http://web.archive.org/web/20110101203155/http://hindini.com/fursatiya/archives/163
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
अनन्य उर्फ छोटू उर्फ हर्ष-जन्मदिन मुबारक
[आज प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह जी का जन्मदिन है। उनके
बारे में लेख लिखने की सोच रहा था। हरिशंकर परसाई जी ने अपने समकालीनों पर
लेख लिखे हैं।इसमें कई नामवर महापुरुष ,साहित्यकार है,नामवरजी भी हैं तथा
पान-चाय वाले भी हैं।हमने सोचा कि हम भी अपने समकालीन पर कुछ लिखें। नामवर
जी के बारे में तो हमें टोपना है कभी हो जायेगा। तो हमें अपने सबसे नजदीकी
समकालीन लगे अपने साहबजादे अनन्य,संयोग से जिनका आज जन्मदिन है।हमारे घर
में हमारे ये अकेले समर्थक हैं ब्लागिंग के। इनके समर्थन का वीटो न हो अब
तक हम कई बार चिट्ठाकारी बंद कर चुके होते। फिलहाल नामवर सिंह जी को
जन्मदिन (जन्म २८ जुलाई,१९२७)की मंगलकामनायें देते हुये अपने घर के 'नामवर'
अनन्य (जन्म २८ जुलाई,१९९६)के बारे में यह लेख ।]
कल हम घर से निकले ही थे कि बारिश होने लगी।
सर मुढ़ाते ही ओले पड़ने के बाद घुटी चांद वाले ने क्या किया उसका विवरण नहीं मिलता लेकिन हम बारिश होने के बावजूद चलते ही रहे। बारिश की बूंदे हेलमेट पर गिरकर दम तोड़ दे रहीं थी। इस दुख में सारे कपड़े और सड़क भीग रहे थे। हम रात के साढ़े आठ बजे अर्मापुर से नवीन मार्केट ‘भजे’ जा रहे थे।
हुआ कुछ यों कि कल हमारी ‘घरैतिन’ घर में मौजूद कुछ पैसों से नाराज हो गयीं तथा उनको ठिकाने लगाने के लिये सरे शाम उनको पर्श में ठूंसकर ‘पैसों की कत्लगाह’ नवीन मार्केट चल दीं।बहाना था हमारे छोटे साहबजादे के जन्मदिन का।
हम जब शाम को घर पहुंचे तो रामराज्य था। हम खुशी-खुशी निरंतर की बेगारी में जुट गये। जब से इसका काउंटडाउन होने लगा है,हमारा जी हलकान है। संपादक साहूकार की तरह रोज सामग्री का तकादा करता है।
कुछ देर बाद फोन की घंटी बजी। पता चला कि खरीदार लोग पैसे घर में छोड़ गये थे। जो ले गये थे वह ए.टी.एम. कवर था। अभी भारत जैसे देश में इतना तकनीकी विकास नहीं हुआ कि बैंकें ए.टी.एम. कवर डालने के बाद पैसे दे दें।हमारे सामने चारा डाला गया कि मैं धन-रसद लेकर तुरंत पहुचूँ तथा अच्छे पति,पिता का ओहदा पा लूं। लेकिन हमने लालच में फंसने की बजाय निरंतर की बेगारी करना बेहतर समझा। कहा कि -सामान वहीं छोड़ दो ,सबेरे मंगा लेंगे।
जब काफिला घर पहुंचा तो सूरदास के ‘बालवर्णन’ की तर्ज पर ‘मूर्खता वर्णन’ हुआ कि कैसे पैसे तथा ए.टी.एम. घर में ही छूट गया। लोग अपने को एक-दूसरे से बड़ा बेवकूफ साबित करने में लगे थे। हम ‘नट्टू भाई’ की तरह सोच रहे थे कि सबसे बड़े बेवकूफ हमीं हैं जो यह सब सुन रहा है। और हुआ भी यही। मूर्खता-वर्णन के बाद नायिका ने घड़ी की तरफ निगाह डालते हुये मेरे ऊपर नैनकटारी चलाते हुये हवाओं से कहा-अभी तो दुकान खुली होगी। कोई चला जाये तो मिल जायेगें कपड़े। यह कोई चला जाये वाली अदा हमारी ‘इनकी’ खास अदा है। कमरे में एक व्यक्ति भी हो तो भी कहा जायेगा-कोई हमें पानी पिला दे,कोई ये काम कर दे,वो काम कर दे। बहरहाल, दुकान को फोनियाया गया और लब्बो-लुआब यह कि हम भरी रात अपने मोटर साइकिल पर सवार होकर चल दिये।
