http://web.archive.org/web/20140209181457/http://hindini.com/fursatiya/archives/1661
…. एक बीच बचाव करने वाले से बातचीत
By फ़ुरसतिया on September 4, 2010
बहुत दिन तक लोग ब्लॉगिंग को हल्की विधा बता-बताकर इसका कद छोटा
बताने की साजिश करते आ रहे थे। लेकिन हाल के दिनों में ब्लॉगिंग में हुये
अभिनव प्रयोगों ने इसे नयी ऊंचाई दी है। छीछालेदर के जिन आयामों को
ब्लॉगिंग ने इस बीच छुआ है उससे लगता है कि साहित्य भी इसके सामने कुच्छ
नहीं। जितनी तेजी से चरित्र-फ़रित्र यहां हनित होने लगे हैं , उतनी स्पीड की
साहित्य में कल्पना भी नहीं की जा सकती। मैगी प्रसंशको की संख्या में
विकट इजाफ़ा हुआ है। आज वाह-वाह, अश-अश, क्या बात है, क्या कहने और कल ही
थू-थू, शर्म-शर्म, हाय-हाय। एक ही तरह की बात पर धुर-विरोधी बातें देखकर
लगता है ब्लॉग-जगत बहुत डायनामिक है। विकट परिवर्तनशील है।
परिवर्तन के इस दौर में नये-नये तरह के काम के अवसर पैदा हुये हैं।
इसमें से एक काम है-विवाद निपटाने का। अलग-अलग तरह के विवाद-निपटान केन्द्र
खोल रखे हैं लोगों ने। कुछ लोगों का तो फ़ुल-टाइम पेशा ही है विवाद का
निपटारा। विवाद न हों तो उनके हाथ का काम सा छिन जाता है। ऐसे ही एक ब्लॉगर
फ़ुरसतियाजी एक विवाद निपटाते हुये पकड़े गये। उनको पकड़कर उनके मुंह में
माइक सटाकर उनका इंटरव्यू ले लिये गया। उसकी कुछ झलकियां भी देख लीजिये
सवाल-जवाब के रूप में।
सवाल: आप क्या काम करते हैं फ़ुरसतियाजी?
जवाब: करना क्या है जी! ब्लॉग लिखता हूं, टिपियाता हूं, चर्चियाता हूं। देश के बारे में चिन्तित होता हूं। इसके बाद जब कोई काम नहीं रहता- तो झगड़े निपटवाता हूं।
सवाल: ये झगड़े निपटवाने का काम कब से करते आ रहे हैं?
जवाब: मुझे खुद ही पता नहीं। लेकिन क्या इसे काम की मान्यता मिल गयी? लोग तो इसे बेवकूफ़ी ही मानते आये हैं आज तक और सच पूछा जाये तो है भी।
सवाल: वैसे आपकी याद में पहला झगड़ा आपने कब निपटवाया?
जबाब: मुझे याद है जब मैं बहुत छोटा था। एक बार क्रिकेट खेलते समय गेंद ऐसी जगह चली गयी जहां दो लोग बड़े मन से झगड़ा कर रहे थे। मैं फ़ील्डिंग कर रहा था। बल्लेबाज दौड़ के रन बनाये डाल रहे थे। मैं उनको रनआउट करने के लिये गेंद उठाने झुका तब तक दोनों झगड़ा करने वालों के एक-एक कंटाप उनके ऊपर से फ़िसलकर मेरे ऊपर पड़ा। मैं वहीं बेहोश हो गया। वे दोनों अपना झगड़ा भूलकर हमको होश में लाने की कोशिश में जुट गये। तब से लोग यह मानने लगे कि मैं झगड़ा निपटवाने में काम आ सकता हूं।
सवाल: क्या आप फ़ुल टाइम झगड़ा निपटवाते हैं? आप किस लेवल के झगड़े निपटवाते हैं?
जवाब: फ़ुल टाइम जब लोग झगड़ा नहीं करते तो निपटवागे कौन? झगड़े का कोई लेवेल नहीं देखते। जहां दिख जाये झगड़ा वहां निपटवाने लगते हैं।
सवाल: कैसे करवाते हैं यह काम? बहुत मेहनत लगती होगी।
जवाब: अरे काहे की मेहनत? जहां झगड़ा देखा दस-पन्द्रह ज्ञान की बातें फ़टकार दीं। भाईचारे का छिड़काव कर दिया। शांति की धूप-बत्ती जला दी। हाथ जोड़ कर वापस आ गये। इतने में ज्यादातर झगड़े निपट जाते है।
सवाल: लेकिन इतना भाईचारा कहां से लाते हैं आप? शांति की धूप-बत्ती बहुत खप जाती होगी।
जवाब: अरे भाईचारे की कोई कमी है ब्लॉगजगत में? जिधर देखो उधर भाईचारे के झरने बहते दिखते हैं। शांति का भी हर तरफ़ हल्ला मचाते रहते हैं लोग। सब इफ़रात में है यहां। वहीं से उठा लाते हैं और छिड़क देते हैं झगड़े वाली जगह में।
सवाल: और ज्ञान की बातें किधर मिलती हैं?
जवाब: अरे कहां का ज्ञान और कैसा ज्ञान? झगड़ा निपटाने वाला बेवकूफ़ी की बातें करता तो लोग उसको ज्ञान की बात मानकर ग्रहण कर लेते हैं। वैसे मानस है, गीता है, नीत्से है, शेक्सपियर है, ईलियट हैं, रूसो हैं ये हैं वो हैं न जाने कौन-कौन है। किसी के भी नाम से कुछ भी ठेल दो लोग सच मानकर सहम जाते हैं झगड़ा निपटवाने वाले से। ज्ञान में थ्री डी इफ़ेक्ट डालने के लिये कभी-कभी संस्कृत, लेटिंन, फ़्रेंच, अरबी का लेप लग देतें हैं तो ज्ञान चमकने लगता अल्युमिनियम फ़्वायल की तरह। कभी-कभी शेरो शायरी भी ठेल देते हैं झगड़ा करने वालों के बीच। वे अचक्के में झगड़ा करना भूलकर वाह-वाह करने लगते हैं ।
सवाल: किस तरह के शेर आम तौर पर ठेलते हैं? कुछेक उदाहरण बतायें!
