते ही मित्र भागते हुये आये और मुझसे उसको पढ़वाने का आग्रह करने लगे। हड़बड़ी में वे फ़ोन का चोंगा साथ उठा लाये थे। मित्र मेरे पास से लेकर ब्लॉगिंग के सिद्धांत बांचने लगे।
आप भी बांचियेगा ब्लॉगिंग के सिद्धान्त? देखिये, बांचिये:
पिछले दो दिनों से कई अनामी ब्लागर साथियों का अपने प्रति प्रेम देखकर मन भर आया, गला रुंध गया। भावुक हो गया मैं। मेरे एक मित्र श्रम विभाग में हैं। ब्लॉग भी देखते हैं। एक दिन फ़ोन करके पूछने लगे- इन लेखकों को किस दर से भुगतान करते हो?
मैंने कहा -भुगतान? मैं तो इनको जानता ही नहीं।
मित्र बोले- ऐसा कैसे हो सकता है कि जो तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता है तुम उसके बारे में कुछ नहीं जानते।
मैंने कहा- जैसे इंसान भगवान के बारे में कुछ नहीं जानता लेकिन भगवान इंसान की सब पोल पट्टी जानता है वैसे ही ये अनामी ब्लॉगर पोस्ट-पोस्ट बासी हैं।
मित्र बोले- लेकिन जब ये तुम्हारे बारे में इतना कुछ लिख लिखते हैं, पसीना बहाते हैं तो कुछ तो लेते होंगे तुमसे!
मैंने कहा- अरे न भाई, ये मेरे बिना पैसे के प्रचारक हैं।
मित्र बोले- लेकिन भाई ये तो कानून के खिलाफ़ है कि तुम इनसे बिना न्यूनतम मजदूरी दिये काम कराते हो। कल को ये किसी अदालत में चले गये तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
मैं बोला- लेन-देन तो तब हो जब ये सामने आयें। कुछ मांगे। लेकिन ये तो निस्वार्थ सेवा का व्रत लिये हुये हैं। इनको गधों की तरह अनथक सेवा भाव से पसीना बहाते देखकर कभी-कभी तो बड़ा दुख होता है। अपनी पोलपट्टी खोलने वाली पोस्टों को खोजने के लिये हांफ़ते-पसीना बहाते, ब्लॉग पर सटाते देखकर मन इनके प्रति दयाभाव से भर जाता है। गीला हो जाता है।
मित्र बोला- नाटक मत करो। ऐसे बात कर रहे हो जैसे पोस्ट लिखते हो। उड़ो मत! हम सब समझते हैं तुम आंसू की आड़ में अपनी चिरकुटई को छिपा रहे हो। ये भावुकता के चोंचले अपने ब्लॉगजगत के लिये रखो। हमें केवल सच बताओ।
मैं बोला- मैं सच कह रहा हूं भाई! कभी-कभी तो मेरा मन करता है कि अपनी सारी पोलपट्टी खोलने वाली पोस्टों के लिंक इनको देकर इनका गदहाश्रम कुछ तो कम करूं।
मित्र बोला- तो करते क्यों नहीं?
मै बोला- इसलिये नहीं करता कि फ़िर इनके जीवन का उद्देश्य समाप्त हो जायेगा। अभी ये पोलपट्टी खोलने के काम को अपने जीवन का परम कर्तव्य समझकर उसमें चींटें की तरह चपटे हैं। जैसे ही इनका काम मैं कर दूंगा इनकी जीवनलीला टी-20 में भारत की चुनौती की तरह खतम हो जायेगी।
मित्र बोला- लेकिन कल को किसी ने पूछा कि तुम किस नियम के तहत इनसे बेगार करवाते हो तो क्या जबाब दोगे?
