Thursday, January 31, 2013

इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा

http://web.archive.org/web/20140420081616/http://hindini.com/fursatiya/archives/3962

इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा

अमरकंटक में हमने नर्मदा और शोण तथा भद्र नदियों के उद्गम देखे। शोण और भद्र अपने उद्गम से कुछ दूर आगे चलकर सोनभद्र बनते हैं। एकदम पतली धार, एक हैंडपंप से निकलते पानी सरीखी, देखकर यह विश्वास ही नहीं होता कि यही नदियां आगे चलकर विशाल, जीवनदायिनी नदियां बनती होंगी। नदी के उद्गम को घेरकर उसके चारो तरफ़ चबूतरा/मंदिर/घेरा बना दिया गया है। पाइप से गुजारकर आगे भेजा गया है। नदी में बांध तो आज बने लेकिन उनकी घेरेबंदी तो बहुत पहले से शुरु हो गयी थी। नदी के भक्तों द्वारा।
सोनभद्र के उद्गम से तो पानी निकलता दिखता है। नर्मदा उद्गम से पानी निकलता नहीं दिखता। एक सरोवर में खूब सारा पानी भरा है। ठहरा हुआ सा। वहीं एक जगह बना है नर्मदा उद्गम। बताया गया कि जब सरोवर का पानी खाली किया गया जाता है तब उद्गम दिखता है। लेकिन यह सवाल वहां भी रहा कि इतने शांत सरोवर से ही नर्मदा प्रकट होती हैं। आगे कपिलधारा तक और फ़िर दूधधारा तक पहुंचते-पहुंचते भी नर्मदा की धारा पतली ही रहती है। कपिल धारा, जहां से नर्मदा नीचे आती हैं , भी एकाध फ़ुट ही चौड़ी होगी। वही नर्मदा आगे चलकर जीवन दायिनी, सौंदर्य की नदी बनती हैं। इतना पानी कहां से आता होगा उनमें।
शायद नदी के बहाव के साथ उनमें और धारायें/प्रपात जुड़ते जाते होंगे। कुछ दिखते होंगे, कुछ गुप्त रहते होंगे। चुपचाप अपना योगदान देकर नदी को समृद्ध बनाते होंगे। नर्मदा सबसे पहले निकली सो सबसे सीनियर हुई। सीनियारिटी का उनको यह फ़ायदा हुआ कि आगे जुड़ने वाली धारायें भी उनके ही नाम से जानी गयीं। एक नदी के निर्माण कई जलधारायें मिलती हैं। सब मिलकर पानी का चंदा देती हैं। मुख्य नदी के निर्माण में अपना सौंदर्य जोड़ती हैं। नदी का सौंदर्य सामूहिकता का सौंदर्य होता है। मिल-जुलकर बना सौंदर्य। सामूहिकता का सौंदर्य भीड़ की अराजकता और कड़े अनुशासन के बीच की चीज होता है। न एकदम बिखरा न बहुत कसा। सहज सौंदर्य।
माई की बगिया में नर्मदा की परिक्रमा करने आये कई परकम्मावासी भी ठहरे हुये थे। नहाते-धोते, आगे की यात्रा के लिये तैयार होते, खाना बनाते, खाते नर्मदा भक्त। एक जगह बुढऊ-बुढिया खाना बना रहे थे। बुढिया जी रोटी बेल रहीं थीं बुजुर्ग सेंक रहे थे। रसोई में बराबर की सहभागिता। उनके बगल में ही कई और चूल्हे सुलग रहे थे। बगल में एक महिला तीन-चार पुरुषों के साथ खाना बना रहीं थीं। सब कुछ न कुछ सहयोग कर रहे थे। श्रम का बराबर सा विभाजन। आदमी लोग बरतन मांज रहे थे। शायद नर्मदा परिक्रमा आदमी-औरत में बराबरी का भाव जगाती है। दोनों काम में हाथ बंटाते हैं।
आदमी-औरत में बराबरी का भाव जगाने के लिये उनको साथ-साथ नर्मदा परिक्रमा पर निकल पड़ना चाहिये। :)

