भारत में कोई भी विदेशी मेहमान आता है तो उसे राजघाट जरूर ले जाया जाता है। फ़िर चाहे वह अहिंसा पर विश्वास रखने वाले नेल्शन मंडेला हों या हर मसले का हल बमबारी में खोजने वाले देश अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष।
राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि है। गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे। उनके बारे में गाना भी बना है -
दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल,
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।
गांधी जी की समाधि पर उनके जन्मदिन और शहीद दिवस पर उनकी प्रिय रामधुन तो बजती है। बाहर से कोई आता है तो उसको वहां जरूर ले जाते हैं।
इस बार हमारे मेहमान बनकर अमेरिकी राष्ट्रपति आये। वे भी गये राजघाट। उनको तक यह पता था कि बापू अहिंसा के हिमायती थे। हालांकि अमेरिका को अहिंसा पर कोई खास एतबार नहीं है। वह हर समस्या का इलाज बमबारी में खोजता है। लम्बा इतिहास है उसका हिंसा का। परसाई जी ने लिखा भी है:
अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं.बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है,सभ्यता बरस रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने राजघाट पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुये कहा- "भारत में बापू के आदर्श आज भी जिन्दा हैं।"
इसका एक मतलब तो तारीफ़ की बात है भारत में अहिंसा की भावना बची हुयी है। लेकिन इसमें आश्चर्य का भी है - "हमने दुनिया भर में इतने हथियार बेचे। चलाये। चलवाए। लेकिन भारत में बापू के आदर्शो को ठिकाने नहीं लगा पाये। लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। इनको निपटानें की कोशिश करते रहेंगे।"
अमेरिकी राष्ट्रपति ने राजघाट पर पीपल का पौधा लगाया। पीपल का पौधा वैसे तो बहुत लाभकारी होता है। सबसे ज्यादा आक्सीजन देता है। कई तरह के देवता इसमें निवास करते हैं। शुद्ध हिन्दू पौधा है।
लेकिन पीपल का पौधा इमारतों के लिये बहुत खतरनाक होता है। जहां लगाया जाता है वहां इसकी जड़ें फ़ैलकर इमारत की नींव और दीवार को कमजोर कर देती हैं। पौधा मजबूत होता है, इमारत कमजोर हो जाती है। देश की अनगिनत इमारतों की कमजोरी का कारण यह पवित्र पौधा है। लोग पवित्रता के चलते इसको उखाड़ते नहीं। इमारत भले गिर जाये।
इस दौरे में अमेरिका से कई समझौते हुये हैं। भारतीय मीडिया लहालोट है। गदगद है। लेकिन अमेरिका से दोस्ती की बात सोचते ही हमें कानपुर के ठग्गू के लड्डू का डायलाग याद आता है-
ऐसा कोई सगा नहीं,
जिसको हमने ठगा नहीं।
अमेरिका से आये गेंहूं के साथ आये गाजर घास तो अब तक झेल रहे हैं हम। अब यह पीपल का पौधा। खबर सुनते ही हमारा मन पीपल के पत्ते की तरह कांपने लगा। अहिंसा तो खैर एक विचार है। उसको खतम करना तो किसी के बूते की बात नहीं लेकिन अहिंसा के पुजारी की समाधि के प्रति चिंता होने लगी है। वैसे भी लोग हिंसा के हिमायती की मूर्ति लगाने के लिये हल्ला शुरु मचाने ही लगे हैं।
क्या आपको भी ऐसा ही कुछ लगा ?
राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि है। गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे। उनके बारे में गाना भी बना है -
दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल,
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।
गांधी जी की समाधि पर उनके जन्मदिन और शहीद दिवस पर उनकी प्रिय रामधुन तो बजती है। बाहर से कोई आता है तो उसको वहां जरूर ले जाते हैं।
इस बार हमारे मेहमान बनकर अमेरिकी राष्ट्रपति आये। वे भी गये राजघाट। उनको तक यह पता था कि बापू अहिंसा के हिमायती थे। हालांकि अमेरिका को अहिंसा पर कोई खास एतबार नहीं है। वह हर समस्या का इलाज बमबारी में खोजता है। लम्बा इतिहास है उसका हिंसा का। परसाई जी ने लिखा भी है:
अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं.बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है,सभ्यता बरस रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने राजघाट पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुये कहा- "भारत में बापू के आदर्श आज भी जिन्दा हैं।"
इसका एक मतलब तो तारीफ़ की बात है भारत में अहिंसा की भावना बची हुयी है। लेकिन इसमें आश्चर्य का भी है - "हमने दुनिया भर में इतने हथियार बेचे। चलाये। चलवाए। लेकिन भारत में बापू के आदर्शो को ठिकाने नहीं लगा पाये। लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। इनको निपटानें की कोशिश करते रहेंगे।"
अमेरिकी राष्ट्रपति ने राजघाट पर पीपल का पौधा लगाया। पीपल का पौधा वैसे तो बहुत लाभकारी होता है। सबसे ज्यादा आक्सीजन देता है। कई तरह के देवता इसमें निवास करते हैं। शुद्ध हिन्दू पौधा है।
लेकिन पीपल का पौधा इमारतों के लिये बहुत खतरनाक होता है। जहां लगाया जाता है वहां इसकी जड़ें फ़ैलकर इमारत की नींव और दीवार को कमजोर कर देती हैं। पौधा मजबूत होता है, इमारत कमजोर हो जाती है। देश की अनगिनत इमारतों की कमजोरी का कारण यह पवित्र पौधा है। लोग पवित्रता के चलते इसको उखाड़ते नहीं। इमारत भले गिर जाये।
इस दौरे में अमेरिका से कई समझौते हुये हैं। भारतीय मीडिया लहालोट है। गदगद है। लेकिन अमेरिका से दोस्ती की बात सोचते ही हमें कानपुर के ठग्गू के लड्डू का डायलाग याद आता है-
ऐसा कोई सगा नहीं,
जिसको हमने ठगा नहीं।
अमेरिका से आये गेंहूं के साथ आये गाजर घास तो अब तक झेल रहे हैं हम। अब यह पीपल का पौधा। खबर सुनते ही हमारा मन पीपल के पत्ते की तरह कांपने लगा। अहिंसा तो खैर एक विचार है। उसको खतम करना तो किसी के बूते की बात नहीं लेकिन अहिंसा के पुजारी की समाधि के प्रति चिंता होने लगी है। वैसे भी लोग हिंसा के हिमायती की मूर्ति लगाने के लिये हल्ला शुरु मचाने ही लगे हैं।
क्या आपको भी ऐसा ही कुछ लगा ?
इस लेख की प्रशंसा के लिये मेरे पास शब्द कम हैं ,,,,बेहतरीन और बेहद सच्ची तथा खरी बातें
ReplyDeleteवो ख़ुद को इस जहान का आक़ा समझते हैं
जो बावक़ार* हो गए हथियार बेच कर.....* सभ्य/ इज़्ज़तदार............... ( शिफ़ा)
Sahi baat hai
ReplyDeleteEkdam mere man ki baat.
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