मैं बोला- ये काम ब्लॉगिंग के सिद्धांत संख्या 24 के अनुसार एकदम उचित है। उसी के अनुसार इसको सही साबित करने का प्रयास करूंगा।
ब्लॉगिंग के सिद्धांत की बात सुनते ही मित्र भागते हुये आये और मुझसे उसको पढ़वाने का आग्रह करने लगे। हड़बड़ी में वे फ़ोन का चोंगा साथ उठा लाये थे। मित्र मेरे पास से लेकर ब्लॉगिंग के सिद्धांत बांचने लगे।
आप भी बांचियेगा ब्लॉगिंग के सिद्धान्त? देखिये, बांचिये:
- ब्लाग दिमाग की कब्ज़ और गैस से तात्कालिक मुक्ति का मुफीद उपाय है।
- ब्लाग पर टिप्पणी सुहागन के माथे पर बिंदी के समान होती है।
- टिप्पणी विहीन ब्लाग विधवा की मांग की तरह सूना दिखता है।
- अगर आप इस भ्रम का शिकार हैं कि दुनिया का खाना आपका ब्लाग पढ़े बिना हजम नहीं होगा तो आप अगली सांस लेने के पहले ब्लाग लिखना बंद कर दें। दिमाग खराब होने से बचाने का इसके अलावा कोई उपाय नहीं है।
- अनावश्यक टिप्पणियों से बचने के लिये किये गये सारे उपाय उस सुरक्षा गार्ड को तैनात करने के समान हैं जो शोहदों से किसी सुंदरी की रक्षा करने के लिये तैनात किये जाते हैं तथा बाद में सुरक्षा गार्ड सुंदरी को उसके आशिकों तक से नहीं मिलने देता।
- जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे।
- किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
- अगर आपके ब्लाग पर लोग टिप्पणियां नहीं करते हैं तो यह मानने में कोई बुराई नहीं है कि जनता की समझ का स्तर अभी आपकी समझ के स्तर तक नहीं पहुंचा है। अक्सर समझ के स्तर को उठने या गिरने में लगने वाला समय समझ के स्तर के अंतर के समानुपाती होता है।
- जब आप किसी लंबी पोस्ट को बाद में इत्मिनान से पढ़ने के लिये सोचते हैं तो उस पोस्ट की हालत उस अखबार जैसी ही होती है जिसे आप कोई अच्छा लेख पढ़ने के लिये रद्दी के अखबारों से अलग रख लेते हैं लेकिन समय के साथ वह अखबार भी रद्दी के अखबारों में मिलकर ही बिक जाता है-अनपढ़ा।
- जब आप कोई टिप्पणी करते समय उसे बेवकूफी की बात मानकर ‘करूं न करूं’ की दुविधा जनक हालत में ‘सरल आवर्त गति’ (Simple Hormonic Motion) कर रहे होते हैं उसी समयावधि में हजारों उससे ज्यादा बेवकूफी की टिप्पणियां दुनिया की तमाम पोस्टों पर चस्पाँ हो जाती हैं।
- अगर आपके ब्लाग का जलवा पूरी दुनिया में फैला हुआ है तथा कोई आपकी आलोचना करने वाला नहीं है तो यह तय है कि या तो आपने अपने जीवनसाथी को अपना लिखा पढ़ाया नहीं या फिर जीवनसाथी को सुरक्षा कारणों से पढ़ने-लिखने से परहेज है।
- अगर आप अपने जीवन साथी से तंग आ चुके हैं तथा उससे निपटने का कोई उपाय आपको समझ में नहीं आ रहा तो आप तुरंत ब्लाग लिखना शुरु कर दीजिये।
- नियमित,हरफनमौला तथा बहुत धाकड़ लिखने वाले ब्लाग पढ़ने के बाद अक्सर यह लगता है कि ‘लिंक लथपथ’ यह ब्लाग पढ़ने से अच्छा है कि कोई अखबार पढ़ते हुये कोई बहुत तेज चैनेल क्यों न देखा जाये।
- ‘कामा-फुलस्टाप’,'शीन-काफ’ तक का लिहाज रखकर लिखने वाला ‘परफेक्शनिस्ट ब्लागर’ गूगल की शरण में पहुंचा वह ब्लागर होता हैं जिसने अपना लिखना तबतक के लिये स्थगित कर रखा होता है जब तक कि ‘कामा-फुलस्टाप’ ,’शीन-काफ’ को ‘यूनीकोड’ में बदलने वाला कोई ‘साफ्टवेयर’ नहीं मिल जाता।
- अनजान ,आलोचनात्मक टिप्पणियां अक्सर खुदा के नूर की तरह होती हैं जो आपको तब भी राह दिखाती हैं जबकि आप चारो तरफ से प्रशंसा के कुहासे में घिरे होते हैं।
- अगर आप अपने ब्लाग पर हिट बढ़ाने के लिये बहुत ही ज्यादा परेशान हैं तो तमाम लटके-झटकों का सहारा छोड़कर किसी चैट रूम में जाकर उम्र,लिंग,स्थान की बजाय अपने ब्लाग का लिंक देना शुरु कर दें।
- अगर आप अपना ब्लाग बिना किसी अपराध बोध के बंद करना चाहते हैं तो किसी स्वनाम धन्य लेखक को अपने साथ जोड़ लें।
- अच्छा लिखने वाले की तारीफ करते रहना आपकी सेहत के लिये भी जरूरी है। तारीफ के अभाव में वह अपना ब्लाग बंद करके अलग पत्रिका निकालने लगता है। तब आप उसकी न तारीफ कर सकते हैं न बुराई।
- ऊटपटांग लिखने वाले का अस्तित्व आपके बेहतरीन लिखने का खुशनुमा अहसास बनाये रखने के निहायत जरूरी है। घटिया लिखने वाला वह नींव की ईंट है जिसपर आपका बढ़िया लिखने के अहसास का कगूंरा टिका होता है।
- बहुत लिखने वाले ‘ब्लागलती’ को जब कुछ समझ में नहीं आता तो वह एक नया ब्लाग बना लेता है,जब कुछ-कुछ समझ में आता है तो टेम्पलेट बदल लेता है तथा जब सबकुछ समझ में आ जाता है तो पोस्ट लिख देता है। यह बात दीगर है कि पाठक यह समझ नहीं पाता कि इसने यह किसलिये लिखा!