बाहर देखा कि कुछ लोग नर्मदा की वाहन से परिक्रमा पर निकले थे। सबके रहने का बराबर से इंतजाम। एक जगह तीन नर्मदा यात्री तम्बूरा लिये नर्मदा भजन गा रहे थे। भावविभोर। भजन के भाव थे- नर्मदा मैया सबका भला करती हैं, कल्याण करती हैं। नरसिंहपुर से कई यात्री आये थे।
आगे हम लोग पातालेश्वर मंदिर देखने गये। दसवीं-बारहवीं सदी में बने मंदिर। कहा जाता है कि पातालेश्वर मंदिर स्थित शिवलिंग की जलहरी में सावन के अंतिम सोमवार को नर्मदाजी का प्रादुर्भाव होता है। पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इस परिसर में कई मंदिर हैं। दसवीं-बाहरवीं शताब्दी के मंदिरों के बीच एक मंदिर पर किन्हीं पुजारी जी का कब्जा भी है। उन्होंने अपना अतिक्रमण बना रखा है। खूबसूरत परिसर में वह कब्जा मखमल में टाट के पैबंद की तरह लग रहा था। उसकी एक छत का लेंटर लटक गया था।

दोपहर का खाना हमने बसंत भोजनालय में खाया। मालिक/मैनेजर शायद कोई दुबे जी थे। रोटी बेल रहे थे। दूसरा सेंक रहा था। किसी बात पर दुबे जी और खाना परसने वाले में बहस होने लगी। दोनों अपना-अपना काम करते हुये बहस करते जा रहे थे। खाना परसने वाले ने उलाहना दिया कि मैनेजर उसको उल्टा-सीधा काम बताता रहता है, ये करो, अब वो करो। मैनेजर ने बयान जारी किया- हमको अधिकार है इस बात का। तुम जब हमारा काम संभालने लायक हो जाओगे तब तुम भी काम बताने के अधिकारी हो जाओगे। दोनों काफ़ी देर तक बहस करते थे, अपना काम करते हुये। हम उनकी बहस सुनते हुये खाना खाते रहते। वहीं एक जगह हमें लिखा दिखाई दिया- कृपया शांति बनाये रखें। यह शायद ग्राहकों के लिये था। जगह की कमी के कारण शायद इत्ता ही लिखा। जगह होती तो पूरी बात लिखी जाती- कृपया शांति बनाये रखें ताकि हम बहस कर सकें।

साठ रुपये में पूरी थाली खाना खाकर हम तृप्त हो गये। एकाध जगह और फ़ास्टफ़ार्वर्ड मोड में देखी। इसके बाद गेस्ट हाउस परिवार से विदा लेने गये। मालकिन हमारे कमरे में अलसाई सो रहीं थीं। डुप्लीकेट चाबी से कमरा खोलकर। हमने कमरों का किराया दिया जिसे ध्यान से दो बार गिना गया। घर टाइप गेस्ट हाउस में ठहरने का फ़ायदा हुआ कि ठहरने के अलावा किसी और चीज के पैसे नहीं लगे। चाय, पकौड़ी, मिठाई और गर्मजोशी और मुस्कान मुफ़्त में मिली। चलते-चलते हमने एक बार फ़िर से मालकिन को बाल झड़ने से बचाने का दवा बताई- मस्त रहा करिये। वे फ़िर मुस्करा दीं। :)
खाना कुछ ज्यादा ही खा लिया था शायद। लौटते हुये काफ़ी देर तक ऊंघते रहे। रास्ते में जगह-जगह परकम्मावासी दिखे। हम लोग ढिढौंरी (अमरकंटक से 80 किमी) तक गाड़ी बहुत धीमे-धीमे चलाते रहे। बीच-बीच में आंखे चौड़ी करके खोलते रहे ताकि जगे-जगे से रहें। ढिढौंरी के बाद नींद विदा सी हो गयी। गाडी ने इस्पीड पकड ली। हम देर रात पहुंच गये जब्बलपुर।
इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा।

10 responses to “इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा”

