दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन में सालों तक चलते हुए घपले के खुलासे की खबर देखकर दुख हुआ। दुःख का कारण भ्रष्टाचार का 'सभ्य खेल' की आड़ में होना कतई नहीँ था। यह तो सहज बात है। सच तो यह है कि अब भ्रष्टाचार और सभ्यता में चोली-दामन का ही नहीं बल्कि तथा गरीबी और भुखमरी का भी रिश्ता होता है।
आज के समय में किसी क्षेत्र से घपले की खबर नहीं आती तो किसी बड़ी अनहोनी की आशंका से जी धुकुर-पुकुर करने लगता है। घोटाले की खबर आते ही सुकून होता है कि वहां काम-काज सुचारू रूप से चल रहा है। आज तो लगता है कि किसी समाज के विकसित होने की दर उसमें होते भ्रष्टाचार के समानुपाती होती है।
दुख का कारण आधुनिक समय में भी भ्रष्टाचार के सदियों पुराने तरीकों को देखकर हुआ। इंटरनेट, मोबाइल, आनलाइन बैंकिंग के ज़माने में भ्रष्टाचार के लिए ’फर्जी बिल-बाउचर घराने की’ देखकर लगा कि डींगे हम भले 21वीं सदी में पहुंचने की हांके लेकिन घपलों-घोटालों के मामले में हम 18 वीं सदी में ही अटके हुए हैं। भ्रष्टाचार के तरीके अपनाने के मामले में बहुत पिछड़े हुये हैं हम।
बाकी जिनको फर्जी नाम, पते वाली कपंनियों के नाम भुगतान पर आपत्ति है वे भारतीय संस्कृति से अनजान हैं। उनको पता ही नहीँ शायद कि अपनी धन की देवी लक्ष्मी जी स्वभाव से चंचला हैं। किसी भक्त पर कृपालु होने के लिए वे किसी टैन नम्बर, पैन नंबर की मोहताज नहीं होती। भक्त पर धनवर्षा करने के लिए वे उसका निवास प्रमाण पात्र नहीं देखती। जहाँ उनका वाहन उल्लू खड़ा हो गया वहीँ वे धनवर्षा कर देती हैं।
सच तो यह है कि फर्जी कम्पनियों के कागज पर ही होने से जनता का ही पैसा बचा। अगर कहीं सच में ही वे कंपनियां होतीं तो उनके लिए बिल्डिंग बनाने, उनको चलाने का खर्च भी आम जनता के ही मत्थे आता। कंपनियां कागज पर होने से घपला सस्ते में हो गया।
घपले का खुलासा करने के बाद इसमें किसी भी किस्म की राजनीति से इंकार करते हुए क्रिकेटर ने सवाल भी उछाला-' मुझे बताओ न इसमें राजनीति कहाँ है?' किसी ने उनको कुछ बताया नहीं लेकिन कुछ लोगों ने नाम न बताया बताने की शर्त के साथ बताया कि उसी समय वहां एक भजन चल रहा था:
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में।
मैं तो तेरे पास में।
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