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हिंदी ब्लॉगिंग की सहज प्रवृतियां
By फ़ुरसतिया on August 29, 2012
1.क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?- मुंशी प्रेमचंद
2.ये है वो जिगरे वाला ब्लॉगर जिसने सदी के ब्लागरों को इनाम बांटे। जहां खड़ा हो जाता है, इनाम बांटना शुरु कर देता है। -फ़ुरसतिया
दो दिन पहले लखनऊ में इनामों के बतासे बंटे। खूब शानदार कार्यक्रम हुआ। आयोजकों ने खूब मेहनत की। तमाम घोषणायें हुईं। लोग एक दूसरे से मिले मिलाये। खूब सारी यादें समेटे हुये लोग अपने-अपने स्थान को गम्यमान हुये। हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जुड़ गया। प्रिंट मीडिया ने माना समारोह अनूठा रहा। हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रख्यात वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर युगों के बाद संतृप्त होकर वापस लौटा। गुरु-चेले एक बार फ़िर से कुछ दिन के लिये गुड़-चीनी हुये।
सभी इनाम पाने वाले ब्लॉगरों को हार्दिक बधाई! जैसे उनके दिन बहुरे वैसे सबके बहुरें।
आयोजकों में से एक ने बहुत पहले ही घोषित कर दिया था कि सम्मान करना उनकी फ़ितरत है। जब कोई आदत फ़ितरत में शामिल हो जाये और उससे दूसरों का कद भी बढ़ रहा हो तो फ़िर ऐसे में किया ही क्या जा सकता है। हर साल लोग सम्मानित होते रहेंगे। इतिहास में पन्ने जुड़ते रहेंगे। लोग संतृप्त होते रहेंगे। मजे आते रहेंगे।
हिन्दी ब्लॉगिंग से आठ साल से भी अधिक समय से जुड़े होने के चलते इस तरह के तमाम मनोरंजक आयोजन होते देखने का मुझे सौभाग्य मिला है। पिछली बार की तरह इस बार किसी बैक बेंचर की रिपोर्ट आयी नहीं। इससे ब्लॉगिंग की बदलती हुयी प्रवृत्ति का एहसास होता है। लग रहा है केवल शरीफ़ लोगों का जमावड़ा था वहां। सब लोग संतुष्ट रहे। जब ब्लॉगिंग की दुनिया की चिर असंतुष्ट प्रतिभा संतृप्त हो जाये तो किस माई के लाल में हिम्मत कि वह असंतुष्ट हो सके।
इन इनामी बतासों की काम भर की खिल्ली उड़ाकर इनके पाने की पात्रता हम खुदै मटिया चुके थे। लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग से जुड़े होने के चलते चिरकुट निगाहों से सारा ताम-झाम निहार रहे थे नेट पर। फोनियाते हुये हालचाल भी लेते जा रहे थे। आम हिन्दुस्तानी हमेशा के लिये ’गर फ़िरदौस’ मिसाइल की चोट खाया होता है। वही हाल अपन का भी रहता है। कोई भी सम्मेलन होता है तो उसकी तुलना इलाहाबाद में हुये ब्लॉगर सम्मेलन से करके बाकी को या तो कमतर साबित कर देते हैं या बिल्कुल्लै खारिज कर देते हैं। इलाहाबाद में सम्मेलन तीन साल पहले हुआ था। इस दौरान हिन्दी ब्लॉगिंग में तमाम बदलाव आये हैं। उनमें से कुछ का जिक्र यहां कर रहे हैं।
जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे.
हम कोई आम नहीं
जो पूजा के काम आयेंगे
हम चंदन भी नहीं
जो सारे जग को महकायेंगे
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे, उतना हरियायेंगे.
बांसुरी बन के,
सबका मन तो बहलायेंगे,
फिर भी बदनसीब कहलायेंगे.
जब भी कहीं मातम होगा,
हम ही बुलाये जायेंगे,
आखिरी मुकाम तक साथ देने के बाद
कोने में फेंक दिये जायेंगे.
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे ,उतना हरियायेंगे.
राजेश्वर दयाल पाठक
2.ये है वो जिगरे वाला ब्लॉगर जिसने सदी के ब्लागरों को इनाम बांटे। जहां खड़ा हो जाता है, इनाम बांटना शुरु कर देता है। -फ़ुरसतिया
दो दिन पहले लखनऊ में इनामों के बतासे बंटे। खूब शानदार कार्यक्रम हुआ। आयोजकों ने खूब मेहनत की। तमाम घोषणायें हुईं। लोग एक दूसरे से मिले मिलाये। खूब सारी यादें समेटे हुये लोग अपने-अपने स्थान को गम्यमान हुये। हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जुड़ गया। प्रिंट मीडिया ने माना समारोह अनूठा रहा। हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रख्यात वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर युगों के बाद संतृप्त होकर वापस लौटा। गुरु-चेले एक बार फ़िर से कुछ दिन के लिये गुड़-चीनी हुये।