  1. अफलातून
    पढ़ कर पुण्य जरूर मिला होगा । आभार ।
    गैर हिमालयी नदियों में नर्मदा और ताप्ती ही पूर्व से पश्चिम जाती हैं। आपके विवरण में सोन और भद्र का उल्लेख आया तब स्वातिजी ने कहानी सुनाई जिसमें सोन की अभद्रता के कारण नर्मदा उनसे उलट दिशा में भागती हैं ।
  2. sanjay jha
    कृपया शांति बनाये रखें ताकि हम बहस कर सकें।……………….
    aap likhte rahen ……… jis-se ke hum banchte rahen……
    pranam.
  3. सतीश सक्सेना
    बधाई यात्रा के लिए …
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..भाषा इन गूंगो की -सतीश सक्सेना
  4. दयानिधि
    तीरे तीरे नर्मदा पढ़नी है। आपने इतना सुंदर वर्णन किया है कि आनंद आ गया।
    दयानिधि की हालिया प्रविष्टी..जूता चल गया
  5. प्रवीण पाण्डेय
    सारी नदियाँ पतली धार ले कर ही निकलती हैं, ये तो रास्ते की दोस्ती होती है अन्य धाराओं से कि सागर तक पहुँचते पहुँचते विशालमना हो जाती हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ताकि सुरक्षित रहे आधी आबादी
  6. siddharth shankar tripathi
    वाह जी, आप तो साइकिल से जाने वाले थे परकम्मा करने. लेकिन लगता है अभी माहौल जानने के लिए सर्वे पर गए थे. फिरा भी विवरण तो मजेदार बन पडा है.
    डुप्लीकेट चाबी से कमरा खोलकर आपके किराए के बिस्तर का आनंद मालकिन ने उठा लिया और अलसाय भी रही थीं.. ऐसा क्या था जी वहाँ?
  7. arvind mishra
    नदिया जीवन दायिनी तो हैं मगर जिसने सोन की विनाश लीला देखी है वह सहमते हुए मानता है यह हाहाकारी जन धन विनाशिनी है!
    एक जगहं कुछ उपमा दोष सा लगते लगते बच गया है -सामूहिक सौन्दर्य वाले मामले में -अगर नदी का मानवीयकरण किया जाए और जैसा कि लगा आप प्रस्तावना कर रहे हैं तो फिर सौन्दर्य के निखार में सामूहिकता के समावेश के मायने क्या होंगें? बहरहाल आपने प्रवाह बदल दिया !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कौन सा भारत,किसका भारत?
  8. Girish Billore
    भई फ़ुरसतिया जी
    हत्ती के नीचे से निकसे…….. के नईं निकसे
    और वो नेत्र विहीन दिव्य दृष्टिवान से कांडात बंधवाया कि नहीं..
    Girish Billore की हालिया प्रविष्टी..अक़्ल हर चीज़ को, इक ज़ुर्म बना देती है !
  9. Abhishek
    ” कृपया शांति बनाये रखें ताकि हम बहस कर सकें।” आइडिया जबरदस्त है :)
  10. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा [...]

परकम्मावासी



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Tuesday, January 29, 2013

अथ अमरकंटक यात्रा कथा

http://web.archive.org/web/20140420082220/http://hindini.com/fursatiya/archives/3942

अथ अमरकंटक यात्रा कथा

दो दिन पहले अमरकंटक घूमने गये। गणतंत्र दिवस के बाद इतवार था। सो झण्डा फ़हराने के बाद नर्मदा दर्शन के लिये निकल लिये। साथ हितेश ,डॉ नमिता (श्रीमती हितेश) और देवांजन भी। कार के मुख्य सारथी हितेश थे। बाकी -ड्राइवर इन रिजर्व

