http://web.archive.org/web/20140419215145/http://hindini.com/fursatiya/archives/2214
…..और मजाक-मजाक में हमारी चिट्ठाकारी के सात साल निकल लिये! कोई गड़बड़ नहीं भाई इसके पहले एक , दो ,तीन , और चार , पांच और छह भी निकले इज्जत के साथ!
इन सात सालों के अनुभव मजेदार रहे। झन्नाटेदार भी। याद करते हैं कि विन्डॊ 98 के जमाने में, जयहनुमान सुविधा के सहारे, छहरी की-बोर्ड के जमाने में डायल अप इंटरनेट कनेक्शन के दिनों से शुरु हुये थे। जब भी नेट लगाते तो किर्र-किर्र करके घर भर को पता चल जाता कि नेट-बाजी हो रही है। आये दिन सुनने को मिलता -तुम्हारी ब्लागिंग के चलते फ़ोन बिजी रहता है। लोग शिकायत करते हैं फोन हमेशा बिजी रहता है। कट-पेस्ट करके लिखने और टाइप करके कमेंट करने के जमाने थे वे। ई-स्वामी ने हिंदी में सीधे टिप्पणी करने का जुगाड़ आज से छह साल पहले लगाया था। उस पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं से उस समय की कठिनाइओं का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ब्लागिंग अपने आप में अभिव्यक्ति का अद्भुत माध्यम है। हर एक को अभिव्यक्ति का प्लेटफ़ार्म मुहैया कराती है यह सुविधा। क्या रेंज है जी! शानदार से शानदार लेखन से लेखन से लेकर चिरकुट से चिरकुट विचार के लिये भी यहां दरवज्जे खुले हैं। यही इस माध्यम की ताकत है। बड़े से बड़ा लेखक/कवि/पत्रकार भी अंतत: प्रथमत: और अंतत: एक इंसान ही होता है। उसका लेखन भले शानदार हो लेकिन एक सीमा के बाद वह टाइप्ड हो जाता है। ब्लागिंग के जरिये आम आदमी की एकदम ताजा स्वत:स्फ़ूर्त अभिव्यक्तियां सामने आती हैं। यह सुविधा अद्भुत है।
ब्लागिंग के बारे में अलग-अलग लोग अपने-अपने हिसाब से धारणायें बनाते हैं। अपन को तो यह बहुत भली मासूम सी विधा लगती है। आप जैसे हो उसई तरह का आपके पेश कर देती है नेट पर। कभी-कभी क्या अक्सर ही लोग ब्लागिंग के स्तर को लेकर हलकान होते हैं। पोस्टें लिखते हैं। लेकिन ब्लागिंग में नित-नये लोग जुड़ते जाते हैं। झमाझम पोस्टें आती रहती हैं। हू केयर्स फ़ार स्तर? हेल विद इट! स्तर की चिंता करें कि मन का रेडियो बजायें।
संकलक के निपटने से तमाम लोगों को असुविधा हुई है लोगों को। लोग लिखते हैं पता नहीं चलता लोगों को। लेकिन अब दूसरे जुगाड़ फ़ेसबुक, गूगल बज , ट्विटर हैं अपनी पोस्टें पढ़वाने के लिये। लेकिन इत्ता पक्का है कि अगर किसी ने कुछ अच्छा लिखा है या काम भर का विवादास्पद तो वह देर-सबेर पढ़ ही लिया जाता है।
टिप्पणियां हिंदी ब्लागजगत की चंद्रमुखी/मृगलोचनियां हमेशा से रही हैं। ज्यादातर ब्लागर केशवदास बने इनको हसरत से निहारते रहते हैं। टिप्पणियों का अपना गणित है। अच्छे लेखन के अलावा नेटवर्किंग, मेहनत, पाठक के साथ व्यवहार, इमेज पर इनका संख्या निर्भर करती है। कुछ भाई लोग तो ऐसी टिप्पणियां करते हैं कि उनका मतलब निकालना उनके लिये ही मुश्किल हो!
