Saturday, December 24, 2011

लोकपाल के इंतजार में एक आम आदमी

http://web.archive.org/web/20140419161028/http://hindini.com/fursatiya/archives/2476

लोकपाल के इंतजार में एक आम आदमी

बहुत दिन से लोकपाल का हल्ला मच रहा है। तरह तरह के बयान टहल रहे हैं। कभी इधर, कभी उधर। कभी लगता है मामला निपट गया। अगले दिन पता चलता है पालिटिक्स हो गयी। लोकपाल पर मट्ठा पड़ गया। सारा देश इंतजार कर रहा है। लोकपाल का अवतार हो- भ्रष्टाचार के राक्षस का संहार करे। बवाल कटे।
मीडिया वाले लिये माइक घूमते रहते हैं। जिस किसी के भी मुंह के आगे सटा देते हैं। लोकपाल के बारे में उनके मुंह से बयान घसीट लेते हैं। लोकपाल के बारे में आपके क्या ख्याल हैं? कौन वाला अच्छा है? बाकी में क्या खराबी है?
हमारे एक बयान प्रेमी मित्र एक रोज दिन दहाड़े शीशे के सामने डायलाग का अभ्यास करते हुये पकड़ गये- दिल दिया है जान भी देंगे ऐ सनम तेरे लिये। पूरा हफ़्ता लगा उनको अपनी घरैतिन को समझाने में कि वे सिर्फ़ अन्ना जी के अंदाज-ए-बयान का अभ्यास कर रहे थे। दुनिया में उनका कौनौ सनम नहीं है। बाद में सरमाते हुये बताये भी कि अन्ना जी के बयान में ओरिजिनलिटी लाने के लिये उन्होंने वतन की जगह सनम प्रयोग किया था। उनको अन्दाजा नहीं था बहर में होने के बावजूद मतलब इतना फ़िसल जायेगा। :)
राजनीति करने वालों का तो खैर काम ही पालिटिक्स करना होता है। बयान देना,मुकर जाना, पलट जाना उनकी कोर कम्पीटेन्सी (प्रमुख योग्यता/सामर्थ्य/गुण)होती है। टीम अन्ना के लोग भी कम बयान बहादुर नहीं है। उनके मुंह से भी बयान झरते रहते हैं। देखकर लगता है जैसे सर्दी के मौसम में पहाड़ों पर बर्फ़ गिर रही है। एक-एक बात पर तीन-तीन, चार-चार बयान निकाल देते हैं।
टीम अन्ना के लोग दिल के सच्चे हैं। बयान उनके दिल से निकलते हैं। कभी-कभी क्या अक्सर ही वे बयान देते समय बहुत गुस्से में लगते हैं। झल्लाये हुये से। सवाल पूछता आदमी उनको सरकार ही लगता है। कभी-कभी तो लगता है कि सवाल पूछने वाला पत्रकार कच्चा चबाये जाने से बचा हुआ है तो सिर्फ़ अपने और उनके बीच माइक के चलते। हम तो टीम अन्ना के सदस्यों का हर बयान आंख मूंदकर देखते हैं। उनके चेहरे का गुस्सा देखकर जी दहल जाता है।
अन्ना जी की टीम में सिर्फ़ कुमार विश्वास जी ही हैं जो थोड़ा हंसमुख हैं। वे बयान भी ऐसे देते हैं जैसे कवि सम्मेलन में कविता पढ़ने के पहले चुटकुले सुनाते हैं। मूलत: वे एक समर्पित कवि हैं। टीम अन्ना से जुड़कर वे कवि सम्मेलन का अभ्यास करते हैं। वे अपने ऊपर लगे इस आरोप का भी बड़े अच्छे से मजाक उड़ा लेते हैं कि उनको क्लास न लेने पर कारण बताओ नोटिस मिला है। बड़े प्यारे लगते हैं वे हास्यपूर्ण बातें करते हुये।
उधर बेचारी सी.बी.आई. की हालत दौप्रदी सरीखी होती जा रही है। पांच-पांच लोगों को रिपोर्ट करना पड़ेगा उसे। क्या पता चले आगे चलकर वह किसी महाभारत का कारण बने।
भ्रष्टाचार अगर अच्छी-अच्छी संस्थायें बनाने से दूर होता तो अब तक यह अपने देश से कब का गो,वेन्ट,गॉन हो गया होता। इतनी प्यारी-प्यारी संस्थायें हैं। इतने अच्छे-अच्छे विभाग हैं। लेकिन सब भले नागरिकों की तरह भ्रष्टाचार को साइड देते रहते हैं।