खमरिया पार करते ही बकौल श्रीलाल शुक्ल भारतीय देहात का महासागर शुरु हो गया। सड़क (SH 22) अमरकंटक तक चकाचक। सड़क की चिकनाई देते हुये लालू जी का सड़क बयान (बिहार की सड़के हेमामालिनी के गाल की तरह चिकनी) याद आया। सड़क जगह-जगह नदी की तरह लहराते हुये बनी है। धुमावदार सड़क पर चलते हुये चलाने वाला सजग सा रहता है। एकरस नहीं होता मामला। भिडंत बची रहती है।
रास्ते में छोटे-छोटे कस्बे दिखे। हर जगह हाट-बाजार लगे थे। सड़क के दोनो ओर खरीद-बिक्री में तल्लीन लोग। जमीन, खटिया, तखत पर दुकाने सजी थीं। एक जगह एक महिला दर्जी सड़क पर अपनी सिलाई मशीन धरे सिलाई कर रही थी। वह पास ही कहीं रहती होगी। रोज मशीन उठाकर लाती होगी। दिन में सिलाई की दुकान चलाती होगी। शाम को उठा ले जाती होगी।

ऐसे ही हम अपने वाहन से उतरकर हाट मुआइना कर रहे थे। इस बीच एक कार से हमको इशारा करके बुलाया गया। देखा तो गिरीश बिल्लौरे थे। ढिंढौरी में झंडा फ़हराकर घर लौट रहे थे। हमने उनसे अमरकंटक में रुकने का इंतजाम करने को कहा था। उन्होंने कार में बैठे-बैठे इंतजाम की जानकारी दी। बाद में एक फोन नंबर भी दिया। इंतजाम कथा आगे।

आगे एक जगह सड़क जरा ज्यादा सीधी हो गयी कुछ दूर। कार चलाते हुये हितेश कुछ ऊंघ से गये। कार लहराई तो बगल में बैठी उनकी श्रीमती डा.नमिता ने उनको फ़ौरन हिलाया। ड्राइवर के हिलने से कार का लहराना और हिलना थमा। इससे एक बार फ़िर से यह सिद्ध हुआ कि समझदार पत्नियां अपने जीवनसाथी पर हमेशा निगाह रखती हैं। सतर्क करती हैं। खतरे से बचाती हैं। हम रास्ते भर उस पल भर के हिलने-लहराने को याद करते रहे। कुछ ड्राइवर हिलते-डुलते, मटकते-लहराते शायद इसीलिये वाहन चलाते हैं ताकि उनके वाहन स्थिर रहें।

ढिढौंरी में चाय पी गयी। गिरीश के दिये फ़ोन नंबर पर संपर्क किया गया। संपर्क सूत्र ने अमरकंटक में इंतजाम करने का वायदा किया। एक लड़का अपनी बुजुर्ग मां का हाथ पकड़े अमरकंटक की तरफ़ लपका चला जा रहा था। शायद नर्मदा परिक्रमा के लिये निकले हों वे लोग।
रास्ते में अपने घरों को वापस लौटते लोग दिखे। शाम को लोग कहीं जाता दिखे ऐसा लगता है कि वह अपने घर ही वापस जा रहा होगा। एक जगह सड़क पर एक बुजुर्ग गायों को हांकते वापस लौट रहे थे। इधर-उधर होती गायों को बुजुर्गवार बार-बार उधर-इधर कर रहे थे।
अंधेरा होने के कुछ देर बाद अमरकंटक पहुंचे। नर्मदा उद्गगम ऊंघने लगा था। इधर-उधर खुदी सड़कों पर कारों की बहुतायत बता रही थी कि खूब सारे लोग झण्डा फ़हराकर अमरकंटक निकल आये हैं। कारों पर CG लिखा देखकर हम काफ़ी देर तक कयास लगाते रहे कि यहां चंडीगढ़ से इत्ते लोग क्यों आये हैं। बाद में पता लगा कि वे कारे चंड़ीगढ़ की नहीं छत्तीसगढ़ की थीं।

ठहरने के हम म.प्र. टूरिस्ट होम में जगह तलाशने पहुंचे। वहां सब कमरे भरे थे। हमने वहीं से गिरीश के संपर्क सूत्र को फोन किया। उन्होंने बताया MPT (एम पी टूरिज्म) चले जाइये। हम बोले वहीं से बोल रहे हैं। यहां सब फ़ुल है। आगे बताया जाये। वे बोले बताते हैं लेकिन फ़िर कुछ पता नहीं चला। MPT वालों ने ही बताया अमरकण्टक गेस्ट हाउस चले जाइये। एक कमरा खाली है। वहां पता चला कि दो हो जायेंगे। हम निशाखातिर हो गये अब तो ठहरने का जुगाड़ हो ही गया। लेकिन वहां जाने के पहले हम एकाध जगह कमरा खोजते रहे। इंसानी फ़ितरत है शायद यह। हमेशा विकल्प खोजता है। लेकिन दूसरी जगह भी यही बताया गया कि अमरकंटक गेस्ट हाउस में ही कमरा मिल सकता है। बाकी जगह फ़ुल है।