ब्लागिंग में हमने देखा है कि लोग आमतौर पर अपनी आलोचना के प्रति असहनशील हैं। किसी की बात के खिलाफ़ कोई बात लिखी जाये तो सबसे पहली धारणा वह यही बनाता है जरूर उससे जलन के चलते यह बात लिखी है। यह प्रवृत्ति आमप्रवृत्ति है हिंदी ब्लागिंग के मामले में। पहलवान टाइप के ब्लागरों छोड़िये यहां तो सामाजिक समरसता , अच्छाई, भलाई के लिये हलकान रहने वाले लोग भी अपने लेखन और व्यवहार की आलोचना पर ’ पड़सान ’ हो जाते हैं। घूम-घूम कर अपने घाव दिखाते हैं सबको! ऐसा करते हुये वे इत्ते मासूम लगते हैं कि उनसे “हाऊ स्वीट , हाऊ क्यूट ” कहने का मन करता है। लेकिन कहते नहीं फ़िर इस डर से कि वे और ज्यादा “स्वीट और क्यूट ” हो जायेंगे -हिंदी ब्लागिंग में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने का इल्जाम लगेगा सो अलग!
बीते सालों में समय के साथ ब्लागिंग की पहचान बढ़ी है। सात साल पहले -ब्लागर -ये कौंची होता है? की स्थिति थी। आज यह स्थिति है कि कुछ दिन पहले एक टी.वी. चैनल में एक वार्ताकार के नाम के साथ ब्लागर की पट्टी लगी थी। हिंदी अखबार और किताबों में ब्लागर बहुतायत में छपने लगे हैं। अब ब्लागिंग अनजान विधा नहीं रही जी।
ब्लागिंग के जरिये लोगों का मिलने-मिलाने का सिलसिला भी बढ़ा है। हमारे तमाम जानने वालों में ब्लागर बढ़ते जा रहे हैं। हर शहर में कोई न कोई ब्लागर दोस्त है। यह मजेदार सुकून है भाई!
पिछले सालों में हमारा लिखना-लिखाना कम हुआ है। आज देखा तो गये साल में कुछ जमा 37 लेख लिखे। उसमें से आधे से ज्यादा रिठेलित हैं। यह हालत उन कवियों की तरह है जो पांच साल कवितायें लिखकर पचास साल तक सुनाते हैं। वो तो कहिये कि हमारे कुछ पाठक भले हैं और हमारा रिठेला हुआ पढ़े भले न लेकिन यह जरूर लिख देते हैं -दोबारा पढ़ा और उतना ही मजा आया। अब बताइये भला किसी और माध्यम में इतने भले पाठक-प्रशंसक मिलते हैं।
ब्लागिंग में कमी का कारण और कारणों के अलावा फ़ेसबुक जैसे तुरंता माध्यमों का अवतरण भी रहा। आजकल तो फ़ेसबुक पर वह भी ठेलने लगे हैं जिसे भले लोग शायरी के नाम से जानते हैं। एकाध शेर आप भी वो फ़र्माइये जिसे शायर लोग मुलाहिजा के नाम से जानते हैं:
शेर लेखन में हमारी रुचि देखकर आलोक पुराणिक ने हमको सलाह दी कि हमको कनपुरिया भाषा में शेर लिखने चाहिये । तखल्लुस भी तय हो गया -’कट्टा’कानपुरी। शाम को देखा उधर से शिव बाबू- ’कट्टा’ कानपुरी के नाम से चालू हो गये। हमारा तखल्लुस लुट गया। हमने आलोक पुराणिक को बताया तो उन्होंने सलाह दी -शायरों/कवियों से अपने आइडिया शेयर नहीं करने चाहिये।
बाद में हमने सोचा कि हम अपना तखल्लुस ’ कट्टा ’ कानपुरी असली वाले धर लें। साथ में नोट लगा दें- नक्कालों से सावधान होने की कौनौ जरूरत नहीं- वे भी अपने ही भाई बंधु हैं।
और ये देखिये एक ठो शेर भी उछल के आ गया मैदाने-जेहन में! अब सुन ही लीजिये:
शाइर से गुफ़्तगू हुई , उसने तखल्लुस उड़ा लिया
दुनिया में भले आदमियों की, अभी कोई कमीं नहीं!
