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पर स्टेटस कुशल बहुतेरे
By फ़ुरसतिया on May 6, 2013
1.अगर आप इस भ्रम का शिकार हैं कि दुनिया का खाना आपका
ब्लाग पढ़े बिना हजम नहीं होगा तो आप अगली सांस लेने के पहले ब्लाग लिखना
बंद कर दें। दिमाग खराब होने से बचाने का इसके अलावा कोई उपाय नहीं है।
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे।-ब्लागिंग के सूत्र
ज्ञानजी ने अपनी मुखपुस्तिका बोले तो फ़ेसबुक पर एक लिंक साझा किया। साथ में लिखा-“आओ लिखें और कुछ कर दिखाएँ। #blogging आपको तर्कसंगत बनाती है।” हमने सोचा उन्होंने रोज डेली लिखने के अपने आह्वान पर अमल फ़ौरन शुरु कर दिया होगा। लेकिन उनके यहां तो हफ़्ते भर पुरानी पोस्ट सजी हुई है। इसे क्या कहा जाये- पर स्टेटस कुशल बहुतेरे?
कभी ज्ञानजी सुबह-सुबह पोस्ट ठेलने के चलते मार्निंग ब्लॉगर कहलाते थे। इधर सूरज निकला, इधर ब्लाग चढ़ा टाइप। सूरज भी शायद उनका ब्लाग देखकर निकलता था। कहता होगा- ज्ञानजी की पोस्ट चढ़ गयी चलो निकला जाये। पढ़के टिपियाया जाये। फ़िर ड्यूटी बजायी जाये।अब उनकी दुकान फ़ेसबुक पर सज गयी है। ताजा माल ठेलते हैं -टुकड़ों में। सूरज ने भी शायद अपनी घड़ी उनके फ़ेसबुक खाते से सेट कर ली होगी।
रोज लिखने के फ़ायदे बताते हुये जेन आदतों वाले भाई साहब बताते हैं:
इसलिये हमने सोचा कि अब नियमित लिखने पर उतर आना चाहिये। जो होगा देखा जायेगा। पहले भी अपन नियमित ब्लॉगिंग के उपाय सुझा चुके हैं। इधर के अनुभवों ने कुछ और सिखाया है। वह है आशु टिप्पणी सिद्धांत। आशु टिप्पणी सिद्धांत घराने के लोग टिप्पणियों आशु कविता में करते हैं। हास्यास्पद तरीके से लिखी बात को हास्य कविता बताते हैं। पाठक की गफ़लत का फ़ायदा उठाते हुये कभी-कभी तो उसे व्यंग्य भी कह देते हैं। उसी घराने का दूसरा तबलची जब देखता है तो उस व्यंग्य को और उचकाकर उत्कृष्ट बना देता है।
हास्यास्पद टिप्पणी करने वाले स्वभाव से हनुमान टाइप होते हैं। वे अपनी कलम का सीना फ़ाड़ कर अपने अन्दर की चिरकुटई का दीदार दुनिया जहां को कराने की कोशिश करते हैं। कुछ नमूने दिखाते हैं आपको इस टिप्पणी सिद्धांत की समझ के लिये। लेकिन ऐसे नमूनों का दीदार कराने के लिये खुद नमूना बनना पड़ेगा। फ़िलहाल आप देखिये हमारे ठेलुहा नरेश ने इस पर कुछ काम किया है। बताने की कोशिश की है कि कैसे हास्यास्पद टिप्पणी घराने के लोग व्यंग्यकार की कुर्सी पर कब्जा करते हैं।
अब जैसे इस पोस्ट पर उस घराने का कोई नुमाइंदा टिप्पणी करेगा तो किस तरह करेगा यह तो वह भी नहीं जानता। उसकी टिप्पणी .का मुंहासा कब फ़ूटेगा, किधर फ़ूटेगा कोई कुच्छ नहीं कह सकता। वह पता नहीं किस शब्द के खूंटे से लटकाकर अपना चरखा चलाये। स्टेटस, ब्लॉगिंग, जेन, लेखन किसी पर भी उसकी नीयत डोल सकत है। यह भी हो सकता है कि वह अपना कूड़ा अपने साथ लाये और यहां टिप्पणी बक्से में उड़ेल के फ़ूट ले। अपने अनुभव से आपको बताते हैं कि अगर उसकी टिप्पणी इस पोस्ट पर आई तो क्या टिप्पणी कर सकता है वीरबालक।
आप कहेंगे ये हास्यस्पद टिप्पणीकार कहां मिलते हैं। इस पर हम यहीं कहेंगे कि कहां नहीं मिलते हैं। आप आंख खोलिये ध्यान से देखिये। ध्यान की भी क्या जरूरत बस देख भर लीजिये। हर कहीं मिलेंगे। आपके अंदर भी उसका अंश जरूर होगा। हमारे अंदर भी होगा-है ही।
यहां भी तो नमूना दिखा ही न!