जवाब: प्रेम-मोहब्बत, भाईचारे के शेर ही काम आते हैं ऐसे मौके पर ज्यादातर। जैसे ये कुछ ध्यान आ रहे हैं:
मोहब्बत में बुरी नीयत से कुछ भी सोचा नहीं जाता ,
कहा जाता है उसे बेवफा, समझा नहीं जाता.(वसीम बरेलवी)
ये जो नफरत है उसे लम्हों में दुनिया जान लेती है,
मोहब्बत का पता लगते , जमाने बीत जाते है.
अगर तू इश्क में बरबाद नहीं हो सकता,
जा तुझे कोई सबक याद नहीं हो सकता. (वाली असी)
और ये तो सदाबहार है, जहां मन आये ठेल देते हैं:
दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे,
फ़िर कभी जब दोस्त बन जायें,शर्मिंदा न हो। (बशीर बद्र)
सवाल: क्या हासिल होता है झगड़ा निपटवाने में आपको?
जवाब: मिलता तो कुछ नहीं है सिवाय गालियों के लेकिन हम कहते यहीं हैं कि इससे हमें सुकून मिलता है। झगड़ा भले निपटे या बढ़ जाये लेकिन भले आदमी का प्रमाणपत्र तो कहीं गया नहीं। भले आदमी की इमेज कितनी काम देती इसके बारे में आपको क्या बताना? एक बार इमेज बन गयी तो आप तमाम चिरकुटैयां बेखटके कर सकते हैं। कोई माई का लाल टोकने की हिम्मत नहीं कर सकता। टोके तो डपट दो- ऐरा-गैरा मत समझना, भला आदमी हूं। जितना कभी रामगढ़ वाले गब्बर सिंह से डरते थे उससे ज्यादा आजकल लोग भले आदमी से डरते हैं-न जाने कब भलेपन पर उतर आये।
सवाल: क्या समस्यायें आती हैं इस काम में? किस तरह की तकलीफ़ें आती हैं?
जवाब: असल में झगड़ा निपटवाने में सबसे अहम बात है झगड़ा निपटवाने का समय तय करना। एक बार आपको सही समय अंदाजा हो गया तो आप कभी असफ़ल नहीं हो सकते! जब झगड़ा करने वाले थक जाते हैं। उनके सारे तर्क-तीर समाप्त हो जाते हैं तो वे बड़ी बेकरारी से ताकते हैं कि कोई आये और उनको झगड़े से निजात दिलाये। परेशानी तब आती है जब दोनों का मन भरा नहीं होता है झगड़ा करने से। तब अगर कोई उनका निपटारा करने जाये तो दोनों अपना झगड़ा छोड़कर निपटारा करने की कोशिश में लगे व्यक्ति को दौड़ाकर निपटाने में लग जाते हैं। उनके झगड़ानन्द में दखल उनको बर्दाश्त नहीं होता।
सवाल: झगड़ा करते समय लोग आपस में कैसा बर्ताव करते हैं?
जवाब: मत पूछिये। महिमा बरनि न जाये टाइप। उस समय तो कुछ लोग इत्ता गुस्साये रहते हैं कि शब्द झाग की तरह निकलते हैं। हिंदीभाषी लोग अंग्रेजी में बोलने लगते हैं। अंग्रेजी वाले फ़ारसी। वाचाल गुस्से के मारे हकलाने लगते हैं। एक-एक शब्द ऐसे टाइप करते हैं जैसे तारे जमीन का हर्षिल हो (डिक्लेक्सिया का मरीज)। हर नहले पर दस-बीस दहले मारने लगते हैं। झगड़ते समय मारे गुस्से के उनके सौंन्दर्य दस बारह चांद लग जाते हैं। अक्सर यह भी होता है वे अपने-अपने महापुरुषों की अच्छाइयां नोचकर अपने ऊपर और नीच पात्रों की बुराइयां अगले पर सटा देते हैं। महापुरुष बेचारे अपनी अच्छाइयां नुच जाने घायल हो जाते हैं।
सवाल: ऐसा भी होता है कि झगड़ा करने वाले झगड़ा निपटवाने के बाद फ़िर भिड़ जायें?
जवाब: हां अक्सर होता है। जैसे अपने यहां जिन्दगी भर असफ़ल रहने वाले क्रिकेट खिलाड़ी में भी बहुत सारी क्रिकेट बची रहती है या फ़िर कब्र में पांव लटकाये जनसेवक अंदर भी बहुत सारी देश सेवा की भावना जमी रहती है वैसे ही कई झगड़ा करने वालों के अंदर में झगड़ा निपटने के बाद भी बहुत सारा झगड़ा बचा रहता है। उसको खर्च करने के लिये वे फ़िर लड़ने लगते हैं।
सवाल: लेकिन ऐसा कैसे होता है कि झगड़ा निपटने के तुरंत बाद फ़िर लोग झगड़ने लगते हैं!
जवाब: अरे भाई बताया न! लोग अपना झगड़ा खर्चने के लिये बेताब रहते हैं। बहुत से कारण हैं फ़िर झगड़ा करने के। किसी को वीरता का दौरा पड़ जाता है, किसी को सत्य का। कोई अस्मिता की लड़ाई ठान लेता है, कोई अस्तित्व की। जैसे कोई एंटीबॉयटिक का कोर्स पूरा न लिया जाये तो बीमारी फ़िर से जकड़ लेती है वैसे ही झगड़ा पूरा न किया तो फ़िर से ज्यादा जोर से होने लगता है।
सवाल: लोगों क्या सोचते हैं आपकी इस हरकत के बारे में?