हां भाई यह भलमनसाहत ही है। जैसे पहली बार चिलम आपके हाथ में देखकर कोई भला आदमी उसे आपके हाथ से छीनकर खुद सुट्टा लगाने लगे ताकि आपको नशे की गिरफ़्त से बचा सके। और ये जो शाइर लिखा है न वो इसलिये कि गुलजार साहब शाइर ही लिखते हैं शायर को। हमारे तमाम पाठक गुलजार भक्त हैं। उनको अच्छा लगेगा!
खैर शायरी-वायरी अलग की बात! यहां मामला ब्लागिंग का है। सात साल पूरे हुये थे बीस अगस्त को। आज यह पोस्ट लिख रहा हूं। ब्लागिंग के माध्यम से जुड़े अपने तमाम साथियों को याद करके खुश हो रहा हूं कि इस माध्यम के चलते मजाक-मजाक में लिखना शुरु किया और की-बोर्ड के फ़जल से अभी तक ठेल और रिठेल मिलाकर छह सौ पोस्टें निकलकर सामने आ गयीं। हमारे साथ के लोगों को भी इससे सहूलियत हुई है। हमारे बारे में और कुछ समझ न आने पर अचकचा के कह उठते हैं -ये ब्लागिंग करते हैं। इनका ब्लाग कम्प्यूटर पर छपता है। इनके ब्लाग का नाम फ़ुरसतिया डाट काम है!
आज के दिन डा.अमर कुमार भी बहुत याद आ रहे हैं। उनका न होना बहुत खल रहा है। उनके बारे में सोचते हुये काशीनाथ सिंह का लिखा याद आता है जो उन्होंने धूमिल के न रहने पर लिखा था- उसके जाने के बाद तो ऐसा लगा घर से बेटी की डोली उठ गयी। आंगन सूना हो गया।
आज एक बार फ़िर अभिव्यक्ति का नये माध्यम : ब्लॉग से परिचय कराने वाले रविरतलामी और इस ब्लाग में लिखने के अलावा बाकी सब मामलों के पीर-बाबर्ची-भिस्ती-खर ईस्वामी का शुक्रिया कर रहा हूं। उस सभी साथियों का भी आभार जो हमें पढ़ते रहे और यह एहसास दिलाते रहे कि हमारा लिखा पढ़ने वाले भी हैं कुछ लोग!
…और ये फ़ुरसतिया के सात साल
By फ़ुरसतिया on September 13, 2011
इन सात सालों के अनुभव मजेदार रहे। झन्नाटेदार भी। याद करते हैं कि विन्डॊ 98 के जमाने में, जयहनुमान सुविधा के सहारे, छहरी की-बोर्ड के जमाने में डायल अप इंटरनेट कनेक्शन के दिनों से शुरु हुये थे। जब भी नेट लगाते तो किर्र-किर्र करके घर भर को पता चल जाता कि नेट-बाजी हो रही है। आये दिन सुनने को मिलता -तुम्हारी ब्लागिंग के चलते फ़ोन बिजी रहता है। लोग शिकायत करते हैं फोन हमेशा बिजी रहता है। कट-पेस्ट करके लिखने और टाइप करके कमेंट करने के जमाने थे वे। ई-स्वामी ने हिंदी में सीधे टिप्पणी करने का जुगाड़ आज से छह साल पहले लगाया था। उस पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं से उस समय की कठिनाइओं का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ब्लागिंग अपने आप में अभिव्यक्ति का अद्भुत माध्यम है। हर एक को अभिव्यक्ति का प्लेटफ़ार्म मुहैया कराती है यह सुविधा। क्या रेंज है जी! शानदार से शानदार लेखन से लेखन से लेकर चिरकुट से चिरकुट विचार के लिये भी यहां दरवज्जे खुले हैं। यही इस माध्यम की ताकत है। बड़े से बड़ा लेखक/कवि/पत्रकार भी अंतत: प्रथमत: और अंतत: एक इंसान ही होता है। उसका लेखन भले शानदार हो लेकिन एक सीमा के बाद वह टाइप्ड हो जाता है। ब्लागिंग के जरिये आम आदमी की एकदम ताजा स्वत:स्फ़ूर्त अभिव्यक्तियां सामने आती हैं। यह सुविधा अद्भुत है।
