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भेरू दादा और पान की दुकान
By फ़ुरसतिया on August 3, 2011
यह पोस्ट इंदौर के सुनील पाटीदार की है। उन्होंने पिछली पोस्ट
पर टिपियाया और मेल से अपना यह लेख भेजा। छापने के लिये। सुनील परसाई जी
और शरद जोशी जी के प्रशंसक हैं। यह माह परसाई जी का जन्म माह है। इसलिये
माह की शुरुआत परसाई प्रशंसक के ही लिखे से होने से बेहतर और क्या हो सकता
है।
“मंहगाई, भष्टाचार,लूट, डकैती, अपहरण, रिश्वत, कालाबाजारी इन सभी घटिया शब्दों के उचित प्रयोग से भारत बनता है। ”
ये शब्द चौराहे की पान की दुकान पर उधार की बीडी के अंतिम कश लगाते हुए भेरू दादा ने कहा। वहां खड़े भेरू दादा के अत्यंत निजी एवं सीमित समझ के ग्रामीण मित्रों ने दादा के हाव भाव देख कर उनकी प्रशंसा की, हालांकि वे बेचारे दादा की बात नहीं समझ सके थे।
भारत देश में पान की दुकान का बड़ा महत्त्व है। एक बार मुंह में बीडी या बीड़ा जाने के बाद एक -एक शब्द मानो मोती जैसे झरने लगते हैं |
मंहगाई, भष्टाचार,लूट, डकैती, अपहरण, रिश्वत, कालाबाजारी इन सभी घटिया शब्दों के उचित प्रयोग से भारत बनता है
हम भारतवासी इतने रसिक है कि चिंतन चाहे आद्यात्मिक हो या सांस्कृतिक
उसका सही अवलोकन तो पान की दुकान पर ही करते हैं। ये एक ज्ञान का मंदिर है
जहां ज्ञान मुफ्त मिलता है,यहां हर तबके, हर सम्प्रदाय के लोग आते है,
ज्ञान देते है और चले जाते है। कुछ लोग ज्ञान लेने भी आते है और उसको जीवन
में उतारने का भरसक प्रयास भी करते है। यह वो पावन स्थल है जहां युवाओ के
लिए अश्लील शिक्षा का कच्चा माल भरपूर मात्रा में सहज रूप से उपलब्ध है।
पान की दुकान पर ही तय होता है की कब किसे छेड़ना है और कब किसे भगाना है।
भारत में प्रेम विवाह यही की देन है। कई लोग घर से झगड़कर भी यहां आश्रय पाते है। कुछ छिप छिप कर भी आते है, कुछ रसिक होते है और कुछ रंगीन मिज़ाज। बाकी बचे कुछ आदतन कुछ गैर आदतन और कुछ फोकटिये। हर मौसम में ये प्राणी पान की दुकान के आसपास पाए जाते है। ऐसा कहा जा सकता है कि सच्चे भारतीय यहीं बनते है।
अब हम बात करते है, एक अद्वितीय प्रतिभा की जिसे भेरू दादा कहा जाता है।
………….भेरू दादा अत्यंत ज्ञानी, विद्वान, महापुरुष, और हर विषय पर अपना स्वतंत्र मत रखने वाले सच्चे राष्ट्रभक्त है।
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साल के सुनील पाटीदार नीमच, मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। इंदौर के
टूर्बा कालेज से एम.बी.ए. कर रहे हैं। शौकिया तौर पर रेडियो जाकी हैं।
हरिशंकर परसाई और शरद जोशी के प्रशंसक हैं। फ़ोन – 9827043149
ऐसा सिर्फ वे स्वयं सोचते है। दादा न केवल राजनीति बल्कि विज्ञान,
दर्शन, कला, साहित्य और खेल जैसे गंभीर विषयों पर भी पकड रखते है और इतना
सब उन्होंने पान दुकान पर ही सीखा है। दादा ने अपनी तमाम उम्र सर्वजनहिताय
पान की दुकान पर ही व्यतीत की है। दादा करने से ज्यादा कहने में विश्वास
रखते है अतः रोज़ शाम पान की दुकान पर ये अपने वक्तव्य देते है और मित्र
ताली बजाते है। देश की गंभीर समस्याओं पर चिंतन और मनन के बाद हालात को