सभी इनाम पाने वाले ब्लॉगरों को हार्दिक बधाई! जैसे उनके दिन बहुरे वैसे सबके बहुरें।
आयोजकों में से एक ने बहुत पहले ही घोषित कर दिया था कि सम्मान करना उनकी फ़ितरत है। जब कोई आदत फ़ितरत में शामिल हो जाये और उससे दूसरों का कद भी बढ़ रहा हो तो फ़िर ऐसे में किया ही क्या जा सकता है। हर साल लोग सम्मानित होते रहेंगे। इतिहास में पन्ने जुड़ते रहेंगे। लोग संतृप्त होते रहेंगे। मजे आते रहेंगे।
हिन्दी ब्लॉगिंग से आठ साल से भी अधिक समय से जुड़े होने के चलते इस तरह के तमाम मनोरंजक आयोजन होते देखने का मुझे सौभाग्य मिला है। पिछली बार की तरह इस बार किसी बैक बेंचर की रिपोर्ट आयी नहीं। इससे ब्लॉगिंग की बदलती हुयी प्रवृत्ति का एहसास होता है। लग रहा है केवल शरीफ़ लोगों का जमावड़ा था वहां। सब लोग संतुष्ट रहे। जब ब्लॉगिंग की दुनिया की चिर असंतुष्ट प्रतिभा संतृप्त हो जाये तो किस माई के लाल में हिम्मत कि वह असंतुष्ट हो सके।
इन इनामी बतासों की काम भर की खिल्ली उड़ाकर इनके पाने की पात्रता हम खुदै मटिया चुके थे। लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग से जुड़े होने के चलते चिरकुट निगाहों से सारा ताम-झाम निहार रहे थे नेट पर। फोनियाते हुये हालचाल भी लेते जा रहे थे। आम हिन्दुस्तानी हमेशा के लिये ’गर फ़िरदौस’ मिसाइल की चोट खाया होता है। वही हाल अपन का भी रहता है। कोई भी सम्मेलन होता है तो उसकी तुलना इलाहाबाद में हुये ब्लॉगर सम्मेलन से करके बाकी को या तो कमतर साबित कर देते हैं या बिल्कुल्लै खारिज कर देते हैं। इलाहाबाद में सम्मेलन तीन साल पहले हुआ था। इस दौरान हिन्दी ब्लॉगिंग में तमाम बदलाव आये हैं। उनमें से कुछ का जिक्र यहां कर रहे हैं।
- इलाहाबाद में टूजी के जमाने में भी हमने ब्लॉगर सम्मेलन के अपडेट सम्मेलन स्थल से ही प्रदान किये थे। यहां थ्री जी जमाने में तीन दिन बाद भी मात्र एक रिपोर्ट आयी। यह रिपोर्ट भी फ़ेसबुकिया स्टेटसों का बेतरतीब कट पेस्ट है। पूरा का पूरा ब्लॉगजगत फ़ेसबुक पर ही अपना स्टेटस सटा रहा है। लगता है लिखना/पढ़ना भूलते जा रहे हैं ब्लॉगर लोग। यह अमेरिका की अपनी लड़ाई अफ़गानिस्तान/ईराक में लड़ने जैसा मामला लगा।
- तीन साल पहले हुये सम्मेलन में जमकर बमचक हुयी थी। लगभग हर घराने के ब्लॉगर जुटे थे। तीसरे दिन तक करीब पचीस तीस पोस्टें प्रतिपक्ष/पक्ष में आ चुकी थीं। अभी तक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की मात्र दो रिपोर्टें आयी हैं। इससे यह लगता है कि सम्मेलन केवल शरीफ़ लोगों का जमावड़ा था। या फ़िर लोग बिगाड़ के डर से सच बोलने से हिचक रहे हैं।
- अभिव्यक्ति के रूप में अवतरित हुआ माध्यम ब्लॉग का इस्तेमाल अन्य सामाजिक उपलब्धियां हासिल करने के माध्यम के रूप में होना शुरु हो गया है। पता चला लोग अपनी ए.सी.आर. लिखने तक का पूर्वाभ्यास मंच से करके चले गये।
- ब्लॉगर, मीडिया और आयोजकों की मिलीजुली लीलाओं के चलते बजरिये ऐतिहासिक सम्मेलन ब्लॉग जगत के इतिहास में फ़र्जी सूचनायें दर्ज होने का सिलसिला शुरु हो गया। ब्लॉगर दम्पति को दशक का सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर सम्मान मिला। मीडिया की ब्लॉगिंग के बारे में शून्य जानकारी और संबंधित लोगों की मासूमियत के चलते यह घटना इस रूप में दर्ज हुयी कि वे अकेले दम्पति हैं जो ब्लॉगिंग से जुड़े हैं। मसिजीवी और नीलिमा तो मान लेते हैं ब्लॉगिंग स्थगित कर चुके हैं लेकिन घटनास्थल पर ही जोड़े से ब्लॉगिंग करने वाले मौजूद थे।
- सम्मेलन में इस बात की घोषणा हुई कि लखनऊ में ब्लॉगर पीठ की स्थापना होगी। ब्लॉगिंग जैसे माध्यम के लिये इस तरह की घोषणायें उत्साह की बात हैं लेकिन मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है अगर ऐसा हुआ कभी तो पीठ पर विराजने वाला इसी तरह चुना जायेगा जिस तरह ऐतिहासिक इनाम के लिये लोग चुने गये।
- ब्लॉगर सम्मेलन में आने वाले लोग मात्र और मात्र अपने साथी ब्लॉगरों से मिलने आते हैं। इनाम मिल गया तो सोने में सुहागा। उनको जमावड़े की तरह इस्तेमाल करने की फ़ितरत ब्लॉगर सम्मेलनों की सहज पृवत्ति बनती दिख रही है।