ब्लागिंग के बारे में अलग-अलग लोग अपने-अपने हिसाब से धारणायें बनाते हैं। अपन को तो यह बहुत भली मासूम सी विधा लगती है। आप जैसे हो उसई तरह का आपके पेश कर देती है नेट पर। कभी-कभी क्या अक्सर ही लोग ब्लागिंग के स्तर को लेकर हलकान होते हैं। पोस्टें लिखते हैं। लेकिन ब्लागिंग में नित-नये लोग जुड़ते जाते हैं। झमाझम पोस्टें आती रहती हैं। हू केयर्स फ़ार स्तर? हेल विद इट! स्तर की चिंता करें कि मन का रेडियो बजायें।
संकलक के निपटने से तमाम लोगों को असुविधा हुई है लोगों को। लोग लिखते हैं पता नहीं चलता लोगों को। लेकिन अब दूसरे जुगाड़ फ़ेसबुक, गूगल बज , ट्विटर हैं अपनी पोस्टें पढ़वाने के लिये। लेकिन इत्ता पक्का है कि अगर किसी ने कुछ अच्छा लिखा है या काम भर का विवादास्पद तो वह देर-सबेर पढ़ ही लिया जाता है।
टिप्पणियां हिंदी ब्लागजगत की चंद्रमुखी/मृगलोचनियां हमेशा से रही हैं। ज्यादातर ब्लागर केशवदास बने इनको हसरत से निहारते रहते हैं। टिप्पणियों का अपना गणित है। अच्छे लेखन के अलावा नेटवर्किंग, मेहनत, पाठक के साथ व्यवहार, इमेज पर इनका संख्या निर्भर करती है। कुछ भाई लोग तो ऐसी टिप्पणियां करते हैं कि उनका मतलब निकालना उनके लिये ही मुश्किल हो!
ब्लागिंग में हमने देखा है कि लोग आमतौर पर अपनी आलोचना के प्रति असहनशील हैं। किसी की बात के खिलाफ़ कोई बात लिखी जाये तो सबसे पहली धारणा वह यही बनाता है जरूर उससे जलन के चलते यह बात लिखी है। यह प्रवृत्ति आमप्रवृत्ति है हिंदी ब्लागिंग के मामले में। पहलवान टाइप के ब्लागरों छोड़िये यहां तो सामाजिक समरसता , अच्छाई, भलाई के लिये हलकान रहने वाले लोग भी अपने लेखन और व्यवहार की आलोचना पर ’ पड़सान ’ हो जाते हैं। घूम-घूम कर अपने घाव दिखाते हैं सबको! ऐसा करते हुये वे इत्ते मासूम लगते हैं कि उनसे “हाऊ स्वीट , हाऊ क्यूट ” कहने का मन करता है। लेकिन कहते नहीं फ़िर इस डर से कि वे और ज्यादा “स्वीट और क्यूट ” हो जायेंगे -हिंदी ब्लागिंग में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने का इल्जाम लगेगा सो अलग!
बीते सालों में समय के साथ ब्लागिंग की पहचान बढ़ी है। सात साल पहले -ब्लागर -ये कौंची होता है? की स्थिति थी। आज यह स्थिति है कि कुछ दिन पहले एक टी.वी. चैनल में एक वार्ताकार के नाम के साथ ब्लागर की पट्टी लगी थी। हिंदी अखबार और किताबों में ब्लागर बहुतायत में छपने लगे हैं। अब ब्लागिंग अनजान विधा नहीं रही जी।
ब्लागिंग के जरिये लोगों का मिलने-मिलाने का सिलसिला भी बढ़ा है। हमारे तमाम जानने वालों में ब्लागर बढ़ते जा रहे हैं। हर शहर में कोई न कोई ब्लागर दोस्त है। यह मजेदार सुकून है भाई!
