जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
चाय की दूकान पर यही बज रहा है। इसमें बताया गया कि सारे कल्याणकारी कार्यक्रम गणेश जी के जिम्मे हैं। सरकारों के कल्याणकारी कामों से हाथ खींचते जाने का कारण समझ में आता है। जो काम सरकार का है ही नहीं उसमें वह क्यों अपना दखल दे।कल्याण करने का काम गणेश जी का है। वे करें। सरकार का काम शासन करना है वो कर रही है।
दुकानों में जगहर हो गयी है। सामने भट्टी सुलग रही है। लपटें कड़ाही और भगौने को गर्म कर रहीं हैं। चाय वाला चाय बना रहा है। दस मिनट लगेंगे। इस बीच कानपुर में पत्नी को फोन करके जगाया है। वो बताती हैं वो तो पहले से ही जाग रहीं थीं। उनको स्कूल जाना है। ऑटो वाले को फोन करके आने को बोला है।
तकनीक ने दूरियां कम करने का आभास कम किया है। कानपुर के लिए ऑटो जबलपुर से बुलाया जाता है। 100 मीटर दूर खड़े इंसान को बुलाने के लिए 500 किमी दूर से फोन करवाकर बुलवाया जाना सम्भव हुआ है। लेकिन वास्तविक दूरियां जस की तस बनी हुई हैं।
सामने सूरज ललछौंहा सा दिख रहा है। लाल सेव की तरह धरा है आसमान की थाली में। हनुमान जी ने जब कभी सूरज को निगला होगा "लील्यो ताहि मधुर फल जानू" के बहाने तो वो पक्का सुबह का समय रहा होगा। इससे यह भी पता चलता है कि हनुमान जी सुबह उठकर नाश्ते में फल लेते होंगे।
बगल में एक साइकिल रिक्शा पर एक आदमी बैठा हुआ है। पैर से लाचार है शायद। एक महिला उसके पास खड़ी हुई जल्दी जल्दी उससे बतियाती है। अपनी बातें खर्चकर वह चली जाती है। अब एक दूसरा आदमी अंगड़ाई लेते हुए उससे कुछ कह रहा है।बीच बीच में वह सामने सड़क पर भी देखता जा रहा है।
पता नहीं कैसे याद आता है कि सरकारें अब सड़क पर सीसीटीवी लगवाने की बातें करती हैं। मैं उस दिन की कल्पना करता हूँ जब सारे देश में सीसीटीवी लग जाएंगे।सरकार के लोग सब हाल सीसीटीवी पर देख लेगी और फौरन एक्शन ले लेगी। सड़क पर कूड़ा दिखेगा, सरकार कम्प्यूटर एक्सपर्ट को बुलवायेगी, स्क्रीन से कूड़ा हट जाएगा। जनता कहेगी कूड़ा अभी हटा नहीं है।सरकार कहेगी -'हमें तो दिख नहीं रहा। दिखाओ तो हटायें।' जनता सरकार को कूड़ा स्थल ले जायेगी।कूड़ा दिखाएगी। सरकार अपनी मजबूरी बताएगी। कहेगी- "हम सीसीटीवी पर दिखने वाला कूड़ा हटाने के लिए कटिबद्ध है। सड़क का कूड़ा हटाने का काम हमारा नहीं है।"
याद की बात चली तो याद आया कि पिछले कई दिनों कुछ लोग नर्मदा नदी में पानी में खड़े हुए आंदोलन कर रहे हैं। वे नर्मदा नदी पर बनने वाले बाँध की ऊंचाई बढाने का विरोध कर रहे हैं। मीडिया बिचारा कनाडा, थाईलैंड के जाम में फंसा है। पहुंच ही नहीं पा रहा है नर्मदा नदी में खड़े लोगों तक।आंदोलन करने वालों को भी समझ नहीं है शायद कि मीडिया केवल जंतर मंतर के आंदोलन देख पाती है। नदी तक ओबी वैन भी नहीं आ पाएगी। कैमरामैन के पत्रकार के कपड़े गीले हो जाएंगे इसको कवर करने में।वैसे भी बांध की ऊंचाई बढ़ाने का विरोध विकास विरोधी सोच है। विकास का विरोध भला आज के समय में कौन करना चाहेगा।
सड़क पर ऑटो धड़धड़ाते हुए चले जा रहे हैं।उनकी तेजी से लग रहा है कि ऑटो डरे हुए हैं कि अभी न भागे तो कल को कहीं सड़क खत्म न हो जाए। सब हड़बड़ाए,भड़भड़ाये सरपट भागते चले जा रहे हैं। किसी को किसी से बतियाने की फुरसत नहीं है। हम अपनी तुकबन्दी याद करते हैं:
"आओ बैठे कुछ देर पास में
कुछ कह लें सुन में बात-बात में।
ये दुनिया बढ़ी तेज चलती है
बस जीने के खातिर मरती है
पता नहीं कहां पहुंचेगी
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी?