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे।-ब्लागिंग के सूत्र
कभी ज्ञानजी सुबह-सुबह पोस्ट ठेलने के चलते मार्निंग ब्लॉगर कहलाते थे। इधर सूरज निकला, इधर ब्लाग चढ़ा टाइप। सूरज भी शायद उनका ब्लाग देखकर निकलता था। कहता होगा- ज्ञानजी की पोस्ट चढ़ गयी चलो निकला जाये। पढ़के टिपियाया जाये। फ़िर ड्यूटी बजायी जाये।अब उनकी दुकान फ़ेसबुक पर सज गयी है। ताजा माल ठेलते हैं -टुकड़ों में। सूरज ने भी शायद अपनी घड़ी उनके फ़ेसबुक खाते से सेट कर ली होगी।
रोज लिखने के फ़ायदे बताते हुये जेन आदतों वाले भाई साहब बताते हैं:
- इससे आपके जीवन में आये बदलाव का अंदाज लगता है।
- इससे आपकी समझ साफ़ हो्ती है।
- नियमित लिखने से आपकी लिखने की क्षमता निखरती है।
- नियमित लेखन आपके पाठकों (भले ही एक्कै होय) के हिसाब से सोचने में मदद करता है। समाज के बारे में समझ व्यापक होती है।
- नियमित लेखन से रोज नये विचार (मजबूरन) आते हैं।
- नियमित लेखन से आपका पाठक वर्ग बनता है जो आपके लेखन में रुचि रखता है।
इसलिये हमने सोचा कि अब नियमित लिखने पर उतर आना चाहिये। जो होगा देखा जायेगा। पहले भी अपन नियमित ब्लॉगिंग के उपाय सुझा चुके हैं। इधर के अनुभवों ने कुछ और सिखाया है। वह है आशु टिप्पणी सिद्धांत। आशु टिप्पणी सिद्धांत घराने के लोग टिप्पणियों आशु कविता में करते हैं। हास्यास्पद तरीके से लिखी बात को हास्य कविता बताते हैं। पाठक की गफ़लत का फ़ायदा उठाते हुये कभी-कभी तो उसे व्यंग्य भी कह देते हैं। उसी घराने का दूसरा तबलची जब देखता है तो उस व्यंग्य को और उचकाकर उत्कृष्ट बना देता है।
हास्यास्पद टिप्पणी करने वाले स्वभाव से हनुमान टाइप होते हैं। वे अपनी कलम का सीना फ़ाड़ कर अपने अन्दर की चिरकुटई का दीदार दुनिया जहां को कराने की कोशिश करते हैं। कुछ नमूने दिखाते हैं आपको इस टिप्पणी सिद्धांत की समझ के लिये। लेकिन ऐसे नमूनों का दीदार कराने के लिये खुद नमूना बनना पड़ेगा। फ़िलहाल आप देखिये हमारे ठेलुहा नरेश ने इस पर कुछ काम किया है। बताने की कोशिश की है कि कैसे हास्यास्पद टिप्पणी घराने के लोग व्यंग्यकार की कुर्सी पर कब्जा करते हैं।