पिछले सालों में हमारा लिखना-लिखाना कम हुआ है। आज देखा तो गये साल में कुछ जमा 37 लेख लिखे। उसमें से आधे से ज्यादा रिठेलित हैं। यह हालत उन कवियों की तरह है जो पांच साल कवितायें लिखकर पचास साल तक सुनाते हैं। वो तो कहिये कि हमारे कुछ पाठक भले हैं और हमारा रिठेला हुआ पढ़े भले न लेकिन यह जरूर लिख देते हैं -दोबारा पढ़ा और उतना ही मजा आया। अब बताइये भला किसी और माध्यम में इतने भले पाठक-प्रशंसक मिलते हैं।
ब्लागिंग में कमी का कारण और कारणों के अलावा फ़ेसबुक जैसे तुरंता माध्यमों का अवतरण भी रहा। आजकल तो फ़ेसबुक पर वह भी ठेलने लगे हैं जिसे भले लोग शायरी के नाम से जानते हैं। एकाध शेर आप भी वो फ़र्माइये जिसे शायर लोग मुलाहिजा के नाम से जानते हैं:
- दबोच लिया अंधेरे में, सीने से कट्टा सटा दिया,
दांत पीसकर गुर्राया – खामोशी से शेर सुन, दाद दे। - वही घिसी-पिटी बातें, वही ख्याल- कुछ भी तो नया नही,
चल बहर में कह, तरन्नुम में पढ -गजल में खप जायेगा। - मै कोई अदना शायर नहीं मेरे चाहने का वो वाला मतलब मत निकाल
मैंने तो तुझे सिर्फ़ ’लाइक किया है’ किसी फ़ेसबुक के स्टेटस की तरह। - वो अपने इश्क के किस्से बहुत सुनाता है,
शायद जिन्दगी में मोहब्बत की कमी छिपाता है - आप कहते हो कि बहुत झूठ बोलता है माना
लेकिन वो तो कभी हसीं सोहबतों में रहा ही नहीं! - तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह ,
कि भीग तो पूरा गये पर हौसला बना रहा।
शेर लेखन में हमारी रुचि देखकर आलोक पुराणिक ने हमको सलाह दी कि हमको कनपुरिया भाषा में शेर लिखने चाहिये । तखल्लुस भी तय हो गया -’कट्टा’कानपुरी। शाम को देखा उधर से शिव बाबू- ’कट्टा’ कानपुरी के नाम से चालू हो गये। हमारा तखल्लुस लुट गया। हमने आलोक पुराणिक को बताया तो उन्होंने सलाह दी -शायरों/कवियों से अपने आइडिया शेयर नहीं करने चाहिये।
बाद में हमने सोचा कि हम अपना तखल्लुस ’ कट्टा ’ कानपुरी असली वाले धर लें। साथ में नोट लगा दें- नक्कालों से सावधान होने की कौनौ जरूरत नहीं- वे भी अपने ही भाई बंधु हैं।
और ये देखिये एक ठो शेर भी उछल के आ गया मैदाने-जेहन में! अब सुन ही लीजिये:
शाइर से गुफ़्तगू हुई , उसने तखल्लुस उड़ा लिया
दुनिया में भले आदमियों की, अभी कोई कमीं नहीं!
हां भाई यह भलमनसाहत ही है। जैसे पहली बार चिलम आपके हाथ में देखकर कोई भला आदमी उसे आपके हाथ से छीनकर खुद सुट्टा लगाने लगे ताकि आपको नशे की गिरफ़्त से बचा सके। और ये जो शाइर लिखा है न वो इसलिये कि गुलजार साहब शाइर ही लिखते हैं शायर को। हमारे तमाम पाठक गुलजार भक्त हैं। उनको अच्छा लगेगा!
खैर शायरी-वायरी अलग की बात! यहां मामला ब्लागिंग का है। सात साल पूरे हुये थे बीस अगस्त को। आज यह पोस्ट लिख रहा हूं। ब्लागिंग के माध्यम से जुड़े अपने तमाम साथियों को याद करके खुश हो रहा हूं कि इस माध्यम के चलते मजाक-मजाक में लिखना शुरु किया और की-बोर्ड के फ़जल से अभी तक ठेल और रिठेल मिलाकर छह सौ पोस्टें निकलकर सामने आ गयीं। हमारे साथ के लोगों को भी इससे सहूलियत हुई है। हमारे बारे में और कुछ समझ न आने पर अचकचा के कह उठते हैं -ये ब्लागिंग करते हैं। इनका ब्लाग कम्प्यूटर पर छपता है। इनके ब्लाग का नाम फ़ुरसतिया डाट काम है!