गेस्ट हाउस में दो कमरे हमारा ही इंतजार कर रहे थे। एक बड़ा और एक छोटा (बड़े का लगभग आधा) । दोनों का किराया बराबर। । हमें लगा कि हम किसी माल में कमरा खरीद रहे हैं। बड़े कमरे के साथ छोटा मुफ़्त। मोलभाव नको!
सामान धरते ही हम गेस्ट हाउस मालिक के परिवार के साथ विनजिफ़ फ़ाइल की तरह खुल गये। मूलत: जयपुर के रहने वाले और अब शहडोल में बसे राजेश जी जब कभी मन आता है सपरिवार अमरकंटक चले आते हैं। पत्नी विदिशा की हैं। एक बच्ची जयपुर के इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ रही है। बच्चा आर्यन आठवी में पढ़ रहा है। देखते-देखते हमको चाय-पानी और शादी की मिठाइयां रसगुल्ला सब मिलने लगे खाने को। गेस्ट हाउस घरेलू बन गया। हम मेहमान टाइप।

अगले दिन सबेरे घूमने के लिये निकलते समय चाय-पकौड़ी टूंगते हुये हमने घर वालों को जानकारी दी कि हमारे नामिता डाक्टर हैं। कोई दवा-सवा लेना हो तो बताइये। मकान मैडम ने तुरंत अपनी पीड़ा बयान की कि उनके बाल झड़ते हैं। अगर वे बतातीं नहीं तो हम सोचते भी नहीं कि उनके बाल कम टाइप हैं। अलबत्ता उनके पति के सर के बाल खल्वाट सीमा की तरफ़ बढ़ते साफ़ दिखे। हमने कहा आपके बाल कम तो दीखते नहीं। लगता है फ़िजूल चिंता के कारण बाल झड़ते दीखते हैं। आप मस्त रहा करें। इस पर उन्होंने कहा- मस्त रहती हूं तभी तो वजन बढ़ रहा है। शायद बढ़ता वजन और झड़ते बाल हर संतुष्ट परिवार की समस्या है।

जहां ठहरे थे वहां से सोन उद्गम पास था। उसको देखने के पहले हम पास ही स्थित यंत्र मंदिर देखने गये। वहां कुछ परकम्मावासी निकलते दिखे। पचास से सत्तर के बीच की उमर वाले बुजुर्ग नर्मदा परिक्रमा करने निकले थे। अपना सामान सर पर लादे हुये परकम्मावासियों के मन में नर्मदा के प्रति अद्भुत श्रद्धा, अगाध आस्था है। उनको भरोसा है मईया उनकी देखभाल करेगी। हम अपनी एक दिन की यात्रा के लिये तमाम ताम-झाम समेटते चलते हैं। यहां ये और इनकी तरह के अनगिनत लोग हर साल महीनों नर्मदा किनारे बिताते हैं। साथ में कुछ सामान और मन में नर्मदा भक्ति धारण किये।
शोण और भद्र ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। शोण और भद्र का उद्गगम पास-पास ही। निकलने के बाद दो-चार मीटर चलकर वे आगे मिलते हैं और शोणभद्र ( सोनभद्र) बनते हैं। यह कथा है कि शोण और नर्मदा का विवाह होने वाला था। लेकिन नर्मदा ने शोण को उनकी संदेशवाहिका दासी जुहेला के साथ देख लिया तो नाराज होकर उल्टी तरफ़ चली गयीं। चिरकुमारी रहीं।
शोण की धारा अपने उद्गगम पर इतनी क्षीण है कि विश्वास ही नहीं होता कि यही आगे चलकर विशाल सोन नदी बनती होगी।