हम कब मुस्काये याद नहीं
कब लगा ठहाका याद नहीं।"
ओह हम भी कहां टहलाने लगे सुबह सुबह आपको। देखिये कितनी सुहानी सुबह है। मुस्कराइए क़ि आप फेसबुक पर हैं। हां अब ठीक। कितनी क्यूट स्वीट तो मुस्कान लग रही है आपकी। एकदम लव यू टाइप। एक सेल्फ़ी तो बनती है। लीजिये और फेसबुक पर अपलोड कीजिये न। हम भी जरा देखें जलवा-ए-मुस्कान का सुबह सुबह।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
चाय की दूकान पर यही बज रहा है। इसमें बताया गया कि सारे कल्याणकारी कार्यक्रम गणेश जी के जिम्मे हैं। सरकारों के कल्याणकारी कामों से हाथ खींचते जाने का कारण समझ में आता है। जो काम सरकार का है ही नहीं उसमें वह क्यों अपना दखल दे।कल्याण करने का काम गणेश जी का है। वे करें। सरकार का काम शासन करना है वो कर रही है।
दुकानों में जगहर हो गयी है। सामने भट्टी सुलग रही है। लपटें कड़ाही और भगौने को गर्म कर रहीं हैं। चाय वाला चाय बना रहा है। दस मिनट लगेंगे। इस बीच कानपुर में पत्नी को फोन करके जगाया है। वो बताती हैं वो तो पहले से ही जाग रहीं थीं। उनको स्कूल जाना है। ऑटो वाले को फोन करके आने को बोला है।
तकनीक ने दूरियां कम करने का आभास कम किया है। कानपुर के लिए ऑटो जबलपुर से बुलाया जाता है। 100 मीटर दूर खड़े इंसान को बुलाने के लिए 500 किमी दूर से फोन करवाकर बुलवाया जाना सम्भव हुआ है। लेकिन वास्तविक दूरियां जस की तस बनी हुई हैं।
सामने सूरज ललछौंहा सा दिख रहा है। लाल सेव की तरह धरा है आसमान की थाली में। हनुमान जी ने जब कभी सूरज को निगला होगा "लील्यो ताहि मधुर फल जानू" के बहाने तो वो पक्का सुबह का समय रहा होगा। इससे यह भी पता चलता है कि हनुमान जी सुबह उठकर नाश्ते में फल लेते होंगे।
बगल में एक साइकिल रिक्शा पर एक आदमी बैठा हुआ है। पैर से लाचार है शायद। एक महिला उसके पास खड़ी हुई जल्दी जल्दी उससे बतियाती है। अपनी बातें खर्चकर वह चली जाती है। अब एक दूसरा आदमी अंगड़ाई लेते हुए उससे कुछ कह रहा है।बीच बीच में वह सामने सड़क पर भी देखता जा रहा है।
पता नहीं कैसे याद आता है कि सरकारें अब सड़क पर सीसीटीवी लगवाने की बातें करती हैं। मैं उस दिन की कल्पना करता हूँ जब सारे देश में सीसीटीवी लग जाएंगे।सरकार के लोग सब हाल सीसीटीवी पर देख लेगी और फौरन एक्शन ले लेगी। सड़क पर कूड़ा दिखेगा, सरकार कम्प्यूटर एक्सपर्ट को बुलवायेगी, स्क्रीन से कूड़ा हट जाएगा। जनता कहेगी कूड़ा अभी हटा नहीं है।सरकार कहेगी -'हमें तो दिख नहीं रहा। दिखाओ तो हटायें।' जनता सरकार को कूड़ा स्थल ले जायेगी।कूड़ा दिखाएगी। सरकार अपनी मजबूरी बताएगी। कहेगी- "हम सीसीटीवी पर दिखने वाला कूड़ा हटाने के लिए कटिबद्ध है। सड़क का कूड़ा हटाने का काम हमारा नहीं है।"
याद की बात चली तो याद आया कि पिछले कई दिनों कुछ लोग नर्मदा नदी में पानी में खड़े हुए आंदोलन कर रहे हैं। वे नर्मदा नदी पर बनने वाले बाँध की ऊंचाई बढाने का विरोध कर रहे हैं। मीडिया बिचारा कनाडा, थाईलैंड के जाम में फंसा है। पहुंच ही नहीं पा रहा है नर्मदा नदी में खड़े लोगों तक।आंदोलन करने वालों को भी समझ नहीं है शायद कि मीडिया केवल जंतर मंतर के आंदोलन देख पाती है। नदी तक ओबी वैन भी नहीं आ पाएगी। कैमरामैन के पत्रकार के कपड़े गीले हो जाएंगे इसको कवर करने में।वैसे भी बांध की ऊंचाई बढ़ाने का विरोध विकास विरोधी सोच है। विकास का विरोध भला आज के समय में कौन करना चाहेगा।
सड़क पर ऑटो धड़धड़ाते हुए चले जा रहे हैं।उनकी तेजी से लग रहा है कि ऑटो डरे हुए हैं कि अभी न भागे तो कल को कहीं सड़क खत्म न हो जाए। सब हड़बड़ाए,भड़भड़ाये सरपट भागते चले जा रहे हैं। किसी को किसी से बतियाने की फुरसत नहीं है। हम अपनी तुकबन्दी याद करते हैं:
"आओ बैठे कुछ देर पास में
कुछ कह लें सुन में बात-बात में।
ये दुनिया बढ़ी तेज चलती है
बस जीने के खातिर मरती है
पता नहीं कहां पहुंचेगी
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी?
हम कब मुस्काये याद नहीं
कब लगा ठहाका याद नहीं।"
ओह हम भी कहां टहलाने लगे सुबह सुबह आपको। देखिये कितनी सुहानी सुबह है। मुस्कराइए क़ि आप फेसबुक पर हैं। हां अब ठीक। कितनी क्यूट स्वीट तो मुस्कान लग रही है आपकी। एकदम लव यू टाइप। एक सेल्फ़ी तो बनती है। लीजिये और फेसबुक पर अपलोड कीजिये न। हम भी जरा देखें जलवा-ए-मुस्कान का सुबह सुबह।
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