आज के दिन डा.अमर कुमार भी बहुत याद आ रहे हैं। उनका न होना बहुत खल रहा है। उनके बारे में सोचते हुये काशीनाथ सिंह का लिखा याद आता है जो उन्होंने धूमिल के न रहने पर लिखा था- उसके जाने के बाद तो ऐसा लगा घर से बेटी की डोली उठ गयी। आंगन सूना हो गया।
आज एक बार फ़िर अभिव्यक्ति का नये माध्यम : ब्लॉग से परिचय कराने वाले रविरतलामी और इस ब्लाग में लिखने के अलावा बाकी सब मामलों के पीर-बाबर्ची-भिस्ती-खर ईस्वामी का शुक्रिया कर रहा हूं। उस सभी साथियों का भी आभार जो हमें पढ़ते रहे और यह एहसास दिलाते रहे कि हमारा लिखा पढ़ने वाले भी हैं कुछ लोग!
Posted in बस यूं ही, संस्मरण | 151 Responses
वैसे लिखा तो आपने ठीक ठाक ही है.. लेकिन जो आपका अंदाज़ है ना.. वो बड़ा स्वीट है..
“शानदार से शानदार लेखन से लेकर चिरकुट से चिरकुट विचार के लिये भी यहां दरवज्जे खुले हैं।”
बार बार पढ़ा मैंने इस लाइन को, ये इतनी प्यारी लगी..
सात साल में बहुत फैन बना लिए है आपने.. इस ग्लोबल वार्मिंग के दौर में ये बड़ी अच्छी बात है… ब्लोगिंग की गर्मी को फैन्स की हवा से बैलेंस करना वैसे भी ज़रूरी है.. मैंने तो आपका ब्लॉग पढ़कर ही पहली बार ब्लॉग बनाने के बारे में सोचा था.. आपको देख देखकर ही बच्चे सीखते हैं सर, आप लगे रहिये..
“सर आप ब्लोगिंग करो हम आपके साथ हैं..” बेफिक्र प्रवेश करिए सातवे वर्ष में… शुभकामनाये..
Rashmi Swaroop की हालिया प्रविष्टी.."JEEVAN SATYA KI TALASH"
धन्यवाद तुम्हारी शुभकामनाओं के लिये।
ग्लोबल वार्मिंग, फ़ैन्स और बैलेंसिंग -क्या बात है।
आजकल स्केचिंग कैसी चल रही है?
अब तुमने कहा तो कर ही लिये प्रवेश ! साथ बनाये रखना अपनी पढ़ाई करते हुये।
कट्टा कानपुरी (नकली और असली दोनों) के जितने चर्चे सुने, वो कम ही निकले|
एकदम ढिंचक बधाई। शुक्रिया।
कट्टा कानपुरी के चर्चे तो अभी शुरु हुये हैं। शायरी भी समय की कुर्बानी मांगती है न!
बधाई के लिये धन्यवाद!
कट्टा कानपुर बोला नहीं है भाई चल रहा है। चलेगा भी इंशाअल्लाह।
आप किधर हैं जी! दिखे नहीं भौत दिन से।
Smart Indian – स्मार्ट इंडियन की हालिया प्रविष्टी..११ सितम्बर के बहाने …
धन्यवाद! शुक्रिया।
कट्टा कानपुरी की तरफ़ से भी धन्यवाद। शुक्रिया।
डा.अमर कुमार की कमी तो हमेशा रहेगी अब!
बारिश के बिना छाता तानने के लिये वो वाला शेर पढ़ा जाये- ये बारिश हम तुम्हे दूर से पहचान लेते हैं।
संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..पीयू पीटू – P U P 2
धन्यवाद है जी आपकी बधाई का। कट्टे की जगह लेखन से प्रभावित होकर बधाई देने की बात पर वो बात याद आती है जब नेताजी हाईकमान की धमकी के बाद इस्तीफ़ा देते हैं और बताते हैं -नैतिकता के आधार पर दिया है इस्तीफ़ा।
धन्यवाद है जी!
मैं सुनता आता था कि चिट्ठाकारी के दिन पूरे हो गए- काफ़ी हद तक ऐसा मानने भी लगा था लेकिन ये जो रचेगा वो बचेगा वाला केस ही है- हालिया आंकडे बताते हैं कि चिट्ठा पढने वालों की तादाद बढी है और चिट्ठों का प्रभावक्षेत्र भी.