दोषी ठहराने और गलती देश के माथे मढ़कर स्वयं को दोष मुक्त करने की कला
भेरू दादा में कूट कूट कर भरी हुई है इसीलिए दादा सीमित क्षेत्र में,
श्रेष्ठ वक्ता और बोलचाल में अधिवक्ता भी कहलाते है।
दादा की इस स्वतंत्र अभिव्यक्ति की खुली बाटली पर सिर्फ उनकी महिष नयन पत्नी ही ढक्कन लगा सकती है जो उन्हें दहेज के साथ मुफ्त मिली है। दादा मुख्य रूप से दहेज में विश्वास रखते है सो मज़बूरी वश उन्हें पत्नी को भी साथ लाना पड़ा क्यों की भारत में दहेज के साथ पत्नी देने की भी परम्परा है।
इसीलिए दादा दकियानूसी मान्यताओं के खिलाफ है ।
दादा
मुख्य रूप से दहेज में विश्वास रखते है सो मज़बूरी वश उन्हें पत्नी को भी
साथ लाना पड़ा क्यों की भारत में दहेज के साथ पत्नी देने की भी परम्परा है।
दादा भाषण देने के अलावा वक्त का सही उपयोग करने के लिए प्रेम भी करते
है। यदि इनकी पत्नी को छोड़ दिया जाए तो मोहल्ले की सभी औरतों के साथ दादा
ने स्वप्नलोक में धारावाहिक प्रेम किया है और ये सब पान की दुकान की ही देन
है। अंतिम प्राप्त सूचना तक दादा की जीवन भर की उपलब्धि उनका बेटा है जहां
दादा ने संघर्षमय पौरुष के दम पर अपने होने का एहसास दिलाया और इस देश को
एक भेरू दादा और दिया जिसके लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष सदियों तक उनका ऋणी
रहेगा।
देश में आज़ादी से पहले धडल्ले से कई लोग महापुरुष बने परन्तु आज़ादी के बाद पूंजीवाद और बाजारवाद के चक्रव्यूह में फसकर समाज दो हिस्सों में बट गया। एक उच्चवर्ग और दूसरा निम्नवर्ग। उच्च वर्ग ने तो कई मिनी महापुरुष दिए पर साधन विहीन निम्नवर्ग उचित मार्केटिंग ,पैकेजिंग और एडवरटाइजिंग के अभाव में केवल भेरू दादा ही दे पाया॥
जब देश में सहस्त्रों वर्षों की आद्यात्मिक और सांस्कृतिक परम्परा में श्रद्धा और विश्वास रखने वाले लोगो ने सोचा की राष्ट्र संकट में है । राष्ट्र की अंतरात्मा की रक्षा के लिए फ़िलहाल एक महापुरुष की सख्त आवश्यकता है तब उन्होंने गीता सार ” काम करते रहो ” को अपनाया। सब लोग काम ….काम करते गए तो महापुरुष तो नहीं आया बदले में करोडों दर्जन मिनी महापुरुष और भेरू दादा आगये। इसीलिए देश आज तक विकासशील ही है। कभी विकसित नहीं बन पाया।
उच्च
वर्ग ने तो कई मिनी महापुरुष दिए पर साधन विहीन निम्नवर्ग उचित मार्केटिंग
,पैकेजिंग और एडवरटाइजिंग के अभाव में केवल भेरू दादा ही दे पाया ।
बहरहाल, दोस्तों भेरू दादा कोई शक्स नहीं बल्कि सोच है जो इन्सान के
अंदर पनपती है। जो समस्याओं से घिरकर खुद को शिथिल मान लेता है। हालातों के
भंवर में निर्णय नहीं ले पाता है। जो दूसरों को दोष देता है और अपनी गलती
नज़रंदाज़ करता है। जो काम करने की बजाए भाषण देकर स्वयं को मुक्त कर
लेता है वही इन्सान भेरू दादा बन जाता है । यह सोच राष्ट्र विरोधी है और एक
आसुरी शक्ति है जो पान की दुकान पर मिलती है।
इस सोच को बदलने से ही हम भारतीय बनेंगे क्यों की बदलाव की अपेक्षा नहीं बल्कि चेष्टा करनी पड़ती है। कहना ही नहीं बल्कि करना भी पड़ता है क्यों की स्वर्ग पाने के लिए मरना भी पड़ता है।
खैर…….. बहुत हुआ चिन्तन चौराहे की पान की दुकान पर कोई मेरा इंतजार कर रहा है , मै चलता हूं |
