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रट्टामार अंग्रेजी के साइड इफ़ेक्ट
By फ़ुरसतिया on November 13, 2013
आज
सबेरे टीवी खोला तो पता चला कि सीबीआई के डायरेक्टर साहब ने कुछ बयान टाइप
दिया है। वह कुछ गलत टाइप का है। उससे हल्ला टाइप मचा है। मीडिया में
निंदा टाइप होने लगी। सोशल मीडिया में थुड़ी-थुड़ी टाइप।
मुहावरे की भाषा में कहा जाये तो सीबीआई डायरेक्टर ने ’मीडिया मुशायरा’ लूट लिया।
सीबीआई आजकल फ़ुल फ़ार्म में है। परसों प्रधानमंत्री ने कुछ कहा। कल वित्तमंत्री ने कुछ सुनाया। आज मीडिया का हल्ला। मतलब सीबीआई ने हैट्रिक मार दी।
लोग कह रहे हैं कि सीबीआई डायरेक्टर को ऐसा कहना नहीं चाहिये था। महिला संगठन माफ़ी मांगने की मांग कह रहे हैं। माफ़ी मांगें बात खतम हो। मीडिया भी झल्ला रहा है। कहां सचिन के संन्यास और प्रधानमंत्री के चुनाव के लजीज पकवान के बीच यह बलात्कार बयान का कंकड़ आ गया। लेकिन सीबीआई डायरेक्टर माफ़ी के मसले को सीबीआई जांच की तरह लटका रहे हैं। शायद वे भी जनप्रतिनिधियों की तरह “मेरे बयान का गलत अर्थ लगाया गया” वाली फ़ार्मूला नौका से बयान नदी पार करना चाहते हैं।
सीबीआई डायरेक्टर का बयान यह दर्शाता है कि संगत का क्या असर होता है। नेताओं की संगत में रहते हुये उनका भी मन बयानबाजी के लिये हुड़कता है। जैसे नेता ऊल-जलूल बोलते हैं वैसे ही उनका बोलने का मन करने लगता है। कभी बोल भी देते हैं। बोल ही दिये। फ़िजूल में बवाल हो गया।
घपलों-घोटालों, नेताओं की सोहबत में रहते-रहते अक्सर अधिकारियों की समझ-बत्ती गुल हो जाती है। जिसको आज क्लीन चिट दी कल उसी के खिलाफ़ रपट लिखनी पड़ती है। जिसके नाम वारंट होता है उसको क्लीनचिट देनी पड़ती है। तमाम न्याय, अन्याय जोन से गुजरते हुये काम करना पड़ता है सीबीआई को। उनके बयान बिजली की झालर की तरह जलते-बुझते हैं। कभी जगमग कभी अंधकार। “जेट लैग” की तरह “बयान लैग” हो जाता है उनको। कहना कुछ चाहते हैं निकल कुछ जाता है।
अब बताइये बात हो रही है सट्टे की और उसमें बयान बलात्कार का दे रहे हैं। ये तो सीबीआई की तरह काम करना हुआ न। दफ़ा 420 के अभियुक्त को 302 की माला पहना दी और 302 के आरोपी को धारा 144 में टहला दिया। सट्टे पर कानून की बात चल रही थी तो कह देते कि भाई कानून बनाने का काम हम करते नहीं। बनेगा तो पालन हो जायेगा। जैसे और कानून का पालन होता है वैसे इसका भी होगा। कानून होते ही पालन करने के लिये हैं। हो ही रहा है पालन। आजतक किसी कानून ने लिखाई शिकायत की उसका पालन नहीं हो रहा है? लोग कहते हैं तो लोगों का तो छोड़िये। लोग तो ये भी कहते हैं कि देश रसातल में जा रहा है। लेकिन सच तो यह है न कि देश निरन्तर प्रगतिशील है। मंगल पर जा रहा है।
लोगों को यह लग रहा है कि एक जिम्मेदार अधिकारी ने ऐसा बयान कैसे दे दिया। उसकी सोच ऐसे कैसे हो गयी। महिलाओं के प्रति असम्मान की बात उनके मुंह से निकली कैसे?