- दस साल होने को आये ब्लॉगिंग के लेकिन ब्लॉग के बारे में अच्छा लिखते हैं/बहुत अच्छा लिखते हैं से आगे चर्चा अभी भी कम होती है। अभिव्यक्ति की भाषा, तेवर, अंदाज पर बात करना अभी ठीक से शुरु ही नहीं हो पाया है। अब तो ज्यादातर ब्लॉगर भी फ़ेसबुक पर आ गये हैं या फ़िर अखबारों में लिखने के सहज आकर्षण के चलते कम शब्दों में लिखने को अपनी आदत बना रहे हैं। ब्लॉगिंग का उपयोग लोग प्रिंट मीडिया में जाने के लांचिग पैड की तरह होने लगा है।
- कुछ लोग ब्लॉग जगत की नकारात्मक प्रवृत्तियों से परेशान होकर इसकी स्थिति की चिंता करने लगते हैं। इसकी भलाई की बात सोचते हैं। यह अच्छी बात है। लेकिन यह भी सच है कि ब्लॉगिंग सहज अभिव्यक्ति का माध्यम है। जैसे अभिव्यक्त करने वाले और उनको पसंद करने वाले जैसे होंगे वैसी ही ब्लॉगिंग की स्थिति बनेगी। न कुछ खुराफ़ाती लोगों के चलते यह बरबाद हो सकती है और न ही चंद अच्छे लोगों के चलते यह स्वर्गादपि गरीयसी बन जायेगी। हर तरह के लता वितान, झाड़-झंखाड़ हमेशा बने रहेंगे यहां। नये फ़ूल खिलेंगे, कलियां मुर्झायेंगी। अब यह आप पर है कि आप कौन सी झांकी देखना पसंद करते हैं।
- ब्लॉगिंग से जुड़े लोग अपने मंच पर दूसरी दुनिया के नामचीन लोगों को बुलाते हैं।साहित्य/ मीडिया/प्रिंट/टीवी से जुड़े लोग ब्लॉगिंग के बारे में अपने बयान जारी करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुभाष राय ने बयान जारी किया- ब्लॉग की दुनिया में लम्पटों की कमी नहीं। यह एक प्रतिष्ठित पत्रकार का अखबार में छपा बयान है। अगर ब्लॉग में लिखा होता तो वहां जाकर टिपिया आते कि ब्लॉग की दुनिया बहुत तेज हैं। जो चीज पत्रकार सदियों में सीखा वह ब्लॉगर दस साल में सीख गया। अभी ब्लैकमेलिंग और दूसरे जुगाड़ सीखने बाकी हैं पत्रकारिता की दुनिया से।
- ब्लॉगिंग में होने वाले आयोजक हमेशा आलोचना के शिकार होते हैं। सरकारी पैसे से होने वाले आयोजन इस बात के लिये धिक्कारे जाते हैं कि टैक्स पेयर के पैसे का दुरुपयोग किया गया। तथाकथित व्यक्तिगत प्रयासों से अपनी फ़ितरत पूरी करने वालों को मनमानी और अदूरदर्शिता के लिये उलाहने सुनने पड़ते हैं। आयोजन की कीमत तो आयोजक को हर हाल में चुकानी पड़ती है। किसी भी आयोजन की कमियां केवल इसलिये अनदेखी नहीं की जा सकतीं कि आयोजक ने बहुत पसीना बहाया है। इतिहास में जगह बनाने के लिये बहुत भूगोल दायें-बायें करना पड़ता है।
- इस सम्मेलन में जिस तरह से इनामों की श्रेणियां बनायी गयीं उससे लगता है कि किसी संकरी बोतल में पेंसिल से ठेल के रुई घुसाई जा रही है। अपनी फ़ितरत पूरी करने के भाई लोग कुछ भी इनाम किसी को भी बांटे जा रहे हैं। यह स्थिति मनोरंजक भले लगे लेकिन कभी-कभी लगता कि मामला हास्यास्पद भी है।
- हालांकि ब्लॉगिंग कोई छुई-मुई विधा नहीं है कि कोई इस पर कब्जा कर ले। लेकिन जिस तरह यह सम्मानित करने की पृवत्ति पनप रही है उससे लगता है भाई लोग आने-वाले समय में हिन्दी ब्लॉगिंग की पीठों-गद्दियों पर मंहत बनकर कब्जा करने के इंतजाम में जुट गये हैं। भले-भोले, आपस में साथी ब्लॉगरों से रूबरू होने , मिलने-मिलाने की सहज मानवीय पृवत्तियों वाले ब्लॉगर जमावड़े के रूप में इस्तेमाल किये जाने लगे हैं।
DrArvind Mishra अब रोना कलपना बंद करिए और खुद कुछ कर दिखाईये ……परिकल्पना सम्मान तो गया आपके हाथ से और दशक सम्मान भी ! अभी इंशा अल्लाह जवां हैं कुछ कर सकते हैं …नहीं तो मेरी तरह ढलान पर आते ही कोई पूछेंगा भी नहीं ..ब्लॉगिंग की प्रवृत्ति ऐसी है कि इसमें किसी की मठाधीशी चल नहीं सकती। लेकिन यह भी गौर तलब है कि इसी दुनिया में तमाम मीडियाकर लोग अभिव्यक्ति के इस माध्यम की भलाई करने के स्टुवर्ट लिटिलीय प्रयासों में पसीने-पसीने हो रहे हैं। उनकी मेहनत को सलाम। उनके जज्बे को सलाम। उनके इरादों को नमन। उनके पसीने की जय-जय। किसी के इरादों में किसी खोट की बात नहीं कहना चाहता। लेकिन कुल मिलाकर जो सीन बनता दिखता है उसके चलते मुक्तिबोध की कविता ही याद आती है:
ये कुदरत का करिश्मा है कि मुझे तो लोग पूछ पछोर भी ले रहे हैं !