हम भीगते पानी में सड़क पर फटफटिया दौडा़ते चले जा रहे थे। देखादेखी दिमाग के घोड़े भी दौड़ने लगे।अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के अंतहीन मैदानों में -सरपट।
ये जो हमारे छोटे साहब जादे हैं वो दुनिया के हर साहबजादे की तरह ‘टेलरमेड’ आइटम हैं। जब पैदा हुये दस साल पहले तो फैक्ट्री का सबेरे का हूटर बज रहा था। हमें लगा कि खुदाबंद ने सबेरे-सबेरे सामान डिलीवर कर दिया और इन्होंने दुनिया में भी अपना कार्ड, सबेरे-सबेरे ०७३०बजे, २८ जुलाई सन १९९६ को ,शाहजहांपुर में पंच किया। जब तक हम ‘नाम समुद्र’ में डूबकर इनके लिये नाम तय करें तब तक हमारे बड़े बेटे ने काम चलाने के लिये इनको कामचलाऊ नाम दे दिया-छोटू। अब बाद में स्कूल जाते समय परमानेंट नाम भले अनन्य तय किया गया लेकिन दुनिया में इनके अस्थाई नाम का ही बोलबाला है। अब हालत यह है कि इनका स्थायी नाम ‘अनन्य’ खूबसूरत, बडा़ अच्छा, मीनिंगफुल होते हुये भी इन्हीं के अस्थायी नाम छोटू से ‘पिट’ जाता है। जैसे भारत में कुछ सालों के लिये अस्थाई तौर पर लागू नासपीटी अंग्रेजी भारतीय भाषाओं को रोज पीटती रहती है।
अब यह भी क्या बताना कि अपना हर काम अपने अंदाज़ में करने के आदी हमारे छोटू ने कौन बनेगा करोड़पति के पहले करोड़पति हर्ष वर्धन नवाटे के नाम के खुद अपना नाम हर्ष रख लिया। लेकिन ‘हर्ष’ नाम को तरजीह सिर्फ उतनी ही मिली जितनी कि हिंदी की जगह देवनागरी को मिलती है। फिल्मों के बेहद शौकीन अनन्य को ऋतिक रोशन बेहद पसंद हैं। और जब ये किसी को चाहते हैं तो हचक के चाहते हैं। ये ऋतिक के पास रहने के लिये उसके घर बरतन मांजने तक को तैयार हैं। आज जब हमने कहा कि रात को ऋतिक का फोन आया था कि सबेरे से बरतन मांजने को भेजो तो बोले-कह दीजिये आज हम बर्थ डे के लिये छुट्टी पर हैं।
ऋतिक के बाद इनके दूसरे हीरो हैं सचिन तेंदुलकर। जहां नाटे उस्ताद पवेलियन गये ये टीवी बंद कर देते हैं। तेंदुलकर के खेलते रहने पर टीवी बंद कराने की औकात केवल बिजली महारानी की ही है।आजकल धोनी पर भी काफी फिदा रहते हैं।
घर में भी आने वालों में सबसे पसंद हमारे सुपुत्र उसको करते हैं जो इनको निरंतर बिना आउट किये लगातार बालिंग करता रहे तथा गरिमापूर्ण ढंग से हारता रहे।
कैफ की नकल करते हुये प्रभावपूर्ण फील्डिंग का नजारा करने के लिये जमीन पर गिरने की प्रक्रिया में अक्सर राणा सांगा के वंशज बन जाते हैं।अक्सर कई चोटें का सुराग तब लगता है जब वे ठीक होने के अल्ले-पल्ले पहुंच जातीं हैं। टीवी के बेहद लती होने की हद तक शौकीन होते जा रहे छोटू जुमे के दिन सब काम छोड़कर ‘लाफ्टर चैलेंज’ को कृतार्थ करते हैं। दोस्त बनाने के मामले में तथा उनसे मिलने,खेलने के बहाने तलाशने का जो अंदाज है उससे हमें लगता है कि ये बड़े आराम से -‘दोस्तों से मुलाकात के कुछ तरीके’ टाइप की बेस्ट सेलर लिख सकते हैं।
शायद यह दोस्त पसंदगी ही है जिसके कारण कि अनन्य लगातार कई बार अपने विद्यालय में ‘फुल अटेंडेंस’ का प्रमाणपत्र पा चुके हैं।