जवाब: आपने हरकत कहकर खुद बयान कर दिया। लोगों को जो समझ में आता है बोलने लगते हैं। अक्सर लोग नाराज होते हैं कि झगड़ा खतम होने से उनका मनोरंजन खतम हो जाता है। पिछली बार तो यह भी सुनने में आया कि हमने झगड़ा खत्म करवा कर जो पाप किया है उसके लिये इतिहास बहुत कड़ी सजा सुनायेगा। माफ़ नहीं करेगा।
सवाल: इस पर हमारी क्या प्रतिक्रिया है?
जबाब:अरे बाप रे! झगड़ा निपटवाने वाला कोई प्रतिक्रिया दे सकता है भला। लोग दौड़ा लेंगे। झगड़ा निपटवाने वाला और कुछ भी कर सकता है प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त कर सकता। करेगा तो उसका झगड़ा हो जायेगा। फ़िर दूसरे उसका झगड़ा निपटवाने दौड़े आयेंगे। बड़ी ब्लॉगहंसाई की बात है। इसलिये ऐसी बातों को इस्माइली मारकर अनसुना कर दिया जाता है!
सवाल: आपकी स्थिति कैसी है झगड़ा निपटवाने वालों की जमात में? आपसे भी बड़े लोग हैं झगड़ा निपटवाने वाले कि आप ही सबसे महान हैं?
जबाब: मन तो खुद को ही सबसे बड़ा झगड़ा निपटारक कहने का हो रहा है। लेकिन सच यह है कि हमसे बड़े-बड़े दिग्गज हैं यहां। हम तो केवल समय मिलने पर यह काम करते हैं। कुछ भाई लोगों का फ़ुल टाइम काम है यह। वे इतने एक्सपर्ट हैं झगड़ा निपटवाने में कि जहां जाते हैं झगड़ा निपटवाने लगते हैं। वहां तक झगड़ा निपटवा देते हैं जहां झगड़े का ’झ’ तक नहीं होता। एक बार दो दोस्त उनके सामने गर्मजोशी से गले मिले और आपस में धौल-धप्पा करने लगे। एक भाईजी ने देख लिया और फ़ौरन उनको हड़का कर उनका झगड़ा निपटवा दिया। इत्ती कसकर हड़काया कि बेचारे बहुत दिन तक गुमसुम बने रहे।
सवाल :आपका झगड़ा निपटवाने वालों के लिये कोई संदेश है क्या?
जवाब: संदेश कुछ नहीं है। सुझाव है कि झगड़ा निपटवाने में सुरक्षा उपाय की अनदेखी नहीं करनी चाहिये। जिस समय झगड़ा निपटवाने लगे उस समय झगड़ारत चिरकुट से चिरकुट ब्लॉगर को भी समझदार, धीर-गंभीर ब्लॉगर बताये। हो सके तो उसी के ब्लॉग पर लिखे अच्छे आदर्श वाक्यों के एनेस्थीसिया से उसके झगड़े की भावना को सुलाने का प्रयास करे।
सबसे जरूरी सलाह मैं यह देना चाहूंगा कि कोई भी झगड़ा निपटते ही झगड़ा स्थल फ़ूट ले। पता नहीं कब दोनों का बचा हुआ झगड़ा उभर आये और वे फ़िर झगड़ने पर आमादा हो जायें। ऐसे में दोनों मिलकर पहला हमला झगड़ा निपटवाने वाले पर करते हैं!
इसके बाद एक और सवाल के लिये संवाददाता ने माइक फ़ुरसतिया की तरफ़ किया तबतक उन्होंने वे गर्दन उचकाकर अपने लैपटाप की तरफ़ देखा और बुदबुदाये- लगता है यह झगड़ा भी अब पक गया। इसको अब निपट जाना चाहिये। इसके बाद वे अपने लैपटाप पर झुककर तमाम आदर्श वाक्य कट-पेस्ट करके झगड़ा निपटवाने में लग गये थे।
तुम्हारा अनहुआ झगड़ा निपटाना चाहता हूं।
जब भी भिड़्ना मुझे बताकर भिड़ना ,
झगड़ते समय तुम्हारे बीच आना चाहता हूं।
कुछ नहीं रखा मेल-मिलाप की दुनिया में
मैं झगड़े का सेन्सेक्स उठाना चाहता हूं।
बहुत सारी सूक्तियां भनभनाती हैं जेहन में,
वो सभी मैं तुमको सुनाना चाहता हूँ.
भिड़ना तो अकल को अलग करके भिड़ना,
मैं तुमको अकल की बातें बताना चाहता हूं।
अनूप शुक्ल
सवाल: आप क्या काम करते हैं फ़ुरसतियाजी?
जवाब: करना क्या है जी! ब्लॉग लिखता हूं, टिपियाता हूं, चर्चियाता हूं। देश के बारे में चिन्तित होता हूं। इसके बाद जब कोई काम नहीं रहता- तो झगड़े निपटवाता हूं।
सवाल: ये झगड़े निपटवाने का काम कब से करते आ रहे हैं?
जवाब: मुझे खुद ही पता नहीं। लेकिन क्या इसे काम की मान्यता मिल गयी? लोग तो इसे बेवकूफ़ी ही मानते आये हैं आज तक और सच पूछा जाये तो है भी।
सवाल: वैसे आपकी याद में पहला झगड़ा आपने कब निपटवाया?