14 घंटे पहले · पसंद · 4
Anup Shukla
DrArvind Mishra जरा नेट ऊट खड़खड़ा के देख लीजिये। जब परिकल्पना सम्मान के बतासे बटने भी नहीं शुरु हुये थे तब हमको किसी रायपुर की किसी संस्था ने सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर सम्मान देने की घोषणा की थी। अपन ने रिजर्वेशन भी करा लिया था। लेकिन जब पता लगा कि वहां भी टाफ़ी-कम्पट की तरह ही इनाम बंटने हैं तो रिजर्वेशन कैंसल करवा लिये। पूरे अस्सी रुपये का चूना लगा। बाकी अब क्या कहें यह भी नहीं कह सकते कि आप खुदै समझदार हैं। आपको लोग पूछ-पछोर रहे हैं वो किसी करिश्मे की वजह से नहीं इसके पीछे आपकी बला की मेहनत है। सब इस तरह की मेहनत कर भी नहीं सकते। आपको ढलान पर आने की क्या चिंता? आप तो दिन प्रतिदिन जवान हो रहे हैं। ये जवानी और जलवा बरकरार रहे।
उदम्भरि अनात्म बन गये,पुनश्च: फ़ेसबुक पर देखा तो पता चला कि आज डा.अमर कुमार का जन्मदिन है। उनकी वाल पर लिखकर चला आया-
भूतों की शादी में कनात से तन गये
किसी व्यभिचार के बन गये बिस्तर।
हम आपको याद करते हैं डा.साहब! विश्वास नहीं होता कि अब आप हमारे बीच नहीं हों!डा.अमर कुमार याद को नमन।
मेरी पसंद
हम तो बांस हैं,जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे.
हम कोई आम नहीं
जो पूजा के काम आयेंगे
हम चंदन भी नहीं
जो सारे जग को महकायेंगे
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे, उतना हरियायेंगे.
बांसुरी बन के,
सबका मन तो बहलायेंगे,
फिर भी बदनसीब कहलायेंगे.
जब भी कहीं मातम होगा,
हम ही बुलाये जायेंगे,
आखिरी मुकाम तक साथ देने के बाद
कोने में फेंक दिये जायेंगे.
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे ,उतना हरियायेंगे.
राजेश्वर दयाल पाठक
Posted in बस यूं ही | 167 Responses
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यदि आज मुंशी प्रेमचंद इंटरनेट के जमाने में उपर्युक्त पंक्तियां लिखते तो श्री नामधारी के लिये कहते –
“क्या बिगाड के डर से छद्म नाम से ही सत्य कहोगे” ?
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..‘स्वर्ग’ में भी मैगी !
कुछ तो मजबूरियां रही होगी जो,
नमी-गिरामी को बेनामी होकर कहना पर रहा है……
एक-व्यंगकार जो विसंगतियों पे प्रश्न खरा करता है तो उसे फ्री में आलोचक’ का प्रमाणपत्र दे दिया जाता है……
बरे भाईजी का ये मानना के शुकुलजी जिस आयोजन की आलोचना कर दे ……ओ अपने-आप में सफल माना
जाये……..??????????? है. आलोचना/प्रत्यालोचना/समालोचना……..
पोस्ट
गज-नट च बमचक
टिपण्णी
रापचिक च टाप्चिक
धोते रहिये…………सारी खुमारी जाती रहेगी……………
जब भी ब्लॉग-जगत में कलुष/काई नजर आये तो लोग कहेंगे ‘इस पोस्ट पर फुरसतिया के व्यंग-डिटर्जेंट’
डाला जाय……………..पोस्ट चक-चका उठेगा….
प्रणाम.
क्या पता नामधारी जी की क्या मजबूरियां हैं जो वे अपने नाम से सामने नहीं आते!
@ शैलेंद्र झा,
मिसिरजी से हमने सवाल पूछा था कि पिछले साल उनके आयोजन के बारे में कुछ नहीं लिखा था तो क्या वह फ़्लाप माना जाये? अभी तक जबाब नहीं दिये है।
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http://safedghar.blogspot.com/2011/05/v-s.html
पैठ बनाने की हसरतें V / S इस्तेमाल होते ब्लॉगर
फिलहाल तो यहां मेरा मानना है कि क्या जरूरी है कि हम किसी के प्रभामण्डल में शामिल हो उसी के हिसाब से अपनी गतिविधियां संचालित करें, उसी के घेरे चक्रव्यूह में चाहे अनचाहे ब्लाइण्ड फॉलोअर बनते रहें ? क्या यह हमारी गुलाम मानसिकता का प्रतीक नहीं है कि हम ब्लॉगर जैसे स्वतंत्र प्लेटफार्म मिलने के बावजूद अपनी मानसिकता एक किस्म की जी-हजूरी की ओर झुकाये रखते हैं। अरे कभी तो अपने आप को स्वतंत्र रहकर सोचो यार , कि जरूरी है ‘गुलाम तासीर’ को खुराक पहुंचाई ही जाय।
जब भूसे की तरह पुरस्कार घोषित किये जा रहे थे तभी लोगों को शक हुआ था कि ये पुरस्कार है या घेटो क्रियेशन। और लोग थे कि गदगद ….. कि हमें पुरस्कार मिला…..। भूल गये कि इसकी तह में एक सड़ांध है जो गाहे-बगाहे किन्हीं बंदों की सामाजिक पैठ बनाने हेतु दिमागी खुराक है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। ऐसे बंदे जानते हैं कि लोगों का कैसे इस्तेमाल करना चाहिये, मजमा कैसे जुटाना चाहिये और उस जुटे मजमे को कैसे अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हुए पैठ बनाना चाहिये। दिल्ली प्रकरण उसी की एक मिसाल है।
