आज फिर भैयालाल की तरफ जाना हुआ।अपनी बेल्ट बनवाने। वे तन्मयता से जूता चमका रहे थे। काम करने के बाद औजार और कील-काँटा यथास्थान जमाया।
पता चला कि वे विकलांग होने के पहले मिस्त्री का काम करते थे। दुर्घटना में पाँव गंवाने के बाद एक महीने तक चमड़े का काम सीखा। पान-मसाला बेचने या और कोई काम करके रोजी कमाने की बजाय जूते मरम्मत का काम ठीक लगा। 250-300 रूपये की कमाई हो जाती है रोज।
हमने भैयालाल को उनकी फोटो/विवरण दिखाए और कमेन्ट दिखाए तो वे खुश हुए।
वहां अख़बार दिखे तो मैंने पूछा तो पता चला तीन लोकल अख़बार लेते हैं भैयालाल। हमको भारतेंदु हरिश्चंद्र के लेख "भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है" का वो वाक्य याद आया जिसमें उन्होंने लिखा था कि इंग्लैण्ड में कोचवान खाली समय में अख़बार पढ़ता है। यहाँ तो भैयालाल तीन अख़बार पढ़ते हैं। फिर भी उन्नति नहीं हो रही। अलबत्ता यह खबर जरूर पता चली की व्यापम घोटाले में नामजद एक अधिकारी ने मिटटी का तेल छिड़ककर आत्महत्या कर ली।
- Krishn Adhar वे लोग जो चुपचाप अपना मिला हुआ काम निष्ठा पूर्वक कर रहे हैं,चारो तरफ की खवर से जागरूक हैं ,देश को समझने की कोशिश करते हैं, सवसे वड़े देशभक्त हैं।मोदी जी ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किये हैं।यदि आप के भैयालाल जी को इस श्रेणी में रखें तो उचित ही होगा।
- सलिल वर्मा पीछे की दीवार पर अच्छे दिन लाने वालों का निशान छपा है... लेकिन मेहनतकश इंसानों के अच्छे दिन किसी के मोहताज नहीं होते!
- Madhav Kendurkar Apne kam ke pashat Bhaiyyalal yadi akhbar padhta hai, to nischit hi vah jagruk insane hai, prashansa yogya karya.
- राजेंद्र अवस्थी बेल्ट रिपेयरिंग का तो बहाना होता है,
रिपेयरिंग के बहाने भैयालाल जी को पहचाना होता है। - Suresh Sahani सर!आप सब की स्मृतियों में रहते हैं,किन्तु सूरज भैय्या और भैय्यालाल आपकी स्मृति में बस गये हैं।भैयालाल जी को नमन!!!!!
- Dinesh Duggad कहानियो से गुजरती बीसवी सदी में ....छपि सबसे पहली कहानी का शीर्षक है बूट मेकर और यह सदी की श्रेष्ट कहानियो में से एक है इसके लेखक इंग्लैंड के जॉन गल्स्वर्दी है....यदि आपने नहीं पड़ी तो एक बार अवस्य पदिये...कही न कही अप उसमे भैया लाल जी को महसूस करेंगे...!!!
No comments:
Post a Comment