- जब आपका कोई नियमित प्रशंसक,पाठक आपकी पोस्ट पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता तो निश्चित मानिये कि वो आपकी तारीफ में दो लाइन लिखने की बजाय बीस लाइन की पोस्ट लिखने में जुटा है। उन बीस लाइनों में आपकी तारीफ में केवल लिंक दिया जाता है जो कि अक्सर गलती संख्या ४०४(HTML ERROR-404) का संकेत देता है।
- जब कोई ब्लागर अपना ब्लाग बन्द करने की धमकी देता है तब यह समझ लेना चाहिये कि वह नियमित लेखन के लिये कमर कर चुका है।
- अगर आपके ब्लाग पर लोग ध्यान नहीं दे रहे हैं तो आप अपने ब्लाग पर कोई विवादास्पद बहस शुरू कर दीजिये। अधिक ध्यान आकर्षित करने के लिये भाषा आक्रामक कर लीजिये। खुद यह सब न कर पा रहे हों तो छंटे हुये लोगों से करवाने लगिये।
- आपके विरोध में नियमित लिखने वाला ब्लागर आपके लिये बिना पैसे का प्रचारक है।
- किसी साझा मंच के बारे में सबसे अधिकार पूर्वक बयान वे लोग देते हैं जिनका उस मंच से कोई ताल्लुक/जुड़ाव नहीं होता।
- ब्लाग जगत में सारे सार्वजनिक मंच रेलवे प्लेटफार्म की तरह होते हैं। जहां लोग वे सारे कार्यव्यापार करते हैं जो वे कभी भी अपने ब्लाग पर नहीं करना चाहते।
- लोगों को मनमानी करने के आरोप में निकाल बाहर करने वाले वे लोग होते हैं जो खुद अपने साथ मनमानी किये जाने का रोना रोते रहे हैं।
- किसी बेसिरपैर की बात को जो जितने अधिक विश्वास से कह सकता है वह उतना ही सफल ब्लागर होता है।
- तमाम छोटी-मोटी ऐं-वैं टाइप पोस्टें सड़क पर बिखरी उन कीलों की तरह होती हैं जो किसी बड़े से बड़े ब्लाग-टायर की हवा निकाल देती हैं।
- अगर आप निराकार ईश्वर के बारे में कुछ समझने की प्रयास करते-करते थक चुके हैं और आपको उसके बारे में कुछ अहसास नहीं हुआ तो आप अनाम ब्लागर के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू कर दीजिये। निराकार ईश्वर की तरह वह सब जगह है और कहीं नहीं है। घट-घट में भी है और पनघट में भी।
- ब्लाग जगत की सेहत को लेकर चिंता करने वाले और उसको नियंत्रित करने वाले के प्रयास उस टिटिहरी के प्रयास की तरह होते हैं जो पैर उलटा करके इसलिये सोती है कि जब आकाश गिरेगा तो वह उसे थाम लेगी।
- जब किसी लेखक को कोई विषय नहीं सूझता तो वह संस्मरण लिखने लगता है। संस्मरण में अपने कामों का बखान करते हुआ ब्लागर इतना बांगडू लगता है कि किसी का भी मन उसकी तारीफ़ करके आगे बढ़ने का करने लगता है।
- आपका ब्लाग आपके व्यक्तित्व का आइना होता है। जैसे-जैसे आपका व्यक्तित्व चौपट होता जाता है वैसे-वैसे आपको धुंधले आइने पसंद आने लगते हैं-साफ आइने में चेहरे भी नजर आते हैं साफ/ धुंधला चेहरा हो तो धुंधला आइना चाहिये। -वाहिद शाहजहांपुरी
- किसी सर्वज्ञानी ब्लागर के ज्ञान बोध और हास्य बोध में हमेशा ३६ का आंकड़ा होता है।