कपडों के मामले में चूजी होते जा रहे हमारे सुपुत्र अपने सबसे चाहने वाले दोस्त के घर से गुजरते हुये भी वहां जाने का लालच त्याग देते हैं अगर कपड़े कायदे के नहीं पहने होते हैं। घंटो की तैयारी के बाद भी मम्मी की साड़ी,ब्लाउज मैंचिंग पर अक्सर फाइनल रेफरी का काम हमारे ‘अनन्य’ के अधिकार क्षेत्र में ही है।
बालक की जन्मकुंडली के अनुसार बालक सिंह राशि का है। नेतृत्व की क्षमता से युक्त। सबसे मजे की बात यह लिखी थी अंग्रेजी की जन्मकुंडली में कि इसको भाषण की कला पर असाधारण अधिकार होगा तथा बोलने के लिये ‘पोडियम’ के सहारे की जरूरत नहीं होगी।
जब हमारे महारथी तक मौका पड़ने पर अपनी बात कहने से चूक जाते हैं तो बालक की भाषण कला के बारे में अभी से क्या कहें लेकिन पोडियम की जरूरत नहीं होगी यह बात हमें लगता है कहीं सच न साबित हो जाये क्योंकि हमारे साहबजादे खाने-पीने के मामले में जरा चूजी टाइप हैं। केवल चिप्स,मैगी,बर्गर,पिज्जा जैसे सारतत्व ग्रहण करने तथा सारे पौष्टिक तत्व को थोथा समझकर उड़ा देने के हिमायती हैं। लिहाजा दुबले-पतले इतने हैं कि पोडियम की ऊंचाई तक पहुंचने में समय लगेगा ।शायद वह भी बोलने के लिये हटाना न पड़े ,ताकि लोग वक्ता को देख भी लें।। बावजूद अपने सींकिया बदन के ये अक्सर सलमान खान टाइप अदा में हाथ की मछलियां फुलाते हुये कई बार देखे गये हैं।
कुछ डायलाग इनकी तर्क बुद्धि का नमूना हैं। इनके मुंह से अक्सर सुना डायलाग-’जो कहता है वही होता है ‘(जो जैसा होता है वैसा दूसरों के बारे में सोचता है) बिना कापीराइट के कई बार प्रयोग किया है। ऐसे ही एक बार हमने किसी बात पर कुछ गलत जानकारी दी। पकड़ गये तो हमें बताया गया-पापा,आपने झूठ बोला ,आपको पाप पड़ेगा। पाप की बात पर हमने घबराने का मुजाहिरा किया तथा बताया कि पाप की कितनी भयानक सजा मिलती है। सजा के भयावह विवरण से ऊबकर हमें माफ कर दिया गया। कहा गया कि आप को पाप नहीं पड़ेगा। हमने कहा -लेकिन तुम तो कह रहे थे कि झूठ बोलने पर पाप पड़ता है।तो हमें बताया गया कि वे हमें ऐसे ही डराया जा रहा था। हमने कहा कि इसका मतलब तुमने हमसे झूठ बोला। तो बताया कि हां,झूठ बोला। हमने डराते हुये कहा कि इसका मतलब तुमको पाप पड़ेगा। इस पर आत्मविश्वास के साथ बताया गया- हमको पाप नहीं पड़ेगा ,क्योंकि बच्चों को पाप नहीं पड़ता।
खतरे को भांपकर घटना स्थल से जिस कलाकारी से गायब होते हैं वह विरली है। किसी के गुस्से का अंदाजा लगता ही ये महाशय ‘वामन-कदम’ से कमरा लांघ कर ऐसे गायब गायब होते हैं जैसे अपने देश के मध्यवर्ग से कर्मनिष्ठा ,देश के प्रति लगाव आदि। खतरा टलते है दूसरे कमरे से अपने चेहरे की मोहनी,कातिलाना मुस्कान में आज्ञाकारिता का ऐसा लेप लगाकर ‘भये प्रकट कृपाला’ होते हैं कि आप ‘दीनदयाला’ होने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।
हमारे छोटू को खाने-पीने की कुछ चीजें बहुत प्रिय हैं।लेकिन अपनी प्रिय से प्रिय चीजें भी ये कभी अकेले नहीं खा सकते। साथ के सब लोगों को बांटकर ही खाते हैं। रेजगारी के लिये दीवानगी की हद तक लगाव रखने वाले अनन्य अपना गुल्लक भरते रहते हैं। लाखों की जरूरत होने पर अपना चंद रुपयों का गुल्लक बैलेंस अक्सर हाजिर कर देते हैं।