आगे चलकर लोकपाल नाम की कोई स्वतंत्र संस्था बनेगी अगर तो पक्का अभी के सारे आई.ए.एस. का इम्तहान देने वाले लोकपाल विभाग में भर्ती का इम्तहान देने लगेंगे। अभी जो लोग देश सेवा के लिये सिविल सर्विसेज में जाते हैं वे लोकपाल में जाने लगेंगे। शहर-शहर में लोकपाल स्टडी सर्किल खुल जायेंगे।
केंद्रीय सतर्कता आयोग के एक चेयरमैन ने एक बार कहा था-

नौकरशाही में आदमी जब आता है तो ईमानदार होता है। नौकरशाही उसे बेईमान बना देती है।
अपने यहां भ्रष्टाचार के मामले परसाई जी का उद्धरण अक्सर याद आता है:
शासन का घूंसा किसी बडी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है पर न जाने किस चमत्कार से बडी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूंसा पड जाता है।
सी.बी.आई. की स्वायत्तता और लोकपाल का जब गठन होगा तब होगा लेकिन पिछले कुछ समय से केंद्रीय सतर्कता आयोग की सक्रियता के चलते हाथ बचाकर काम करने लगे हैं। तमाम मामलों में देखा गया है कि लोग बड़ी खरीद के मामले में निर्णय लेने से बचने का प्रयास करते हैं। कोशिश करते हैं कि निर्णय का काम ऊपर के लोग करें या नीचे का अधिकारी। खरीददारी के निर्णय कितने ही काबिल व्यक्ति ने कितनी ही ईमानदारी से क्यों न किये हों लेकिन उसमें कोई न कोई नुक्स निकालने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
कहा जाता हैं कि नियम/कानून का पालन न करना भ्रष्टाचार होता है। नियम/कानून, ऑडिट, भ्रष्टाचार आदि का एक लालित्यपूर्ण उदाहरण देखा जाये:
पांचवे वेतन आयोग में वाहन भत्ता मिलने की शर्त यह थी कि कार्यस्थल से घर की दूरी एक किलोमीटर से अधिक होनी चाहिये। वेतन आयोग के लागू होते ही सब लोगों ने वाहन भत्ता लेना शुरु किया। कुछ दिन बाद ऑडिट ने आपत्ति जताई कि कुछ लोगों के घर कार्यस्थल से एक किलोमीटर से कम हैं। उनको वाहन भत्ता देना तुरन्त बन्द किया जाये। जिनको दिया गया है उनसे वापस लिया जाये। अब बताइये भला घर की दूरी 999 मीटर और 1001 मीटर होने पर हजार/डेढ़ हजार का नुकसान कैसे सहा जाये। प्रभावित होने वाले लोग बहुत से थे। जनता जनार्दन की भलाई के लिये उपाय यह निकाला गया कि एक अधिकारी को, जिसका घर कार्यस्थल से सबसे नजदीक 300/400 मीटर की दूरी पर था, एक कमेटी का चेयरमैन बनाया गया जिसको यह जांच करके बताना था कि किन लोगों के घर कार्यस्थल से एक किलोमीटर से कम दूरी पर हैं। जहां तक मुझे याद है कि छठे वेतन आयोग के लागू होने तक उस कमेटी की रिपोर्ट आयी नहीं थी और न किसी का वाहन भत्ता कटा।
आजकल भ्रष्टाचार उन्मूलन में सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार के पहचान की है। पहले जमाने में इसकी पहचान आसान थी। पुराने समय में एक धाकड़ ईमानदार मंत्री ने आफ़िशियल बातचीत की तो सरकारी तेल जलाया। व्यक्तिगत बातचीत की तो अपना पर्सनल दिया जला लिया। नैनो टेक्नालाजी के जमाने में भ्रष्टाचार इत्ता महीन हो गया है कि बिना एक्सपर्ट के कभी-कभी दिखाई नहीं देता। जब किरण बेदी जैसी ईमानदार और भली हस्ती तक यह नहीं समझ पाती कि किसी से ज्यादा किराया लेकर कम किराये में यात्रा करना भी भ्रष्टाचार है। उनको भी दूसरे समझाते हैं तब वे पैसा वापस करती हैं। तो आम आदमी के लिये भ्रष्टाचार की पहचान कित्ता मुश्किल काम है।