जबाब: मुझे याद है जब मैं बहुत छोटा था। एक बार क्रिकेट खेलते समय गेंद ऐसी जगह चली गयी जहां दो लोग बड़े मन से झगड़ा कर रहे थे। मैं फ़ील्डिंग कर रहा था। बल्लेबाज दौड़ के रन बनाये डाल रहे थे। मैं उनको रनआउट करने के लिये गेंद उठाने झुका तब तक दोनों झगड़ा करने वालों के एक-एक कंटाप उनके ऊपर से फ़िसलकर मेरे ऊपर पड़ा। मैं वहीं बेहोश हो गया। वे दोनों अपना झगड़ा भूलकर हमको होश में लाने की कोशिश में जुट गये। तब से लोग यह मानने लगे कि मैं झगड़ा निपटवाने में काम आ सकता हूं।
सवाल: क्या आप फ़ुल टाइम झगड़ा निपटवाते हैं? आप किस लेवल के झगड़े निपटवाते हैं?
जवाब: फ़ुल टाइम जब लोग झगड़ा नहीं करते तो निपटवागे कौन? झगड़े का कोई लेवेल नहीं देखते। जहां दिख जाये झगड़ा वहां निपटवाने लगते हैं।
सवाल: कैसे करवाते हैं यह काम? बहुत मेहनत लगती होगी।
जवाब: अरे काहे की मेहनत? जहां झगड़ा देखा दस-पन्द्रह ज्ञान की बातें फ़टकार दीं। भाईचारे का छिड़काव कर दिया। शांति की धूप-बत्ती जला दी। हाथ जोड़ कर वापस आ गये। इतने में ज्यादातर झगड़े निपट जाते है।
सवाल: लेकिन इतना भाईचारा कहां से लाते हैं आप? शांति की धूप-बत्ती बहुत खप जाती होगी।
जवाब: अरे भाईचारे की कोई कमी है ब्लॉगजगत में? जिधर देखो उधर भाईचारे के झरने बहते दिखते हैं। शांति का भी हर तरफ़ हल्ला मचाते रहते हैं लोग। सब इफ़रात में है यहां। वहीं से उठा लाते हैं और छिड़क देते हैं झगड़े वाली जगह में।
सवाल: और ज्ञान की बातें किधर मिलती हैं?
जवाब: अरे कहां का ज्ञान और कैसा ज्ञान? झगड़ा निपटाने वाला बेवकूफ़ी की बातें करता तो लोग उसको ज्ञान की बात मानकर ग्रहण कर लेते हैं। वैसे मानस है, गीता है, नीत्से है, शेक्सपियर है, ईलियट हैं, रूसो हैं ये हैं वो हैं न जाने कौन-कौन है। किसी के भी नाम से कुछ भी ठेल दो लोग सच मानकर सहम जाते हैं झगड़ा निपटवाने वाले से। ज्ञान में थ्री डी इफ़ेक्ट डालने के लिये कभी-कभी संस्कृत, लेटिंन, फ़्रेंच, अरबी का लेप लग देतें हैं तो ज्ञान चमकने लगता अल्युमिनियम फ़्वायल की तरह। कभी-कभी शेरो शायरी भी ठेल देते हैं झगड़ा करने वालों के बीच। वे अचक्के में झगड़ा करना भूलकर वाह-वाह करने लगते हैं ।
सवाल: किस तरह के शेर आम तौर पर ठेलते हैं? कुछेक उदाहरण बतायें!
जवाब: प्रेम-मोहब्बत, भाईचारे के शेर ही काम आते हैं ऐसे मौके पर ज्यादातर। जैसे ये कुछ ध्यान आ रहे हैं:
मोहब्बत में बुरी नीयत से कुछ भी सोचा नहीं जाता ,
कहा जाता है उसे बेवफा, समझा नहीं जाता.(वसीम बरेलवी)
ये जो नफरत है उसे लम्हों में दुनिया जान लेती है,
मोहब्बत का पता लगते , जमाने बीत जाते है.
अगर तू इश्क में बरबाद नहीं हो सकता,
जा तुझे कोई सबक याद नहीं हो सकता. (वाली असी)
और ये तो सदाबहार है, जहां मन आये ठेल देते हैं:
दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे,
फ़िर कभी जब दोस्त बन जायें,शर्मिंदा न हो। (बशीर बद्र)
सवाल: क्या हासिल होता है झगड़ा निपटवाने में आपको?
जवाब: मिलता तो कुछ नहीं है सिवाय गालियों के लेकिन हम कहते यहीं हैं कि इससे हमें सुकून मिलता है। झगड़ा भले निपटे या बढ़ जाये लेकिन भले आदमी का प्रमाणपत्र तो कहीं गया नहीं। भले आदमी की इमेज कितनी काम देती इसके बारे में आपको क्या बताना? एक बार इमेज बन गयी तो आप तमाम चिरकुटैयां बेखटके कर सकते हैं। कोई माई का लाल टोकने की हिम्मत नहीं कर सकता। टोके तो डपट दो- ऐरा-गैरा मत समझना, भला आदमी हूं। जितना कभी रामगढ़ वाले गब्बर सिंह से डरते थे उससे ज्यादा आजकल लोग भले आदमी से डरते हैं-न जाने कब भलेपन पर उतर आये।
सवाल: क्या समस्यायें आती हैं इस काम में? किस तरह की तकलीफ़ें आती हैं?
जवाब: असल में झगड़ा निपटवाने में सबसे अहम बात है झगड़ा निपटवाने का समय तय करना। एक बार आपको सही समय अंदाजा हो गया तो आप कभी असफ़ल नहीं हो सकते! जब झगड़ा करने वाले थक जाते हैं। उनके सारे तर्क-तीर समाप्त हो जाते हैं तो वे बड़ी बेकरारी से ताकते हैं कि कोई आये और उनको झगड़े से निजात दिलाये। परेशानी तब आती है जब दोनों का मन भरा नहीं होता है झगड़ा करने से। तब अगर कोई उनका निपटारा करने जाये तो दोनों अपना झगड़ा छोड़कर निपटारा करने की कोशिश में लगे व्यक्ति को दौड़ाकर निपटाने में लग जाते हैं। उनके झगड़ानन्द में दखल उनको बर्दाश्त नहीं होता।
सवाल: झगड़ा करते समय लोग आपस में कैसा बर्ताव करते हैं?