लोगों ने तो अपने उम्र के तीसरे दशक में बचपन के अनुभव बताने शुरू किये। हमारे छोटू तो दो साल की उमर से अनेको किस्से यह कहकर सुना चुके हैं-जब हम छोटे थे…।
घर वालों से लगाव,संवेदनशीलता तथा परदुख कातरता जैसे गुण जिस मात्रा में हमारे छोटू के अंदर हैं उससे लगता है कि इनसे हम गंडा बंधवा लें। खुद बीमार होने पर कोई गारंटी नहीं कि ये तकलीफ का पता लगने पर आपका सर न सहलाने लगें।जो भी सदस्य बाहर है बार-बार उसकी कुशल-क्षेम बार-बार पूछना इनकी आदत में शामिल है।
यह भी विरला गुण है कि जिस बड़े भाई से अभी पिटे हैं घर में अगर इनके लिये कुछ आ रहा है तो कहेंगे दादा का हिस्सा? अबयह बात अलग है कि ज्यादा पिटने पर कहें- आप अभी दादा को मेरे सामने पीटिये। जोर से मारिये नाटक मत करिये।
एक बार किसी शैतानी पर अपने पापा से पिट गये।बाकी लोग मिजाज पुर्सी करने लगे।
इनकी मम्मी बोली-पापा,गन्दे हैं। तुम मेरे पास आओ।
बोले-नहीं आपके पास नहीं आऊंगा। आपकी शिकायत पर ही पापा ने हमें पीटा।
दादी बोली-बेटा , ये दोनों गंदे हैं । तुम मेरे पास आओ।
बोले-नहीं। आपके पास भी नहीं आऊंगा। जब मम्मी की शिकायत पर पापा हमें पीट रहे थे तो आप कोने में खड़ी मुंह छिपाकर हंस रही थीं।
दादी बोली- हम कहां ,कैसे हंस रहे थे।
ये मुंह छिपाकर हंसने की एक्टिंग करते हुये बोले -ऐसे। बताते-बताते सबके साथ यह भी हंसने लगे।
अपना जन्मदिन मनाने के लिये दीवानगी की हद तक उत्साहित अनन्य ने यह व्यवस्था दी कि चाहे कुछ हो जाये उनका जन्मदिन जरूर मनाया जाये। महीने के अंत में पैदा होने वाले बच्चों के सामने माता-पिता अक्सर आर्थिक रोना रोकर उनके रंग में भंग डालने का प्रयास करते पाये जाते हैं। हम इस बार ऐसा कुछ प्रयास कर पायें इसके पहले ही एक दिन बड़े बच्चे का द्वारा समोसे की फरमाइश करने पर डायलाग मारा गया- दादा,पहले हमारा बर्थडे हो जाने दो। इसके बाद जब पैसे बचे तो समोसे मंगा लेना।
इस सावधानी पर कौन न मर जाये।
सोचते-सोचते हम दुकान पहुंच गये। जो ड्रेस पसंद करके रखी गई थी लेकर चलने लगे। याद आया कि दबे स्वर में कहा गया था कि वहां जीन्स भी थी जो छोटू पर बहुत सूट करेगी(फिजूलखर्ची के हमारे उपदेश की आशंका को ध्यान में रखते हुये दबा स्वर दफन कर दिया गया)।हमने जीन्स देखी तथा अचानक हम प्रेमचंद के ‘बड़े भाई साहब’ बन गये जो तमाम उपदेश देते-देते कनकौवा लूट के भाग लेते हैं। हमने जीन्स भी खरीद ली तथा वीरतापूर्वक घर का रुख किया। हमारी शहंशाही देखकर दुकानदार ने पूछा – आपके लिये भी कपड़े दिखायें? हमने कहा-यार,हम तो मैनीक्वीन हैं। जो कपड़े घरवाले पसंद करते हैं वही पहनने के अधिकारी हैं। कैसे खरीद लें।
लौटते में भीगते हुये जब घर पहुंचे तब पता चला कि हमारे सुपुत्र हमें भीगने के लिये सारी तथा भीगते हुये उपहार लाने के लिये धन्यवाद बोलने की हिदायद देकर सोने की तैयारी कर चुके थे। हमारे आने पर खुद यह जिम्मेदारी निभाई।
फिलहाल तो केक कटने की तैयारी चल रही है घर में। हमारे साहबजादे दस साल के जो हो गये आज!