आजकल का भ्रष्टाचार बहुत जटिल टाइप का हो गया है। इसकी पहचान के लिये एक्सपर्ट की आवश्यकता पड़ती है।
और न जाने कित्ते कारण होंगे भ्रष्टाचार के लेकिन पसीने-पसीने की कीमत में अंतर का होना भी एक बहुत बड़ा कारण इसके फ़लने-फ़ूलने का। न्यूनतम मजदूरी के कानून के बावजूद एक मजदूर को दिन भर पसीना बहाने के अधिक से अधिक दो सौ रुपये मिलते हैं। एक खबर के अनुसार नये साल के अवसर पर किसी फ़ाइव स्टार होटल में डांस के लिये मल्लिका सेहरावत का दो करोड़ का अनुबंध हुआ है। पसीने-पसीने की कीमत में
दस हजारएक लाख से भी अधिक गुने का अंतर है।
लोग कहते हैं काला धन देश में लाओ। इन डांस पार्टियों में खर्चा होने वाला पैसा क्या गोरा पैसा है? क्या पैसा काला होने के लिये स्विस बैंक में ही होना जरूरी है। अपने देश में टहलते, बवाल काटते, अय्यासी करते, शान से घूमते हराम के पैसे ने क्या अपराध किया है कि उसे स्विस बैंक के काले पैसे के बराबर इज्जत न दी जाये।
अब तो अनशन मुंबई में हो रहा है। क्या पता मल्लिका सहरावत जी अपने और तमाम साथियों के साथ वहां आंदोलन में शिरकत करने आयें। आयेंगी तो अच्छा ही होगा। आंदोलन थोड़ा तो और सौंन्दर्यपूर्ण लगेगा। जब बालीवुड के लोग भ्रष्टाचार हटाने की बात करेंगे तो हम भी आंख खोल के उनके बयान सुनेंगे।
लोकपाल के इंतजार में एक आम आदमी और क्या कर सकता है भला!

मेरी पसंद

विनोद श्रीवास्तव
सोये लोग जगें -
तो कोई बात बने।
रोज-रोज मरना-खपना ही
क्या जीवन है
क्या जीवन है
रोज-रोज लुटना-पिटना ही।
मुट्ठी एक तने-
तो कोई बात बने।
रोज मिटें पर रोज बनें भी
तब जीवन है
जीवन है जब
बिखरे-बिखरे रहें
मगर हों
कभी घने भी।
एक मशाल जले-
तो कोई बात बने।
शब्द-पुष्प-धारा-पहाड़ हों,
तो जीवन है
जीवन जिसमें
कुछ निषेध के प्रति दहाड़ हो।
एक सवाल उठे-
तो कोई बात बने।
विनोद श्रीवास्तव

58 responses to “लोकपाल के इंतजार में एक आम आदमी”

  1. ashish
    हम तो लेखपाल से परेशान है , अब इंतजार करेंगे लोकपाल का जमीनी आम आदमी की तरह . एकदम झक्कास टाइप की पोस्ट .
    ashish की हालिया प्रविष्टी..ओ दशकन्धर
  2. सलिल वर्मा
    अच्छा परिचय है आई.एल.पी.एस. (इन्डियन लोक पाल सर्विसेज) के सिलेबस का…!
    सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..चल दिए सू-ए-अदम – अदम गोंडवी
  3. प्रवीण पाण्डेय
    एक आस बँधी,
    कि दिन बहुरेंगे..
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बूढ़े बाज की उड़ान
  4. चंदन कुमार मिश्र
    ‘बयान प्रेमी मित्र एक रोज दिन दहाड़े शीशे के सामने डायलाग का अभ्यास’
    वाह क्या मित्र हैं!
    ‘राजनीति करने वालों का तो खैर काम ही पालिटिक्स करना होता है। बयान देना,मुकर जाना, पलट जाना उनकी कोर कम्पीटेन्सी होती है। ‘
    पहली बात कि नेता ऐसे हो सकते हैं, राजनीति नहीं। राजनीति कोई भौतिक चीज थोड़े है! हम यह आरोप राजनीति पर नहीं लगा सकते।
    ‘सिर्फ़ कुमार विश्वास जी ही हैं जो थोड़ा हंसमुख हैं।’
    हा हा हा। सुना है मोर साँप खाता है, बड़ा खूबसूरत होता है!
