Monday, September 21, 2015

कोई रिश्ता हो तो बताइयेगा

कलकत्ता में सुबह पहली नींद खुली 3 बजे । करवट बदलकर सोये फिर तो पलक-पट खुले 5 बजे। साढ़े पांच तक आलस्य की संगत में रहे। फिर निकल लिए टहलने। कलकत्ता की भोर देखने।

कलकत्ता जिसे राजीव गांधी ने मरता हुआ शहर कहा। डॉमिनिक लैपियर ने 'सिटी आफ ज्वाय'। इस शहर में अभी भी कम आमदनी वाला व्यक्ति भी सम्मान की जिंदगी जी सकता है यह इसकी ख़ास बात लगती है मुझे।
एक रिक्शा वाला बरमूडा टाइप जाँघिया पहने ऊपर लुंगी लपेटे सड़क पर टहलता मिला। बोला-हेंयि त पैदा हुआ। रिक्शा चलाता है। 400/500 कमा लेता है। हमने पूछा-काशीपुर घाट कितना दूर।बोला-अनेक दूर। 3 से 4 माइल धर लीजिये।


इस बीच सवारी आ गया। मियाँ-बीबी। लादकर चलने लगे। हमने कहा -एक फोटो खैंच ले। वो ब्रेक मारकर रिक्शा रोक लिया। पोज दिया। देखिये हाथ ब्रेक पर हैं। चला गया।हम आगे बढे।

एक चाय की दुकान पर कुछ लोग जमे थे। हम भी खड़े हो गए। चाय मांगे। बोला-बिस्कुट लीजिएगा? हम बोले-दीजियेगा तो ले लेंगे। दिया एक ठो बिस्कुट। हम खाते हुए चाय पीने लगे।

एक आदमी बेंच पर बैठा खैनी रगड़ रहा था इत्मिनान से। पता चला उसके गाँव से 60 गो लोग कलकत्ता घूमने आये हैं। सबसे बड़ा समस्या निपटने का है। डर ई लगता है कि गांव-देहात का आदमी कहीँ इधर-उधर बैठ गया त आफत।अब त खैर सब घूम लिया। गाड़ी खुल गया वापसी के लिए।

पता किये तो बोले--'समस्तीपुर के रहने वाले हैं। रिक्शा चलाते हैं। कमरा ले लिए हैं।परिवार साथ रहता है।'


बात करते-करते समस्तीपुर वाले बाबू ने अंटी से कुछ निकाला। हम समझे बटुआ-सटुआ कुछ होगा। पर वो कपड़ा में लपेटा हुआ सामान खोला तो वो नोकिया का सबसे मजबूत वाला मोबाईल निकला। सस्ता मोबाईल जिसको फेँककर किसी को मार दो तो मोबाईल को कुछ न हो।बटन दबाकर किसी से बतियाने लगे भाई जी।
दुकान मालिक विजय जादव बलिया जिला के रहने वाले। 25 साल से ऊपर हो गया दुकान चलते हुए। दुकान तबसे है जब यह रोड सिंगल था। कभी-कभी उखड़ता-पछड़ता है दुकान। पर फिर बस जाता है दू चार दिन में।
क्या बदला है कलकत्ता में ममता जी के राज में पूछने पर एक बोला-कुच्छ नहीं बदला। खाली लाईट-फाइट लगवाया है। दूसरे ने आगे बोला- 'ई लाईट तो लगवाया पर इसमें कोई बिजली तो आता नहीं। सब पैसा खाने का खेल है।'


एक रिक्शा वाले वैशाली के रहने वाले। नाम बिन्देश्वर दास। 30 साल से चला रहे रिक्शा। 40 रूपये रोज किराये का रिक्शा। कलकत्ता कैसा लगता है पूछने पर बोले-अच्छा लगता है। बकिया पटना भी जाकर देख चुके एक बार।मन नहीं लगा तो फिर लौट आये।

एक बुजुर्ग और खैनी रगड़ते हुए आहिस्ते से बताते हुए बोले-40 साल से हैं कलकत्ता में। ऊँगली दिखाते हुए बोले-3 बच्चे हैं। 'छोटा परिवार-सुखी परिवार।'