नमस्कार
सुनील कुमार पाटीदार
भेरू दादा और पान की दुकान
ये शब्द चौराहे की पान की दुकान पर उधार की बीडी के अंतिम कश लगाते हुए भेरू दादा ने कहा। वहां खड़े भेरू दादा के अत्यंत निजी एवं सीमित समझ के ग्रामीण मित्रों ने दादा के हाव भाव देख कर उनकी प्रशंसा की, हालांकि वे बेचारे दादा की बात नहीं समझ सके थे।
भारत देश में पान की दुकान का बड़ा महत्त्व है। एक बार मुंह में बीडी या बीड़ा जाने के बाद एक -एक शब्द मानो मोती जैसे झरने लगते हैं |
भारत में प्रेम विवाह यही की देन है। कई लोग घर से झगड़कर भी यहां आश्रय पाते है। कुछ छिप छिप कर भी आते है, कुछ रसिक होते है और कुछ रंगीन मिज़ाज। बाकी बचे कुछ आदतन कुछ गैर आदतन और कुछ फोकटिये। हर मौसम में ये प्राणी पान की दुकान के आसपास पाए जाते है। ऐसा कहा जा सकता है कि सच्चे भारतीय यहीं बनते है।
अब हम बात करते है, एक अद्वितीय प्रतिभा की जिसे भेरू दादा कहा जाता है।
………….भेरू दादा अत्यंत ज्ञानी, विद्वान, महापुरुष, और हर विषय पर अपना स्वतंत्र मत रखने वाले सच्चे राष्ट्रभक्त है।
दादा की इस स्वतंत्र अभिव्यक्ति की खुली बाटली पर सिर्फ उनकी महिष नयन पत्नी ही ढक्कन लगा सकती है जो उन्हें दहेज के साथ मुफ्त मिली है। दादा मुख्य रूप से दहेज में विश्वास रखते है सो मज़बूरी वश उन्हें पत्नी को भी साथ लाना पड़ा क्यों की भारत में दहेज के साथ पत्नी देने की भी परम्परा है।
इसीलिए दादा दकियानूसी मान्यताओं के खिलाफ है ।
देश में आज़ादी से पहले धडल्ले से कई लोग महापुरुष बने परन्तु आज़ादी के बाद पूंजीवाद और बाजारवाद के चक्रव्यूह में फसकर समाज दो हिस्सों में बट गया। एक उच्चवर्ग और दूसरा निम्नवर्ग। उच्च वर्ग ने तो कई मिनी महापुरुष दिए पर साधन विहीन निम्नवर्ग उचित मार्केटिंग ,पैकेजिंग और एडवरटाइजिंग के अभाव में केवल भेरू दादा ही दे पाया॥
जब देश में सहस्त्रों वर्षों की आद्यात्मिक और सांस्कृतिक परम्परा में श्रद्धा और विश्वास रखने वाले लोगो ने सोचा की राष्ट्र संकट में है । राष्ट्र की अंतरात्मा की रक्षा के लिए फ़िलहाल एक महापुरुष की सख्त आवश्यकता है तब उन्होंने गीता सार ” काम करते रहो ” को अपनाया। सब लोग काम ….काम करते गए तो महापुरुष तो नहीं आया बदले में करोडों दर्जन मिनी महापुरुष और भेरू दादा आगये। इसीलिए देश आज तक विकासशील ही है। कभी विकसित नहीं बन पाया।
इस सोच को बदलने से ही हम भारतीय बनेंगे क्यों की बदलाव की अपेक्षा नहीं बल्कि चेष्टा करनी पड़ती है। कहना ही नहीं बल्कि करना भी पड़ता है क्यों की स्वर्ग पाने के लिए मरना भी पड़ता है।
खैर…….. बहुत हुआ चिन्तन चौराहे की पान की दुकान पर कोई मेरा इंतजार कर रहा है , मै चलता हूं |
नमस्कार
सुनील कुमार पाटीदार
Posted in व्यंग्य | 49 Responses
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सही है सुनील परसाई जी के सच्चे उत्तराधिकारी लगते हैं। आपके दुश्मनों की तबियत अब तक संभल गयी होगी। न हो तो रिंग टोन बदलकर देखें।
सत्य वचन कह दिया आपने तो अपनी बात में ।
आज आप काफी गंभीर हैं अनूप भाई ! दुश्मनों की तबियत, कहीं नासाज़ तो नहीं हुज़ूर ??
