राजू पटेल मिले आज दोपहर को पुलिया पर। इनको पहली बार रामफल यादव के साथ देखा था। फिर कई बार देखा। इतवार को अक्सर रामफल के पास बैठे मिलते।
आज मिले तो बताया कि दादा (रामफल) नहीं रहे। हमने कहा-'हां हमको पता है।'
राजू पटेल कुछ रूपये गिन रहे थे। हमको आते देखा तो रूपये जेब में रखकर बात करने लगे। हमने हाल-चाल पूछा तो बोले--'हाल बेहाल हैं। काम नहीं मिल रहा। रेत महंगी हो गयी है। बिल्डिंग का काम बन्द है। सुबह से गए थे। कोई काम नहीं मिला। अब घर जा रहे हैं।'
आज मिले तो बताया कि दादा (रामफल) नहीं रहे। हमने कहा-'हां हमको पता है।'
राजू पटेल कुछ रूपये गिन रहे थे। हमको आते देखा तो रूपये जेब में रखकर बात करने लगे। हमने हाल-चाल पूछा तो बोले--'हाल बेहाल हैं। काम नहीं मिल रहा। रेत महंगी हो गयी है। बिल्डिंग का काम बन्द है। सुबह से गए थे। कोई काम नहीं मिला। अब घर जा रहे हैं।'
हमने कहा- 'बिल्डिंग का काम नहीं मिल रहा तो कोई और मजदूरी का काम करो।' राजू बोले-'कहीं कोई काम नहीं मिला। अभी तक बैठे थे।'
बातचीत करते हुए घर में राशन पानी न होने की बात कही राजू ने। हम कोई काम मिल जाने की आशा बंधाने लगे। वो अपनी परेशानी बताने लगे। भविष्य की आशा और वर्तमान की हताशा में कुश्ती होने लगी।
इस बीच राजू ने कुछ पैसे उधार मांगे। राशन के लिए। मैंने हिचकते हुए मना कर दिया-अभी पास में नहीँ हैं। पिछले 3 साल में जिनको को मैंने उधार पैसे दिए, वापस नहीं मिले। रकम बहुत छोटी होने के साथ ही जिन लोगों को पैसे दिए वे बहुत कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोग रहे इसलिए ज्यादा अफ़सोस नहीं हुआ। लेकिन जब भी कोई उधार माँगता है तो लगता है कि ये पैसे हमारे पास से सदा के लिए विदा हो रहे हैं। हमारे मना करने के पीछे यही याद हावी थी।
मना करने के बाद हम फिर से काम मिलने की आशा बंधाने लगे राजू को।उसने कहा कोई बात नहीं। नहीं है तो कोई बात नहीं। हमको नन्दन जी की कविता पंक्ति याद आई:
हमको अपने मना करने का अफ़सोस हुआ। पैसे न होने की बात भी झूठ थी। फिर हमने पूछा-'अच्छा कित्ते पैसे चाहिए।'
जो बताये हमने जेब से निकाल कर दे दिए। तीन दिन पहले मॉल में जंक फ़ूड खाने में जितना पैसा खर्च हुआ था उससे आधे पैसे ही मांगे थे राजू पटेल ने। वह भी उधार। हम कूड़ा खाना खाकर कब का भूल गए। पर उस खर्च का आधा पैसा (उधार में दिया) न जाने कब तक याद रखेंगे।
'नेकी कर दरिया में डाल' अब लागू नहीँ होता। दरिया सब सूख गयीं हैं। दूसरी बात दरिया में कुछ डालने पर बवाल हो जाता है। कल बनारस में हुआ ही। इसलिए हमने सोचा इसको फेसबुक पर डाल देते हैं। 'नेकी कर फेसबुक पर डाल।'
कहने को तो हम यह भी कह सकते हैं कि कोई नेकी-वेकी नहीँ की। फोटो खींची थी। डाल रहे थे तो साथ में नेकी भी डाल दी। smile इमोटिकॉन
क्या पता यही सच भी हो। smile इमोटिकॉन
#पुलिया
राजू पटेल पुलिया पर। आज भी काम नहीँ मिला।
बातचीत करते हुए घर में राशन पानी न होने की बात कही राजू ने। हम कोई काम मिल जाने की आशा बंधाने लगे। वो अपनी परेशानी बताने लगे। भविष्य की आशा और वर्तमान की हताशा में कुश्ती होने लगी।
इस बीच राजू ने कुछ पैसे उधार मांगे। राशन के लिए। मैंने हिचकते हुए मना कर दिया-अभी पास में नहीँ हैं। पिछले 3 साल में जिनको को मैंने उधार पैसे दिए, वापस नहीं मिले। रकम बहुत छोटी होने के साथ ही जिन लोगों को पैसे दिए वे बहुत कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोग रहे इसलिए ज्यादा अफ़सोस नहीं हुआ। लेकिन जब भी कोई उधार माँगता है तो लगता है कि ये पैसे हमारे पास से सदा के लिए विदा हो रहे हैं। हमारे मना करने के पीछे यही याद हावी थी।
मना करने के बाद हम फिर से काम मिलने की आशा बंधाने लगे राजू को।उसने कहा कोई बात नहीं। नहीं है तो कोई बात नहीं। हमको नन्दन जी की कविता पंक्ति याद आई:
नदी की कहानी कभी फिर सुनाना
मैं प्यासा हूँ दो घूंट पानी पिलाना।
हमको अपने मना करने का अफ़सोस हुआ। पैसे न होने की बात भी झूठ थी। फिर हमने पूछा-'अच्छा कित्ते पैसे चाहिए।'
जो बताये हमने जेब से निकाल कर दे दिए। तीन दिन पहले मॉल में जंक फ़ूड खाने में जितना पैसा खर्च हुआ था उससे आधे पैसे ही मांगे थे राजू पटेल ने। वह भी उधार। हम कूड़ा खाना खाकर कब का भूल गए। पर उस खर्च का आधा पैसा (उधार में दिया) न जाने कब तक याद रखेंगे।
'नेकी कर दरिया में डाल' अब लागू नहीँ होता। दरिया सब सूख गयीं हैं। दूसरी बात दरिया में कुछ डालने पर बवाल हो जाता है। कल बनारस में हुआ ही। इसलिए हमने सोचा इसको फेसबुक पर डाल देते हैं। 'नेकी कर फेसबुक पर डाल।'
कहने को तो हम यह भी कह सकते हैं कि कोई नेकी-वेकी नहीँ की। फोटो खींची थी। डाल रहे थे तो साथ में नेकी भी डाल दी। smile इमोटिकॉन
क्या पता यही सच भी हो। smile इमोटिकॉन
#पुलिया
राजू पटेल पुलिया पर। आज भी काम नहीँ मिला।
No comments:
Post a Comment