वहीं तख्त पर सर घुटाये हेम नारायण सिंह बैठे थे। पूछा- कहां के रहने वाले? बोले- 'बलिया। चन्द्रशेखर सिंह।' हम बोले-' हाँ पता है। चन्द्रशेखर सिंह रहने वाले थे वहां के। हजारी प्रसाद द्विवेदी भी तो वहीं के थे।' हजारी प्रसाद द्विवेदी के नाम पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई हेम नारायण की। हमारे यहां लोग राजनीतिज्ञों को ही जानते हैं। साहित्यकार का नाम नहीं लेते।


हेम नारायण के सर पर कुछ चोट सी लगी थी। बोले-मस्सा था। नाई को भी नहीं दिखा। उस्तरा चलाया तो कट गया। खून बहने लगा। बहुत फिटकरी लगाया। चूना लगाया। नहीं रुका खून तो फिर कटा हुआ बाल चिपका दिया। तब रुका खून।

65 पार के हेम नारायण 6 भाई थे। अब दो बचे।एक भाई फ़ील्ड गन फैक्ट्री में नौकरी करते थे। वहीं आर्मापुर में टाइप 2 क्वार्टर में रहते थे। जो जगह बताई वह हमारे घर के पास ही है। हमने बताया तो फिर तो यादों के थान के थान खोलते गए हेम नारायण। भाटिया होटल। मसवानपुर। पनकी।और न जाने किन-किन जगहों की याद नदी में डुबकी लगाते रहे ।

एक किताब की दुकान में नौकरी करते हेम नारायण ने शादी नहीं की। पूछने पर बोले- 'बीमार रहते हैं। ऐसा कोई अस्पताल नहीं जहां से लौट के न आये हों। हेपटाइटिस बी भी हो चुका है। इसीलिए शादी बनाये नहीं। अब तो बस आखिरी शादी की तैयारी है।'


शादी की बात पर दुकान मालिक विजय बोले-'आपकी निगाह में कोई लड़की हो तो बताइये।' हम बोले-'तुम लोग देखे नहीं। हम बताएंगे।' फिर बड़ी उम्र में शादी की बात चली तो एक लड़का बोला-'अरे अभी एक 35 साल की लड़की 85 साल के बुड्ढे से शादी बनाई है। जानती है बुढ्ढा टपक जायेगा कुछ दिन में। सब माल उसका होगा।'
हालिया चर्चित दिग्विजय सिंह की शादी का कोई चरचा नहीं हुआ वहां। इतने पॉपुलर नहीं हैं लगता दिग्विजय जी यहां।

इस बीच विजय जादव ठेले के ऊपर से दातुन निकालकर चबाने लगे। हम पूछे-'खास बलिया के हो या किसी गाँव के?' जबाब हेम नारायण देने लगे-'बलिया नहीं। दोआबा पकड़ीये। दोआबा मतलब गंगा और सरयू का बीच का जगह।'

विजय लिट्टी बनाने के लिए लोई में सत्तू भरने लगे। सत्तू भरकर कड़ाही के तेल में छूआकर वहीं रखने लगे। हम चलने लगे तो बोले-'अपना नम्बर देते जाइये।कोई रिश्ता हो तो बताइयेगा भाई जी के लिए।'


लौटते हुए देखा कि एक आदमी सड़क पर खड़ा किसी को हाथ जोड़कर प्रणाम कर रहा था। पूछा तो पता चला कि देवी का मन्दिर है दीवार के पीछे। उन देवी को ही दूर से प्रणाम कर रहा था। वाई-फाई तो अभी आया दुनिया में। पर अपने यहां वाई-फाई प्रणाम अनादि काल से चला आ रहा है। दुनिया में जो भी नई खोज होती है वह हमारे यहां सदियों पहले हो चूका होता है।

दमदम फैक्ट्री के गेट के सामने से गुजरते हुए वापस लौट आये। कलकत्ता की सुबह हो गयी।

आप मजे से रहिये।।मस्त रहिये। बिंदास।

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