अब कारण क्या है ये तो सीबीआई के डायरेक्टर साहब ही बता सकते हैं। लेकिन होता है कि लोग तमाम काम अनजाने में करते हैं यह सोचते हुये कि जो वे कर रहे हैं उसमें गलत क्या है? यह तो दस्तूर है। जब रेलवे के मेम्बर साहब अपनी पोस्टिंग के बारे में रेल मंत्री के भांजे से लेन-देन कर रहे थे तो दस्तूर समझकर ही तो किया उन्होंने। लेकिन सीबीआई के डायरेक्टर साहब ने अपने कर्तव्य का दस्तूर निभाया और उनको अन्दर करा दिया और मंत्री जी को बाहर।
अब डायरेक्टर साहब ने जो कहा वह बात वे आमतौर पर सहज मन से कहते रहते होंगे। लेकिन माइक और मीडिया के गठबंधन से यह साबित हो गया कि उन्होंने जो कहा वह ठीक तो नहिऐ है। देखिये मामला माफ़ी से निपटता है या कुछ और होगा। रेलमंत्री का इस्तीफ़ा उधार है उनके कर्तव्य के दस्तूर के चलते।
लेकिन अगर कोई मुझसे पूछे तो मैं तो कहूंगा कि सारा कुछ किया धरा अंग्रेजी का है। बचपन में हम लोग ढेर अंग्रेजी बिना मतलब समझे रटते हैं और बुढ़ापे तक इम्प्रेशन मारने के लिये दोहराते रहते हैं। डायरेक्टर साहब के इस बयान के पीछे अंग्रेजी के मुहावरे का हाथ है। मुहावरे का मतलब है “अगर रेप को रोका नहीं जा सकता है तो उसका आनंद लेना चाहिए”। मतलब अगर कोई काम आपकी मर्जी के खिलाफ़ आपके साथ हो रहा है और वो होना ही है तो उसका मजा लो। सीबीआई इसी सिद्धान्त के हिसाब से तो चलती है। कोई जांच मजबूरी में करनी पड़ती है तो उसे पूरा मत करो। लटकाये रखो। मजे लो जांच के।
अंग्रेजी में कही बात में असल कुछ गलत लगती ही नहीं है। उसी के चलते उन्होंने यह कह दिया। उनको अन्दाजा ही नहीं होगा कि लोग अब अंग्रेजी से प्रभावित नहीं होते। मतलब समझकर हल्ला मचाने लगे हैं।
सीबीआई डायरेक्टर की बयानबाजी बचपन की रट्टामार अंग्रेजी के साइड इफ़ेक्ट हैं।
मुहावरे की भाषा में कहा जाये तो सीबीआई डायरेक्टर ने ’मीडिया मुशायरा’ लूट लिया।
सीबीआई आजकल फ़ुल फ़ार्म में है। परसों प्रधानमंत्री ने कुछ कहा। कल वित्तमंत्री ने कुछ सुनाया। आज मीडिया का हल्ला। मतलब सीबीआई ने हैट्रिक मार दी।
लोग कह रहे हैं कि सीबीआई डायरेक्टर को ऐसा कहना नहीं चाहिये था। महिला संगठन माफ़ी मांगने की मांग कह रहे हैं। माफ़ी मांगें बात खतम हो। मीडिया भी झल्ला रहा है। कहां सचिन के संन्यास और प्रधानमंत्री के चुनाव के लजीज पकवान के बीच यह बलात्कार बयान का कंकड़ आ गया। लेकिन सीबीआई डायरेक्टर माफ़ी के मसले को सीबीआई जांच की तरह लटका रहे हैं। शायद वे भी जनप्रतिनिधियों की तरह “मेरे बयान का गलत अर्थ लगाया गया” वाली फ़ार्मूला नौका से बयान नदी पार करना चाहते हैं।
सीबीआई डायरेक्टर का बयान यह दर्शाता है कि संगत का क्या असर होता है। नेताओं की संगत में रहते हुये उनका भी मन बयानबाजी के लिये हुड़कता है। जैसे नेता ऊल-जलूल बोलते हैं वैसे ही उनका बोलने का मन करने लगता है। कभी बोल भी देते हैं। बोल ही दिये। फ़िजूल में बवाल हो गया।
घपलों-घोटालों, नेताओं की सोहबत में रहते-रहते अक्सर अधिकारियों की समझ-बत्ती गुल हो जाती है। जिसको आज क्लीन चिट दी कल उसी के खिलाफ़ रपट लिखनी पड़ती है। जिसके नाम वारंट होता है उसको क्लीनचिट देनी पड़ती है। तमाम न्याय, अन्याय जोन से गुजरते हुये काम करना पड़ता है सीबीआई को। उनके बयान बिजली की झालर की तरह जलते-बुझते हैं। कभी जगमग कभी अंधकार। “जेट लैग” की तरह “बयान लैग” हो जाता है उनको। कहना कुछ चाहते हैं निकल कुछ जाता है।