यहां सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों लोग अपने आपको किसी के लिये इस्तेमाल होने देते हैं, क्यों अपने आप को एक स्वतंत्र इकाई मानने से बचते हैं। माना कि लोग समूह में रहते हैं, समूह में सोचते हैं, एक तरह से सोशल एनिमल हैं, बावजूद क्या जरूरी है कि अपने सोशल स्टेटस को ही ताक पर रख दें। वही सोचें जो हमें दूसरे सोचने को कहें, वही करें जो हमें दूसरे करने को उकसायें….ये कहां की बुद्धिमानी है। पुरस्कार आदि बांट कर जो लोग ब्लॉगरों के धड़े को अपना मान खुश हो रहे थे तो यह उनकी बहादुरी नहीं, यह ब्लॉगरों की कमजोरी थी जो कि बिना किसी विचार-मनन के भूसे की तरह बंटते पुरस्कारों पर इतराते रहे, आत्ममुग्ध रहे। शायद यह आत्ममुग्धता उनकी नियति थी, है और आगे भी रहेगी…….. और तब तक रहेगी जब लोग अपने आपको गुलाम मानसिकता से ढंके रहेंगे, स्वतंत्र सोचने विचारने के प्लेटफार्म पर भी समूहन को न्योतेंगे।
वैसे, इस पुरस्कार वितरण-ग्रहण आदि के बारे में कुछ लोग चाहे जितना भ्रम पालें कि जब कोई पुरस्कार ‘कह कर’ दे रहा हो तो कोई कैसे इन्कार करे, आखिर कुछ सोच कर ही तो दे पुरस्कार दे रहा था, लेकिन लोग अंदर से जानते हैं कि इस तरह के भूसैले पुरस्कारों की क्या अहमियत है। वह यह भी खूब समझते हैं कि इन सब में उसकी वाकई कोई सार्थक भूमिका है या महज किसी की महत्वाकांक्षा पूर्ति हेतु खुराक बना हुआ है।
और अंत में,
कहा जा रहा है कि लोग अपनी विनम्रता के चलते इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए, भ्रष्टाचार के आरोपी से पुरस्कृत हुए, हंसे-मुस्कराये…ब्ला…ब्ला किये….। लेकिन इसी विनम्रता को लेकर मेरा मानना है कि आप भले ही सौ में से निन्यानबे प्रतिशत विनम्र बने रहिये, अपने बात व्यवहार में विनम्रता का पैमाना निन्यानबे प्रतिशत बनाये रखिये, लेकिन अपने आप में एक पर्सेंट का दम्भ जरूर रखिये क्योंकि यह एक पर्सेंट का दम्भ ही है जो आपके उस निन्यानबे प्रतिशत की दशा और दिशा निर्धारित करता है। कल को यह नहीं हो कि कोई भी ऐरा-गैरा आकर आपको अपने बात से प्रभावित कर अपना काम निकाल ले, सिर्फ इसलिये कि आप विनम्र स्वभाव के हैं….नहीं…..ऐसे समय उस एक पर्सेंट के दम्भ को आगे करिये और झटक दिजिए ऐसे तत्वों को जो आप का इस्तेमाल अपने लाभ के लिये, अपने जमावड़े के लिये करना चाहते हों।
खैर, ब्लॉगिंग-फ्लॉगिंग को लेकर अभी न जाने कितने की-बोर्ड खटखटाये जायेंगे, किड़बिड़ाये जायेंगे…..लेकिन जरूरत यही है कि इस स्वतंत्र प्लेटफार्म पर अपना स्वाभिमान बनाये रखा जाय, किसी के लिये खुद को इस्तेमाल न होने दिया जाय। जिन्हें इस तरह का शौक हो कि अपने आगे पीछे दो-चार ‘चन्टू-बन्टू’ लिये हुए विचरण करने का, तो उन्हें विचरने दिया जाय….शायद यही उनकी नियति है….ब्लॉगर क्यूं विचरे।
http://safedghar.blogspot.com/2011/05/v-s.html
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..‘स्वर्ग’ में भी मैगी !
उसी पोस्ट पर हम भी कह थे उसको दोहराते हैं-
“एक आम ब्लागर तो बड़ा संतोषी टाइप का जीव होता है। वह आपस में मिल-मिलाकर ही संतुष्ट हो लेता है। जिनसे नहीं मिल पाता उसके प्रति दुखी हो लेता है। इस्तेमाल होने जैसी बात आम ब्लागर नहीं सोचता। इसका एहसास तो सतीश पंचम जैसे लोग उसको करवाते हैं।
मेरी समझ में इस तरह के कार्यक्रम होते रहेंगे। हर कार्यक्रम करने वाला इस दावे के साथ करेगा कि हमारे कार्यक्रम में ऐसा नहीं होगा। लेकिन कुछ न कुछ ऐसा जरूर होगा जिसके लिये आयोजक की खटिया खड़ी की जायेगी।
पैठ बनाने की हसरत V/S इस्तेमाल होते ब्लागर शीर्षक से मुक्तिबोध की कविता की लाइने याद आई( बावजूद इस मसले पर बहुत कम साम्य होने के)
उदम्भरि अनात्म बन गये
भूतों की शादी में
कनात से तन गये
किसी व्यभिचार के
बन गये बिस्तर।“
मान गए ,आप की भी ‘बेक बोन ‘ है.
जीते रहिए .
अपनी पहचान छुपाने के कुछ कारण हैं.
समय आने पर बताएँगे.
उस समय का इंतजार है जब आप अपनी पहचान जाहिर करेंगे।
जब आलसी दिया गया तब की अरविन्द मिश्र की पोस्ट पढ़ ले इस पोस्ट की कार्बोन कॉपी लगेगी और अनूप के कमेन्ट जो अरविन्द यहाँ कह रहे हैं वो लगेगे
शुक्रिया कि आप मुझे आक्रामक नहीं मानते. किन्तु मेरी इच्छा रहती है कि भरसक सच कह सकू. खैर.. आपने भी कई और भी मुद्दे उठाये हैं जो ब्लॉग जगत के लिए प्रासंगिक है.
@ अरविन्द जी
परिकल्पना समूह हिंदी ब्लोगिंग का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.
इस पुरस्कार समिति से जुड़े लोगों को भी पुरस्कार प्रदान किया जाता है/गया है..इस से हास्यास्पद बात और क्या होगी…
किसी बड़े साहित्यकार के नाम पर कोई पुरस्कार देना ठीक है लेकिन थोड़ी गरिमा तो बरतनी ही चाहिए….