पुनश्च: अभी पता चला कि हमारे एक और नामवर समकालीन ,अबे कस्बाई मन वाले साथी ,भारत भूषण तिवारी का भी आज जन्मदिन है। भारत भूषणजी को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनायें।
कल हम घर से निकले ही थे कि बारिश होने लगी।
सर मुढ़ाते ही ओले पड़ने के बाद घुटी चांद वाले ने क्या किया उसका विवरण नहीं मिलता लेकिन हम बारिश होने के बावजूद चलते ही रहे। बारिश की बूंदे हेलमेट पर गिरकर दम तोड़ दे रहीं थी। इस दुख में सारे कपड़े और सड़क भीग रहे थे। हम रात के साढ़े आठ बजे अर्मापुर से नवीन मार्केट ‘भजे’ जा रहे थे।
हुआ कुछ यों कि कल हमारी ‘घरैतिन’ घर में मौजूद कुछ पैसों से नाराज हो गयीं तथा उनको ठिकाने लगाने के लिये सरे शाम उनको पर्श में ठूंसकर ‘पैसों की कत्लगाह’ नवीन मार्केट चल दीं।बहाना था हमारे छोटे साहबजादे के जन्मदिन का।
हम जब शाम को घर पहुंचे तो रामराज्य था। हम खुशी-खुशी निरंतर की बेगारी में जुट गये। जब से इसका काउंटडाउन होने लगा है,हमारा जी हलकान है। संपादक साहूकार की तरह रोज सामग्री का तकादा करता है।
कुछ देर बाद फोन की घंटी बजी। पता चला कि खरीदार लोग पैसे घर में छोड़ गये थे। जो ले गये थे वह ए.टी.एम. कवर था। अभी भारत जैसे देश में इतना तकनीकी विकास नहीं हुआ कि बैंकें ए.टी.एम. कवर डालने के बाद पैसे दे दें।हमारे सामने चारा डाला गया कि मैं धन-रसद लेकर तुरंत पहुचूँ तथा अच्छे पति,पिता का ओहदा पा लूं। लेकिन हमने लालच में फंसने की बजाय निरंतर की बेगारी करना बेहतर समझा। कहा कि -सामान वहीं छोड़ दो ,सबेरे मंगा लेंगे।
जब काफिला घर पहुंचा तो सूरदास के ‘बालवर्णन’ की तर्ज पर ‘मूर्खता वर्णन’ हुआ कि कैसे पैसे तथा ए.टी.एम. घर में ही छूट गया। लोग अपने को एक-दूसरे से बड़ा बेवकूफ साबित करने में लगे थे। हम ‘नट्टू भाई’ की तरह सोच रहे थे कि सबसे बड़े बेवकूफ हमीं हैं जो यह सब सुन रहा है। और हुआ भी यही। मूर्खता-वर्णन के बाद नायिका ने घड़ी की तरफ निगाह डालते हुये मेरे ऊपर नैनकटारी चलाते हुये हवाओं से कहा-अभी तो दुकान खुली होगी। कोई चला जाये तो मिल जायेगें कपड़े। यह कोई चला जाये वाली अदा हमारी ‘इनकी’ खास अदा है। कमरे में एक व्यक्ति भी हो तो भी कहा जायेगा-कोई हमें पानी पिला दे,कोई ये काम कर दे,वो काम कर दे। बहरहाल, दुकान को फोनियाया गया और लब्बो-लुआब यह कि हम भरी रात अपने मोटर साइकिल पर सवार होकर चल दिये।
हम भीगते पानी में सड़क पर फटफटिया दौडा़ते चले जा रहे थे। देखादेखी दिमाग के घोड़े भी दौड़ने लगे।अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के अंतहीन मैदानों में -सरपट।
ये जो हमारे छोटे साहब जादे हैं वो दुनिया के हर साहबजादे की तरह ‘टेलरमेड’ आइटम हैं। जब पैदा हुये दस साल पहले तो फैक्ट्री का सबेरे का हूटर बज रहा था। हमें लगा कि खुदाबंद ने सबेरे-सबेरे सामान डिलीवर कर दिया और इन्होंने दुनिया में भी अपना कार्ड, सबेरे-सबेरे ०७३०बजे, २८ जुलाई सन १९९६ को ,शाहजहांपुर में पंच किया। जब तक हम ‘नाम समुद्र’ में डूबकर इनके लिये नाम तय करें तब तक हमारे बड़े बेटे ने काम चलाने के लिये इनको कामचलाऊ नाम दे दिया-छोटू। अब बाद में स्कूल जाते समय परमानेंट नाम भले अनन्य तय किया गया लेकिन दुनिया में इनके अस्थाई नाम का ही बोलबाला है। अब हालत यह है कि इनका स्थायी नाम ‘अनन्य’ खूबसूरत, बडा़ अच्छा, मीनिंगफुल होते हुये भी इन्हीं के अस्थायी नाम छोटू से ‘पिट’ जाता है। जैसे भारत में कुछ सालों के लिये अस्थाई तौर पर लागू नासपीटी अंग्रेजी भारतीय भाषाओं को रोज पीटती रहती है।
