क्रिकेट में फ़िक्सिंग घोटाला घोटालों में सबसे उदीयमान घोटाला है।
तेजी से उभरा और मीडिया के आसमान पर छा गया। छाया हुआ है हफ़्ते भर से।
इसके पहले के महारथी घोटाले रेलगेट, कोलगेट सब नेपथ्य में चले गये हैं। इसकी आड़ में खड़े हैं। जैसे संयुक्त परिवारों की बहुयें , पल्ला सर पर लिये, दरवाजे की ओट से ड्राइंग रूम की हरकतें निहारती हैं वैसे ही बाकी घोटाले फ़िक्सिंग घोटाले की लीलायें मुदित मन देख रहे हैं।
सब तरफ़ खेल में फ़िक्सिंग घोटाले से बचने के उपायों की चर्चा हो रही है। कोई कानून बनाने की बात कर रहा है।
मेरा सुझाव है कि खेलों में फ़िक्सिंग रोकनी है तो खिलाड़ियों को फ़िक्सिंग न करने के लिये नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस मिलना चाहिये। जिस तरह सरकारी डाक्टरों को अलग से प्रैक्टिस न करने के लिये नॉन प्रैक्सिंग अलाउंस (NPA)मिलता है। उसी तर्ज पर खेलों में फ़िक्सिंग रोकने के लिये खिलाड़ियों को नॉन फ़िक्सिंग अलाउंस (NFA) मिलना चाहिये।
हर खिलाड़ी का नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस उनकी कीमत के हिसाब से होगा। अच्छे खिलाड़ी को ज्यादा , खराब खिलाड़ी को और ज्यादा। अच्छा खिलाड़ी तो मैच की फ़ीस के अलावा विज्ञापन की कमाई से गुजारा कर लेगा। लेकिन खराब खिलाड़ी को विज्ञापन नहीं मिलते तो उसकी प्यास ज्यादा होती है लिहाजा खराब खिलाड़ी को अच्छे खिलाड़ी के मुकाबले डबल नॉन फ़िक्सिंग अलाउंस (NFA) मिलना चाहिये।
कुंआरे खिलाड़ी का एन.एफ़.ए (नफ़ा) शादी -शुदा खिलाड़ी के मुकाबले ज्यादा होना चाहिये। कुंआरे खिलाड़ियों को अपने/अपनी मित्रों को सहेजने में ज्यादा खर्चा होता है। शहरी इलाकों के खिलाड़ी को गांव कस्बे के खिलाड़ी की तुलना में अपनी गर्लफ़्रेंड मेंटेन करने में ज्यादा खर्चा लगता है इसलिये छत्तीसगढ़ वाले का नफ़ा चंढीगढ़ वाले से ज्यादा होना चाहिये।
यह भी हो सकता है नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस और गर्ल फ़्रेंड अलाउंस अलग कर दिया जाये। इससे फ़ायदा यह होगा कि शादी शुदा लोगों को यह अलाउंस देना नहीं होगा। हो सकता है कि शादी शुदा लोग एतराज करें कि ठीक है बीबी मेंटन करने में एलाउंस मत दीजिये लेकिन कुछ तो भत्ता दीजिये हमको भी ताकि बीबी एक अलावा भी किसी को मेंटेन करने का मन करे तो कमी न रहे। ऐसे लोगों को संगीता बिजलानी एलाउंस दिया जा सकता है।
नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस का फ़ायदा यह होगा कि खिलाड़ी का स्तर तय हो सकता है। इसके आधार पर टीम का चयन किया जा सकता है। खिलाड़ी की फ़िक्सिंग क्षमता के हिसाब से उनका टीम में चुनाव किया जा सकता है। सर्वे करा लीजिये। जिस खिलाड़ी का NFA शून्य है उसको निकाल बाहर करिये। यह तरकीब लगाई गयी होती तो वीरेन्द्र सहवाग जैसे खिलाड़ियों को बिना बवाल के अब तक बाहर कर दिया गया होता।
तमाम डॉक्टर लोग नपा (NPA) भी लेते हैं और घर में प्रैक्टिस भी करते हैं। अस्पताल में मरीजे देखते हैं और इलाज के लिये घर बुलाते है। आने वाले समय में नॉन प्रैक्टिसिंग घोटाला भी अवतार ले सकता है।
उसी तर्ज पर हो सकता है कुछ खिलाड़ी नफ़ा( NFA) एलाउंस भी लें और फ़िक्सिंग भी करें। डाक्टरी एक आदर्श पेशा है। उसके आदर्शों को खिलाड़ियों द्वारा अनुकरण किया जाये यह सहज संभाव्य है।जब होगा तब देखा जायेगा।
हो सकता है खेलों की नॉन फ़िक्सिंग घोटाले की इस्कीम आगे चलकर दूसरे पेशों में भी लागू हो। सरकार हर विभाग के लिये, हर मंत्री के लिये, हर पद के लिये उसकी घोटाला क्षमता के अनुसार नॉन घोटाला एलाउंस घोषित कर दे। फ़िर संभव देश में घपले घोटालों का नामोनिशान मिट जाये। घपला करने वाले आजकल के ईमानदारों की तरह अल्पसंख्यक हो जायें।
आप बताइये आपका क्या विचार है इस मामले।
अगर नफ़ा का विचार लागू हुआ आप अपने लिये कित्ता नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस चाहते हैं?