    ‘केंद्रीय सतर्कता आयोग’
    इस आयोग की साइट में ऐसे घोंचू किस्म के आदमी लगते हैं कि स्पेल चेक तक का चिन्ह रेखांकन प्रिंट स्क्रीन से ले लिया है।
    ‘लोकपाल विभाग में भर्ती का इम्तहान देने लगेंगे। अभी जो लोग देश सेवा के लिये सिविल सर्विसेज में जाते हैं वे लोकपाल में जाने लगेंगे। शहर-शहर में लोकपाल स्टडी सर्किल ‘
    यह भविष्यवाणी सही है। विचार तो मजेदार है ही। क्यों न पहले ही इसपर काम शुरू कर दिया जाय! बाजार पर मेरी भी एक बात है। फेसबुक प्रवचन में कहूँगा कल। आज नहीं।
    ‘पसीने-पसीने की कीमत में दस हजार से भी अधिक गुने का अंतर है।’
    हिसाब फिर दस गुना गलत हो गया है। दस हजार गुना नहीं एक लाख गुना! यह हमारी(देश की) खासियत है!
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
  5. चंदन कुमार मिश्र
    ” कोर कम्पीटेन्सी” …यह हिन्दी वाले नहीं समझ सकेंगे। मुझे भी नहीं बुझाया।
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
  6. shefali
    सही है …भ्रष्टाचार की पहचान वाकई बहुत मुश्किल है |
    ”मीडिया वाले लिये माइक घूमते रहते हैं। जिस किसी के भी मुंह के आगे सटा देते हैं”।
    ”उधर बेचारी सी.बी.आई. की हालत दौप्रदी सरीखी होती जा रही है।”
    हम भी आपसे सहमत हैं |
  7. Ranjana
    आपकी चिकोटियां जहाँ बींधती हैं,वहीँ गुदगुदाती भी हैं…
    आनंद आ गया…मन एकदम से हरिया गया…
    और क्या कहें आगे…???
    Ranjana की हालिया प्रविष्टी..जीवन..
  8. मनोज कुमार
    ये जो महीन टाइप का भ्रष्टाचार है, उसका आपने बड़ा महीन विश्लेषण किया है। नेता लोग भी बहुत ही महीनी से पियाज कतर रहे हैं। जो भी हो चटपटा “लोकपाल” बन रहा है, लेकिन मालूम उन्हें यह भी होना चाहिए कि न तो यह सब पचेगा और अगर गटके, तो हाजमा भी दुरुस्त नहीं रहने देगा, चाहे कितना तड़का लगा लें।
    (कुमार विश्वास पर आपकी टिप्पणी व्यक्तिगत लगा, बेचारा अच्छा बोलता है।)
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..तेरी याद सताए
  9. भारतीय नागरिक
    देखिये न सीबीआई देखिये कितना परेशां हो रही है कि लोकपाल आया नहीं और उसकी स्वायत्तता गयी नहीं. :)
    तो फिर ऐसे लोकपाल से क्या लाभ जो सीबीआई को परेशां कर दे.
  10. मनोज कुमार
    @ अनूप जी,
    अब दुबारा पढ़ने पर ठीक लगा।
    अपने पहले की टिप्पणी में संशोधन करता हूं।
    एक बात तो सही है, कि हर घड़ी उसके चेहरे पर हंसी रहती है।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..तेरी याद सताए
  11. देवेन्द्र पाण्डेय
    अभी तो भारी गदे को झुनझुना बनते देख आम आदमी ठगा सा महसूस कर रहा है।
  12. संतोष त्रिवेदी
    जब तक अपने ऊपर कोई आंच नहीं,जांच नहीं ,तब तक भ्रष्टाचार-विरोध बड़ा माफिक लगे है. अरे भाई,कोई स्वर्ग से उतरकर आता है भ्रष्टाचार करने ? सरकार ने कितना बड़ा उद्योग खड़ा कर दिया है,अकेले सब वही थोड़ी संभाल रही है,हम जैसे लल्लन-टॉप लोग मौका मिलते ही जेबें भर लेते या देते हैं !
    फिर भी,हम इंतज़ार करेंगे,तेरा क़यामत तक,
    खुदा करे कि क़यामत (शामत) हो और तू(लोकपलवा) आये !!