अब जैसे इस पोस्ट पर उस घराने का कोई नुमाइंदा टिप्पणी करेगा तो किस तरह करेगा यह तो वह भी नहीं जानता। उसकी टिप्पणी .का मुंहासा कब फ़ूटेगा, किधर फ़ूटेगा कोई कुच्छ नहीं कह सकता। वह पता नहीं किस शब्द के खूंटे से लटकाकर अपना चरखा चलाये। स्टेटस, ब्लॉगिंग, जेन, लेखन किसी पर भी उसकी नीयत डोल सकत है। यह भी हो सकता है कि वह अपना कूड़ा अपने साथ लाये और यहां टिप्पणी बक्से में उड़ेल के फ़ूट ले। अपने अनुभव से आपको बताते हैं कि अगर उसकी टिप्पणी इस पोस्ट पर आई तो क्या टिप्पणी कर सकता है वीरबालक।
- स्टेटस पर अगर उसका दिल आ गया तो शायद कुछ ऐसा या इससे भी हास्यास्पद लिखे
स्टेटस तो स्टे्ट्स में उगता है,
अभी तो चीन में बनता है,
अखबार में छपा है,
स्याही जरा गीली है
माचिस भी सीली है
गैस कैसे जलेगी
खाना भी बनना है
लाइटर से सुलगाओ
सब्सिड़ी का सिलिंडर लगाओ
वाह,वाह क्या बात है। - फ़ेसबुक पर अगर उनकी निगाह पड़ी तो शायद ऐसे फ़ूटे टिप्पणी मुंहासा….
फ़ेस पर बुक है,
बुक पर फ़ेस है
ब्लॉगिंग के देश में
बस ऐश ही ऐश है।
फ़ेसबुक तुरंता है,
संता है, बंता है
हा-हा है, ही-ही है,
कूल है फ़ैंटा है।
चलो कनाट प्लेस
वहां फ़ेस दिखाना है
स्कूटर से जाना है
बस से वापस आना है।
फ़ेस को वॉसकर,
क्रीम का निवास कर
चल अब बेवड़े जल्दी से,
टाइम मत बरबाद कर। - नियमित लेखन पर शायद उनकी सूत कुछ यों कते:
लेखन है तो पाठन है
पाठन है तो लेखन है
हम तो कह रहे कब से
लेकिन उनके हाथ में बेलन है।
लिखते तो अमिताभ भी हैं
हमसे कुछ नहीं
हम भी लेकिन खलीफ़ा हैं
उनसे कुछ कम नहीं।
नियमित लिखा करो,
राम-राम जपा करो,
आओ जरा दुकान चलें
गुफ़्त्गूं करें, मश्वरा करें। - हालिया घूसकांड पर क्या पता वे ऐसा लिखें कि कुछ और
घूस तो घास फ़ूस है
नौकरी वाले गधे चरते हैं।
देश के लिये मनहूस है
बड़े सब चापलूस हैं।
हम क्या करें इसमें
हम तो हूस हैं
देश इसीलिये तो बेचारा है
और जरा सा मनहूस है।
घूस तो घास फ़ूस है
……
आप कहेंगे ये हास्यस्पद टिप्पणीकार कहां मिलते हैं। इस पर हम यहीं कहेंगे कि कहां नहीं मिलते हैं। आप आंख खोलिये ध्यान से देखिये। ध्यान की भी क्या जरूरत बस देख भर लीजिये। हर कहीं मिलेंगे। आपके अंदर भी उसका अंश जरूर होगा। हमारे अंदर भी होगा-है ही।
यहां भी तो नमूना दिखा ही न!
