http://web.archive.org/web/20140210192538/http://hindini.com/fursatiya/archives/4820
कल मैंने मन के कुछ कोने देखे।
कल मैंने मन के कुछ कोने देखे,
कुछ झिलमिल रंग सलोने देखे।
चोट लगी मन की देहरी पर,
अनगिन नेह-दिढौने देखे।
कल मैंने मन के कुछ कोने देखे।
इस आपाधापी के जीवन में
कुछ पल ठिठके,ठहरे देखे।
धूसर मटमैली दुनिया के,
कुछ मनसुख रंग सुनहरे देखे।
कल मैंने मन के कुछ कोने देखे।
इस पाप-पुण्य की दुनिया में,
कुछ उजले कलकल सोते देखे।
मन के वीराने वन प्रान्तर में,
खिलते कुछ हरियल पौधे देखे।
कल मैंने मन के कुछ कोने देखे।
ये मिला नहीं वो छूट गया,
पाया वह भी कुछ टूट गया।
खोये-पाये के मन-झंझट से,
उबरे मन के अतरे-कोने देखे।
कल मैंने मन के कुछ कोने देखे।
रिकार्डिंग: 27.10.13
पोस्टिग:27.10.13
समय:03:01 मिनट
आवाज: अनूप शुक्ल
इस जीवन में दिख जाता है,
कुछ कुछ अपने जीवन जैसा।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..अभिव्यक्ति का आकार – ब्लॉग, फेसबुक व ट्विटर
कुछ उजले कलकल सोते देखे।
मन के वीराने वन प्रान्तर में,
खिलते कुछ हरियल पौधे देखे।
वाह ! उजले स्रोत स्मृति में ऐसे ही झलकते रहें और आपकी दृष्टि में हरियाली ऐसे ही बसी रहे .अच्छा गीत !
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बधाई !
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बहुत अच्छे.
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हमने कुछ अच्छे काम कर डाले
बहुत अच्छा किया
यह काम करते रहे
और लोग को भी प्रेरित करते rahe
वरना हम भी मन के कोने में घुमने निकले थे
फुर्सत का रोना छोड़ अच्छा कम किया
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इसे जारी रखा जाए..
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