जवाब: मत पूछिये। महिमा बरनि न जाये टाइप। उस समय तो कुछ लोग इत्ता गुस्साये रहते हैं कि शब्द झाग की तरह निकलते हैं। हिंदीभाषी लोग अंग्रेजी में बोलने लगते हैं। अंग्रेजी वाले फ़ारसी। वाचाल गुस्से के मारे हकलाने लगते हैं। एक-एक शब्द ऐसे टाइप करते हैं जैसे तारे जमीन का हर्षिल हो (डिक्लेक्सिया का मरीज)। हर नहले पर दस-बीस दहले मारने लगते हैं। झगड़ते समय मारे गुस्से के उनके सौंन्दर्य दस बारह चांद लग जाते हैं। अक्सर यह भी होता है वे अपने-अपने महापुरुषों की अच्छाइयां नोचकर अपने ऊपर और नीच पात्रों की बुराइयां अगले पर सटा देते हैं। महापुरुष बेचारे अपनी अच्छाइयां नुच जाने घायल हो जाते हैं।
सवाल: ऐसा भी होता है कि झगड़ा करने वाले झगड़ा निपटवाने के बाद फ़िर भिड़ जायें?
जवाब: हां अक्सर होता है। जैसे अपने यहां जिन्दगी भर असफ़ल रहने वाले क्रिकेट खिलाड़ी में भी बहुत सारी क्रिकेट बची रहती है या फ़िर कब्र में पांव लटकाये जनसेवक अंदर भी बहुत सारी देश सेवा की भावना जमी रहती है वैसे ही कई झगड़ा करने वालों के अंदर में झगड़ा निपटने के बाद भी बहुत सारा झगड़ा बचा रहता है। उसको खर्च करने के लिये वे फ़िर लड़ने लगते हैं।
सवाल: लेकिन ऐसा कैसे होता है कि झगड़ा निपटने के तुरंत बाद फ़िर लोग झगड़ने लगते हैं!
जवाब: अरे भाई बताया न! लोग अपना झगड़ा खर्चने के लिये बेताब रहते हैं। बहुत से कारण हैं फ़िर झगड़ा करने के। किसी को वीरता का दौरा पड़ जाता है, किसी को सत्य का। कोई अस्मिता की लड़ाई ठान लेता है, कोई अस्तित्व की। जैसे कोई एंटीबॉयटिक का कोर्स पूरा न लिया जाये तो बीमारी फ़िर से जकड़ लेती है वैसे ही झगड़ा पूरा न किया तो फ़िर से ज्यादा जोर से होने लगता है।
सवाल: लोगों क्या सोचते हैं आपकी इस हरकत के बारे में?
जवाब: आपने हरकत कहकर खुद बयान कर दिया। लोगों को जो समझ में आता है बोलने लगते हैं। अक्सर लोग नाराज होते हैं कि झगड़ा खतम होने से उनका मनोरंजन खतम हो जाता है। पिछली बार तो यह भी सुनने में आया कि हमने झगड़ा खत्म करवा कर जो पाप किया है उसके लिये इतिहास बहुत कड़ी सजा सुनायेगा। माफ़ नहीं करेगा।
सवाल: इस पर हमारी क्या प्रतिक्रिया है?
जबाब:अरे बाप रे! झगड़ा निपटवाने वाला कोई प्रतिक्रिया दे सकता है भला। लोग दौड़ा लेंगे। झगड़ा निपटवाने वाला और कुछ भी कर सकता है प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त कर सकता। करेगा तो उसका झगड़ा हो जायेगा। फ़िर दूसरे उसका झगड़ा निपटवाने दौड़े आयेंगे। बड़ी ब्लॉगहंसाई की बात है। इसलिये ऐसी बातों को इस्माइली मारकर अनसुना कर दिया जाता है!
सवाल: आपकी स्थिति कैसी है झगड़ा निपटवाने वालों की जमात में? आपसे भी बड़े लोग हैं झगड़ा निपटवाने वाले कि आप ही सबसे महान हैं?
जबाब: मन तो खुद को ही सबसे बड़ा झगड़ा निपटारक कहने का हो रहा है। लेकिन सच यह है कि हमसे बड़े-बड़े दिग्गज हैं यहां। हम तो केवल समय मिलने पर यह काम करते हैं। कुछ भाई लोगों का फ़ुल टाइम काम है यह। वे इतने एक्सपर्ट हैं झगड़ा निपटवाने में कि जहां जाते हैं झगड़ा निपटवाने लगते हैं। वहां तक झगड़ा निपटवा देते हैं जहां झगड़े का ’झ’ तक नहीं होता। एक बार दो दोस्त उनके सामने गर्मजोशी से गले मिले और आपस में धौल-धप्पा करने लगे। एक भाईजी ने देख लिया और फ़ौरन उनको हड़का कर उनका झगड़ा निपटवा दिया। इत्ती कसकर हड़काया कि बेचारे बहुत दिन तक गुमसुम बने रहे।
सवाल :आपका झगड़ा निपटवाने वालों के लिये कोई संदेश है क्या?
जवाब: संदेश कुछ नहीं है। सुझाव है कि झगड़ा निपटवाने में सुरक्षा उपाय की अनदेखी नहीं करनी चाहिये। जिस समय झगड़ा निपटवाने लगे उस समय झगड़ारत चिरकुट से चिरकुट ब्लॉगर को भी समझदार, धीर-गंभीर ब्लॉगर बताये। हो सके तो उसी के ब्लॉग पर लिखे अच्छे आदर्श वाक्यों के एनेस्थीसिया से उसके झगड़े की भावना को सुलाने का प्रयास करे।
सबसे जरूरी सलाह मैं यह देना चाहूंगा कि कोई भी झगड़ा निपटते ही झगड़ा स्थल फ़ूट ले। पता नहीं कब दोनों का बचा हुआ झगड़ा उभर आये और वे फ़िर झगड़ने पर आमादा हो जायें। ऐसे में दोनों मिलकर पहला हमला झगड़ा निपटवाने वाले पर करते हैं!
