Thursday, January 07, 2016

नाना के संग हंसती बच्ची

'बाबा हमारे बंगलौर से जबलपुर आये थे। फिर यहीं बस गए। जबलपुर ही हमारा घर हो गया।' --कल दोपहर को पुलिया पर अपनी नातिन गौरी के साथ 'खेलते हुए' 52 साल के कैलाश स्वामी ने बताया।
मूलत: तमिलनाडु के रहने वाले कैलाश स्वामी अब पक्के जबलपुरिया हैं। हिन्दी ही बोल पाते हैं। 'तमिल इल्लै'। मतलब तमिल नहीं जानते।

दो बेटियां हैं। दोनों की शादी हो गयी। दामाद प्राइवेट काम करते हैं। खुद कैलाश स्वामी भी रोजनदारी पर काम करते हैं। आज काम नहीं मिला तो नातिन को लेकर पुलिया पर आ गए।
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नातिन गौरी का स्कूल का नाम सुरभि पिल्लै है कक्षा एक में पढ़ती है। छोटा अ, बड़ा अ सीख रही है। नाना के साथ खेलते हुए खिलखिला रही है। खिलखिलाते हुए नाना की गोद में भी सिमट सी जाती है। लगता है नाना से बहुत पटती है गौरी की। उसके हाथ में नाखून बढे हुये हैं। उनमें मैल भी जमा है।

बेटियां जब छोटी थीं 4/5 साल की तब ही पत्नी नहीं रहीं। फिर शादी नहीं की। खुद बच्चियों को पाला। आसपास किसी के घर छोड़कर काम पर चले जाते थे। खाना खुद बनाते थे। अब भी खुद बनाते हैं खाना। लड़कियां अपने-अपने घरों में रहती हैं।

पत्नी के न रहने पर दुबारा शादी न करने का कारण बताते हुए कुमार स्वामी ने बताया-"अगर शादी करते तो भगवान की दया से उससे भी बच्चे होते। फिर इन बच्चों के साथ तालमेल गड़बड़ाता। पता नहीं एडजस्ट हो पाते कि नहीं। इसलिए शादी नहीं की।"

लेकिन जब पत्नी नहीं रही तो तुम जवान रहे होंगे। कभी मन करता होगा किसी के साथ रहने का। तब क्या करते थे?

इस सवाल का जबाब पहले शरमाते हुए और फिर बहादुरी वाले मर्दाने अंदाज में देते हुए जो बताया स्वामी जी ने उसका लब्बो-लुआब जो निकल सकता है वह निकालने के लिए आप अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाइए।
पर लौटते समय मैं यह सोच रहा था कि दुनिया कितनी भी आधुनिक हो जाए, समय के हिसाब से समाज संचालन की कितनी भी चुस्त तरकीबें बना लें। रिश्ते, नाते, नियम, क़ानून बना लें लेकिन व्यक्ति मूलत: स्त्री-पुरुष ही होते हैं। बाकी सारे रिश्ते कृत्तिम होते हैं और वे हर समाज के लोगों के मन में साफ्टवेयर की तरह अलग से भरे जाते हैं।लेकिन प्राकृतिक आवश्यकताएं हमेशा सामाजिक मर्यादाओं का अतिक्रमण करने का प्रयास करती हैं। अब यह अलग बात है कि पुरुष द्वारा मर्यादाओं का उल्लंघन करना उसकी मर्दानगी मानी जाती है। स्त्री के मामले में इसे चरित्रहीनता कहते हैं।

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