तेजी से उभरा और मीडिया के आसमान पर छा गया। छाया हुआ है हफ़्ते भर से।
इसके पहले के महारथी घोटाले रेलगेट, कोलगेट सब नेपथ्य में चले गये हैं। इसकी आड़ में खड़े हैं। जैसे संयुक्त परिवारों की बहुयें , पल्ला सर पर लिये, दरवाजे की ओट से ड्राइंग रूम की हरकतें निहारती हैं वैसे ही बाकी घोटाले फ़िक्सिंग घोटाले की लीलायें मुदित मन देख रहे हैं।
सब तरफ़ खेल में फ़िक्सिंग घोटाले से बचने के उपायों की चर्चा हो रही है। कोई कानून बनाने की बात कर रहा है।
मेरा सुझाव है कि खेलों में फ़िक्सिंग रोकनी है तो खिलाड़ियों को फ़िक्सिंग न करने के लिये नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस मिलना चाहिये। जिस तरह सरकारी डाक्टरों को अलग से प्रैक्टिस न करने के लिये नॉन प्रैक्सिंग अलाउंस (NPA)मिलता है। उसी तर्ज पर खेलों में फ़िक्सिंग रोकने के लिये खिलाड़ियों को नॉन फ़िक्सिंग अलाउंस (NFA) मिलना चाहिये।
हर खिलाड़ी का नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस उनकी कीमत के हिसाब से होगा। अच्छे खिलाड़ी को ज्यादा , खराब खिलाड़ी को और ज्यादा। अच्छा खिलाड़ी तो मैच की फ़ीस के अलावा विज्ञापन की कमाई से गुजारा कर लेगा। लेकिन खराब खिलाड़ी को विज्ञापन नहीं मिलते तो उसकी प्यास ज्यादा होती है लिहाजा खराब खिलाड़ी को अच्छे खिलाड़ी के मुकाबले डबल नॉन फ़िक्सिंग अलाउंस (NFA) मिलना चाहिये।
कुंआरे खिलाड़ी का एन.एफ़.ए (नफ़ा) शादी -शुदा खिलाड़ी के मुकाबले ज्यादा होना चाहिये। कुंआरे खिलाड़ियों को अपने/अपनी मित्रों को सहेजने में ज्यादा खर्चा होता है। शहरी इलाकों के खिलाड़ी को गांव कस्बे के खिलाड़ी की तुलना में अपनी गर्लफ़्रेंड मेंटेन करने में ज्यादा खर्चा लगता है इसलिये छत्तीसगढ़ वाले का नफ़ा चंढीगढ़ वाले से ज्यादा होना चाहिये।
यह भी हो सकता है नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस और गर्ल फ़्रेंड अलाउंस अलग कर दिया जाये। इससे फ़ायदा यह होगा कि शादी शुदा लोगों को यह अलाउंस देना नहीं होगा। हो सकता है कि शादी शुदा लोग एतराज करें कि ठीक है बीबी मेंटन करने में एलाउंस मत दीजिये लेकिन कुछ तो भत्ता दीजिये हमको भी ताकि बीबी एक अलावा भी किसी को मेंटेन करने का मन करे तो कमी न रहे। ऐसे लोगों को संगीता बिजलानी एलाउंस दिया जा सकता है।
नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस का फ़ायदा यह होगा कि खिलाड़ी का स्तर तय हो सकता है। इसके आधार पर टीम का चयन किया जा सकता है। खिलाड़ी की फ़िक्सिंग क्षमता के हिसाब से उनका टीम में चुनाव किया जा सकता है। सर्वे करा लीजिये। जिस खिलाड़ी का NFA शून्य है उसको निकाल बाहर करिये। यह तरकीब लगाई गयी होती तो वीरेन्द्र सहवाग जैसे खिलाड़ियों को बिना बवाल के अब तक बाहर कर दिया गया होता।
तमाम डॉक्टर लोग नपा (NPA) भी लेते हैं और घर में प्रैक्टिस भी करते हैं। अस्पताल में मरीजे देखते हैं और इलाज के लिये घर बुलाते है। आने वाले समय में नॉन प्रैक्टिसिंग घोटाला भी अवतार ले सकता है।
उसी तर्ज पर हो सकता है कुछ खिलाड़ी नफ़ा( NFA) एलाउंस भी लें और फ़िक्सिंग भी करें। डाक्टरी एक आदर्श पेशा है। उसके आदर्शों को खिलाड़ियों द्वारा अनुकरण किया जाये यह सहज संभाव्य है।जब होगा तब देखा जायेगा।
हो सकता है खेलों की नॉन फ़िक्सिंग घोटाले की इस्कीम आगे चलकर दूसरे पेशों में भी लागू हो। सरकार हर विभाग के लिये, हर मंत्री के लिये, हर पद के लिये उसकी घोटाला क्षमता के अनुसार नॉन घोटाला एलाउंस घोषित कर दे। फ़िर संभव देश में घपले घोटालों का नामोनिशान मिट जाये। घपला करने वाले आजकल के ईमानदारों की तरह अल्पसंख्यक हो जायें।
आप बताइये आपका क्या विचार है इस मामले।
अगर नफ़ा का विचार लागू हुआ आप अपने लिये कित्ता नॉन फ़िक्सिंग एलाउंस चाहते हैं?
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