जानकीवल्लभ शास्त्री जी के नामपर पुरस्कार शुरू करना उचित नहीं है..क्योंकि वह कवि आजीवन पुरस्कार ठुकराता रहा. एकांतवासी रहा
यह पुरस्कार शुरू करने से पहले कम से कम उस ब्लोगर से तो संपर्क कर लेना चाहिए था जो स्वयं शास्त्री जी से मिल कर आये हैं (राजभाषा, मनोज और विचार ब्लॉग वाले मनोज जी)
जो अतिथि बुलाये गए थे उन्हें ब्लॉग के बारे में जानकारी नहीं है.. तो उन्हें बताया जाना चाहिए था.. उन्हें कोई पवार पॉइंट प्रेजेंटेशन दिया जाना चाहिए था…ताकि वे ये ना कहते कि वे ब्लोगिंग को जानते नहीं….
२०११ में भी ब्लोग्गिग के सत्र को निरस्त कर दिया गया था.. इस बार भी.. यह निराशाजनक है.
कई और बाते हैं… लेकिन हाशिये पर और हाशिये की बात करने वालो को कौन सुनता है…
Parikalpana, a bloggers’ organisation, would confer the awards on 51 persons during an international bloggers’ conclave at the Rai Umanath Bali auditorium here, said Ravindra Prabhat, the organising committee’s convenor.
The participants, some of whom also blog in English and Urdu, have made Hindi popular in the United States, the United Kingdom, the United Arab Emirates, Canada, Germany and Mauritius.
“The blogger of the decade prize would be conferred on Bhopal’s Ravi Ratlami who has a huge following,” added Prabhat, a noted Hindi blogger.
The NRI bloggers who have confirmed their participation include Dr Poornima Burman, editor of Abhivyakti (an online book in Hindi published from Sharjah) and the Toronto-based Samir Lal ‘Samir’ who writes blogs in Hindi and English.
London-based journalist Shikha Varshneya, a regular blogger who has written a book ‘Russia in Memory’, is also expected to attend the ceremony. The others include Sudha Bhargava (USA), Anita Kapoor (London), Baboosha Kohli (London), Mukesh Kumar Sinha (Jharkhand) and Rae Bareli’s Santosh Trivedi, an engineer who left his job with the Uttar Pradesh Power Corporation Ltd, for blogging.
Avinash Vachaspati, the author of the first book on Hindi blogging in India and DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India would also be there as would multi-lingual blogger Ismat Zaidi, who writes in Hindi, Urdu and English. Her Urdu ghazals are a hit on the web.
Asgar Wajahat and Shesh Narayan Singh are also expected to participate, but a confirmation is awaited.
The bloggers would discuss the future of the new media, its contribution to the society, especially the future of Hindi blogging and its role in the days to come.
—
this is the news in ht dated 8th august lucknow edition
santosh trevedi left his job for bloging REALLY ???
avinash vachaspati wrote the first book on hindi bloging REALLY ??
DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India REALLY ??
DONT YOU THINK ITS HIGH TIME WE FIRST PUT THE FACTS RIGHT
आपको बहुत दिनों बाद पढ़ा. मजा आया. वो भी दिन थे…
यह देना दिलाना चलता रहेगा… मगर ब्लॉगरी के मंच से ब्लॉगरों को लपंट कहा जाना… क्या उपलब्धी रही भाई…
sanjaybengani की हालिया प्रविष्टी..मनमोहन-वाद का आम जन-जीवन पर प्रभाव
हाँ स्वर्गीय जानकी वल्लभ शास्त्री जी को लेकर कोई भी सम्मान ब्लागरों में यदि देना था तो मनोज जी ही सबसे उपयुक्त हैं !
बहरहाल शिखा जी ने मनोज जी के अवदानों और उनके शास्त्री जी से मिलाने आदि पोस्ट की चर्चा मंच पर की ..
आपके कुछ अन्य सुझाव भी शिरोधार्य है -आगे देखा जाय…. हम कुछ लोग चाहें तो एक अलग सम्मान की नींव रख सकते हैं …
मेरे बात भी कुछ दान दाताओं से हो चुकी है -मगर सवाल यही कि कौन इतना समय संसाधन होम कर सकेगा …मैं एक मोह्कमें का मुलाजिम ..
आगे समय मिला तो देखा जाएगा !
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..सम्मान को लेकर छिड़ी जंग
जाने क्यों , कई मामलों में आपसे असहमति नहीं हो पा रही है .
१०४ टिप्पणियां पढना चाहता था लेकिन दिख नहीं रही हैं .
बहुत दिलचस्प बहस चल रही है .
आज महसूस हुआ — और भी हैं फुरसतिया ( फुर्सत में ) . हालाँकि बेनामी भाई नामी होते तो शायद और भी अच्छा लगता . (बेनामी — बेशक नामी गिरामी तो अवश्य होंगे )
परन्तु अफ़सोस है कि अधिकतर ब्लोगर (आयोजनकर्ता कुनबे के लोगों सहित )गुडी-गुडी इमेज बनाये रखने के चक्कर में है .उन सभी ने शायद ‘मनमोहन मंत्र’ ले लिया है .
पोस्ट में उठाये गए कई बिंदुओं पर अपनी बेबाक राय रखने से कतरा रहे हैं.
दो दिन पूर्व मनमोहन सिंह जी ने एक शेर पढ़ा था इन पर वही फिट हो रहा है .