नो मोर रीठेल वाली गुहार/मनुहार में अपनी भी सहमति शामिल समझी जाए.
eswami की हालिया प्रविष्टी..पेश-ए-खिदमत है ‘हर्बल माल’– स्व. नुसरत की एक विरली कव्वाली!
चिट्ठा अभी और परवान चढेगा।
कुछ लिखते-उखते भी रहा करो । मन का रेडियो बजाते रहा करो जी।:)
ठेल-रिठेल वाली बात मानी। नो ठेल-नो रिठेल!
sushma Naithani की हालिया प्रविष्टी..तारा
धन्यवाद आपकी बधाई का।
मैंने आपके ब्लाग पर अभी हाल ही में कुछ पोस्टें पढ़ीं। बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर। बाकी पोस्टें पढ़नी बाकी हैं।
आप तो लिखती रहिये। अभिव्यक्ति तो होती ही रहनी चाहिये।
शुक्रिया।
वैसे आपको फुरसत से पढ़े जमाना हो गया.. नये-नये ब्लॉगिंग में थे तो खूब फुर्सत में पढ़ते थे… वैसे परसों हमारे भी 5 साल ब्लॉगिंग में पूरे हो जायेंगे.. लगे हाथ हमें भी बधाई दे डालिए
भुवनेश शर्मा की हालिया प्रविष्टी..Now Tweet in Hindi
धन्यवाद!
भूतकालीन नहीं अभूतपूर्व ब्लागर हैं जी आप। आइये फ़िर से मैदाने ब्लाग में सपरिवार!
भाभीजी की सहनशीलता को नमन के लिये धन्यवाद! उनको बता दें तो क्या पता कुछ स्हनशीलता की ग्रांट में कटौती न हो जाये।
सात साल तक विपरीत धारा में हाथ-पैर मारना (तैरना) और उसी हौसले को बरकरार रखना अद्भुत जीवट का परिचायक है।
सात साल के बाद फिर चेहरे पर असीम साहस की चमक लेकर तैयार हों अगले ३६५ दिनों के सफ़र को … नमन है आपको।
आपकी यह ३६५ दिनों की यात्रा मंगलमय हो यही कामना है।
बाक़ी दो पोस्टों की बात एक ही पोस्ट में देना ज़रूरी नहीं लगा।
मनोज की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी दिवस- कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें … !
धन्यवाद है जी आपकी शानदार बधाई के लिये। सात साल हमारे तो मजाक-मजाक में ही कटे। धारायें कभी इतनी विपरीत नहीं रहीं कि जीवट की जरूरत पड़ी। दोस्त बेइंतहा मिले। शानदार मिले।
दो पोस्ट की बात एक ही पोस्ट में आई इसलिये कि बस आ गयी। मन का रेडियो बजता रहा हम उसको आफ़ नहीं किये।
शुक्रिया।
डा अमर की कमी तो खल ही रही है।
शुक्रिया। आप जैसे पाठक भी साथ रहे इसलिये भी इत्ते साल लिखते रहे!
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..बाज रही पैजनिया.. (कंठ : डा. मनोज मिश्र)
बधाई के लिये शुक्रिया। कई बार पढ़कर टिप्पणी लिख रहा हूं।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..सत्यकथा : अन्ना रे अन्ना…
ठेली हुई बधाई मिली। वही भेज रहे हैं जिसे पावती कहते हैं।
धन्यवाद जी आपकी सटीक टिप्पणी का। शुक्रिया भी। आभार तो साथ में है ही।
वैसे सात साल के हिसाब से देखें तो दो दिन लेट कोई बहुत लेट थोड़े ही है…इधर सागर से बात हो रही थी तो एकदम कूद के मन की एक बात निकली…’हमको लगता है हम आजकल हंसी मजाक और व्यंग्य लिखना इसलिए कम कर दिए हैं की अनूप जी को पढ़ना कम कर दिए हैं’. बात एकदम खरी है…आपको पढते थे, मन प्रफुल्लित रहता था, ऊटपटांग ख्याल भी आते थे तो घबराते नहीं थे…आप आजकल लिखना एकदम कम कर दिए हैं…हमारे हँसने का नुकसान हो रहा है…और दूसरा नुक्सान चिट्ठाचर्चा के अनियमित होने का है…आप कहेंगे शिकायत का पोटली खोल के बैठ गए…क्या करें, आपसे बेसी लिखने नहीं बोलें तो क्या करें.