शुभकामनायें !
भेरू दादा का कुछ अंश तो हरेक में है। जिसको समझ में आयेगा खुदै लिंक कर लेगा।
तबियत अपनी चकाचक है। मिश्रजी कुछ गड़बड़ाये हैं लेकिन मौका आते ही वे भी संभल जायेंगे। आप अपना ख्याल रखियेगा जरा। आप थोड़ा ज्यादा संवेदनशील हैं।
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..भावी प्रधानमंत्री का इलाहाबाद दौरा
प्रणाम.
सही है। धन्यवाद!
परसाई जी के जन्म माह के उपलक्ष्य में उनके लेख लगातार छापिये,
हम भी कुछ निबंध टाइप करने तैयार है
वैसे गंभीरता के लक्षण तो हमें भी दिख रहे है , मौज लेने वाले फुरसतिया / शुकुल कहाँ है आजकल ???
आशीष
सुनील के तेवर सही में अच्छे हैं।
परसाई जी के लेख छापने की बात सही कही। देखते हैं कित्ता कर पाते हैं।
आपके निबंधों का इंतजार है। आप तो जबलपुरिये हैं। मौका भी है दस्तूर भी। लिखिये न! हम तो कब से कह रहे हैं।
मौज लेने वाले फ़ुरसतिया भी यहीं हैं। एकदम आपके पास- अगले लेख में।
हम अपने नहीं परसाई जी के ही निबंधो की बात कर रहे थे (आपने हमें इतना काबिल समझा ,हम सरम (शर्म) से लाल पीले हुए जा रहे है )
आशीष
बढ़िया है. सुनील जी को बधाई और आपको धन्यवाद.
उम्मीद है, परसाई जी के जन्म-माह का लाभ हमें आपकी पोस्ट के रूप में मिलेगा
( सोचती हूँ, कुछ लिख के आपके पास भेज ही दूं, परसाई प्रशंसक तो मैं भी हूँ न! )
व्न्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..ठंडा मीठा बरियफ़…….
शुक्रिया।
आपको तो परसाई जी पर अपने संस्मरण लिखने ही चाहिये। लिखिये फ़ौरन! पोस्ट कीजिये। बरियफ़ पिघलाइये!
सही में मस्त आलेख…दमदार.
आशाएँ जगाने वाला लेखन कर्मी, तुम में दिखे है.
विषय पर पकड़ भी बनी रही और कलम भी चलती रही…
अब के पान खाने जाएंगे तो वहां भेरू दादा को अवश्य ढूँढेंगे…
पान की दुकान में ऍफ़.एम. रेडियो पर पुराने गाने सुनते हुए…
और ज़र्दा-चटनी-किमाम की महक लेते हुए.
देश की और देश की राजनीति की चिंताएं भी बिलकुल नए सिरे
उजागर की आलेख में…जो चिंताएं हम सभी की है…
अनूप जी को भी धन्यवाद…
शुक्रिया। जल्द ही सुनील का अगला लेख पढ़ने को मिलेगा आपको!
——इस चिंतन को प्रणाम,बढ़िया पोस्ट,आभार.
धन्यवाद!
धन्यवाद ! उपदेश वगैरह तो व्यंग्य लेख के फ़ुंदने हैं! छंट जायेंगे धीरे-धीरे!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..सेलेब्रिटी
अच्छा लगा आपका लिखा पढ़कर! खासकर दहेज के साथ बीबी लाने की मजबूरी वाली बात!
नियमित लिखते रहें।
धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिये।
——————————————–
वाह, भेरू दादा सच्चे ब्लॉगर लगते हैं!
सही में ब्लागर ऐसे ही होते हैं आजकल, परसों-तरसों!
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..ब्रह्माण्ड मे पृथ्वी की स्थिति
आज भी लोग भेरू दादा जैसे लोगों को शायद वही कहते होंगे। या शायद कुछ नाम बदल गया हो लेकिन भाव वैसा ही होगा।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
——
जै हिन्दी, जै ब्लॉगिंग।
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
भेरू दादा के बारे में पढकर अच्छा लगा.
प्रस्तुति के लिए सुनील जी को और आपको बधाई
और शुभकामनाएँ.