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..संसद से सड़क तक !
  13. काजल कुमार
    …शहर-शहर में लोकपाल स्टडी सर्किल खुल जायेंगे…
    हम्म, तो नोट छापने की मशीनें लोकपाल के यहां स्थानांतरित होने का अंदेशा है आपको
  14. Abhishek
    :) राजनीती वालों का तो खैर काम ही है पोलिटिक्स करना :)
  15. रवि
    मैं शर्त लगा सकता हूं कि लोकपाल का ऑफिस आने वाले समय में भारत के भ्रष्टतम ऑफिसों में से एक होगा. आप नए कानून बना सकते हैं, नए ऑफिस बना सकते हैं, मगर आप नए, ईमानदार किस्म के भारतीय अफसर कहाँ से लाएंगे?
    रवि की हालिया प्रविष्टी..आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ – Stories from here and there – 40
  16. भारतीय नागरिक
    क्या बात कार रहे हैं आप भी, अभी सरकार के निर्देशों को पूरी स्वायत्तता से लागू करती है या नहीं. फिर ऐसा कहाँ रह जायेगा.. :D
  17. भारतीय नागरिक
    रवि जी, अभी कई लोग फोर्स्ड करप्ट हैं, मजबूरी के भ्रष्ट हैं, कई लोग सामाजिक दबावों के चलते विचलित हो जाते हैं, जो ईमानदार रहना चाहते हैं, उन्हें यह सिस्टम नहीं रहने देता. नेता-उच्चाधिकारियों के प्रेशर होते हैं और फिर ऊपर से आज के हालत. ईमानदार अधिकारी अपना मकान नहीं बना सकता, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे सकता और बीमारी की दशा में अच्छा इलाज नहीं करा सकता, क्योंकि सिस्टम ही ऐसा बना दिया गया है कि इमानदार के लिए जगह ही न बचे. इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे ७०-८०-९० प्रतिशत ईमानदार लोगों को आगे लाइये, उनका साथ दीजिए, वे सौ प्रतिशत में बदल जायेंगे.
    भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..भोपाल में कुपोषण से बच्ची की मौत – दोषी कौन?
  18. देवांशु निगम
    “राजनीति करने वालों का तो खैर काम ही पालिटिक्स करना होता है। ”
    काले धन पे उठाया गया सवाल बहुत सटीक है, और भ्रष्टाचार घुस चुका है हमारे खून में, बचपन से दुनियादारी के नाम पे यही तो सिखाया जाता है… :(
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..आप आ रहे हो ना?
  19. ज्ञान दत्त पाण्डेय
    आप कहते हैं कि सीबीआई द्रौपदी है तो माने लेते हैं, वर्ना कछार में घूमने वाले राउत जी तो उसे पतुरिया या रांड़ बता रहे थे।
    आप तो मूर्धन्य ब्लॉगर हैं, सहियै कह रहे होंगे।
    ज्ञान दत्त पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..पण्डा जी
  20. MRIGANK AGRAWAL
    अनूप भाई कम से कम ये लोग कोशिश तो कर रहे है ,आप इनकी हौसला -अफजाई न करें तो कम से कम ये तो करे की इनका मखौल न उड़ाया जाये ,आशा है आप सहमत होंगे .
  21. चंदन कुमार मिश्र
    कुमार साहब की लोकप्रियता से हमें ऐतराज कैसे हो सकता है? हालाँकि वे लोक में प्रिय नहीं हैं। उनके सारे फैन माने पंखे रईसजादे या शहरी लोग हैं(अधिकांश लोगो ऐसे ही हैं)। मुस्कुराने में तो सचमुच लाजवाब हैं।
    रवि जी जो कह रहे हैं, वह सच है।
    आलोक नंदन शुरू में ही लिखकर कह रहे थे कि ‘भारत के भ्रष्टतम ऑफिसों में से एक ‘…
    हाँ। मैं तो भूल गया था कि फेसबुक प्रवचन लिखना है। दो लिखा जा चुका है, तीसरा तुरत लिखता हूँ, आपके लिए।
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
  22. Suresh Chiplunkar
    लोकपाल के इंतज़ार में, आपकी पोस्ट से प्रेरणा लेकर मैं पहले जलेबी खाऊंगा, फ़िर चाय पिऊंगा और फ़िर भी लोकपाल पास न हुआ तो मुर्गा भी…
    फ़ुरसतिया नाम को सार्थक करते हुए, कुमार विश्वास से भी अधिक फ़ुर्सत में लगते हैं आप…
    जय हो आपकी… :)
    Suresh Chiplunkar की हालिया प्रविष्टी..Darul Islam, Melvisharam, Tamilnadu, Dr Subramanian Swamy
  23. पवन कुमार मिश्र
    जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी.
