आज सुबह हनुमान मन्दिर की तरफ शुरू की साइकिलिंग।यूको बैंक के पास एक महिला हाथ उठाकर पीले कनेर के फूल तोड़ रही थी। भगवान को चढ़ायेगी शायद। मन्दिर के पास भिखारी जम गए थे।
एक आदमी सबको मन्दिर से निकलकर सबको एक एक सिक्का राहत सामग्री सा बांटता जा रहा था। एक आदमी खूब मन से एक महिला भिखारिन से बतिया रहा था।एक महिला काला चश्मा माथे पर सटाये बगल की महिला से बतियाती जा रही थी। उसके माथे पर चश्मा स्टाइलिश लग रहा था। फेसबुक पर उस तरह का फ़ोटो लगाता है कोई तो उनको सैकड़ों लाइक और कमेंट मिलते हैं। हमको फोटो खींचते देख उसने चश्मा आँखों पर चढ़ा लिया। धोती सर और माथे पर ठीक कर ली। बोली-"फ़ोटू खींचत हौ।खैंचि लेव।"
आगे एक महिला सर पर मटकियां लादे चली जा रही थी। कहीं बेंचना होगा या देना होगा। सड़क उसके सम्मान में बिछी हुई थी।
जगह-जगह लोग नल पर पानी भरने के लिए लाइन लगाए हुए थे। ज्यादातर महिलाएं थीं। नल धीरे-धीरे प्लास्टिल के डब्बे भर रहे थे। एक महिला अपने बच्चे के साथ कूड़ा बीनने जा रही थी। दोनों के हाथ में प्लास्टिक की बोरी थी। माँ बच्चे को जीना सिखा रही थी शायद।
आगे रांझी की सड़क इतनी खुली खुली दिखी कि मुझे लगा कि गलत रास्ते पर आ गए। लेकिन सड़क सही थी। जो सड़क दिन में और शाम को गर्मी की नदी की तरह संकरी हो जाती है वही सड़क बारिश की नदी की तरह चौड़ी लगी रही थी।
चाय की दूकान पर विजय मिला। सुबह 4 बजे कूड़ा बीनने निकला था। बोरा भर कूड़ा इकठ्ठा किये रिक्शे वाले का इन्तजार कर रहा था। हमने साथ में चाय पी।इस बीच एक और महिला भी आ गई। बुआ थी विजय की।
बुआ ने बताया -"चार दिन से बीमार थे। एक रूपये वाली टिकिया से आराम नहीं हुआ।कमजोरी है। लेकिन आज जब कुछ खाने को नहीं रहा तो निकले हैं शायद कुछ मिल जाए।आदमी अपनी कमाई की दारु पी जाता है।चार बच्चे हैं।लड़कियां पढ़ना छोड़ चुकी हैं।शादी लायक हैं।"
हमने चाय पीने के लिए पैसे दिए।तो वह बोली -"अभी पी लेंगे। फिर सड़क की तरफ से होते हुए चली गयी।शायद चाय से जरूरी और कोई खर्च होगा उसका।"
चाय पीते हुए विजय से बात होती रही।हमने कहा-"तुम भी क्या बड़े होकर अपने फूफा की तरह दारु पीने लगोगे?" उसने मुझसे सवाल किया-"आपने हमसे इतनी देर बातें की। क्या आपको ऐसा लगता कि हम ऐसा करेंगे?"
हमारे पास इस बात का कोई जबाब नहीं था।
इसके बाद और बातें हुईं।हमने बताया कि हमारे कई दोस्तों ने कई काम बताये हैं करने के लिए। इस पर उसने कहा -हम सब काम कर लेते हैं। बेलदारी, होटल ,मजूरी,कबाड़ का काम। बारात में बाजा भी बजाते हैं। आज भी जाना है एक बारात में।
विजय के दोस्त की शादी भी है आज। सिहोरा में।बरात में बाजा बजाकर फिर जायेंगे दोस्त की शादी में। डांस वांस नहीं करते।
दुल्हिन और बच्चे के बारे में पूछा तो बताया कि उसने अपने बेटे को अभी तक देखा नहीं है। सीधी में है ससुराल। सास बहुत तेज है। अपने आदमी को पटककर मारती है। मिलने नहीं दिया बीबी से। कहती है-"घर जमाई बनकर रहो। यहीं कमाओ। खाओ। तुम्हारे पास क्या है? झोपडी भी नहीं है।"
विजय ने बताया-"हमने कह दिया। वो झोपडी हमारे लिए महल जैसी है। हम घर जमाई बनकर नहीं रहेंगे। किसी के गुलाम थोड़ी हैं। दुल्हिन और बच्चे से मिलने तक नहीं दिया।घर वाले कहते हैं तुम दूसरी शादी कर लो। अपनी दुल्हिन को भूल जाओ। लेकिन हम जब तक अपनी दुल्हिन से पूछ नहीं लेंगे तब तक कुछ नही करेंगे।अगर उसकी मर्जी नहीं होगी मेरे साथ रहने की तब कुछ सोचेंगे।"
हमने कहा-"तुम्हारी जिंदगी कितनी कठिन है। खाना खुद बनाते हो। इतनी मेहनत करते हो।कभी कोई सुख का मौका मिलता है?"