सोन उद्गगम स्थल पर खूब सारे बंदर दिखे। निश्चिंत धूप में टहलते। आरामफ़र्मा। सड़क पर कार के हार्न से बेखबर। एक दूसरे के शरीर संवारते। जुंये निकालते। एक बंदर पेड़ की जड़ पर जिस तरह बैठा था उसको देखकर लगा कि अपने सिंहासन पर किसी फ़रियादी के इंतजार में कोई राजा बैठा है। एक बंदर दूसरे की लंबी पूंछ को साइकिल के रिम की तरह गोल किये सहला रहा था। एक महिला अपने हाथ में कुछ सामान ले जारी जा रही थी। बंदर ने झपट्टा मारकर उनके हाथ से खाने का सामान झटक लिया। बाकी किसी से कुछ मतलब नहीं।
यहां लोग सूर्योदय देखने आते हैं। हमारे पहुंचने तक सूरज निकल आया था। हमें लगा कि हमारे ऊपर तमतमा रहे हैं महाराज- हमेशा देर से आते हो।

पास ही एक बुजुर्गवार अपनी दूरबीन लिये बैठे थे। पांच रुपये में घाटी और गांव दर्शन करा रहे थे। बताइन कि पांच हजार में बिलासपुर से खरीदी थी पिछले साल दूरबीन। पैसा पूरा वसूल हो गया है। हमने देखा तो कोहरे के कारण दूर की चीजें साफ़ नहीं दिख रहीं थीं।

वहीं पर एक किताबों की दुकान भी थी। नर्मदा से संबंधित किताबों के अलावा ब्यूटी टिप्स और गृहशोभा टाइप पत्रिकायें थीं। बेगड़जी की किताबें नहीं दिखीं। नर्मदा परिक्रमा से संबधित एक किताब लेकर हम आगे कि अमरकंटक दर्शन के लिये निकल लिये।

21 responses to “अथ अमरकंटक यात्रा कथा”