अब यह भी क्या बताना कि अपना हर काम अपने अंदाज़ में करने के आदी हमारे छोटू ने कौन बनेगा करोड़पति के पहले करोड़पति हर्ष वर्धन नवाटे के नाम के खुद अपना नाम हर्ष रख लिया। लेकिन ‘हर्ष’ नाम को तरजीह सिर्फ उतनी ही मिली जितनी कि हिंदी की जगह देवनागरी को मिलती है। फिल्मों के बेहद शौकीन अनन्य को ऋतिक रोशन बेहद पसंद हैं। और जब ये किसी को चाहते हैं तो हचक के चाहते हैं। ये ऋतिक के पास रहने के लिये उसके घर बरतन मांजने तक को तैयार हैं। आज जब हमने कहा कि रात को ऋतिक का फोन आया था कि सबेरे से बरतन मांजने को भेजो तो बोले-कह दीजिये आज हम बर्थ डे के लिये छुट्टी पर हैं।
ऋतिक के बाद इनके दूसरे हीरो हैं सचिन तेंदुलकर। जहां नाटे उस्ताद पवेलियन गये ये टीवी बंद कर देते हैं। तेंदुलकर के खेलते रहने पर टीवी बंद कराने की औकात केवल बिजली महारानी की ही है।आजकल धोनी पर भी काफी फिदा रहते हैं।
घर में भी आने वालों में सबसे पसंद हमारे सुपुत्र उसको करते हैं जो इनको निरंतर बिना आउट किये लगातार बालिंग करता रहे तथा गरिमापूर्ण ढंग से हारता रहे।
कैफ की नकल करते हुये प्रभावपूर्ण फील्डिंग का नजारा करने के लिये जमीन पर गिरने की प्रक्रिया में अक्सर राणा सांगा के वंशज बन जाते हैं।अक्सर कई चोटें का सुराग तब लगता है जब वे ठीक होने के अल्ले-पल्ले पहुंच जातीं हैं। टीवी के बेहद लती होने की हद तक शौकीन होते जा रहे छोटू जुमे के दिन सब काम छोड़कर ‘लाफ्टर चैलेंज’ को कृतार्थ करते हैं। दोस्त बनाने के मामले में तथा उनसे मिलने,खेलने के बहाने तलाशने का जो अंदाज है उससे हमें लगता है कि ये बड़े आराम से -‘दोस्तों से मुलाकात के कुछ तरीके’ टाइप की बेस्ट सेलर लिख सकते हैं।
शायद यह दोस्त पसंदगी ही है जिसके कारण कि अनन्य लगातार कई बार अपने विद्यालय में ‘फुल अटेंडेंस’ का प्रमाणपत्र पा चुके हैं।
कपडों के मामले में चूजी होते जा रहे हमारे सुपुत्र अपने सबसे चाहने वाले दोस्त के घर से गुजरते हुये भी वहां जाने का लालच त्याग देते हैं अगर कपड़े कायदे के नहीं पहने होते हैं। घंटो की तैयारी के बाद भी मम्मी की साड़ी,ब्लाउज मैंचिंग पर अक्सर फाइनल रेफरी का काम हमारे ‘अनन्य’ के अधिकार क्षेत्र में ही है।
बालक की जन्मकुंडली के अनुसार बालक सिंह राशि का है। नेतृत्व की क्षमता से युक्त। सबसे मजे की बात यह लिखी थी अंग्रेजी की जन्मकुंडली में कि इसको भाषण की कला पर असाधारण अधिकार होगा तथा बोलने के लिये ‘पोडियम’ के सहारे की जरूरत नहीं होगी।