इसके बाद एक और सवाल के लिये संवाददाता ने माइक फ़ुरसतिया की तरफ़ किया तबतक उन्होंने वे गर्दन उचकाकर अपने लैपटाप की तरफ़ देखा और बुदबुदाये- लगता है यह झगड़ा भी अब पक गया। इसको अब निपट जाना चाहिये। इसके बाद वे अपने लैपटाप पर झुककर तमाम आदर्श वाक्य कट-पेस्ट करके झगड़ा निपटवाने में लग गये थे।
मेरी पसंद
मैं अब कुछ कर दिखाना चाहता हूंतुम्हारा अनहुआ झगड़ा निपटाना चाहता हूं।
जब भी भिड़्ना मुझे बताकर भिड़ना ,
झगड़ते समय तुम्हारे बीच आना चाहता हूं।
कुछ नहीं रखा मेल-मिलाप की दुनिया में
मैं झगड़े का सेन्सेक्स उठाना चाहता हूं।
बहुत सारी सूक्तियां भनभनाती हैं जेहन में,
वो सभी मैं तुमको सुनाना चाहता हूँ.
भिड़ना तो अकल को अलग करके भिड़ना,
मैं तुमको अकल की बातें बताना चाहता हूं।
अनूप शुक्ल
Posted in बस यूं ही | 49 Responses
महागुरुदेव, बड़े दिनों बाद किसी पोस्ट पर कमेंट कर रहा हूं, शुरुआत आप से करना मंगलकारी है…
नारायण…नारायण…
जय हिंद…
Khushdeep Sehgal, Noida की हालिया प्रविष्टी..बताइए कल अच्छा था या आजखुशदीप
“छीछालेदर के जिन आयामों को ब्लॉगिंग ने इस बीच छुआ है उससे लगता है कि साहित्य भी इसके सामने कुच्छ नहीं। ”
ठीक ही कह रहे हैं।
manoj kumar की हालिया प्रविष्टी..फ़ुरसत में …! कुल्हड़ की चाय!
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय ॥
इस आलेख के ज़रिए समकालीन ब्लॉग साहित्य पर अच्छा प्रकाश डाला गया है । साहित्य समाज का दपर्ण है । पर यदि दर्पण मटमैला है तो व्यक्ति या समाज का क्या दोष?
किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसैली बात लिखूं
शेर की मैं तहज़ीब निभाऊं या अपने हालात लिखूं
manoj kumar की हालिया प्रविष्टी..फ़ुरसत में …! कुल्हड़ की चाय!
.
.
फुरसत में लिखा गया झगड़ा-निपटावन-पुराण,
वैसे यह ‘झगड़ा’ कोई ब्लॉगर तो नहीं…जिसे निपटाना है/निपटाने की जरूरत है … ;))
आभार!
प्रवीण शाह की हालिया प्रविष्टी..देखो कौन कह रहा है आज कि- किसी ऊपर वाले ने नहीं बनाई यह दुनियायह तो खुद ही बनती और खत्म होती रहती है !!!
प्रणाम…
आज के कमेन्ट का आग़ाज़ आप से शुरू कर रहा हूँ…. गुरूजी आप का जवाब ही नहीं है…. एक बात तो है…ब्लॉग्गिंग का छीछालेदर देख कर मन तो खिन्न ही हो गया है… आरोप- प्रत्यारोप की हाईट यहीं देखी है… कितना टाइम है यहाँ लोगों के पास… मैं यही सोचता हूँ… और लोग भी बिना किसी को जाने , मिले कितना खराब लिख देते हैं… बिना एप्लीकेशन ऑफ़ माइंड के… पर एक बात तो है…झगडे में कई लोगों का फ़ोकट में एंटरटेनमेंट तो ही जाता है… वक्ती तौर पर…. पता नहीं कोई फिल्म देखी थी ….उसमें किसी कॉलेज का सीन था… सीन में यह था कि कॉलेज के दो गैंग में झगडा हो जाता है… और सब बुरी तरह से मारपीट करते हैं… गाली-गलौज करते हैं… और थोड़ी ही दूरी पर सड़क पर दो देसी कुत्तों को भौं-भौं कर के झगड़ते हुए दिखाते हैं…. उस वक़्त मुझे वो सीन बहुत सिम्बौलिक लगा था….कुल मिलकर बहुत अच्छी पोस्ट….
मैं झगड़े का सेन्सेक्स उठाना चाहता हूं।….:)
मजेदार कविता
क्या बड़िया ज्ञान दिया है झगड़ा निर्मूलन का, कब बीच में कूदें, क्या डालें और कब फ़ूट लें वहां से।
एक क्लेमर बनवा कर जगह जगह कॉपी पेस्ट करना चाहिये था, कि
“यहाँ हर प्रकार के झगड़े बाजार से सस्ते दामों पर तसल्लीबख्श तरीके से निबटवाये जाते हैं।”
संक्रांति काल की बेला में देशसेवा, समाजसेवा और हिन्दीसेवा का पुण्य तो मिलता ही, ब्लॉगर्स निश्चिंत होकर झगड़ने के पुनीत कर्म में रत हो सकते कि निपटवाने के लिये शुक्ल जी आते ही होंगे।
sanjay की हालिया प्रविष्टी..बिछड़े सभी बारी बारी-३
नोटिस : अनूप शुक्ला कनहापुर
चिरन्जीवी शकुनीसौरभ के सूत्रों से आपके द्वारा लिखित पोस्ट का सँज्ञान लिया गया,
प्रथम दृष्टया विवेचना से यह अनुभव हुआ है कि, ” हमार कोऊ का करिहे ” की भावना में मदान्ध हो आप अपने को स्वयँभू झगड़ाधीश घोषित करने का षड़यन्त्र रच रहे है ।
अतएव सूचित किया जाता है, बालक कि जिन महान-आत्माओं नें झगड़ा करने की दीक्षा तक मुझसे नहीं ली है, उन्हें भी आप झगड़मठ से बिना अनुमति लिये शिक्षित करने में प्रयासरत दिखने का दोषी पाये जाते है ।
अतएव दण्डस्वरूप आपको झगेड़पीठ द्वारा आगामी 101 दिनों तक निम्न मन्त्र का सार्वजनिक रूप से पाठ करने का आदेश दिया जाता है..