Posted in सूचना | 21 Responses
ब्लॉग लेख की शुरुआत भी अपनी आदतों से करते हो और उसे पूरी दुनिया को सिखाने के चक्कर में लगे रहते हो प्रभु !
और अब नियमित लेखन भी करोगे महाराज !
लेख के अंत में आकर हमें भी लगा कि कहाँ से चले और कहाँ फंस गए ..
अब आपको झाड़ियों में फंसा छोड़कर जा रहा हूँ …
और भी काम हैं …
और हाँ ….
लम्बे समय से खराब लेखन के लिए बधाई ..
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..कुछ लिखने का मन नहीं करता -सतीश सक्सेना
रामराम.
ताऊ रामपुरिया की हालिया प्रविष्टी..अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन में बाबाश्री का ब्लागिंग नशा मुक्ति शिविर
aradhana की हालिया प्रविष्टी..जंगल जलेबी, स्लेटी रुमाल, नकचढ़ी लड़की और पहाड़ी लड़का
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..आह ! हंगामेदार देश हमारा
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..नंदी हिल्स पर फ़तेह !!!
Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..पुरुष की नकारात्मक प्रवृत्ति का शिकार अंततः एक स्त्री ही बनती है- एक अवलोकन
समीर लाल ’समीर’ की हालिया प्रविष्टी..हे नीलकंठ मेरे!!
PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..वरदराज पेरुमाल मन्दिर, काँचीपुरम
घूस तो घास फ़ूस है
नौकरी वाले गधे चरते हैं।
देश के लिये मनहूस है
बड़े सब चापलूस हैं।
यह लिख के तुम तुम ‘वह’ नहीं कर पाए जो ऐसे ‘व्यंगकार’ कर देते हैं । ऐसा ‘व्यंगकार’ तो कालिदास होता है (प्री – विद्योत्तमा काल का) जो मन की भड़ास उड़ेले हमघराने विद्वान् उसके बहाव को नाले तक नहीं जाने देते, ‘आह’ ‘वाह’ ‘कमाल’ का डिओडोरेंट डाल के उस ‘चक्रोक्ति’ को वक्रोक्ति बता देते है,
कालिदास भी खुश हुए थे तब, व्यंगकार भी खुश होता है अब
घूस तो घास फ़ूस है
किसी पौधे का जूस है
चलो इस जूस से रूस बनाए
दलालों और नेताओं के बीच की लोहे की दीवार गिराएं
लेकिन ऐसी वक्रोक्ति की तारीफ़ के लिए भी एक योगी का ह्रदय चाहिए, अगर वह भी आ जाय तो समझो हम कानपूर में गंदे नाले में बैठ के गुलाबजल दाल के जलेबी खा लेंगे बेहिचक !!
@ “बनारस की गलियों में टहलते सांड़ सरीखा, इधर-उधर मुंह मारते अमेरिका सरीखा, कहीं भी तंबू लगाकर पिकनिक मना लेने वाले चीन जैसा।”………….टाप्चिक है……
प्रणाम.
ब्लॉगर ही घोस्ट है
आज सुबह नास्ते में
केला है टोस्ट है
ब्लॉगविचार रखना है
ऐसे ही बकना है
सरकार का राज है
प्रसन्न चित्त आज है
लिखते ही जाना है
अंगूर का दाना है
चिरकुटई करके
पुरस्कार पाना है
आग में पानी है
बिल्ली शेर की नानी है
कलम के दम से
लेखन में रवानी है
एक तरफ कुआँ है
दूसरी तरफ खाई है
दही में मट्ठा है
दूध में मलाई है
वहां फ़ेस दिखाना है
स्कूटर से जाना है
बस से वापस आना है।
????? स्कूटर का क्या हुआ जी ? शंकाओं का निवारण करें
—-आशीष श्रीवास्तव
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..मुलाकात – सुधा भार्गव जी से!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..लहरें
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..हनुमान मंदिर के ओसारे में