जब हमारे महारथी तक मौका पड़ने पर अपनी बात कहने से चूक जाते हैं तो बालक की भाषण कला के बारे में अभी से क्या कहें लेकिन पोडियम की जरूरत नहीं होगी यह बात हमें लगता है कहीं सच न साबित हो जाये क्योंकि हमारे साहबजादे खाने-पीने के मामले में जरा चूजी टाइप हैं। केवल चिप्स,मैगी,बर्गर,पिज्जा जैसे सारतत्व ग्रहण करने तथा सारे पौष्टिक तत्व को थोथा समझकर उड़ा देने के हिमायती हैं। लिहाजा दुबले-पतले इतने हैं कि पोडियम की ऊंचाई तक पहुंचने में समय लगेगा ।शायद वह भी बोलने के लिये हटाना न पड़े ,ताकि लोग वक्ता को देख भी लें।। बावजूद अपने सींकिया बदन के ये अक्सर सलमान खान टाइप अदा में हाथ की मछलियां फुलाते हुये कई बार देखे गये हैं।
कुछ डायलाग इनकी तर्क बुद्धि का नमूना हैं। इनके मुंह से अक्सर सुना डायलाग-’जो कहता है वही होता है ‘(जो जैसा होता है वैसा दूसरों के बारे में सोचता है) बिना कापीराइट के कई बार प्रयोग किया है। ऐसे ही एक बार हमने किसी बात पर कुछ गलत जानकारी दी। पकड़ गये तो हमें बताया गया-पापा,आपने झूठ बोला ,आपको पाप पड़ेगा। पाप की बात पर हमने घबराने का मुजाहिरा किया तथा बताया कि पाप की कितनी भयानक सजा मिलती है। सजा के भयावह विवरण से ऊबकर हमें माफ कर दिया गया। कहा गया कि आप को पाप नहीं पड़ेगा। हमने कहा -लेकिन तुम तो कह रहे थे कि झूठ बोलने पर पाप पड़ता है।तो हमें बताया गया कि वे हमें ऐसे ही डराया जा रहा था। हमने कहा कि इसका मतलब तुमने हमसे झूठ बोला। तो बताया कि हां,झूठ बोला। हमने डराते हुये कहा कि इसका मतलब तुमको पाप पड़ेगा। इस पर आत्मविश्वास के साथ बताया गया- हमको पाप नहीं पड़ेगा ,क्योंकि बच्चों को पाप नहीं पड़ता।
खतरे को भांपकर घटना स्थल से जिस कलाकारी से गायब होते हैं वह विरली है। किसी के गुस्से का अंदाजा लगता ही ये महाशय ‘वामन-कदम’ से कमरा लांघ कर ऐसे गायब गायब होते हैं जैसे अपने देश के मध्यवर्ग से कर्मनिष्ठा ,देश के प्रति लगाव आदि। खतरा टलते है दूसरे कमरे से अपने चेहरे की मोहनी,कातिलाना मुस्कान में आज्ञाकारिता का ऐसा लेप लगाकर ‘भये प्रकट कृपाला’ होते हैं कि आप ‘दीनदयाला’ होने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।
हमारे छोटू को खाने-पीने की कुछ चीजें बहुत प्रिय हैं।लेकिन अपनी प्रिय से प्रिय चीजें भी ये कभी अकेले नहीं खा सकते। साथ के सब लोगों को बांटकर ही खाते हैं। रेजगारी के लिये दीवानगी की हद तक लगाव रखने वाले अनन्य अपना गुल्लक भरते रहते हैं। लाखों की जरूरत होने पर अपना चंद रुपयों का गुल्लक बैलेंस अक्सर हाजिर कर देते हैं।
लोगों ने तो अपने उम्र के तीसरे दशक में बचपन के अनुभव बताने शुरू किये। हमारे छोटू तो दो साल की उमर से अनेको किस्से यह कहकर सुना चुके हैं-जब हम छोटे थे…।
घर वालों से लगाव,संवेदनशीलता तथा परदुख कातरता जैसे गुण जिस मात्रा में हमारे छोटू के अंदर हैं उससे लगता है कि इनसे हम गंडा बंधवा लें। खुद बीमार होने पर कोई गारंटी नहीं कि ये तकलीफ का पता लगने पर आपका सर न सहलाने लगें।जो भी सदस्य बाहर है बार-बार उसकी कुशल-क्षेम बार-बार पूछना इनकी आदत में शामिल है।
यह भी विरला गुण है कि जिस बड़े भाई से अभी पिटे हैं घर में अगर इनके लिये कुछ आ रहा है तो कहेंगे दादा का हिस्सा? अबयह बात अलग है कि ज्यादा पिटने पर कहें- आप अभी दादा को मेरे सामने पीटिये। जोर से मारिये नाटक मत करिये।
एक बार किसी शैतानी पर अपने पापा से पिट गये।बाकी लोग मिजाज पुर्सी करने लगे।
इनकी मम्मी बोली-पापा,गन्दे हैं। तुम मेरे पास आओ।