बड़ी बहिनिया यहि मांगै दान,
लड़ाई झगरा मॉ मोर बढ़ही मान.
इसकी अवहेलना होने की दशा में आपको आगामी कार्तिक मास के अड़े-फँसे दीक्षान्त आयोजन में भाग लेने से वँचित किया जा सकता है । कृपया नोट करें इस दशा में आप झगेड़ू-दमकल की उपाधि पाने की पात्रता से च्युत कर दिये जायेंगे । आपकी पोस्ट से प्रभावित होते हुये भी झगेड़पीठ आपकी सहायता में असमर्थ होगी ।
आज्ञा से – बखेड़ू-शिरमौर
डिसक्लेमर :
“जेकर पेट पिराय ऊ दू रोटी जेदा खाय
बतावा माई उहाँ मोर-तोर का जाय ”
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..दो दिन- स्कॉटस और बैग पाइप
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..नंगे गायब !
हमारी तो यही कामना है कि उन्हें वर्ष २०११ के लिए सर्वश्रेष्ठ झगड़ा निपटावन ब्लॉगर का सम्मान मिले…:-)
इसी विषय पर सुकरात का एक शेर अर्ज करूंगा और कहूँगा कि;
झगड़े में क्या रखा है कुछ भी तो नहीं यार
झगड़ा करे जो ब्लॉगर वो इंसान नहीं है
एक दोहा महान नीत्शे का भी लीजिये
ब्लॉगर जो झगड़े यहाँ एक अपील लगाय
झगड़ा यूं सुलझाय दो वो अपने ठौरे जाय
इसी विषय पर अरस्तू ने एक शेर मारा था…खैर जाने दीजिये..फिर कभी.
Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..सेलिंग वुवुज़ेला थ्रू पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम
मगर इसे सुधार लीजिये -
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिन्दा न हों .
शिब भाई क टिपनी हमरी भी मानी जावे.
Sanjeeva Tiwari की हालिया प्रविष्टी..निवेदक – ऐसे भी
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..चिरकुटाई की डेमोक्रेसी
sangeeta swarup की हालिया प्रविष्टी..वो चिंदिया वो खटोला
“जहां झगड़ा देखा दस-पन्द्रह ज्ञान की बातें फ़टकार दीं। भाईचारे का छिड़काव कर दिया। शांति की धूप-बत्ती जला दी।”
बात इस्माइली के साथ संक्षेप में समाप्त करती हूँ क्योंकि माहौल अभी गर्म है
इस साक्ष्ताकारकर्ता का नाम चाहिये, तनिक दो-तीन इंटरव्यु हमको भी देना है।
फिलहाल अगले दो-एक हफ़्ते तक ये शेर सबको मारने वाला हूँ-
“अगर तू इश्क में बरबाद नहीं हो सकता,
जा तुझे कोई सबक याद नहीं हो सकता”
गौतम राजरिशी की हालिया प्रविष्टी..दबी होती है चिंगारी- धुँआ जब तक भी उठता है
कहा जाता है उसे बेवफा, बेवफा समझा नहीं जाता….बेवफा कहा जाता है समझा नहीं जाता….
अक्सर लोग नाराज होते हैं कि झगड़ा खतम होने से उनका मनोरंजन खतम हो जाता है। पिछली बार तो यह भी सुनने में आया कि हमने झगड़ा खत्म करवा कर जो पाप किया है उसके लिये इतिहास बहुत कड़ी सजा सुनायेगा। माफ़ नहीं करेगा।
ये क्या किया आपने ?
जवाब: आपने हरकत कहकर खुद बयान कर दिया। लोगों को जो समझ में आता है बोलने लगते हैं। अक्सर लोग नाराज होते हैं कि झगड़ा खतम होने से उनका मनोरंजन खतम हो जाता है। पिछली बार तो यह भी सुनने में आया कि हमने झगड़ा खत्म करवा कर जो पाप किया है उसके लिये इतिहास बहुत कड़ी सजा सुनायेगा। माफ़ नहीं करेगा।
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नहीं जो मैने कहा था वो ये हैं (चैट पर सुरक्षित हैं !!!!}
“कल आप ने एक और लड़की को दब्बू बनने के लिये प्रेरित किया हैं इतिहास आप को इसके लिये शायद ही माफ़ करे .”
मै अपनी बात पर आज भी कायम हूँ . हाँ डिलीट की हुई सब पोस्ट एक छोड़ कर मेरे पास सुरक्षित हैं जो पढना चाहे ईमेल से प्राप्त कर सकते हैं .
मुझे एक मान हानि का दावा करना हैं अभी ये विचारगत प्रक्रिया हैं उसके लिये क़ानूनी साक्ष्य जुटा रही हूँ . और वो पोस्ट इसमे सहायक होगी .
