"साँसों को जीने का हिसाब हो गया"
यह गाना बज रहा है चाय की दूकान पर। सबेरे निकले साइकिल सैर पर तो देखा एक भाई जी हाथ हिलाते हुए बड़बड़ाते चले जा रहे थे। लगा कुछ खिसके हुए टाइप हैं अकेले ही बोलते चले जा रहे हैं। लेकिन फिर देखा तो उनके काम में इयर फोन लगा था जिसके तार जेब तक जा रहे थे। वो मोबाइल पर किसी से बतिया रहे थे।
सड़क के बगल की जरा सी हरी जमीन पर एक पचास ऊपर के भाईजी कुछ बच्चों को थम,उठ,बढ़ जैसे शब्द बोलते हुए अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे। अबोध बच्चे उठते, बैठते, लेटते सब सीख रहे थे।
चाय की दूकान पर पहुंचकर साइकिल का फ़ोटो खैंचा गया। कल ही ख़रीदे साइकिल।
बहुत दिन से टालते जा रहे थे। मंगनी की साइकिल चलाते रहे कुछ दिन। बाद में
लगता है हमारे डर से लोगों ने लाना बन्द कर दिया।मोटरसाइकिल पर शिफ्ट कर
गए। हमारा साईकिल चालन प्रभावित हो रहा था। कल गए दोस्तों Sharad Gyanendra
और सरफराज के साथ जाकर साइकिल कसवा लाये। सबने चलाकर देखी। साइकिल को शादी
के लिए पसंद की जाने वाली कन्या की तरह चला फिरा कर देखा गया और फाइनल
किया गया। पहली साइकिल सन 1983 में खरीदे थे। 275/-की। कल खरीदे 4800/- की।
32 साल में दाम बीस गुने करीब हो गए।
"ये चाँद सा रोशन चेहरा" गाना दौड़ने लगा रेडियो पर। बगल वाले भाई साहब हमसे चाय पीकर जाते हुए कह रहे हैं-"चाय पी लीजिये।ठण्डी हो जायेगी।"
हम चाय पीते हुए सामने कड़ाही में जलबी तलते दुकानदार को देख रहे हैं। एक एक जलेबी को चिमटे से पकड़कर गर्माते, तलते, उलटते,पुलटते। हर जलेबी को तवज्जो देते हुए। जलेबियां शीरे में जाने के लिए तैयार हो रहीं हैं।
क्या पता जलेबियां आपस में भी बतिया रहीं हों। किनारे वाली जलेबी बीच वाली जलेबी को कोसती हुई कह रही हो देख कैसे उसको बार-बार उलट-पुलट रहा है। जैसे बस वही छटंकी एक अकेली जलेबी है कढाई में। उसकी सहेली जलबी भी उसकी जलन में अपनी कुढ़न मिलाते हुए कह रही हो-"बीच वाली जलेबी को तो वो ऐसे सेंक रहा है जैसे सम्पादक दिल्ली के साहित्यकारों को छापते हैं। लगता है सारा साहित्य बस दिल्ली में इकट्ठा हो गया हो।"
हाशिए की समझदार जलेबी ने कुछ समझाने की कोशिश में मुंह खोला तब तक जलेबी बनाने वाले ने उसको पलट दिया। उसका मुंह का हिस्सा जल गया। वह बिलबिलाकर खुद को तलते देखने लगी। सहेली जलेबियां चुप होकर अपने तले जाने का इन्तजार करने लगीं।
सीख यह मिली कि हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिसमें बोलने वाला क्या बोल रहा है यह देखे बिना मुंह तोड़ने, बोलने वाले को चुप करा देने का रिवाज बढ़ रहा है। अगले की हिम्मत कैसे हुई हमारे सामने मुंह खोलने की।हर जगह ऐसा आम हो रहा है। क्या पता कल को लोग बोलने के पहले सुरक्षा व्यवस्था की मांग करने लगें।
गाना बजने लगा :
चला जाए वापस। दस मिनट लगेंगे कमरे तक पहुंचने में। फिर तैयार होकर दफ्तर जाना है।
एक तरफ रांझी, खमरिया दूसरी तरफ शहर की तरफ जाने वाली सड़क के किनारे एक चाय की दूकान से। पोस्ट करते समय गाना बज रहा है:
"मोहब्बत बरसा देना तू।"
हमको दोहा याद आ रहा है:
सतगुरु हमसू रीझिकर एक कह्या प्रसंग,
बरस्या बादल प्रेम का,भीजि गया सब अंग।
तो आप भी कुछ प्रसंग कहिये। रीझिये। सतगुरु बन जाइए।
"ये चाँद सा रोशन चेहरा" गाना दौड़ने लगा रेडियो पर। बगल वाले भाई साहब हमसे चाय पीकर जाते हुए कह रहे हैं-"चाय पी लीजिये।ठण्डी हो जायेगी।"
हम चाय पीते हुए सामने कड़ाही में जलबी तलते दुकानदार को देख रहे हैं। एक एक जलेबी को चिमटे से पकड़कर गर्माते, तलते, उलटते,पुलटते। हर जलेबी को तवज्जो देते हुए। जलेबियां शीरे में जाने के लिए तैयार हो रहीं हैं।
क्या पता जलेबियां आपस में भी बतिया रहीं हों। किनारे वाली जलेबी बीच वाली जलेबी को कोसती हुई कह रही हो देख कैसे उसको बार-बार उलट-पुलट रहा है। जैसे बस वही छटंकी एक अकेली जलेबी है कढाई में। उसकी सहेली जलबी भी उसकी जलन में अपनी कुढ़न मिलाते हुए कह रही हो-"बीच वाली जलेबी को तो वो ऐसे सेंक रहा है जैसे सम्पादक दिल्ली के साहित्यकारों को छापते हैं। लगता है सारा साहित्य बस दिल्ली में इकट्ठा हो गया हो।"
हाशिए की समझदार जलेबी ने कुछ समझाने की कोशिश में मुंह खोला तब तक जलेबी बनाने वाले ने उसको पलट दिया। उसका मुंह का हिस्सा जल गया। वह बिलबिलाकर खुद को तलते देखने लगी। सहेली जलेबियां चुप होकर अपने तले जाने का इन्तजार करने लगीं।
सीख यह मिली कि हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिसमें बोलने वाला क्या बोल रहा है यह देखे बिना मुंह तोड़ने, बोलने वाले को चुप करा देने का रिवाज बढ़ रहा है। अगले की हिम्मत कैसे हुई हमारे सामने मुंह खोलने की।हर जगह ऐसा आम हो रहा है। क्या पता कल को लोग बोलने के पहले सुरक्षा व्यवस्था की मांग करने लगें।
गाना बजने लगा :
"दमादम मस्त कलन्दर
अली दा पहला नंबर।"
चला जाए वापस। दस मिनट लगेंगे कमरे तक पहुंचने में। फिर तैयार होकर दफ्तर जाना है।
एक तरफ रांझी, खमरिया दूसरी तरफ शहर की तरफ जाने वाली सड़क के किनारे एक चाय की दूकान से। पोस्ट करते समय गाना बज रहा है:
"मोहब्बत बरसा देना तू।"
हमको दोहा याद आ रहा है:
सतगुरु हमसू रीझिकर एक कह्या प्रसंग,
बरस्या बादल प्रेम का,भीजि गया सब अंग।
तो आप भी कुछ प्रसंग कहिये। रीझिये। सतगुरु बन जाइए।
- अर्कजेश कुमार नई इस्टाईल वाली खरीदनी थी रेसिंग वाली
- अनूप शुक्ल रेस करना नहीं। फिर काहे को बेफालतू कमर झुकाउआ साइकिल पर पैसा फूंके।यही सोचते हुए यह 'साइकिल कुमारी'/'साईकिल सहेली' चुनी गयी अर्कजेश कुमार
- Amit Kumar Srivastava रेले साईकिल का इमिटेशन वर्ज़न है यह raliegh जैसा क़ि इसके फ्रेम पे लिखा है । साईकिल को गलत तरीके से पार्क किया है आपने ,सड़क से क्लेअरेंस बहुत कम है । लॉक भी नहीं किया है । चोरी हो जाने की दशा में insurance क्लेम मिलने में परेशानी हो सकती है । बाक़ी लिखा पढ़ा अच्छा है ।
- Neeraj Mishra सुबह आपको पढ़ने की आदत हो गई है सर. आज कुछ लेट हो गये आप.
- ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' अब तो साइकिल पुराण भी बांचना पड़ेगा किसी दिन। लिखंदणों के चक्कर में बेचारी नई नवेली साइकिल की छीछालेदर होने ही वाली है किसी दिन।
- Ram Kumar Chaturvedi आदमी जब पहले दिन किसी आयुध निर्माणी में घुसता है तो उसको साढे साती लग जाती है।फिर वह केवल यही सोच पाता है कि कैसे भी साढे सात से पहले अंदर होजाये फिर चाहे साइकिल हो या फटफटिया।
- Vivek Srivastava साइकिल की बधाई :-)पार्टी कहाँ मिलेगी कानपुर या जबलपुर
- Virendra Bhatnagar 4800/- रुपइया खर्च करके भी वही 32 साल पुराना माडिल खरीदे हैं आप। और कैरियर काहे लगवाये हैं कौनो है पीछे बैठन वारा वहाँ खैर कथा बढ़िया बाँचते हैं आप ।
- अनूप शुक्ल साइकिल रैले ही है। मेड इन ब्रिटेन लिखा है पीछे। सड़क पर गाडी (साईकिल भी गाडी ही है ) खाली फ़ोटो खींचने के खातिर खड़ी की गयी है।इसलिए क्लियरेंस और ताला नहीं है। सही खड़ी करते तो तुमको इतना लिखने का मौका भी कैसे मिलता? Amit
- अनूप शुक्ल साइकिल सैर पर थे। वहीं से पोस्ट भी किया था लेकिन नेटवर्क गोल था सो कमरे में आकर ही नेट पर चढ़ा। Neeraj
- अनूप शुक्ल सही कहा। दूकान वाला बता रहा था कि तमाम फैक्ट्री वाले यही साइकिल खरीदे हैं ताकि समय पर ड्यूटी पहुंच सकें। Ram Kumar Chaturvedi
- अनूप शुक्ल बधाई के लिए धन्यवाद।पार्टी जहां लेना चाहो मिल जायेगी। तुम्हारी डॉक्टरी की भी पार्टी बकाया है। Vivek Srivastava
- अनूप शुक्ल कैरियर जुगाड़ कर लिया गया है।बैठनवारा कोई मिलेगा तो बैठाया जाएगा। Virendra Bhatnagar
- Mazhar Masood आपकी साइकिल के खड़े होने का अंदाज ,बड़ा नक़्शे वाला है , आपकी संगत पाकर इतरा रही है आपने गद्दी पर विशेष ध्यान दिया है मुबारक हो ,
- Madhu Arora good morning Arunji.
- Rajiv Agarwal नाई साइकिल मुबारक हो ।
- Anamika Vajpai किस्सागोई हो तो आपके जैसी, साइकिल और जलेबी के किस्से, दोनों ने अतीत में पहुँचा दिया।
- Chandra Prakash Pandey एक ज़माना था जब साईकल दहेज़ में मिलती थी और लोग बहू को कम साईकल को देखने ज्यादा आते थे।
- Rajkumar Hansdah ताले तो दो-दो लगवा लिये,घंटी और बत्ती के बिना चालान हो सकता है।मोदी जी से इन्स्पायर्ड आप हैं, या आप से मोदी जी?
- अनूप शुक्ल घण्टी और बत्ती लगवाएंगे सर। जल्दी ही। बाकी हम साइकिल से देशदर्शन 1983 में किये हैं तब हम मोदी जी को जानते भी नहीं थे। Rajkumar Hansdah
- Aashish Sharma सेहत का ध्यान रखते हैं आप
- Rajkumar Hansdah वैसे मैं इन्स्पायर्ड हो गया हूँ.....जल्द ही एक ठो साइकिल मेरे पास भी होगी।
- Satish Pancham Gyan Dutt Pandey ji की पोस्ट में कहीं पढ़़ा था। "साईकिल कहाँ से कसवाये ? "
- Saraswati Chandra Srivastava no maintenance transport. should be promoted
- Satish Tewari जय गुरु देव
- Rajesh Kumar Dwivedi Anoop bhaiya aapke sabdon ka chayan lajbaab h.......
Very good ... - Abhishek Shukla गज़ब गुरू,झाड़े रहो कल्लटर गंज। नई साईकिल मुबारक हो।
- Chandra Prakash Pandey सर साइकल भावपूर्ण (स्माइल प्लीज) वाली मुद्रा में कैमरे को टकटकी लगाए देख रही है। गर्दन को एक अदा के साथ वामांगी होकर नयनाभिराम मुद्रा में खड़ी है।
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