अब बताइये बात हो रही है सट्टे की और उसमें बयान बलात्कार का दे रहे हैं। ये तो सीबीआई की तरह काम करना हुआ न। दफ़ा 420 के अभियुक्त को 302 की माला पहना दी और 302 के आरोपी को धारा 144 में टहला दिया। सट्टे पर कानून की बात चल रही थी तो कह देते कि भाई कानून बनाने का काम हम करते नहीं। बनेगा तो पालन हो जायेगा। जैसे और कानून का पालन होता है वैसे इसका भी होगा। कानून होते ही पालन करने के लिये हैं। हो ही रहा है पालन। आजतक किसी कानून ने लिखाई शिकायत की उसका पालन नहीं हो रहा है? लोग कहते हैं तो लोगों का तो छोड़िये। लोग तो ये भी कहते हैं कि देश रसातल में जा रहा है। लेकिन सच तो यह है न कि देश निरन्तर प्रगतिशील है। मंगल पर जा रहा है।
लोगों को यह लग रहा है कि एक जिम्मेदार अधिकारी ने ऐसा बयान कैसे दे दिया। उसकी सोच ऐसे कैसे हो गयी। महिलाओं के प्रति असम्मान की बात उनके मुंह से निकली कैसे?
अब कारण क्या है ये तो सीबीआई के डायरेक्टर साहब ही बता सकते हैं। लेकिन होता है कि लोग तमाम काम अनजाने में करते हैं यह सोचते हुये कि जो वे कर रहे हैं उसमें गलत क्या है? यह तो दस्तूर है। जब रेलवे के मेम्बर साहब अपनी पोस्टिंग के बारे में रेल मंत्री के भांजे से लेन-देन कर रहे थे तो दस्तूर समझकर ही तो किया उन्होंने। लेकिन सीबीआई के डायरेक्टर साहब ने अपने कर्तव्य का दस्तूर निभाया और उनको अन्दर करा दिया और मंत्री जी को बाहर।
अब डायरेक्टर साहब ने जो कहा वह बात वे आमतौर पर सहज मन से कहते रहते होंगे। लेकिन माइक और मीडिया के गठबंधन से यह साबित हो गया कि उन्होंने जो कहा वह ठीक तो नहिऐ है। देखिये मामला माफ़ी से निपटता है या कुछ और होगा। रेलमंत्री का इस्तीफ़ा उधार है उनके कर्तव्य के दस्तूर के चलते।
लेकिन अगर कोई मुझसे पूछे तो मैं तो कहूंगा कि सारा कुछ किया धरा अंग्रेजी का है। बचपन में हम लोग ढेर अंग्रेजी बिना मतलब समझे रटते हैं और बुढ़ापे तक इम्प्रेशन मारने के लिये दोहराते रहते हैं। डायरेक्टर साहब के इस बयान के पीछे अंग्रेजी के मुहावरे का हाथ है। मुहावरे का मतलब है “अगर रेप को रोका नहीं जा सकता है तो उसका आनंद लेना चाहिए”। मतलब अगर कोई काम आपकी मर्जी के खिलाफ़ आपके साथ हो रहा है और वो होना ही है तो उसका मजा लो। सीबीआई इसी सिद्धान्त के हिसाब से तो चलती है। कोई जांच मजबूरी में करनी पड़ती है तो उसे पूरा मत करो। लटकाये रखो। मजे लो जांच के।
अंग्रेजी में कही बात में असल कुछ गलत लगती ही नहीं है। उसी के चलते उन्होंने यह कह दिया। उनको अन्दाजा ही नहीं होगा कि लोग अब अंग्रेजी से प्रभावित नहीं होते। मतलब समझकर हल्ला मचाने लगे हैं।
सीबीआई डायरेक्टर की बयानबाजी बचपन की रट्टामार अंग्रेजी के साइड इफ़ेक्ट हैं।
Posted in बस यूं ही | 3 Responses
HindiThoughts.Com की हालिया प्रविष्टी..Prerak Prasang of Mahatma Gandhi in Hindi
आपका आलेख वास्तव में कालजयी टाइप हो गया है। राप्चिक।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..अपनी औरतों के प्रति अपराधी हमारा समाज