कलकत्ता
से दिल्ली के लिए हवाई जहाज के उड़ते ही तमाम यात्री समाधि मुद्रा में आ
गए। आँखे मूंदकर इतने ध्यान से सांस ले रहे थे जिसे देखकर लग रहा था मानों
ये वाली साँस लेने के लिए ही 10000 रुपया खर्च करके जहाज में बैठे हैं।
जहाज में बैठते ही पैसा वसूलना शुरू कर दिए।
बाहर सूरज भाई चमकते दिखे। हम खुश हो गए कि ये भी साथ चलेंगे लेकिन वो बोले चलते तो साथ में लेकिन अब अपन की आज की डयूटी का समय पूरा हो गया है। लौटने का हूटर बजने ही वाला है। इसलिए साथ तो न चल पायेंगे। कल मुलाक़ात होगी।
हम उनको बाय बोलते इसके पहले ही सब खिडकियों पर आसमानी रंग का प्लास्टिक का पर्दा खिंच गया। सूरज भाई का दिखना बंद हो गया। लेकिन सामने के यात्री दरवाजे के पास की खिड़की पर अभी पर्दा नहीं पडा था।रौशनी का एक टुकड़ा खिड़की फलांग कर दरवज्जे पर हमारी तरफ देखकर मुस्कराने लगा। पक्का सूरज भाई ने हमको बाय बाय करने के लिए भेजा होगा। दरवज्जा बंद होते ही रौशनी का टुकड़ा भी शराफत से बहार निकल गया।
व्योमबाला ने जब आज भी उड़ान के समय मोबाईल बंद करने का अनुरोध किया तो हमें लगा कि क्या ये लोग अखबार नहीं पढ़ते! जब खबर छप चुकी है अखबार में कि अब टेक आफ करते या उतरते समय मोबाईल बंद करना जरूरी नहीं तो क्यों टोकते हैं। नाश्ता देने आये व्योमबालक से जब हमने यही पूछा तो उसने बताया-"अखबार में तो छप गया लेकिन अभी सर्कुलर नहीं आया इसलिए कहना पड़ता है। "हमने सोचा कि यहाँ भी मामला अपन के डीए की तरह है। घोषणा हुए दो महिना हुआ। दर्शन अब तक न हुए।
नाश्ता आने पर हमारे बगल की महिला सवारी ने छुटकी बोतल से पानी की बूंदों को हाथ में लेकर रगड़ते और मसलते हुए हाथ धोये। इत्ती जोर से रगड़ने पर पक्का सब बूंदों का दम घुट गया होगा। कुछ बुँदे जो रगड़ जाने से बचीं वे बेचारी दो फुट की ऊंचाई से गिरी तो उनकी हड्डी-पसली पक्का बराबर हो गयी होगी।
नाश्ते में समोसा,सैन्डविच मिला। एक 'बच्ची डिबिया' में चटनी थी। डिबिया शायद फ्रिज में काफी देर तक रही होगीं। उसका वियोग उसे शायद सहन नहीं हुआ तो आंसू टाइप बहाती दिखी। मन तो किया कि रमानाथ अवस्थी जी कि कविता सुना दें:
"आज आप हैं हम है लेकिन
कल कहां होगे कह नहीं सकते,
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।"
लेकिन फिर 'दुखी को और क्या दुखी करना '
सोचकर नहीं सुनाये।
अचानक मुझे फिर सूरज भाई की याद कि वे कहां होंगे! शायद अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद किसी नदी में डुबकी लगाकर नहाने के बाद गमझा लपेटे या बरमूडा धारण किये चाय पीते हुए आईपीएल देख रहे हों या कोई चुनावी प्रहसन! कल मिलेंगे तो पूछेंगे! तब तक आप यह फोटो देखिये! गंगा नदी कलकत्ते की एक ऊँची ईमारत से कैसी दिखती है!
बाहर सूरज भाई चमकते दिखे। हम खुश हो गए कि ये भी साथ चलेंगे लेकिन वो बोले चलते तो साथ में लेकिन अब अपन की आज की डयूटी का समय पूरा हो गया है। लौटने का हूटर बजने ही वाला है। इसलिए साथ तो न चल पायेंगे। कल मुलाक़ात होगी।
हम उनको बाय बोलते इसके पहले ही सब खिडकियों पर आसमानी रंग का प्लास्टिक का पर्दा खिंच गया। सूरज भाई का दिखना बंद हो गया। लेकिन सामने के यात्री दरवाजे के पास की खिड़की पर अभी पर्दा नहीं पडा था।रौशनी का एक टुकड़ा खिड़की फलांग कर दरवज्जे पर हमारी तरफ देखकर मुस्कराने लगा। पक्का सूरज भाई ने हमको बाय बाय करने के लिए भेजा होगा। दरवज्जा बंद होते ही रौशनी का टुकड़ा भी शराफत से बहार निकल गया।
व्योमबाला ने जब आज भी उड़ान के समय मोबाईल बंद करने का अनुरोध किया तो हमें लगा कि क्या ये लोग अखबार नहीं पढ़ते! जब खबर छप चुकी है अखबार में कि अब टेक आफ करते या उतरते समय मोबाईल बंद करना जरूरी नहीं तो क्यों टोकते हैं। नाश्ता देने आये व्योमबालक से जब हमने यही पूछा तो उसने बताया-"अखबार में तो छप गया लेकिन अभी सर्कुलर नहीं आया इसलिए कहना पड़ता है। "हमने सोचा कि यहाँ भी मामला अपन के डीए की तरह है। घोषणा हुए दो महिना हुआ। दर्शन अब तक न हुए।
नाश्ता आने पर हमारे बगल की महिला सवारी ने छुटकी बोतल से पानी की बूंदों को हाथ में लेकर रगड़ते और मसलते हुए हाथ धोये। इत्ती जोर से रगड़ने पर पक्का सब बूंदों का दम घुट गया होगा। कुछ बुँदे जो रगड़ जाने से बचीं वे बेचारी दो फुट की ऊंचाई से गिरी तो उनकी हड्डी-पसली पक्का बराबर हो गयी होगी।
नाश्ते में समोसा,सैन्डविच मिला। एक 'बच्ची डिबिया' में चटनी थी। डिबिया शायद फ्रिज में काफी देर तक रही होगीं। उसका वियोग उसे शायद सहन नहीं हुआ तो आंसू टाइप बहाती दिखी। मन तो किया कि रमानाथ अवस्थी जी कि कविता सुना दें:
"आज आप हैं हम है लेकिन
कल कहां होगे कह नहीं सकते,
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।"
लेकिन फिर 'दुखी को और क्या दुखी करना '
सोचकर नहीं सुनाये।
अचानक मुझे फिर सूरज भाई की याद कि वे कहां होंगे! शायद अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद किसी नदी में डुबकी लगाकर नहाने के बाद गमझा लपेटे या बरमूडा धारण किये चाय पीते हुए आईपीएल देख रहे हों या कोई चुनावी प्रहसन! कल मिलेंगे तो पूछेंगे! तब तक आप यह फोटो देखिये! गंगा नदी कलकत्ते की एक ऊँची ईमारत से कैसी दिखती है!
- Priyankar Paliwal आज के विशिष्ट लोकार्पण समारोह से मुझे सायास दूर रखने का षड़यंत्र सफल हो गया . बधाई !
- Naveen Tripathi ak sundar anubhuti ke sang sars sharcha ganga ka aasman se darshan hua ye km mahatvpoorn nahi jiska darshan karane ke liye modi ji ko aaj banaras aana pada.
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