हिन्दुस्तान अखबार में 01-12-15 |
बड़ा बहुरुपिया है यह वेतन आयोग भी। देने वालो को दिखता है कि उसने अपना
सब कुछ लुटा दिया देने में। पाने वाला सोचता है कि उसको तो लूट लिया देने वाले देने
और पाने वाले दोनों समान भाव से लुटा हुआ महसूस कर रहे हैं वेतन आयोग से।
देखा जाये तो मामला पैसे का ही है। पैसा बढ़ता तो भी वह बाजार ही जाता।
पैसे की नियति ही है बाजार पहुंचना। जेब किसी की हो पैसा उसमें पहुंचते ही बाजार जाने के लिये मचलता है। किसी को नये कपड़े लेने
होते हैं , किसी को मोबाइल। कोई कार के लिये हुड़कता है, कोई मकान के लिये। सबके
लिये बाजार ही जाना होता है। बाजार पैसे का मायका होता है। जितनी तेजी से आता है
जेब में पैसे उससे तेजी से वापस जाने के लिये मचलता है। उसको बाजार में ही चैन
मिलता है। किसी की जेब में रहना अच्छा लगता नहीं पैसे को।
अभी तो लोग पैसे को देख भी लेते हैं आमने-सामने। कभी दुआ सलाम भी हो
लेती है पैसे से। समय आने वाला है पैसा बाजार में ही रहेगा। आपके पास आने के लिये
कहा जायेगा तो बोलेगा- समझ लो पहुंच गये जेब में। बताओ हमारे बदले में क्या चाहिये
तुमको। चीज तुम्हारे पास पहुंच जायेगी। हमको डिस्टर्ब न करो। यहीं रहन दो बाजार
में आराम से।
क्या पता पैसे के बाजार में ही बने रहने की जिद और मनमानी के चलते आने वाले समय में वेतन आयोग लोगों के वेतन बढने
की जगह ’मियादी गिफ़्ट वाउचर’ देने की
घोषणा होने लगे।
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