- अगर आपसे अनियमित बात करने वाला कोई ब्लागर आपसे बिना किसी काम के नमस्ते करता है तो समझ लीजिये कि अगले संदेश में वह आपको अपने सबसे नये लेख की कड़ी देने वाला है। इसके बाद अगर फिर वह आपको नमस्ते करता है तो इसका मतलब वह टिप्पणी का तकादा करने वाला है। इस तरह के हमलों से बचने का सबसे मुफ़ीद उपाय यही है कि आप किसी भी नमस्ते के जवाब में अपने नयी-पुरानी, ऐसी-वैसी पोस्ट का लिंक थमाने की आदत डाल लें। नमस्ते तो होते रहते हैं।
- जैसे हर नया लेखक कालजयी होता है वैसे ही हर ब्लागर जिसके बारे में अखबारों में छपता है वह हिंदी का पहला ब्लागर होता है। जो ब्लागर अखबार में जहां खड़ा हो जाता है लाइन वहीं से शुरू हो जाती है। अब यह अलग बात है कि जितने ब्लागर होते हैं उतनी ही लाइनें होती जाती हैं।
- हर पुराना ब्लौगर ,हर नये ब्लौगर को बेकार और खुद को तीसमारखां समझता है।
- ब्लॉगजगत में पतनशीलता की बात करने वाले अपनी तरफ़ हर संभव प्रयास करते हैं कि जल्दी से जल्द से मामला मुकाम पर पहुंचे।
- कुछ लोग ब्लॉगजगत में लम्पटता और बदतमीजी को बोल्डनेस और वैचारिक ईमानदारी के रूप में परिभाषित करते हैं।
- एक ही ब्लॉगर को अलग-अलग अनामी नामों लिखते देखकर उन अनाथ बच्चों का ख्याल आता है जिनके मां-बाप ने उनको पैदा तो कर देते हैं लेकिन अपना नाम देने से जी चुराते हैं।
- आपके समर्थन में दूसरों को गाली देना वाला अनामी ब्लॉगर अगर आप खुद नहीं हैं तो आपके लिये कब तालीबान बन जाये यह आप तो नहीं ही जान सकते वह मासूम ब्लॉगर भी नहीं जानता।
- आपका निरंतर विरोध करने वाला ब्लॉगर द्वारा आपकी तारीफ़ करते हुये कोई बात शुरू करना इस बात का संकेत है कि वह कोई ऐसी बात कहना चाहता है जिसे पढ़ते ही आप तिलमिला जायें।
- ऊपरोक्त हमले से मुकाबले का सबसे मुफ़ीद उपाय है कि आप इज्जत वाले हिस्से को कट-पेस्ट करके टिप्पणी में चेंप कर अभिभूत होकर धन्यवाद टिकाकर फ़ूट लें।
- ब्लॉगजगत में महिलाओं को तब तक बड़ी इज्जत और सम्मान के भाव से देखा जाता है जब तक अपनी सीमा में रहें। सीमा से बाहर निकलते ही उनके साथ लम्पटता शुरू हो जाती है। मजे की बात यह है सीमा तय करने की जिम्मेदारी भी लम्पट लोग ही निभाते हैं।
- महिलाओं को हमेशा तमीज, पहनावे, चालचलन की समझाइश देने वाले भाई लोगों की बातें सुनकर मुझे मंदिर के पास के उस भिखारी की याद आती है जो स्विस बैंक के बेहतर प्रबंधन के बारे में जानकारी देता रहता था।
- राज्य से निकालने के बाद बादशाह अकबर जब बीरबल को खोजना चाहते थे तो कोई बुद्धिमानी की बात पूछकर उनकी पहचान करते थे। ऐसे ही नियमित ब्लॉगर जब अनामी ब्लॉगर के रूप में लिखता है तो उसकी पहचान उसके लेखन के अंदाज, कॉमा, फ़ुलस्टॉप लगाने के तरीकों और चिरकुट हरकतों से होती है।
- किसी दूसरे के ब्लॉग पर लिखी बात या टिप्पणी का बहाना लेकर ब्लॉगिंग बन्द करने वाले लोग वे लोग होते हैं जो जिन्दगी में कोई काम अपने बूते नहीं कर पाते।
- अनामी ब्लॉगरों को किसी के खिलाफ़ पोस्ट लिखकर खुद टिपियाते देखकर लगता है कि वे चिरकुटई के भवन की नींव की ईंट हैं जो हमेशा अनाम रहने को अभिशप्त हैं।
