आगे का रास्ता एक भाई जी से पूछा।वे अपने लड़के की शादी का निमन्त्रण देने अपने गाँव जा रहे थे। पैदल।चढाई थी सो हम भी चल दिए साथ में पैदल।साइकिल को लुढ़काते हुए। वन विभाग में काम करने वाले भाई जी को पता चला कि हम रांझी से आ रहे हैं तो बोले-"अच्छा इतवार मना रहे हैं।"
इसके बाद कई सारी बातें कहीं। लब्बो लुआब-"आदमी घर से निकलता नहीं। निकलना चाहिए। घर में बैठे-बैठे मोटा होता है आदमी।साइकिल चलाना चाहिए। मोटर साइकिल आदमी के बराबर वजन की होती है। तेल अलग से पीती है।साइकिल बढ़िया सवारी है।
आगे सड़क से जाने की बजाय एक नहर के किनारे-किनारे चलते हुए आये।नहर किनारे कुछ बच्चे बैठे नहाने की सोच रहे थे। पास के गांव के। फोटो खींचने की बात पर एक बच्चा दूर भाग गया। एक ने चड्ढी के ऊपर अंगौछा धारण करके तब खिंचाया फ़ोटो।मोबाइल पर फोटो देखकर हंसे भी।
आगे बढ़ते हुए धूप तेज लगी। प्यास भी लगने लगी थी। यह तय हुआ कि आगे से पानी साथ में लेकर चलना चाहिए। पत्थर पड़े थे कच्चे रस्ते पर। यह भी लग रहा था कि कहीं साइकिल पंक्चर न हो जाए।थकान के चलते चढ़ाई पर उतर कर पैदल चलते रहे।
सड़क मिली 'चूना गोलाई' मोड़ पर। जबलपुर से लगभग 19 किमी दूर। एक दूकान पर चाय पीने रुके।वहां दो लोग बैठे चिलम फूंक रहे थे। पूछने पर बताया-"दारू बनाते हैं।महुआ, चावल,कनी,गुड़,आलू सबकी दारु बनाते हैं। जहां पानी मिले भट्ठी लगा लेते हैं।दस किलो महुआ से 7 बॉटल दारू निकल आती है। इंग्लिश शराब भी फ़ैल है देशी दारु के मुकाबले।"
इस बीच एक और आदमी आया वहां। उसका बिना हुआ महुआ गाय ने खा लिया था। वह धाराप्रवाह गाय के लिए माँ-बहन की गालियां दे रहा था। गाली देते हुए थक गया तो चिलम फूंक रहे लोगों से लेकर खुद भी धुँआ उड़ाने लगा।
दूकान के बाहर एक ठेले पर सूखते महुए के पास दूकान वाले का बच्चा खड़ा था। उसकी फ़ोटो ली तो पीछे नहर में नहाते हुए लोग आ गए जिनमें महिलाएं और बच्चियां मुख्य थीं। 1983 में बिहार में ऐसे फ़ोटो लेने पर एक आदमी ने हमको बहुत हड़काया था। गर्दन 6 इंच छोटी करने की बात भी कही थी। हम सरपट भागे थे।
चिलमवीरों ने बताया कि पुलिस कभी पकड़ती नहीं। पकड़ा भी तो 200 रूपये लेकर छोड़ देती है। थाने में भी चरस पीते हैं खुलेआम। पुलिस की क्या औकात जो पकड़े उनको। पता नहीं यह सच है या चिलम के धुएं का जलवा जो उनके मुंह से निकल रहा था।
चूनागोलाई से आगे चलकर तिलवारा घाट पर पहुंचे।नए पुल से खड़े होकर पुराने पुल पर पैदल आते लोग दिखे।एक परिवार किनारे खड़े होकर नदी में पैसे फेंक रहा था। एक युवा जोड़ा मोटरसाइकिल पर नदी किनारे कुछ देर को ठहरा था। एक आदमी का अंगौछा पुल के किनारे पड़ा था। शायद तेज हवा में निकल गया हो। किसी पिक्चर में होता तो पक्का कोई हीरोइन का होता और वह गाना गाती- "हवा में उड़ता जाए, मेरा लाल दुपट्टा मलमल का।"
शहर जब करीब 15 किमी दूर बचा तब थकान लगने लगी। प्यास भी। रुक-रुक कर पानी पीते हुए आगे बढ़े।हर मोड़ पर आगे का रास्ता पूछने के बहाने थोडा रुके। एक जगह वाहन चेकिंग अभियान चल रहा था। हमने सिपाही से ही रास्ता पूछा। मोटरसाइकिल पर होते ऐसा नहीं करते।निकल लेने की सोचते-'पता नहीं किस चक्कर में चालान थमा दें।'
एक चौराहे पर मिटटी के बर्तन बिक रहे थे। Anamika अक्सर अपनी दीवार पर फ़ोटो लगाती हैं घड़े,सुराहियों के। फ़ोटो खींचकर मैंने उसको भेजा व्हाट्सऐप पर।आगे दस किलोमीटर बाद इसका वाह आया। व्हाट्सऐप भी लगता है साईकिल से पहुंचा होगा।
एक गन्ने की रस के ठेले के पास रुके। पानी पिया। फिर बैठ गए। रस पिया। वहां एक पिता अपने बच्चे को घुमाने लाया था। बच्चा मानसिक रूप से दुनिया के हिसाब से कम विकसित है। तीन बच्चों का यह पिता अपने इस बच्चे को इतवार को घूमाता है। उसकी जो इच्छा होती है पूरी करता है। बच्चा भी हँसते हुए कह रहा था-"सन्डे को पापा की ड्यूटी हमारे साथ होती है।"
वो जब चले गए तब मैंने सोचा कि हम अक्सर अपने बच्चों के बहुत होशियार न होने पर दुखी होते हैं। जबकि दुनिया में तमाम ऐसे लोग भी होते हैं जिनके बच्चे अपनी मानसिक स्थिति के चलते सामान्य तौर पर स्कूल तक नहीं जा पाते।
सुबह आठ बजे के करीब निकले-निकले दोपहर बाद साढ़े तीन बजे करीब वापस कमरे पर पहुंचे। ग्वारीघाट, मानेगांव, चूनागोलाई, तिलवारा घाट होते हुए वाया घमापुर और सतपुला वापस आये। मिनी नर्मदा परिक्रमा हुई। 50 किमी करीब सड़क नापी गयी होगी।
आगे और होंगी ऐसी यात्राएं आसपास की। आप भी चलेंगे।
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