पुलिया के पास ये दो महिलाएं मिलीं।तेजी से घर की तरफ जाती हुई। लाल माटी में रहती है।शनिवार को हनुमान मन्दिर से शनिचर की मंगनई करके लौट रही हैं। 15 से 20 लोग मांगने वाले आते हैं।मंगलवार और शनिवार दो ही दिन भीख अच्छी मिलती है।बाकी दिन सन्नाटा रहता है।
जैसे दफ्तरों में काम करने वाले कहते हैं कि काश हफ्ते में इतवार और होते वैसे ही शायद हनुमान मन्दिर में मांगने वाले कहते होंगे -काश हफ्ते में एकाध मंगलवार/शनिवार और होते।
भीख में जो पैसा मिलता है वह सब में बंटता है। 40-50 रूपये हरेक के हिस्से में आता है।
मांगने वाले आम तौर पर सुबह 5 से 6 बजे से लेकर शाम के 4 से पांच बजे तक बैठते हैं। कुछ लोग और देर तक भी बैठते हैं।
बातचीत में पीछे बिना चश्मे वाली माताजी ने बताया कि उनका डुकरा (आदमी) 4 साल पहले नहीं रहा।यादव हैं जाति से। पहले ठेकेदार के यहां दिहाड़ी मजदूरी करती थी।खेत में भी काम किया।लेकिन अब बुजुर्ग हो गयी तो ठेकेदार कहते हैं- अम्मा अब तुमसे काम नई हो सकता। सो का करें। मजदूरी में पेट पालने के लाने माँगन लगे।
बाल बच्चे के बारे में पूछने पर बताया-आठ बच्चे हुए। लेकिन सब एक-एक करके ऊपर चले गए।कोई न बचा।
दूसरी वाली माताजी के बेटे बहुरिया हैं। लेकिन वो अलग रहते हैं। ये भी पहले मजूरी करती थीं।लेकिन बुजुर्ग होने के बाद काम मिलना बन्द हो गया। इसलिए हनुमान जी की शरण में आ गईं। बजरंगबली तमाम के सहारे का काम करते हैं। इसीलिये तो भजन है न:
बजरंगबली मेरी नाव चली
जरा बल्ली दया की लगा देना।
फ़ेसबुक की टिप्पणियां
बातचीत में पीछे बिना चश्मे वाली माताजी ने बताया कि उनका डुकरा (आदमी) 4 साल पहले नहीं रहा।यादव हैं जाति से। पहले ठेकेदार के यहां दिहाड़ी मजदूरी करती थी।खेत में भी काम किया।लेकिन अब बुजुर्ग हो गयी तो ठेकेदार कहते हैं- अम्मा अब तुमसे काम नई हो सकता। सो का करें। मजदूरी में पेट पालने के लाने माँगन लगे।
बाल बच्चे के बारे में पूछने पर बताया-आठ बच्चे हुए। लेकिन सब एक-एक करके ऊपर चले गए।कोई न बचा।
दूसरी वाली माताजी के बेटे बहुरिया हैं। लेकिन वो अलग रहते हैं। ये भी पहले मजूरी करती थीं।लेकिन बुजुर्ग होने के बाद काम मिलना बन्द हो गया। इसलिए हनुमान जी की शरण में आ गईं। बजरंगबली तमाम के सहारे का काम करते हैं। इसीलिये तो भजन है न:
बजरंगबली मेरी नाव चली
जरा बल्ली दया की लगा देना।
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- Indu Bala Singh यह है हमारा भारत ....और ...परिवार का बंधन ....
- Hariom Choubey अमीर डाइटिंग करके कम खाते हैं
ग़रीब काे खाना भी नसीब नहीं हाे रहा है. - Shiksha Anuresh Bajpai ओह | हनुमान जी एक दो मंगल शनिच र बढ़ादो
- Devendra Yadav "काश ! हफ्ते में एकाध मंगलवार/शनिवार और होते।"
गहरी वेदना।
शुक्रिया। - Indu Bala Singh जरा बल्ली दया की लगा देना।........जरा जल्दी उपर बुला लेना |
- Swadha Sharma सरकारी योजनाये बस यही पर धरी रह जाती हैं
- Ram Kumar Chaturvedi नाशै रोग हरै सब पीडा़ ।जो सुमिरै हनुमत बलवीरा।
- Raj Narayan Shukla लार्ड बीटी मैकाले ने 1834-35 ई0 मे भारत मे सब जगह दौरा करने के बाद अपने पिता से यहां की स्थिति और अपनी भावी योजनाये पत्र के माध्यम से शेयर किया था। उसने लिखा है कि उसे भारत में कही भी एक भी भिखारी नहीं मिला।
हमारी सन्तानो को संस्कार देने के स्थान पर केवल अक्षर ग्यान(वास्तव मे क्षर) की अंधी दौड़ में दौड़ा रहे हैं। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव के संस्कार....... ? - Raman Kaul Humans of the Pulia.
- Raj Narayan Shukla कानुप्रिया जी
समाज या सरकार क्यो ?
संतानें क्यौं नही ? - Alok Ranjan zindgi jo karaa de ?
- Akhilesh Kumar Sen Wah sir aapka najariya hi alag hai
- Adhir Singhal Great picture....
I think one of your best - Adhir Singhal You mean to say that begging is organised there and everyone pool in the earnings of the day and share equally
- Ghanshyam C. Gupta अनूप शुक्ल भैया,
कोटि नमन! जो कुछ तुम कर रहे हो वह अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण है, कई लोग अपने अपने स्तर पर करते होंगे। पर इसकी रिपोर्ताज से दूर दराज लोगों की भावनाओं को जगाना दोहरी श्लाघा के लिये उपयुक्त है। - Ramakant Singh जय हो
- Arvind Vishwakarma · 7 पारस्परिक मित्रबहुत खूब भैया,
जैसे हंस पानी में मिले दूध का सेवन कर लेता है और पानी को छोड़ देता है। उसी तरह आप जहां भी जाते हैं, हमारे लिये प्रेरणास्पद वस्तु ढूंढ निकालने का काम कर ही देते हैं।
भैया जी, अपने पाटबाबा में इंटर करते साथ ही गेट पर सबसे पहले एक भिखारी ...और देखें
पोस्ट पढ़ के सेंटी हुए :(
ReplyDeleteकमेन्ट करने आया तो देखा कि सारे फेसबुक कमेन्ट है। ये टिप्पणी बक्सा यूजलेस हो गया है :)