साईकिल पर (बकौल इंद्र अवस्थी) अश्वमेघ |
प्रदीप का जीसीएफ के साथियों विवेक और अमित के साथ ट्रेकिंग पर जाने का हिसाब बना। हम ट्रेकिंग पर नहीं गए। एक तो साइकिल बुरा मान जाती दूसरे पैर के अंगूठे में चोट के चलते चलने में तकलीफ थी।
ट्रेकिंग को मना किया तब तक साइकिल वीर Rajiv Ajai Kumar Rai का फोन आ गया। उनको बुला लिया और साइकिलिंग पर निकल लिए।
पहला पड़ाव रहा चिंचू की चाय की दूकान। Priyam Tiwari ने कल घणी तारीफ़ की इस दुकान की। पता चला चिंचू भैया तो घर पर थे। चाय पी गयी। सुबह की पहली थी सो अच्छी लगी।
आगे गोरा बाजार मिला।एक से पूछा तो बोले कि अंगेजों के जमाने में यहां घोड़े बिकते थे इसलिए नाम पड़ा गोरा बाजार।
सड़क पर सब्जी की दुकानों पर महिलाएं अपनी दूकान जमा रहीं थीं।
चिंचू की चाय की दूकान |
मण्डप बनाने का ठेका दिल्ली के किसी टेंट हाउस को मिला है। मजदूर कलकत्ता के रहने वाले हैं।दिल्ली की कम्पनी के कलकतिया मजदूर जबलपुर की शादी के लिए तम्बू-कनात तान रहे थे। लाखों का काम होगा। जनसेवक के पास जनता की सेवा करते हुए इतना पैसा मंगलकार्य में खर्च करने के लिए है। मुक्तिबोध की पंक्तियाँ ऐसे ही याद आ गईं:
उदरम्भरि अनात्म बन गए
भूतों की शादी में कनात से तन गए
किसी व्यभिचार के बन गए बिस्तर।
मजदूरों में से एक नहाने के बाद अंगौछे से पीठ रगड़ता हुआ कोई बंगाली गाना गुनगुनाता पंडाल की तरफ चला गया। हम भी आगे बढ़ लिए।
सब्जी बेचती महिलाएं |
जबलपुर की शादी में तम्बू - कनात लगाने आये दिल्ली की कम्पनी के कलकतिया मजदूर खुले में नहाते हुए |
लौटते हुए रामसेवक यादव मिले। एक पैर से साईकिल चलाते हुए। बेलदारी करते थे रामसेवक। एक दिन बिजली के तार के सम्पर्क में आ गये। दायां पैर और हाथ झुलस गया। पैर ज्यादा भुंज गया।ठेकेदार कमजोर था। ठीक से इलाज नहीं करा पाया। पैर कटाना पड़ा। दायां हाथ की हथेलियाँ भी प्रभावित हुईं। पैर प्लास्टिक का।पहले जयपुर से बनवाया था। अब जबलपुर का बना पैर पहनते हैं।
रामसेवक की साइकिल के कैरियर पर एक सिलाई मशीन रखी थी। वे हवा भरने का और पुराने कपड़े सुधारने का काम करते हैं। कपड़े का काम खुद सीखकर करना शुरु किया। रामसेवक के हौसले की तारीफ़ करते हुए हमने हवा भरवाई।
एक पाँव बिजली के चपेट में आने से कटवाना पड़ा रामकुमार यादव को। साइकिल के कैरियर पर सिलाई मशीन जिससे कपड़े सिलते हैं रामसेवक |
फिर लौटे पूछते हुए। वहीं पहुंचे जहां से लौट गए थे।इस बार लौटे नहीं। आगे बढ़े। और इस बार हम नर्मदा किनारे पहुंच गए। जिस जगह से वापस लौट गए थे पहले उससे 100 मीटर की दूरी पर बह रही थी 'सौंदर्य की नदी नर्मदा।' अगर लौटने का तय नहीं करते तो वंचित रह जाते नर्मदा दर्शन से। लेकिन अगर पहली बार में ही नर्मदा दिख जाती तो फिर गौर नदी का भदभदा घाट छूट जाता। जो हुआ अच्छा ही हुआ।
जमतरा गाँव के संतोष रायकवार की चाय की दूकान |
नदी की जलधार कलकल-छलछल करती हुई। साफ़ नीला पानी। लोग नदी में नहा रहे थे। लोगों को नहाते देख हमसे रहा नहीं गया और हम कमीज और बनियाइन उतारकर नदी के पानी में बिना 'में आई कमिन नर्मदा मैया' कहे उतर गए। पाँव में नदी के पत्थर चुभ रहे थे। लेकिन एक्यूप्रेशर सा मजा आ रहा था।
हम नदी के भीतर एक चट्टान पर ऐसे बैठ गए जैसे वह सोफा हो। देखते-देखते राजीव और फिर अजय राय भी नदी में दाखिल हो गए। अजय राय का बचपन बक्सर के पास एक गाँव में नदी किनारे नदी में नहाते बीता है।पानी देखकर उसमें उतरने से रोक नहीं पाते।
नदी के पानी में साइकिल चलाते अतुल शर्मा |
अपन नदी के पानी में वर्षों बाद उतरे थे। अंतिम याद 1983 की साइकिल यात्रा के दौरान विजयवाड़ा/ विसाखापट्टनम के पास की एक नदी में घण्टो बैठने की थी।