यहां भी महाजनो येन गत: सा पन्था चल रहा है। वैसे ये शेर यहां ज्यादा बेहतर लागू होता दिख रहा है:
लहूलुहान नजारों का जिक्र आया तो,
शरीफ़ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गये।
जिन्होंने सम्मान दिया, उनकी भी जय हो,
जिन्हें सम्मान नहीं मिला, उनकी भी जय हो|
संजय अनेजा की हालिया प्रविष्टी..विचार-विमर्श
आपकी भी जय-जय।
जहा तक शिखा वार्ष्णेय की किताब के बारे में मै जानता हूँ , इसके लोकार्पण के समय , आदरणीय श्री कैलाश बुधवार (पूर्व बीबीसी हिंदी सेवा प्रमुख) और श्री तेजेंदर शर्मा जी ने भूरी भूरी प्रसंशा की थी . हम तो उनको विद्वान ही मानते है , बेनामी भाई शायद ना मानते हो… इस पुस्तक की चर्चा और समीक्षा इंडिया टुडे सहित दर्जनों पत्र पत्रिकाओं में पढने को मिली शायद शिखा जी ने अपने प्रभाव से लिखवा ली होगी . यहाँ तक की श्रीमान फुरसतिया जी ने भी लिखी थी इसकी समीक्षा और शायद उनको भी अच्छी लगी थी पुस्तक., कुछ और वरिष्ठ ब्लोगर जैसे की श्रीयुत आदरणीय मनोज कुमार जी, श्री सलिल वर्मा जी ने भी इस पुस्तक की समीक्षा की थी और मै पुरे विश्वास से कह सकता हूँ की ये लोग किसी के आभामंडल से प्रभावित नहीं हो सकते ., बाकी आलोचना वो भी निर्मम , तो कोई भी कर सकता है .. सबको सन्मति दे भगवान.
किसी का लेखन किसी को पसंद है या किसी को नहीं .
मुझे अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है आप इसे छापें या न छापें .
मेरे मत से सहमत हों या न हों ,परवाह नहीं.
कवि अलबेला खत्री जी को बाहरी दुनिया में कई सम्मान और पुरस्कार मिले हैं जबकि इस ब्लॉग जगत ने उन्हें दुत्कारा है.
किसी ब्लोगर की पुस्तक पर समीक्षाएँ लिखना ब्लॉगजगत में एक शगल है.किसी ख़ास पर अचानक कभी-कभी संक्रामक भी हो जाता है जैसे टोरोंटो वाले उड़न तश्तरी साहब की नयी पुस्तक पर ढेरों समीक्षाएँ लिखी गईं.फुरसतिया ने भी उस पुस्तक पर ‘व्यंगात्मक ‘समीक्षा लिखी.अब किस समीक्षा को आप स्वीकार करेंगे .
सीमा गुप्ता के काव्य संग्रह छपे .एक के बाद एक उनके मित्रों ने समीक्षाएँ लिखीं ,प्रोत्साहित किया.वहीँ एक स्थापित शायर ने कुछ कवितायें पढते ही मुंह बना लिया .दूसरी ओर बाहरी दुनिया के बड़े शायर ने उन्हें उनकी पुस्तक पर हस्ताक्षर देकर सम्मानित किया .
दूर क्यों जाएँ,आप के लेखन और डॉ अरविन्द मिश्र के लेखन के बारे में अलग-अलग समूह अलग राय बनाते हैं.महिला ब्लोगरों में भी देखें तो रचना और जील के बारे में भी यही है कोई आलोचना करता है तो कोई सराहना .
भय्या ,अपना-अपना नजरिया है अपनी-अपनी-सोच.
हर कोई स्वतंत्र है अपनी पसंद -नापसंद को व्यक्त करने के लिए.
हर पुरस्कार आयोजन में पुरस्कार देने वाले की समझ ,व्यक्तिगत पसंद और इच्छा ही सर्वोपरि है.आजकल तो इनाम खरीदे भी जाते हैं और बेचे भी .हिंदी ब्लॉग जगत तो बहुत ही छोटा सा तालाब है .यहाँ की हलचल का सब को शीघ्र ज्ञान हो जाता है .कल ही अंग्रेज़ी गायकों की एक प्रतियोगिता में एम टी वी जैसी बड़े चेनल डरा प्रायोजित एक उम्मीदवार कलाकार की उम्मीदवारी खारिज़ कर दी गई क्योंकि चेनल खुद बेईमानी से अंतर्जाल से वोट डलवा रहा था.चेनल को भी तलब किया गया.
मुझे यहाँ कुछ प्रश्न रखने थे ,पिछली टिप्पणी में वे रखे जा चुके हैं ,कहना था कह दिया बस मेरे द्वारा अब इस विषय पर और कुछ नहीं कहा जायेगा.
‘बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी’.
मथने के लिए दो पक्ष बहुत ज़रूरी हैं.
आपका पक्ष जानकर पता चला
बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर बहती मुख्यधारा का .
धन्यवाद.
बाकी सब लगे रहो!
eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
शरीफ़ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गये।…….
ऐसे में पावती कैसे पहुंचे???????????
प्रणाम.
अपनी हिंदी इतनी अच्छी न होने के कारण कईं कईं बार कुछ शब्दों का अर्थ समझ में नहीं आता— या ऐसे ही अपना ही हल्का-फुल्का अर्थ ले लेता हूं…जैसे लम्पट शब्द का अर्थ पता नहीं है, लेकिन मैंने उस का अर्थ यही लिया कि होगा …ऐसे ही मजाक-वाक में लिखने वाला, लेकिन उस दिन फेसबुक व आज आप की इस पोस्ट पर जब इस शब्द पर चर्चा गर्म होती दिखी है तो ऐसा समझ आने लगा है कि यार, हो न हो, यह शब्द तो कोई लफड़े वाला ही है….