  1. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    अत्यन्त रोचक याञा वृतान्त ! “नरमदा मइया की परकम्मा” करने निकले सरल, सुविधा विहीन गामीणों के चिञ, उनकी अटूट आस्था दिल को गहराई तक छू जाती है।
  2. बवाल हिन्दवी
    परम आनंददायी वर्णन। शोण नर्मदा ब्रेक-अप और दोनों नदियों की कथा एक अलग विचार स्वप्न में ले गई। बिल्लोरे जी की व्यवस्था बहुत बढ़िया रही। हा हा। सुखद वृतांत।
  3. प्रवीण पाण्डेय
    सरल ग्रामीणों और विरल विकास के क्षेत्र में पहुँच गये आप। राग दरबारिया गाँव तो कम ही होंगे वहाँ।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ठंड में स्नान
  4. Anonymous
    गेस्ट हाउस ‘घरेलु’ बन गया और आप मेहमान ‘टाइप’ ……………….आपने अच्छी ‘मेहमानवाजी’ करने के लिए बधाई………..जे ई पोस्ट पढने को मिला …….
    घूम-घाम करते रहें लेकिन जाम-झाम से बचते रहें…………..
    प्रणाम.
  5. Kajal Kumar
    लगता है बिल्लौरे जी ने गोली दे दी
    Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- कुछ नी हो सक्‍ता …
  6. दयानिधि वत्स
    महोदय, आपकी यात्रा वृतान्त पढ़कर बड़ा ही आनन्द आया. आपका ई-मेल एड्रेस मिल जाता तो अच्छा होता. एक-दो जुगाड़ वाले काम हो जाते :) :D
  7. Girish Billore
    भाई साहब
    चार दिन से समारोह की तैयारी में अपना पोर पोर पिरावत रहा.तिस पै डिंडोरी जिले का जाडा़ उफ़्फ़ कुल्फ़ी जम गई थी.
    २५ जनवरी की रात तो ऐसा सोया कि न सोये के बराबर. कमिश्नर साब के दौरे के चलते डिंडोरी का रेस्ट हाउस पैक था फ़ुरसतिया जी अनूपपुर जिले वाले अमरकंटक में रुकना चाहते थे सो बस अब दूसरे जिले में अपना बस न चला. काजल भाई गोली नहीं दी हा हा हा
    Girish Billore की हालिया प्रविष्टी..बड़े बड़े लोगों को बक़नू बाय की बीमारी हो गई है..!!
  8. arvind mishra
    बढियां है हम सोनभद्र के उतार पर हैं और आप चढ़ान पर ….चढ़ायी जारी रखें और विजय की खबर दें!
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कौन सा भारत,किसका भारत?
  9. संजय @ मो सम कौन
    मस्त चुटीली मौलिक फ़ुरसतियाना रपट बांचकर आनंदित भये:)
    अमरकंटक का जिक्र आते ही आशुतोष मुखर्जी की ’सोना काठी रूपा काठी’ याद आ जाती है।
    संजय @ मो सम कौन की हालिया प्रविष्टी..बिना शीर्षक
  10. राहुल सिंह
    ”शोण की धारा अपने उद्गगम पर इतनी क्षीण है कि विश्वास ही नहीं होता कि यही आगे चलकर विशाल सोन नदी बनती होगी।” आप अपने विश्‍वास पर कायम रह सकते हैं, क्‍योंकि यह क्षीण धारा आगे चल कर सोन नदी (नद) नहीं बनती. आप यह http://akaltara.blogspot.in/2012/03/blog-post_28.html देख सकते हैं.
    राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..काल-प्रवाह
  11. ajit gupta
    अब क्‍या लिखे? कुछ छोड़ा ही नहीं। चलचित्र की तरह कहानी कह दी। बहुत ही सशक्‍त।
  12. Jatdevta Sandeep Panwar
    वैसे चड़ीगढ़ का नम्बर ch से शुरु होता है, जल्द ही यहाँ जाने का सोचा हुआ है|
  13. shobha
    नर्मदा परिक्रमा बहुत कठिन परिक्रमा है इसमें नर्मदा के किनारे किनारे चला जाता है. यानि जहाँ से शुरू होती है वही पर ख़त्म की जाती है. नर्मदा की पूरी लम्बाई से दुगना परिक्रमा पथ हो जाता है.(ये जानकारी मुझे वेगड़ जी की किताब से मिली)
  14. इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा
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  15. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] अथ अमरकंटक यात्रा कथा [...]
  16. Himanshu
    नर्मदा का नाम आये…बेगड़ जी की पुस्तकें याद आती हैं। किताबें नहीं दिखीं-यह जानकर उदास हो गया होगा मन!
    परकम्मावासियों से मिल लिए..पुण्य लाभ तो हुआ…नर्मदा मईया तो मिलीं ही।
  17. नमो नर्मदे मैया रेवा
    [...] अमरकंटक यात्रा के दौरान माई की बगिया में कई नर्मदा परकम्मावासियों से मुलाकात हुई। उनमें से एक दल सुबह स्नान के बाद नर्मदा भजन करने लगा। अपने मोबाइल कैमरे में उस भजन को हमने रिकार्ड कर लिया। वाद्ययंत्र तम्बूरा और डब्बा जिसमें रेजगारी से संगत दी जा रही थी। हमारे साथ के लोग भी संगत देने लगे। आप भी सुनिये भजन- नमो नर्मदे मैया रेवा। [...]
  18. दीपक बाबा
    जय हो शुक्ल परम्परा… जय हो. श्री लाल शुक्ल से लेकर अपने अनूप शुक्ल तक जिन्होंने कल रात १ बजे तक इसी राग दरबारी में ‘निशुल्क’ फसाए रखा :)
    अमा यार हर इंसान इंतनी कानपुरी फुर्सत में फुरसतिया नहीं होता. :)
    जो भी हो, कल ही ये रागदरबारी हाथ में वाया अमरकंट आया .. देर आयेद दुरुस्त आयेद.
    रागदरबारी को इस मायाजाल में प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद और आभार.
  19. : चलो एक कप चाय हो जाये
    [...] हितेश और उनकी श्रीमती डॉ. नमिता का है। अमरकंटक जाते समय ढिढौरी की एक चाय की दुकान पर [...]
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