सुबह हो गयी कानपुर में। एक और सुबह। शानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद।
सुबह का समय ऐसा होता है जब सारे दुःख ऐसे तिड़ी-बिड़ी हो जाते हैं जैसे सड़क घेरकर खड़े रेहड़ी वाले डण्डा फटकारते आते होमगार्ड को देखकर इधर-उधर फुट लेते हैं। चिंता हाथ जोड़कर विदा हो जाती हैं। हर सुबह जीवन की नई शुरुआत होती है।
हमारे कई मित्र अपनी अनगिनत परेशानियों से जूझते रहते हैं। कभी उदास हो जाते हैं। कभी बहुत उदास। हम भी होते हैं। लगता है कुच्छ नई होना अब। सब समय सरक गया हाथ से। हम तो एक ठो कविता भी लिख मारे थे एक दिन:
लोग कहते हैं कि प्रकृति ने इंसान की मुंडी को घूमने वाला इसलिए बनाया कि वह घूमकर इधर-उधर देख सके। पर मुझे तो यह भी लगता है कि मुंडी घुमाने की व्यवस्था इसलिए भी बनाई गयी है ताकि इंसान अपने सर की परेशानियां झटक सके। नकारात्मक भाव जहां हावी होने की कोशिश करें फौरन सर जोर से हिलाएं ताकि अवसाद सर से नीचे आकर गिरे। उसके हाथ-पाँव ऐसे टूटें कि दुबारा आपके सर चढ़ने की कोशिश न करें।
सुबह-सुबह ज्ञान की बात भौत गड़बड़ बात है पर एक बेवकूफी यह भी सही।
अपने सब मित्रों को हम यही समझाते हैं कि दुःख और अवसाद और परेशानी और हर तरह के नकार भाव से निपटने का सबसे बढ़िया तरीका है उसका तारतम्य तोड़ना। परेशानी आप पर हावी हो रही है तो जरा सा हिला दीजिये उसको। चेहरे पर बारह की जगह दस बजकर दस मिनट हो जाएंगे।
कभी-कभी शौकिया उदासी ठीक बात है जिससे कुछ शेरो शायरी निकल आये। हम भी लिखते हैं कभी-कभी न उदासी में नहाये शेर। पर ऊ तो नदी में नहाकर तरोताजा होने जैसा होता है। नदी में नहाना और उसके भँवर में फंसना अलग बात है।
खुश रहिये। मस्त रहिये। बिंदास। दुःख और उदासी का तारतम्य तोड़िये। न कुछ समझ आये तो प्रसाद की कविता गुनगुनाइए:
आपकी सुबह गुड वाली मॉर्निंग हो।
सुबह का समय ऐसा होता है जब सारे दुःख ऐसे तिड़ी-बिड़ी हो जाते हैं जैसे सड़क घेरकर खड़े रेहड़ी वाले डण्डा फटकारते आते होमगार्ड को देखकर इधर-उधर फुट लेते हैं। चिंता हाथ जोड़कर विदा हो जाती हैं। हर सुबह जीवन की नई शुरुआत होती है।
हमारे कई मित्र अपनी अनगिनत परेशानियों से जूझते रहते हैं। कभी उदास हो जाते हैं। कभी बहुत उदास। हम भी होते हैं। लगता है कुच्छ नई होना अब। सब समय सरक गया हाथ से। हम तो एक ठो कविता भी लिख मारे थे एक दिन:
सबेरा अभी हुआ नहीं हैकित्ती तो शानदार कविता है। पर सोचिये कि सारा दिन यह सोचकर क्यों गुजारना कि दिन गुजर गया। भौत गड़बड़ बात।
पर लगता है
यह दिन भी गुजर गया हाथ से
हथेली में जकड़ी बालू की तरह।
अब सारा दिन
फिर इसी एहसास से जूझना होगा।
लोग कहते हैं कि प्रकृति ने इंसान की मुंडी को घूमने वाला इसलिए बनाया कि वह घूमकर इधर-उधर देख सके। पर मुझे तो यह भी लगता है कि मुंडी घुमाने की व्यवस्था इसलिए भी बनाई गयी है ताकि इंसान अपने सर की परेशानियां झटक सके। नकारात्मक भाव जहां हावी होने की कोशिश करें फौरन सर जोर से हिलाएं ताकि अवसाद सर से नीचे आकर गिरे। उसके हाथ-पाँव ऐसे टूटें कि दुबारा आपके सर चढ़ने की कोशिश न करें।
सुबह-सुबह ज्ञान की बात भौत गड़बड़ बात है पर एक बेवकूफी यह भी सही।
अपने सब मित्रों को हम यही समझाते हैं कि दुःख और अवसाद और परेशानी और हर तरह के नकार भाव से निपटने का सबसे बढ़िया तरीका है उसका तारतम्य तोड़ना। परेशानी आप पर हावी हो रही है तो जरा सा हिला दीजिये उसको। चेहरे पर बारह की जगह दस बजकर दस मिनट हो जाएंगे।
कभी-कभी शौकिया उदासी ठीक बात है जिससे कुछ शेरो शायरी निकल आये। हम भी लिखते हैं कभी-कभी न उदासी में नहाये शेर। पर ऊ तो नदी में नहाकर तरोताजा होने जैसा होता है। नदी में नहाना और उसके भँवर में फंसना अलग बात है।
खुश रहिये। मस्त रहिये। बिंदास। दुःख और उदासी का तारतम्य तोड़िये। न कुछ समझ आये तो प्रसाद की कविता गुनगुनाइए:
दुःख की पिछली रजनी बीचठीक न। चलिए अब मुस्कराइए। काम पर लग जाइए। कोई काम न हो तो एक बार फिर मुस्कराइए। अभी मुस्कान पर कोई टैक्स नहीँ लगा। टेक्स फ्री मुस्कान के साथ देखिये आप कितने हसीन लग रहे हैं।
विलसता सुख का नवल प्रभात।
आपकी सुबह गुड वाली मॉर्निंग हो।
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