विजय ने कहा-"हम सुख और दुःख से ज्यादा सुखी-दुखी नहीं होते। जिंदगी में सब ऐसे ही चलता है। माँ के न रहने पर अनाथ से हो गए हैं। माँ दो साल हुए कैंसर से नहीं रही। बाप,भाई,भाभी सब हैं। फिर भी अनाथ जैसे हैं। खुद बनाते खाते हैं।"
मैं सोचने लगा-"हम इस बच्चे से कई गुना समर्थ होकर भी छोटी छोटी मुसीबतों से परेशान हो जाते हैं।यह बच्चा तो मुसीबतों का पहाड़ लादे हुए घूमता है। जीता है। इस जैसे अनगिनत बच्चे होंगे जो कठिनाइयों से पंजा लड़ाते हुए जिंदगी जीते हैं।"
सोचते हुए हम चुप हो गए। इस पर बच्चा मुस्कराते हुए बोला-"अरे आप तो उदास हो गए।"
मैं कुछ बोल नहीं पाया। उसने पूछा-"रिक्शा बुला लायें। कबाड़ ले जाने के लिये। "
रिक्शे में कबाड़ लाद कर वह पान की दूकान पर रुक गया। पुड़िया में सुपाड़ी तम्बाकू लिए। हमने कहा-"मत खाया करो।" उसने कहा-"बचपन की आदत है अंकलजी। मुश्किल है छोड़ना।"
रिक्शे में बैठकर साथ साथ बातें करते हुए विजय ने पूछा-" कल कितने बजे मिलेंगे चाय की दूकान पर?" हमने कहा-"तुम जितने बजे बताओ।" इस पर उसने कहा-"हमारा कोई तय नहीं। कभी 4 बजे निकलते हैं काम पर। कभी 5 बजे। न जाने कब लौटें।"
हमने 7 से साढ़े सात बजे तक चाय की दूकान पर आने की बात कही।
देखते हैं अगली मुलाक़ात कब होती है विजय से।
एक आदमी सबको मन्दिर से निकलकर सबको एक एक सिक्का राहत सामग्री सा बांटता जा रहा था। एक आदमी खूब मन से एक महिला भिखारिन से बतिया रहा था।एक महिला काला चश्मा माथे पर सटाये बगल की महिला से बतियाती जा रही थी। उसके माथे पर चश्मा स्टाइलिश लग रहा था। फेसबुक पर उस तरह का फ़ोटो लगाता है कोई तो उनको सैकड़ों लाइक और कमेंट मिलते हैं। हमको फोटो खींचते देख उसने चश्मा आँखों पर चढ़ा लिया। धोती सर और माथे पर ठीक कर ली। बोली-"फ़ोटू खींचत हौ।खैंचि लेव।"
आगे एक महिला सर पर मटकियां लादे चली जा रही थी। कहीं बेंचना होगा या देना होगा। सड़क उसके सम्मान में बिछी हुई थी।
जगह-जगह लोग नल पर पानी भरने के लिए लाइन लगाए हुए थे। ज्यादातर महिलाएं थीं। नल धीरे-धीरे प्लास्टिल के डब्बे भर रहे थे। एक महिला अपने बच्चे के साथ कूड़ा बीनने जा रही थी। दोनों के हाथ में प्लास्टिक की बोरी थी। माँ बच्चे को जीना सिखा रही थी शायद।
आगे रांझी की सड़क इतनी खुली खुली दिखी कि मुझे लगा कि गलत रास्ते पर आ गए। लेकिन सड़क सही थी। जो सड़क दिन में और शाम को गर्मी की नदी की तरह संकरी हो जाती है वही सड़क बारिश की नदी की तरह चौड़ी लगी रही थी।
चाय की दूकान पर विजय मिला। सुबह 4 बजे कूड़ा बीनने निकला था। बोरा भर कूड़ा इकठ्ठा किये रिक्शे वाले का इन्तजार कर रहा था। हमने साथ में चाय पी।इस बीच एक और महिला भी आ गई। बुआ थी विजय की।
बुआ ने बताया -"चार दिन से बीमार थे। एक रूपये वाली टिकिया से आराम नहीं हुआ।कमजोरी है। लेकिन आज जब कुछ खाने को नहीं रहा तो निकले हैं शायद कुछ मिल जाए।आदमी अपनी कमाई की दारु पी जाता है।चार बच्चे हैं।लड़कियां पढ़ना छोड़ चुकी हैं।शादी लायक हैं।"
हमने चाय पीने के लिए पैसे दिए।तो वह बोली -"अभी पी लेंगे। फिर सड़क की तरफ से होते हुए चली गयी।शायद चाय से जरूरी और कोई खर्च होगा उसका।"
चाय पीते हुए विजय से बात होती रही।हमने कहा-"तुम भी क्या बड़े होकर अपने फूफा की तरह दारु पीने लगोगे?" उसने मुझसे सवाल किया-"आपने हमसे इतनी देर बातें की। क्या आपको ऐसा लगता कि हम ऐसा करेंगे?"