रचना की हालिया प्रविष्टी..चंद्र्नखा से सुपनखा तक कुछ चित्र
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..रक्षा सूत्र कैसे-कैसे
अगर कहीं इन लोगों को किसी बहुमंज़िला अपार्टमेंट टाइप जगह रहना पड़ जाए तो मानो इनका दम ही घुट जाता है. ऐसे में इनकी कोशिश होती है कि चौधराहट बनाए रखने के लिए किसी तरह कोई पदाधिकारीपना कर लिया जाए. और अगर यह जुगत न भी बैठे तो ये प्राणी मेन गेट के चौकीदारों के पास बस यूं ही डोलने फिरते हैं, आने-जाने वालों पर नज़र रखते हुए…
झगडा निपटावन ब्लागरों के अधिकारों की रच्छा के लिए एक “झगडा निपटावनहार एसोसियसन” भी अब जरूर बनाई जानी चाहिए……
पं.डी.के.शर्मा “वत्स” की हालिया प्रविष्टी..इन्सान कर्मों के इस चक्र में किस कारण से उलझता है
गर कोई ना मिला तो आप हैं ही.
वाह वाह.. ये तो कविता बन गई.. कोई नीचे एक लाइन जोड़ दे तो त्रिवेणी बन जायेगी..
प्रशान्त (PD) की हालिया प्रविष्टी..क्यों पार्टनर- आपकी पोलिटिक्स क्या है
एकदम धांसू, मजा आ गया. ना केवल मजा आ गया बल्कि सोच रहा हूँ की इस मुद्दे पर भी कुछ सिखा जाए….
Sanjeet Tripathi की हालिया प्रविष्टी..स्वागत कार्टूनिस्ट निशांत का
amrendra nath tripathi की हालिया प्रविष्टी..बजार के माहौल मा चेतना कै भरमब रमई काका कै कविता ध्वाखा
कविता ने तो इसे सही मुकाम पर पहुचा दिया!
लपेटे में कौन कौन है? ढूढ्ते हैं कुछ देर और!!
अभी के लिए मशहूर कवि भाई कुश भाई जयपुर वाले का एक शेर
दूध से जलकर भी छाछ को फूंकता नहीं..
झगडा निपटावन बंदा कभी रूकता नहीं..
रुक जाए जो करवाके सरेआम अपनी ठुकाई
उसे भला फिर कौन कहेगा अपना बड़ा भाई..
बाकी के शेर आप हमारी पुस्तक में पढ़ सकते है… नाम है “सिमटे कंकर”
भाई कुश भाई जयपुर वाले की हालिया प्रविष्टी..ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल पलो में प्यार मिठास घोल देता है
सवाल: झगड़े निपटाते ही है या लगाते भी हैं ?
जवाब:
एक और सवाल है, वो चैट पर पूछूँगी…..
या फिर जैसा ख्वाहिश करते है उससे वैसा ही उससे मिलता है
इसे कहते हैं अत्म्प्रछालन ………
दुसरे पे तो सभी ऊंगली उठाते हैं खुद पे ……. उठाने वाले ……ओ भी हास्य के लस्सी पे व्यंग की मलाई मर के
आप को पढने का इंतजार हमेश लम्बी…..बहोत लम्बी लगती है …..लेकिन …. जो मिलता है ओ इंतजार का फल मीठा होने के सामान
अप्पके इस साफगोई पर बलिहारी जाऊं ……
हार्दिक प्रणाम
शैलेन्द्र (चंडीगढ़)
एक थीसिस लिखें कि कितने तरह के झगडे होते हैं और आप कितने तरह के निपटा सकते हैं.
बहुत रोचक पोस्ट.
anupam agrawal की हालिया प्रविष्टी..शमशान के सन्नाटे में
शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी.. लिखो ! न सही कविता – दुश्मन का नाम – लीलाधर मंडलोई की एक कविता
manoj kumar की हालिया प्रविष्टी..गीली मिट्टी पर पैरों के निशान
Saagar की हालिया प्रविष्टी..बालिग़ बयान
Saagar की हालिया प्रविष्टी..बालिग़ बयान
“असल में झगड़ा निपटवाने में सबसे अहम बात है झगड़ा निपटवाने का समय तय करना। एक बार आपको सही समय अंदाजा हो गया तो आप कभी असफ़ल नहीं हो सकते! जब झगड़ा करने वाले थक जाते हैं। उनके सारे तर्क-तीर समाप्त हो जाते हैं तो वे बड़ी बेकरारी से ताकते हैं कि कोई आये और उनको झगड़े से निजात दिलाये। परेशानी तब आती है जब दोनों का मन भरा नहीं होता है झगड़ा करने से। तब अगर कोई उनका निपटारा करने जाये तो दोनों अपना झगड़ा छोड़कर निपटारा करने की कोशिश में लगे व्यक्ति को दौड़ाकर निपटाने में लग जाते हैं। उनके झगड़ानन्द में दखल उनको बर्दाश्त नहीं होता। “
“कुछ नहीं रखा मेल-मिलाप की दुनिया में
मैं झगड़े का सेन्सेक्स उठाना चाहता हूं।”
क्या बीच-बचाव भरी पोस्ट है… लग रहा है घूमने-घामने में कुछ मिस कर दिया मैंने
Pankaj Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..जाने कैसी कैसी आवाजें!
डायन नामिक से रूह कांप जाती है
chandra mouleshwer की हालिया प्रविष्टी..कामनवेल्थ खेल का बहिष्कार – चेतन भगत
Disclaimer : मैंने आपके अंदाज में मौज लेने की सोची है . इसका किसी जीवित व्यक्ति से साम्य पाया जाना महज संयोग कहा जायेगा..:)
जबरदस्त पोस्ट । झगड़ा निबटावन की कला इतने बारीकी से कभी नहीं पढी थी । आनंद आ गया ।
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..नये बादल बिन पिये ही धीरे धीरे सिप लेने का आनंद देती मोहक कृतिसतीश पंचम
अद्भुत है इतना गहरा उतर जाना वो भी झगडा निपटाने के विषय पर ………
चारो शेर भी गज़ब है
आशीष