कुछ दिन पहले अंग्रेजी के एक अख़बार की खबर का शीर्षक था- "वाइफ एंड्स मैरिज ऐज मैं
रिफ्यूजेस कैंडल लाइट डिनर" मतलब आदमी के द्वारा कैंडल लाइट डिनर से मना करने पर
पत्नी ने शादी तोड़ी।
खबर के शीर्षक से लगता है कि पत्नी ने शादी इसलिए तोड़ी क्योंकि पति बेचारे के पास उसको कैंडल लाइट डिनर कराने के लिए साधन या फिर समय नहीं होगा। यह भी लगा कि पत्नी जिद करती होगी कैंडल लाइट डिनर के लिए लेकिन पति को पसंद नहीं होगा। मना कर दिया होगा तो पत्नी ने शादी तोड़ दी।
हर तरह से खबर के शीर्षक से जो भी सहज धारणा बनती है वह स्त्री के खिलाफ बनती है। लगता है कि स्त्री ने पति को छोड़ दिया क्योंकि पति उसकी मांग पूरी करने में असमर्थ था। शीर्षक से लगता है पत्नी अत्याचारी है और पति बेचारा है।
लेकिन खबर पढ़ने पर पता चलता है कि वास्तविकता शीर्षक से बनी धारणा के उलट है।मामला बिजली कटौती से जुड़ा था। पति रात का खाना तभी खाता था जब बिजली आ जाती थी। बिजली आने तक पत्नी को इंतजार करना पड़ता था। बिना बिजली आये पति खाना नहीं खाता था। बिजली आने तक पत्नी को इन्तजार करना पड़ता था। विरोध करने पर हिंसा, मारपीट करता था।
लगातार बिजली कटौती,पति की बिजली की रौशनी में ही डिनर की जिद से उपजी स्थितियों ने आजिज आकर तीन बच्चों की मां ने सात साल पुरानी शादी तोड़ने का फैसला किया।पति की जिद से वह आजिज आ चुकी थी। पत्नी ने सम्बन्ध ख़त्म करने का निर्णय मजबूरी में लिया।
अखबार की खबर के शीर्षक और खबर में जमीन आसमान का फर्क है। शीर्षक से लगता है कि पत्नी अड़ियल और अति महात्वाकांक्षी है। पति की मजबूरियों से उसको कोई मतलब नहीं। पति बेचारा और पत्नी मगरूर लगती है। जबकि खबर बताती है कि पत्नी मगरूर नहीं बल्कि मजबूर है। मगरूर तो पति है जिसको अपनी पत्नी की परेशानियों की चिंता नहीं है। उसे तो सिर्फ बिजली की रौशनी में ही खाना चाहिए भले ही इसके लिए पत्नी को रात भर जागना पड़े।
अखबार की खबर और शीर्षक में यह विसंगति अखबारों की खबर आकर्षक और चटपटी बनाने की होड़ में मसखरेपन की सीमा तक जाने की घातक प्रवत्ति की तरफ इशारा करता है।
सहज मानवीय संवेदना के खिलाफ है खबरों को पेश करने का यह रवैया। खबर बेंचने के लालच में मजबूर को दोषी और दोषी को मजबूर चित्रित करती है यह खबर। खबर कम्पोज करने वाले पत्रकार के स्त्री विरोधी, खबर से सम्बंधित समुदाय के सहज विरोधी होने की तरफ भी इशारा है यह खबर।
अखबार के मुखपृष्ठ पर छपी यह खबर अपना सामान बेचने की होड़ में मसखरेपन की सीमा तक संवेदनहीन होते जाने की बाजार की सहज प्रवत्ति का उदाहरण है।
इसको पत्रकारिता कहते हैं....
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