हमारे पास इस बात का कोई जबाब नहीं था।
इसके बाद और बातें हुईं।हमने बताया कि हमारे कई दोस्तों ने कई काम बताये हैं करने के लिए। इस पर उसने कहा -हम सब काम कर लेते हैं। बेलदारी, होटल ,मजूरी,कबाड़ का काम। बारात में बाजा भी बजाते हैं। आज भी जाना है एक बारात में।
विजय के दोस्त की शादी भी है आज। सिहोरा में।बरात में बाजा बजाकर फिर जायेंगे दोस्त की शादी में। डांस वांस नहीं करते।
दुल्हिन और बच्चे के बारे में पूछा तो बताया कि उसने अपने बेटे को अभी तक देखा नहीं है। सीधी में है ससुराल। सास बहुत तेज है। अपने आदमी को पटककर मारती है। मिलने नहीं दिया बीबी से। कहती है-"घर जमाई बनकर रहो। यहीं कमाओ। खाओ। तुम्हारे पास क्या है? झोपडी भी नहीं है।"
विजय ने बताया-"हमने कह दिया। वो झोपडी हमारे लिए महल जैसी है। हम घर जमाई बनकर नहीं रहेंगे। किसी के गुलाम थोड़ी हैं। दुल्हिन और बच्चे से मिलने तक नहीं दिया।घर वाले कहते हैं तुम दूसरी शादी कर लो। अपनी दुल्हिन को भूल जाओ। लेकिन हम जब तक अपनी दुल्हिन से पूछ नहीं लेंगे तब तक कुछ नही करेंगे।अगर उसकी मर्जी नहीं होगी मेरे साथ रहने की तब कुछ सोचेंगे।"
हमने कहा-"तुम्हारी जिंदगी कितनी कठिन है। खाना खुद बनाते हो। इतनी मेहनत करते हो।कभी कोई सुख का मौका मिलता है?"
विजय ने कहा-"हम सुख और दुःख से ज्यादा सुखी-दुखी नहीं होते। जिंदगी में सब ऐसे ही चलता है। माँ के न रहने पर अनाथ से हो गए हैं। माँ दो साल हुए कैंसर से नहीं रही। बाप,भाई,भाभी सब हैं। फिर भी अनाथ जैसे हैं। खुद बनाते खाते हैं।"
मैं सोचने लगा-"हम इस बच्चे से कई गुना समर्थ होकर भी छोटी छोटी मुसीबतों से परेशान हो जाते हैं।यह बच्चा तो मुसीबतों का पहाड़ लादे हुए घूमता है। जीता है। इस जैसे अनगिनत बच्चे होंगे जो कठिनाइयों से पंजा लड़ाते हुए जिंदगी जीते हैं।"
सोचते हुए हम चुप हो गए। इस पर बच्चा मुस्कराते हुए बोला-"अरे आप तो उदास हो गए।"
मैं कुछ बोल नहीं पाया। उसने पूछा-"रिक्शा बुला लायें। कबाड़ ले जाने के लिये। "
रिक्शे में कबाड़ लाद कर वह पान की दूकान पर रुक गया। पुड़िया में सुपाड़ी तम्बाकू लिए। हमने कहा-"मत खाया करो।" उसने कहा-"बचपन की आदत है अंकलजी। मुश्किल है छोड़ना।"
रिक्शे में बैठकर साथ साथ बातें करते हुए विजय ने पूछा-" कल कितने बजे मिलेंगे चाय की दूकान पर?" हमने कहा-"तुम जितने बजे बताओ।" इस पर उसने कहा-"हमारा कोई तय नहीं। कभी 4 बजे निकलते हैं काम पर। कभी 5 बजे। न जाने कब लौटें।"
हमने 7 से साढ़े सात बजे तक चाय की दूकान पर आने की बात कही।
देखते हैं अगली मुलाक़ात कब होती है विजय से।
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