नर्मदा का पानी इतना साफ है कि नदी में डूबे पांव ऊपर से दिख रहे थे। कई बार पानी में डुबकियां लगाते हुए करीब घण्टे भर नदी के 'चट्टान सोफे' पर बैठे रहे। लोगों को तैरते देख तैरना न जानने का अफसोस हुआ। लेकिन साफ जलधारा में बैठने और डुबकी लगाने के अनिर्वचनीय अनुभव ने अफ़सोस को नदी की कलकल जलधारा में प्रवाहित कर दिया।
नदी के पानी खेलती नहाती बच्चियां |
नदी के पानी में बैठे हुए तय किया कि साइकलिंग के लिए लम्बा निकलते समय एक तौलिया, कपड़े और पानी का इंतजाम रख कर चलना चाहिए।
नदी से निकलकर और घूमे आसपास। आसपास के गांव के लोग नहा रहे थे। एक बुजुर्ग महिला पॉलीथिन की सीमेंट की बोरियां धो रहीं थीं सामान रखने के लिए। एक बच्चा अपनी साइकिल पानी में धो रहा था। साइकिल पानी में चलाते हुए। एक बच्ची नर्मदा नदी का पानी एक गगरी में भरकर नदी से बाहर आते बहुत प्यारी लग रही थी।जब तक हम फोटो खींचे वह बाहर आ गयी थी।
लौटते हुए दोपहर हो गयी। गीले कपड़े पहने ही साईकिल चलाने के कारण थोडी भारी चल रही थी साईकिल। लेकिन खरामा खरामा कपड़े सूखते गए। हम अपने ठीहे पर पहुंचे। थके हुए थे। खाये पिए और सो गए। शाम को उठे तो सोचा आज का किस्सा सुनाया जाये आपको।
बताइये कैसी लगी आपको आज की यात्रा। क्या आपका भी मन किया नदी दर्शन का। अगर हाँ तो देर मत करिये। जो साधन हो उससे जो भी नदी पास में हो उस तक पहुँचिये। उसके पानी में उतरिये। अनिर्वचनीय आनंद को अनुभव कीजिये।
फिलहाल इतना ही। नर्मदे हर।
अनूप शुक्ल और राजीव कुमार अनूप शुक्ल और अजय राय
फ़ेसबुक की टिप्पणियां
Priyam Tiwari जो चाय बना रहा है वो रज्जन है। इलाहाबाद का है। चिंचू के यहां नौकरी करता है। पहले दुकान बहुत छोटी थी। कैंटोन्मेंट वाले बुलडोज़र लेकर आते, तोड़ जाते। शाम को दुकान फिर गुलज़ार।
चंदन कुमार मिश्र तो आप रोज़ साइकिल से ही जाते हैं? अस्सी के दशक में भी घूम रहे थे साइकिल से, पढा था हमने शायद
Hirendra Kumar Agnihotri बहुत सुन्दर वर्णन है. नदियां बहुत आकर्षित करती हैं। नदियां तन और मन दोनों को निर्मल करती हैं. जैसा आज आपने महसूस किया. क्या यायावरी तबियत पायी है आपने.
Ashok Agrawal बहुत बढ़िया , निर्मल आनन्द ।
आसपास में ही कितने रोचक चित्र हैं , पारखी नजर से आत्मीय चित्रण
Manoj Yadav abhi padhi nhi hai.kal tasalli se padhenge aapki abhivyakti .aaj kewal pic dekh ke hi khush ho gye.shubh ratri sir
Raag Bhopali वाह....तैरना भी सीख लीजिए। अभी मौक़ा है।
वैसे हमारे मध्यप्रदेश की नदियाँ हैं ही साफ़ सुथरी क्योंकि पवित्रता का बोझा नहीं ढोतीं
Mahesh Shrivastava kya baat hai aaj sham tak dekhte rahe laga ki are aaj to sundey hai , jee nahi laga to abhi dekh rahe hai 12--30 per ab neend theek jamegi
Suman Tiwari डिंडौरी से भेड़ाघाट की यात्रा पढ़ी थी आज की यात्रा भी मज़ेदार रही लेकिन अफसोस कि हम नहीं कर सकते हैं क्योंकि घुटने नाराज़ हैं।
Suraj P. Singh आज की यात्रा कुछ अधिक ही सुंदर! कैमरा लेकर ऐसी यात्राओं का सहभागी होते तो मजा आ जाता।
RB Prasad बहुत सुन्दर वर्णन है. हम तो अदृश्य रूप में आप के साथ रह कर वाह सरे कार्य करते हैं जो आप करते हैं. बेहतरीन .
Samaresh Dutta · Sujit Bose और 3 others के मित्र
Bhagaban aapka bhala kare or cycle chalane ke liye aur shakti de.taki apke upalabdhya roj parsake
Krishn Adhar नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिम् कुरु..।पिता जी आज भी स्नान करते समय देश की पवित्र नदियों का आवाहन करते हैं।आप स्वयं सन्निधि प्राप्त करने पहुंच गये,एक वार भेड़ाघाट मै भी हो आया हूं ..इसी तरह पुनर्स्मरण कराते रहें,धन्यवाद
Mukesh Sharma अकेले रहते है ।आटा पिसाना नहीं है।फिर सायकल में कैरियर क्यों ? क्या सायकल अश्वमेध के लिए आदरणीया को वामांग बिठाने का प्रबंध अभी से कर रखा है ?
Gitanjali Srivastava nice pic
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बढ़िया पोस्ट
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