बोले-नहीं आपके पास नहीं आऊंगा। आपकी शिकायत पर ही पापा ने हमें पीटा।
दादी बोली-बेटा , ये दोनों गंदे हैं । तुम मेरे पास आओ।
बोले-नहीं। आपके पास भी नहीं आऊंगा। जब मम्मी की शिकायत पर पापा हमें पीट रहे थे तो आप कोने में खड़ी मुंह छिपाकर हंस रही थीं।
दादी बोली- हम कहां ,कैसे हंस रहे थे।
ये मुंह छिपाकर हंसने की एक्टिंग करते हुये बोले -ऐसे। बताते-बताते सबके साथ यह भी हंसने लगे।
अपना जन्मदिन मनाने के लिये दीवानगी की हद तक उत्साहित अनन्य ने यह व्यवस्था दी कि चाहे कुछ हो जाये उनका जन्मदिन जरूर मनाया जाये। महीने के अंत में पैदा होने वाले बच्चों के सामने माता-पिता अक्सर आर्थिक रोना रोकर उनके रंग में भंग डालने का प्रयास करते पाये जाते हैं। हम इस बार ऐसा कुछ प्रयास कर पायें इसके पहले ही एक दिन बड़े बच्चे का द्वारा समोसे की फरमाइश करने पर डायलाग मारा गया- दादा,पहले हमारा बर्थडे हो जाने दो। इसके बाद जब पैसे बचे तो समोसे मंगा लेना।
इस सावधानी पर कौन न मर जाये।
सोचते-सोचते हम दुकान पहुंच गये। जो ड्रेस पसंद करके रखी गई थी लेकर चलने लगे। याद आया कि दबे स्वर में कहा गया था कि वहां जीन्स भी थी जो छोटू पर बहुत सूट करेगी(फिजूलखर्ची के हमारे उपदेश की आशंका को ध्यान में रखते हुये दबा स्वर दफन कर दिया गया)।हमने जीन्स देखी तथा अचानक हम प्रेमचंद के ‘बड़े भाई साहब’ बन गये जो तमाम उपदेश देते-देते कनकौवा लूट के भाग लेते हैं। हमने जीन्स भी खरीद ली तथा वीरतापूर्वक घर का रुख किया। हमारी शहंशाही देखकर दुकानदार ने पूछा – आपके लिये भी कपड़े दिखायें? हमने कहा-यार,हम तो मैनीक्वीन हैं। जो कपड़े घरवाले पसंद करते हैं वही पहनने के अधिकारी हैं। कैसे खरीद लें।
लौटते में भीगते हुये जब घर पहुंचे तब पता चला कि हमारे सुपुत्र हमें भीगने के लिये सारी तथा भीगते हुये उपहार लाने के लिये धन्यवाद बोलने की हिदायद देकर सोने की तैयारी कर चुके थे। हमारे आने पर खुद यह जिम्मेदारी निभाई।
फिलहाल तो केक कटने की तैयारी चल रही है घर में। हमारे साहबजादे दस साल के जो हो गये आज!
पुनश्च: अभी पता चला कि हमारे एक और नामवर समकालीन ,अबे कस्बाई मन वाले साथी ,भारत भूषण तिवारी का भी आज जन्मदिन है। भारत भूषणजी को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनायें।
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संयोगवश आज मेरा भी जन्मदिन है. २८ साल पहले जिस मनहूस दिन चीन में भीषण भूकम्प में साढे छह लाख लोग मारे गये थे, उसी दिन धरती पर हमारा पदार्पण हुआ
पापा को परेशान मत करना, नही तो कंही तुम्हारे ऊपर कविताएं लिख दी तो तुमको तो सुना के ही रहेंगे।समझ गए ना।
और अब इस लेख की बात। कुछ उपमायें और वर्णन बहुत आनन्दकारी लगे –
- ‘पैसों की कत्लगाह’ a.k.a. नवीन मार्केट (क्या सटीक नामकरण है!)
- मेरे ऊपर नैनकटारी चलाते हुये हवाओं से कहा – हवायें न हुयीं, कलिदास के मेघ हो गये – बहुत खूब
- हम तो मैनीक्वीन हैं – यह उपमा तो निश्चय ही रोचक है
वैसे मेरा अनुभव ये कहता है कि दुनिया भर के छोटू, छुट्ट्न, छुटका या छोट्या…..ऐसे ही होते हैं….
-प्रेमलता
अनन्य
Chhotu ko bahut sari badhaiyan!
तो… अनन्य के ‘ टेलर ‘ ने दुकान क्यों बन्द कर दी ?
पिट गये क्या ?