- दो ब्लॉगरों के बीच सुलह-समझौता करवाने वाले मिशनरी सुलहकार सुलह कराते समय भी दोनों को एक-दूसरे की चिरकुटैयां बार-बार-लगातार दिखाता-गिनाता रहता है ताकि उसके ऊपर किसी पक्ष को अंधेरे में रखने का आरोप न लगे।
- ब्लॉगजगत में किसी भी बवाल को देखते ही मामला रफ़ा-दफ़ा कराने में सिद्ध लोगों की बांछे उनके शरीर में जहां भी होती हैं, खिल जाती हैं।
- हिंदी ब्लॉगिंग में घटने वाली हर बात के लिये अंग्रेजी ब्लॉगिंग की नजीर रखने वाले आने वाले समय में भारतवर्ष का मतलब भी आक्सफ़ोर्ड एडवांस्ड लर्नर्स डिक्शनरी से देखकर पता करेंगे।
हम तो आपके प्रशंसक थे, हैं और रहेंगे।
सिपाही अलबत्ता नहीं बन पाएंगे क्योंकि आपके सिपाही बने तो
ब्लागजगत को कुरुक्षेत्र मानना पड़ेगा।
फिलहाल मूड नहीं है ऐसा
…….रही, ई पोस्ट की बात… इतना मेहनत किये हैं तो बहुते अच्छा है. ई पंडित ऊ पंडित सबही कहेंगे..दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ..!
बहुत सही !
सोच रही हूँ अच्छा हुआ कि ब्लोगिंग करने के लिए यां अनिवार्यता नहीं कि इसके लक्षणों सिद्धांतों को पढ़ पहले परीक्षा में उतीर्ण होवो…तब ब्लोगिंग का अधिकार मिलेगा….
इक्यावन सिद्धांत याद कर जब परीक्षा पास करनी होती….कैसे रट के रख पाती इतना सब…
बहुत सही. पूरे सिद्धांत चिट्ठाजगत के नोटिस बोर्ड पर लगाने लायक.
Very true !
इसे फ़िर से पढा और तब अहसास हुआ कि पहली बार पढी चीजें दुबारा पढने पर और अच्छी लगती हैं। ये वाला सूत्र जाने कैसे छूट गया था। आप अद्भुत हैं॥
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…
आप ऐसे ही नहीं फुरसत में रहते हैं,आखिर सूत्र-सिद्धांत खोजने और घोखने में भी तो टैम लगता है !
बहुत फाडू अंदाज़ !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगिंग के साइड-इफेक्ट !
रेखा की हालिया प्रविष्टी..दीपावली की शुभ कामनाएँ
amit की हालिया प्रविष्टी..समीक्षा की समीक्षा: एजेन्ट विनोद
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..सरल क्वांटम भौतिकी: रेडियो सक्रियता क्यों होती है?
कुछ लोग ब्लॉगजगत में लम्पटता और बदतमीजी को बोल्डनेस और वैचारिक ईमानदारी के रूप में परिभाषित करते हैं।
दो ब्लॉगरों के बीच सुलह-समझौता करवाने वाले मिशनरी सुलहकार सुलह कराते समय भी दोनों को एक-दूसरे की चिरकुटैयां बार-बार-लगातार दिखाता-गिनाता रहता है ताकि उसके ऊपर किसी पक्ष को अंधेरे में रखने का आरोप न लगे।
ब्लॉगजगत में महिलाओं को तब तक बड़ी इज्जत और सम्मान के भाव से देखा जाता है जब तक अपनी सीमा में रहें। सीमा से बाहर निकलते ही उनके साथ लम्पटता शुरू हो जाती है। मजे की बात यह है सीमा तय करने की जिम्मेदारी भी लम्पट लोग ही निभाते हैं।
Swapna Manjusha ‘ada’ की हालिया प्रविष्टी..WAHABI Saudi Prostitution Exposed…..Saudi Prince in Night Club spend one million dollar