व्यक्तिगत तौर पर मैं भी मान-सम्मान के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता —आप का लिखा सब कुछ पढ़ लिया है… हमारा असली इनाम तो पाठक ही है जिसे हमारा कुछ लिखा काम आ गया तो बस मिल गया हमें हमारा सब से बड़ा सम्मान।
वैसे मैंने तो अभी तक तीन-चार ब्लागर सम्मेलन ही अटैंड किये हैं लेकिन इतने ही में मुझे ब्लागरों की श्रेणियों के बारे में अच्छे से पता चल चुका है —विभिन्न लोगों का ब्लॉगिंग करने का क्या उद्देश्य है, यह भांप कर हैरानगी सी भी होने लगी है।
अनूप जी, आप ने बिल्कुल ठीक फरमाया कि ऐसे सम्मेलनों में ब्लागर अपने साथी ब्लागरों से मिलने जाते हैं…. मेरा भी उद्देश्य कुछ ऐसा ही था …लेकिन वहां पर मेरी निगाहें ऐसे दर्जनों ब्लागरों को ढूंढ रही थीं जिन से मिलने की बहुत तमन्ना थी…..लेकिन वे दिखे नहीं और न ही उन का किसी ने ज़िक्र ही किया। इसलिए वहां से लौटते लौटते यह सोच लिया कि जो धुरधंर लोग वहां मौजूद नहीं थे, उन को भी (भी न लगाने से ठीक नहीं लगेगा) …निरंतर पढ़ना बेहद ज़रूरी है।
आपने लेख के ऊपर एक बहुत सुंदर बात लिखी है ..मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि क्या बिगाड़ के डर से इमान की बात न कहोगे? …..मैं तो यह पंक्ति पढ़ कर ही गदगद हो गया।
अनूप जी, मैं गुटखे, खैनी, तंबाकू के ऊपर हमेशा बक बक करने वाला अपनी बात आप के समक्ष ढंग से रख नहीं पा रहा हूं….. लेकिन एक बात ज़रूर समझ में आ गई है कि भविष्य में किस सम्मेलन में शिरकत करनी है, कहां पर बहानेबाजी से काम चला लेना है, यह भी समझने लगा हूं।
काश, कभी ऐसा भी हो पुरस्कार, मान-सम्मान, ट्राफियां, प्रमाण-पत्रों रहित कोई ब्लागरों का मिलन हो …जहां न कोई विजेता, न कोई पराजित हुआ हो ….सब बराबर, सब के सब मिल बैठ कर हिंदी ब्लागिंग की दशा-दिशा पर दरियों पर नीचे बैठ कर चिंतन करें …. और कईं कईं दिन यह सिलसिला चलता रहे।
एक विचार अनूप जी मेरे मन में यह भी अकसर कौंधता रहता है कि हम हिंदी ब्लागरों ने हिंदी और अंग्रेज़ी में कुछ खाई सी तो नहीं पैदा कर ली…इन ब्लागर सम्मेलनों में अगर इंगलिश के भी नामचीन ब्लागरों को आमंत्रित करें तो उन के अनुभवों से भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं…..
मन तो कर रहा है कि लिखता ही जाऊं… और बहुत कुछ जो लिख नहीं पाऊंगा ….उस हिंदी साहित्य के फरिश्ते मुंशी प्रेमचंद की बात पढ़ कर भी …….उस पर जब अमल कर पाऊंगा तो ही समझूंगा कि कुछ कहने के योग्य हो गया हूं।
सादर
प्रवीण चोपड़ा
dr parveen chopra की हालिया प्रविष्टी..प्लास्टिक की वाटर-बोतल फ्रिज में रखते समय सोचें ज़रूर ….
@ काश, कभी ऐसा भी हो पुरस्कार, मान-सम्मान, ट्राफियां, प्रमाण-पत्रों रहित कोई ब्लागरों का मिलन हो …जहां न कोई विजेता, न कोई पराजित हुआ हो ….सब बराबर, सब के सब मिल बैठ कर हिंदी ब्लागिंग की दशा-दिशा पर दरियों पर नीचे बैठ कर चिंतन करें …. और कईं कईं दिन यह सिलसिला चलता रहे।
ऐसा हो चुका है। दरियों पर बैठ लोग केवल एक दूसरे से परिचय प्राप्त किये, बतियाये, पान की गिलौरी का आनंद लिये। यह रही वह मुंबई ब्लॉगर बैठकी जिसमें न पुरस्कार का तामझाम था न कुछ. लेकिन जो लोग भी वहां पहुंचे सभी याद करते हैं इस ब्लॉगर बैठकी को। लिंक यह रहा
http://safedghar.blogspot.com/2009/12/blog-post_08.html
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..‘स्वर्ग’ में भी मैगी !
dr parveen chopra की हालिया प्रविष्टी..प्लास्टिक की वाटर-बोतल फ्रिज में रखते समय सोचें ज़रूर ….
“हर साल लोग सम्मानित होते रहेंगे। इतिहास में पन्ने जुड़ते रहेंगे। लोग संतृप्त होते रहेंगे। मजे आते रहेंगे। ”
चचा ग़ालिब ने फ़रमाया था ….
बदल कर फकीरों का हम भेष ग़ालिब ,
तमाशा ए अहल ए करम देखते है ||
और आप ये तमाशा फुरसतिया बनकर न सिर्फ देखते है बल्कि आवाज भी उठाते है ..
बढ़िया है, मौज है :D…. एक बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाईयाँ
आशीष श्रीवास्तव
दीपक मशाल
भूतपूर्व परिकल्पना सम्मानप्राप्त ब्लॉगर (विजिटिंग ब्लॉगर)
संजय अनेजा की हालिया प्रविष्टी..विचार-विमर्श
भूतपूर्व की जगह अभूतपूर्व सम्मान प्राप्त ब्लॉगर कहें अपने को!
१) लखनऊ में १५ ब्लागरों ने शिरकत की.
२) लखनऊ पुलिस ने बवाल करने वाले १५ लोगों कि शिनाख्त की.
शुकुल जरा पता करके बताओ, दोनों ख़बरों में कोई लिंक है क्या?
पता चला वे १५ के १५ कुवैत फूट लिए !