आपका धुआंधार लेखन बहुत कुछ लिखने को प्रेरित करता है…प्लीज थोडा ज्यादा लिखा कीजिये…इतना साल पूरा करने का बहुत बहुत बधाई…एकदम चकाचक, ढिंचक लिखते रहिये, बहुत दिन से आपके दर्शन नहीं हुए…कभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारिये
शुक्रिया और धन्यवाद भी !
तुम्हारी तीन शिकायतें हैं
१. कम लिखना
२.चर्चा न करना
३.तुम्हारा ब्लाग न पढ़ना!
इन तीनों दूर करने की कोशिश करेंगे!
.
.
बधाई हो पूरे सात बरस की मौज की…
बढ़ता ही रहे यह मौज लेना आपका…
और मौज को समझने वाले मनमौजी पाठक भी मिलें आपको…
आभार!
…
धन्यवाद! शुक्रिया।
मौज को समझने वाले पाठक दिन पर दिन कम होते जा रहे हैं। क्या करें!
आपकी शु्भकामनाओं के लिये फ़िर से धन्यवाद!
नई है यह धुरी
न हलवा पूरी
काहे की कान
काहे की नाक
कट न जाए
रहे पूरी पर
न बने रोटी
बाबा ब्लॉगरी
ब्लॉग की धमक
रही है चमक
लपक ले लपक
अनूप लुत्फ झपट
झटपट लिपट लंपट।
शुक्रिया आपकी इस तुकबंदी का!
शुक्रिया ! आपका ख्याल रखते हुये ही हमने इस बीच ज्यादा कुछ लिखा नहीं। अब आप आ गयी हैं दुबारा! अब लिखते हैं!
shefali की हालिया प्रविष्टी..ड्राफ्ट के इस क्राफ्ट में एक ड्राफ्ट यह भी ………..
शुक्रिया हमारे लेख पढ़ने के लिये उठने का। आपकी जय हो! विजय हो! आपका कमेंट स्पैम में बरामद हुआ। पकड़ के धर दिया यहीं उसे !
धन्यवाद!
ऐसे शुभ अवसर पर कुछ मिठाई-विठाई जइसे ठग्गू के लड्डू तो होने ही चाहिए थे।
——
कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
Dr. Zakir Ali Rajnish की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगवाणी: ‘उन्मुक्त’ चला जाता है, ज्ञान-पथिक कोई।
शुक्रिया। मिठाई-सिठाई भी होगी मिलने पर!
मगर ऐसी अतिश्योक्ति भी अच्छी नहीं कि आप कहें:
’इसके पहले एक , दो ,तीन , और चार , पांच और छह भी निकले इज्जत के सा’थ’
आप भी बहुत मजाकिया हैं…..कितनी फन्नी बात करते हैं खुद के लिए….
समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..एक कहानी जिसे शब्द नहीं मिले…
धन्यवाद!
मजाक दिन पर दिन खुद से ही करने की चीज होती जा रही है।
ऐसे इन्सान किसी बात की प्रतिक्रिया इतने लाजबाब ढंग से देते हैं कि।. :)
आपकी श्रीमती जी की आई आई टी कानपुर से मिली फ़ेस टू फ़ेस टिप्पणी पर ट्रेन में विचार किया. और जब यहाँ आया तो देखा आप वाकई कमाल का लिखते हैं एक गजब की सोच और उसी रूप में प्रस्तुति भी।.
सात साल लेट आये तो क्या हुआ? उन ६०० पर निगाह दौड़ाने की “भरसक” कोशिश रहेगी. और मन की मौज में निरन्तर बहे जाना सबके बस की बात नही होती. आपको प्रणाम.
Manish की हालिया प्रविष्टी..प्रेम : “आओ जी”
नितिन की हालिया प्रविष्टी..विश्व विकास यात्रा
काके लागुन पाए
बलिहारी कानपुरी आपनो
कट्टा देओ दीकाहय
काके लागुन पाए
बलिहारी कानपुरी आपनो
कट्टा दीओ देखाई