  24. Blogs In Media - लोकपाल के इंतजार में: हिन्दुस्तान में ‘फुरसतिया’
    [...] स्तंभ ‘साइबर संसार’ अंतर्गत फुरसतिया इंतज़ार में VN:F [1.9.12_1141]प्रतीक्षा करें…Rating: [...]
  25. abhi
    “नैनो टेक्नालाजी के जमाने में भ्रष्टाचार इत्ता महीन हो गया है कि बिना एक्सपर्ट के कभी-कभी दिखाई नहीं देता…” – Quote ऑफ द इअर लगता है मुझे ये :) :)
  26. sanjay jha
    लोकपाल लेंस………..के उत्पादन का licence कहाँ मिलेगा………………..
    प्रणाम.
  27. भारतीय नागरिक
    १०० गज जमीन १५००० रुपये के हिसाब से हुई पन्द्रह लाख की, रजिस्ट्री डेढ़ लाख. साढ़े सोलह लाख तो यही हो गए. मकान बनवाने का खर्च भी ८-९ लाख. कुल मिलाकर पच्चीस लाख. हो सकता है कि एक लाख महीने की आमदनी वाला व्यक्ति बनवा ले. लेकिन एक आम आदमी नहीं बनवा सकता यदि बनवायेगा तो यकीन मानिये उसके पास कुछ नहीं बचेगा. मेरे एक मित्र तकनीकी संस्थान में हैं, जहाँ हर पाँच साल में उन्हें प्रोमोशन मिल जाता है. बता रहे थे कि सरकार ने सीलिंग निर्धारित की है पच्चीस लाख. और एन सी आर में तीस लाख से फ्लैट की शुरुआत है. उन्हें नौकरी करते हुए १० साल हो चुके हैं और अब थक हार कर अपने गृह नगर में अस्सी गज जमीन खरीद पाए हैं. जमा-पूँजी सब उसमें चली गयी. बैंक के कर्जदार अलग हो गए.
    कहने का तात्पर्य यह कि जो महंगे फ्लैट हाथों-हाथ बिक जा रहे हैं उन्हें कौन खरीद रहा है. उनके खरीदारों की जांच हो तो सब सामने आ जाए. महँगाई और भ्रष्टाचार सब एक दूसरे के पूरक हैं. मेरे कहने का आशय यह बिलकुल नहीं है कि सभी सरकारी कर्मचारी एक जैसे हैं. लेकिन एक ईमानदार व्यक्ति का जीना कितना मुश्किल है यही मेरी टिप्पणी का आशय था. यदि मेरी उपरोक्त टिप्पणी से किसी को भी कोई चोट पहुंची हो तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ.
    भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..भ्रष्टाचार पर अरण्य रोदन के विषय में
  28. भारतीय नागरिक
    प्लीज मेरा चित्र बदलने की कोई जुगाड़ कीजिये, मैं इसे देखकर खुद डर जाता हूँ. :(
    भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..भ्रष्टाचार पर अरण्य रोदन के विषय में
  29. आशीष श्रीवास्तव
    कई दिन बाद आना हुआ है ब्लॉग पर ..
    यहीं से पढना शुरू करते है …
    बहुत बढ़िया व्यंग्य है .
    ” ये कली जब तलक फूल बन के खिले ..
    इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार कीजिये :) .”
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
    —आशीष श्रीवास्तव
  30. Dr. Utsawa K. Chaturvedi, Cleveland, USA
    भ्रष्टाचार को देखने के लिए किसे इलेक्ट्रान मिक्रोस्कोपे की ज़रुरत नहीं है. कितने सारे सांसदों की घोषित संपत्ति ही उनके ज्ञात आय के स्रोतों से ज्यादा है. उन्हें जेल में डाल दो. पब्लिक का भ्रष्टाचार अपने आप ख़तम हो जायेगा .
  31. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] लोकपाल के इंतजार में एक आम आदमी [...]

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